प्रश्न- भारत में गत्यात्मक धर्म-निरपेक्षता को आलोचनात्मक दृष्टि से विश्लेषित कीजिए।
गत्यात्मक
धर्मनिरपेक्षता एक आदर्श है जो मानता है कि राष्ट्रीय और सामाजिक व्यवस्था को धर्म
से स्वतंत्र रखना चाहिए। भारत में गत्यात्मक धर्मनिरपेक्षता को संविधानिक रूप से
स्वीकृति मिली है । भारत में गत्यात्मक
धर्मनिरपेक्षता की आलोचनात्मक दृष्टि से कुछ मुद्दे हैं जिसे निम्न प्रकार से
समझा जा सकता है
- धार्मिक समन्वय की कमी- कुछ लोगों का मानना हैं कि भारत में गत्यात्मक धर्मनिरपेक्षता धार्मिक पक्षपात को बढ़ावा देती है। उनके अनुसार, गत्यात्मक धर्मनिरपेक्षता के नाम पर धार्मिक समुदायों को विशेष अधिकार मिलते हैं और धर्मीय मुद्दों को उठाने की प्रवृत्ति होती है। इसके परिणामस्वरूप, धर्मों के बीच सामंजस्य की कमी और टकराव बढ़ सकते हैं।
- समावेशीकरण-गत्यात्मक
धर्मनिरपेक्षता में माना जाता है कि धर्मों की समावेशीकरण को प्रोत्साहित करती है
और जाति,
धर्म और धार्मिक विभाजन को बढ़ावा देती है। इसमें कहीं न कहीं
धार्मिक अल्पसंख्यक समुदायों को सामाजिक और राजनीतिक संस्थाओं में शामिल करने की
प्रवृत्ति हो सकती है, जिससे समावेशीकरण की समस्या उठ सकती
है।
- न्यायिक संरक्षण- यह माना
जाता है कि गत्यात्मक धर्मनिरपेक्षता न्यायिक संरक्षण के माध्यम से अपना उद्देश्य
प्राप्त नहीं कर पा रही है। धार्मिक हिंसा, असमान व्यवस्था और अन्य
धार्मिक विवादों के मामलों में न्याय की प्राप्ति करने में विफलता देखी जा सकती
है।
भारत की गत्यात्मक
धर्मनिरपेक्षता उपरोक्त आलोचनाओं के बावजूद भारत में भाषाई, सांस्कृतिक
और धार्मिक विविधता को समानता के आधार पर स्वीकार करती है तथा देश के नागरिकों को
आपसी समझदारी, सहयोग और शांति की भावना को प्रोत्साहित करती
है और उन्हें स्वतंत्रता के अधिकार का आनंद उठाने की स्वतंत्रता देती है।
वास्तव में गत्यात्मक
धर्मनिरपेक्षता भारत की शानदार परंपरा है और यह देश के विविधता को समर्थन करती है।
भारत अपनी धर्मनिरपेक्षता के माध्यम से सामंजस्यपूर्ण एवं सहयोगी माहौल बनाए रखने
में सक्षम होता है।
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