न्यायिक पुनरावलोकन
प्रश्न – भारत के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायिक पुनरावलोकन
क्षेत्राधिकार को स्पष्ट कीजिए।
न्यायालय
की वह शक्ति जिसके तहत वह किसी कानून को विधि अथवा संविधान के विरुद्ध समझ कर उसे
असंवैधानिक घोषित कर सकें, न्यायिक
पुनर्विलोकन कहलाता है। अमेरिका से ली गयी न्यायिक पुनर्विलोकन की अवधारणा के संबंध
में संविधान में कोई प्रावधान नहीं है फिर भी विभिन्न अनुच्छेदों के माध्यम से उच्चतम
न्यायालय को यह शक्ति प्राप्त है।
अनुच्छेद 13 |
मौलिक अधिकारों के कानून की संगतता की जांच |
अनुच्छेद 32 |
मौलिक अधिकारों के उल्लंघन में रिट जारी करने की शक्ति |
अनुच्छेद 132 |
संविधान की व्याख्या से संबंधित प्रश्नों में सर्वोच्च न्यायालय
में अपील |
अनुच्छेद 245 |
संसद तथा राज्य विधान मंडल द्वारा बनाई गई विधि संवैधानिक
प्रावधानों के अनुकूल होनी चाहिए। |
अनुच्छेद 246 |
केंद्र या राज्य विधायिका अपनी सीमा के बाहर यदि कोई कानून बनाते
हैं तो न्यायालय कानून को अवैध घोषित कर सकता है। |
अनुच्छेद 368 |
संविधान संशोधन की विधि संगतता की जांच। |
भारत में सर्वोच्च
न्यायालय के न्यायिक पुनर्विलोकन के अधिकार असीमित नहीं
है तथा संवैधानिक प्रावधानों, विधि द्वारा
स्थापित प्रक्रिया,
मूल अधिकारों की सीमाएं, अनूसूची 9 के प्रावधानों,
सातवीं अनुसूची आदि से न्यायिक पुनर्विलोकन का दायरा सीमित हो गया
है फिर भी न्यायालय ने न्यायिक पुनर्विलोकन शक्ति द्वारा
अपने निर्णयों के माध्यम से विभिन्न सिद्धांत दिए जिसने राज्य एवं नागरिकों के
बीच संतुलन स्थापित करने का कार्य किया।
शब्द संख्या- लगभग 200
कृपया
ध्यान दें
- मेरे अनुसार 7 नम्बर के इस प्रश्न का उत्तर 100-150 शब्दों से ज्यादा लिखना उचित नहीं है फिर भी आपकी बेहतर समझ के लिए शब्द सीमा को थोड़ा पार किया जा रहा है। आप उत्तर लिखते समय थोड़ बहुत सुधार के साथ इसे शब्द सीमा में लिखने का प्रयास करें।
- यह मॉडल उत्तर GK BUCKET टीम द्वारा उपलब्ध कराया जा रहा है जिसमें सुधार आपेक्षित है और आप अपनी समझ तथा आवश्यकता के अनुसार उत्तर में सुधार , अन्य महत्पूर्ण तथ्यों को जोड़ कर कर बेहतर उत्तर लिख सकते हैं । हमारा प्रयास केवल आपको मार्गदर्शन करना है।
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