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Aug 8, 2024

अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति आरक्षण में उपकोटा/उप-वर्गीकरण

 

अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति आरक्षण में उपकोटा/उप-वर्गीकरण

 


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सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में पंजाब सरकार की एक याचिका पर सुनवाई करते हुए एक 6-1 के बहुमत से ऐतिहासिक निर्णय दिया। इस निर्णय में कहा गया कि यदि राज्य चाहे तो अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों के आरक्षण के संबंध में भी उप वर्गीकरण यानी क्रीमीलेयर की व्‍यवस्‍था लागू कर सकती है।


  1. क्रीमीलेयर का अर्थ उस वर्ग से है जो आर्थिक और सामाजिक रूप से प्रगति कर चुका है। इस श्रेणी में आनेवाले लोगों को आरक्षण का लाभ नहीं मिलता ।
  2. वर्तमान में क्रीमीलेयर की अवधारणा अन्‍य पिछडा वर्ग यानी OBC आरक्षण पर लागू होता है। उल्‍लेखनीय है कि सरकारी नौकरियों और उच्च शिक्षण संस्थानों में अन्‍य पिछड़ा वर्ग के लिये 27% कोटा निर्धारित है, किंतु जो ‘क्रीमी लेयर’ (आय और माता-पिता के रैंक के आधार पर विभिन्न श्रेणियाँ) के अंतर्गत आते हैं उन्हें इस कोटा का लाभ नहीं मिलता है। दूसरे शब्‍दों में क्रीमी लेयर अन्‍य पिछडा वर्ग में अधिक उन्नत व्यक्तियों की पहचान करती है ताकि उन्हें आरक्षण लाभ से बाहर रखा जा सके।


भारत में प्रचालित आरक्षण व्‍यवस्‍था में 15% अनुसूचित जाति और 7.5% अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है लेकिन इन जातियों के समूह में विभिन्‍न स्‍तरों पर विषमताएं भी है। जहां कुछ जातियां पहले से बेहतर स्थिति में आ गयी है वहीं कुछ जातियां आज भी पिछड़ी और समाज की मुख्‍य धारा से दूर है और सरकार की सुविधाओं, आरक्षण आदि का लाभ नहीं उठा पा रही है । इसी समस्‍या को देखते हुए न्‍यायाल द्वारा राज्‍यों को आरक्षण कोटा में उप वर्गीकरण का विकल्‍प दिया गया है ।

 

न्‍यायालय के इस निर्णय को बिहार में हुई जातिगत गणना के आंकड़ों के माध्‍यम से समझने का प्रयास करते हैं। बिहार में 22 अनुसूचित जातियां है जिनमें बौरी, भोगता, भुईया, मोची, धोबी, डोम,दुसाध, घासी जैसी जातियां शामिल है। इन जातियों में शिक्षा की स्थिति को निम्‍न तालिका से समझ सकते हैं।

 

अनुसूचित जाति में शैक्षणिक स्थिति

जाति

Engineering

MBBS

स्नातक

धोबी

0.26%,

0.05%

7.54%

दुसाध

0.07%,

0.02%

3.80%

मुसहर

0.00%,

0.00%

0.18%

 

इसी प्रकार देखा कुछ अन्‍य आंकड़ों को देखा जा सकता है। यदि बिहार की धोबी, दूसाध, मूसहर अनुसूचित जातियों को लिया जाए और इनकी संख्‍या 10 हजार मान ले तो तो देखते हैं कि 10 हजार लोगों में धोबी समाज के 124 लोग अच्छी शिक्षा प्राप्त हैं वहीं दुसाज समाज में 10 हजार में सिर्फ 45 तो मूसहर समाज में 10 हजार में से सिर्फ 1 ही उच्‍च शिक्षा प्राप्‍त कर रहा है। इस प्रकार 1 और 124 का अंतर तो अनसूचित जाति के भीतर देखा जा सकता है।

 

विशेष जानकारी - बिहार में नई सरकार बनने के बाद राज्य के राजनीतिक समीकरण बदल गए जिसे ध्‍यान में रखते राज्य के 4 महत्वपूर्ण आयोगों अति पिछड़ा आयोग, महादलित आयोग, राज्य अनुसूचित जाति आयोग और राज्य अनुसूचित जनजाति (एसटी) आयोग को भंग कर दिया गया है।

 

इस स्थिति में यह निर्णय एक स्‍वागतयोग्‍य कदम माना जा सकता है क्‍योंकि बिहार सरकार यदि चाहे तो इसके लिए उप वर्गीकरण द्वारा निम्‍न पायदान की जातियों की उन्‍नति के लिए उनके कोटे में कोटा आरक्षित कर सकती हैं।





