उत्तर- हिंद महासागर और प्रशांत महासागर के
कुछ भागों को मिलाकर बननेवाले भौगौलिक क्षेत्र को हिंद-प्रशांत क्षेत्र कहा जाता
है। विश्व व्यापार के 75% और विश्व GDP का 60% हिस्से
के साथ विश्व की आधी जनसंख्या यहां निवास करती है तथा एक महत्वपूर्ण भू-राजनीतिक
क्षेत्र के रूप में हिंद-प्रशांत क्षेत्र के उद्भव के साथ भारत एक महत्वपूर्ण
शक्ति के रूप में स्थापित हो रहा है।
व्यापक अवसर एवं संभावनाओं से युक्त हिंद
प्रशांत क्षेत्र में भारत जहां अपने आर्थिक, सामरिक और सांस्कृतिक हितों को
पोषित करने के लिए विभिन्न देशों के साथ संबंधों को बढ़ावा देने हेतु प्रयासरत है वहीं
चीन की विस्तावादी नीतियां भारत के लिए चुनौतियां उत्पन्न कर रही है जिसे निम्न
प्रकार समझा जा सकता है ।
दोहरा मोर्चा
चीन अपने आक्रामक रुख के साथ भारत को स्थल एवं जल दोनों मोर्चों पर नियंत्रित करना चाहता है और इसके
लिए एक ओर जहां वास्तविक नियंत्रण रेखा पर दबाव डाल रहा है वहीं दूसरी ओर हिंद महासागर क्षेत्र में अपनी उपस्थिति बढ़ा रहा है।
नौसेना चुनौतियाँ
चीन और भारतीय नौसेनाओं के बीच संख्यात्मक अंतर भारत के समक्ष बड़ी चुनौती है। चीनी नौसेना में जहां 370 से ज्यादा जहाज, पनडुब्बियां हैं वहीं भारत के पास 132 युद्धपोतों का बेड़ा है। अनुमान है कि 2030 तक चीनी नौसेना में 435 नए जहाज शामिल हो सकते है। चीनी नौसेना की बढ़ती समुद्री क्षमताओं तथा हिंद-प्रशांत में उसके रणनीतिक इरादे भारत के लिए बड़ी चुनौती हैं।
भारत को घेरने की नीति
चीन द्वारा जिबूती में सैन्य
अड्डे की स्थापना, ग्वादर
(पाकिस्तान), हम्बनटोटा (श्रीलंका), म्यांमार
में बढ़ी हुई गतिविधियाँ और मालदीव एवं सेशेल्स जैसे देशों के साथ रणनीतिक
साझेदारी हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत को घेरने की व्यवस्थित नीति “स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स” को दर्शाती है। चीन का प्रभाव हॉर्न ऑफ अफ्रीका से
लेकर बंगाल की खाड़ी तक फैला हुआ है जो हिंद महासागर में भारत के
ऐतिहासिक प्रभुत्व को चुनौती देता है।
भारत के पारंपरिक क्षेत्रों
से विस्थापन करने की नीति
अफ्रीका से लेकर हिंद महासागर
तक के क्षेत्रों में चीन भारत को रणनीतिक निवेश, नौसैनिक ठिकानों और साझेदारी
आदि के माध्यम से उन क्षेत्रों से विस्थापित करने का प्रयास कर रहा है जहां कभी
भारत के ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक संबंध मजबूत रहे हैं। मालदीव
के साथ भारत के संबंधों में गिरावट को इस संदर्भ में देखा जा सकता है।
हाल के वर्षों में चीन का बढ़ता
प्रभाव हिन्द महासागर में भारत के ऐतिहासिक प्रभुत्व को चुनौती देता है जो भारत
के लिए उचित नहीं है। हिंद-प्रशांत क्षेत्र प्रमुख शक्तियों के लिए आकर्षण एक
केंद्र बन रहा है इसी क्रम में चीन की विस्तारवादी नीतियों से कुछ देश प्रभावित
है। अत: भारत को समान विचारधारा वाले देशों के साथ विविध गठबंधन जैसे बनाने की
रणनीति पर कार्य करना होगा।
क्वाड और मालाबार अभ्यास
जैसी पहल, अंतर्राष्ट्रीय
समुद्री कानूनों को प्रभावी बनाने, आसियान, दक्षेस, जैसे बहुपक्षीय मंचों पर भागीदारी बढ़ाने,
क्षेत्रीय भागीदारों के साथ अपने संबंधों को मजबूत करते हुए एक व्यापक
हिंद प्रशांत रणनीति के द्वारा चीन की चुनौती का सामना किया जा सकता है। हांलाकि
वर्तमान में भारत सरकार के विभिन्न पहल इस तरह की रणनीति के तत्व प्रदान करती है लेकिन इन्हें एक व्यापक ढांचे में एकीकरण की आवश्यक है जो दीर्घकालिक
चुनौतियों का समाधान कर सके ।
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