अंतर्राज्‍यीय परिषद

पंजाब

1975 में पंजाब अनुसूचित जाति और पिछड़े वर्ग (सेवाओं में आरक्षण) अधिनियम के तहत अनुसूचित जाति के लिए आरक्षण नीति बनायी गयी जिसके तहत बाल्मिकी और मजहबी सिखों को प्राथमिकता दिया गया।

2006 में पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने इसे रद्द कर दिया ।  

बिहार

बिहार सरकार द्वारा अनुसूचित जाति के भीतर पिछड़ी जातियों की पहचान के लिए महादलित आयोग का गठन किया गया।

हरियाणा

SC समुदायों को दो ब्लॉकों में विभाजित किया और SC कोटे का 50% प्रत्येक ब्लॉक के लिए आरक्षित किया। जिसे पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने रद्द कर दिया।

तमिलनाडु

राज्‍य के सबसे कमजोर अनुसूचित जाति माने जानेवाले अरुंधतियार जातियों के लिए 3 प्रतिशत उप-कोटा प्रदान।

सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई, जिसके फलस्‍वरूप चिन्नैया फैसले पर पुनर्विचार किया गया।

 

 

ई वी चिनैया बनाम आन्‍ध्र प्रदेश राज्‍य (2004) निर्णय

  • इस  निर्णय द्वारा सर्वोच्‍च न्‍यायालय की 5 सदस्‍यीय संविधान पीठ ने अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति आरक्षण में उप वर्गीकरण को लागू करने से मना कर दिया ।
  • 2004 के निर्णय में कहा गया कि अनुच्छेद 341 के तहत केवल राष्ट्रपति ही SC की सूची को अधिसूचित कर सकते हैं और इसमें संशोधन के लिए संसद अधिकृत है। 
  • कोर्ट ने कहा कि अनुसूचित जातियां स्‍वयं एक समूह है और इसमें शामिल जातियों को और उपसमूहों में विभाजित नहीं किया जा सकता है।

 

2024 का न्‍यायालय का निर्णय

न्‍यायालय द्वारा 2024 में लिया गया निर्णय 6:1 के बहुमत के आधार हुआ। सात सदस्‍यीय संविधान पीठ में से छह न्यायाधीशों ने ई वी चिनैया बनाम आन्‍ध्र प्रदेश राज्‍य (2004) के फैसले को बदलते हुए निर्णय दिया जबकि एक न्‍यायामूर्ति  बेला त्रिवेदी ने 2004 के निर्णय को सही बताया।

 

निर्णय में असहमति 

  • न्यायमूर्ति बेला त्रिवेदी ने अपने असहमति में चिन्नैया सिद्धांत को बरकरार रखा और कहा कि एक समान वर्ग को उप-वर्गीकृत करना अस्वीकार्य है ।
  • अनुच्छेद 341 किसी जाति को अनुसूचित जाति में रखने का अधिकार राष्‍ट्रपति को देता है और न्‍यायालय अपने निर्णय द्वारा इस शक्ति को राज्‍य को सौंप रही है। इस कारण यह निर्णय इस अनुच्‍छेद 341 के विरुद्ध है।  

 

निर्णय में सहमति

मामले में सुनवाई के दौरान सात में से छह न्‍यायाधीशों ने 2004 के निर्णय को पलटते हुए निर्णय लिया जिसके प्रमुख बिन्‍दुओं को निम्‍न प्रकार समझा जा सकता है: -


न्‍यायालय ने कहा कि राज्य अब सबसे वंचित समूहों को बेहतर सहायता प्रदान करने के लिये निर्धारित आरक्षण कोटे के भीतर अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजनतियों को उप-वर्गीकृत कर सकते हैं जो निम्‍न 2 शर्तों के अधीन होगा:-

  1. किसी भी उप-समूह के लिये 100% आरक्षण नहीं दिया जाएगा।  
  2. उप-वर्गीकरण अनुभवजन्य आँकड़ों और प्रणालीगत भेदभाव के ऐतिहासिक साक्ष्य पर आधारित होना चाहिये।

उपवर्गीकरण के क्रम में राज्‍य सरकारों को यह तथ्‍यों एवं आंकड़ों के आधार पर साबित करना होगा कि जिसके लिए कोटा बनाना चाहते हैं उनका पर्याप्‍त प्रतिनिधित्‍व नहीं है। उप-वर्गीकरण का राजनीतिक दुरुपयोग न हो इसके लिए यह न्यायिक समीक्षा के अधीन रखा गया हैं।  


न्‍यायालय ने कहा कि 'क्रीमी लेयर' सिद्धांत जो पहले अन्‍य पिछड़ा वर्ग पर लागू होता था उसे अब SC और ST पर भी लागू होना चाहिये। यानी राज्‍यों को SC और ST के भीतर क्रीमी लेयर की पहचान करनी चाहिये तथा वास्‍तविक वंचितों तक उन आरक्षण लाभ को पहुंचाया जाना चाहिए।


आरक्षण एक पीढ़ी तक सीमित होना चाहिए तथा उच्‍च श्रेणी में पहुंचने पर दूसरी पीढ़ी को आरक्षण नहीं दिया जाना चाहिए।


अनुच्छेद 341 की व्याख्या के क्रम में कहा गया कि अनुच्छेद 341 का कार्य यह पहचानना है  कि अनुसूचित जातियों की श्रेणी में कौन आता है, लेकिन यह राज्यों को अलग-अलग स्तर के पिछड़ेपन को पहचानने और आरक्षण लाभों का विस्तार करने से नहीं रोकता। इस प्रकार उप-वर्गीकरण राष्ट्रपति की सूची के साथ छेड़छाड़ के समान नहीं है।

 

इस प्रकार उप वर्गीकरण की अनुमति देकर न्‍यायालय ने अनुसूचित जाति में व्‍याप्‍त विषमता को स्‍वीकार किया और अधिक लक्षित समारात्‍मक कार्रवाई उपायों की आवश्‍यकता पर बल देते हुए क्रीमी लेयर की अवधारणा को समर्थन दिया। हालांकि, उन्होंने स्वीकार किया कि SC में क्रीमी लेयर की पहचान के लिए मानदंड OBC के लिए इस्तेमाल किए गए मानदंड से भिन्न होने चाहिए।

         

आरक्षण अत्‍यंत संवेदनशील मामला है और शायद इसी कारण इस मामले पर सरकार की कोई विशेष प्रतिक्रिया नहीं आयी है लेकिन 2023 में भारतीय प्रधानमंत्री ने कहा था कि सरकार अनुसूचित जाति के उप वर्गीकरण के लिए एक कमेटी जल्‍दी ही बनाएगी। न्‍यायालय के निर्णय को देखते हुए जातियों के उप-वर्गीकरण के पक्ष तथा विपक्ष में तर्क दिए जाते हैं जिसे निम्‍न प्रकार समझा जा सकता है। 


 

उप-वर्गीकरण के पक्ष में तर्क

  • नीतिगत लचीलापन- इस व्‍यवस्‍था से केंद्र और राज्य सरकारें दोनों SC/ST समुदायों के सबसे वंचित लोगों की आवश्यकताओं को बेहतर ढंग से पूरा करनेवाली नीतियाँ बना सकते हैं।  
  • सामाजिक न्याय- यह उन लोगों को लक्षित लाभ प्रदान करके सामाजिक न्याय के संवैधानिक लक्ष्य को प्राप्त करने में सहायता करेगा जिनको इसकी सबसे अधिक आवश्यकता है।
  • संवैधानिक प्रावधान- अनुच्‍छेद 16(4) जहां राज्य सेवाओं में अपर्याप्त प्रतिनिधित्व वाले पिछड़े वर्गों के लिये आरक्षण की अनुमति देकर उप वर्गीकरण को अनुमति देता है। वहीं अनुच्छेद 15(4) एवं 16 में ऐसा कुछ नहीं है जो राज्‍य को अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों के हितों और कल्याण को बढ़ावा देने के लिये विशेष व्यवस्था बनाने से मना करता है। 

उप-वर्गीकरण के विपक्ष में तर्क

  • जातिगत एकरूपता पर प्रभाव-उप-वर्गीकरण से राष्ट्रपति सूची में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की एकरूप स्थिति कमज़ोर पड़ सकती है।
  • असमानता की संभावना- उप-वर्गीकरण से और अधिक विभाजन हो सकता है जो संघर्ष और सामाजिक तनाव को और बढ़ा सकता है।
  • विभिन्न उप-समूहों की सामाजिक-आर्थिक स्थितियों पर सटीकता एवं व्यापकता के साथ आंकड़ों के संग्रहण एक चुनौती होगी ।
  • संतुलन संबंधी समस्‍याएं - उप-समूहों के उत्थान एवं प्रतिस्पर्द्धी हितों में संतुलन जटिल हो सकता है। इसी प्रकार संपूर्ण भारतीय स्‍तर पर नीतियों में एकरूपता और स्थानीय आवश्यकताओं के बीच संतुलन बनाना एक चुनौती होगी।
  • राजनीतिक प्रतिरोध- उप-वर्गीकरण नीतियां कुछ राजनीतिक समूहों, दलों  के विरोध का सामना कर सकती है जिससे संभावित विलंब और संघर्ष की स्थिति हो सकती है।
  • प्रशासनिक बोझ- उप-श्रेणियों के बनाने, प्रबंधन आदि से बढ़ने वाले प्रशासनिक बोझ के लिए अतिरिक्त संसाधनों तथा जनशक्ति की आवश्यकता होगी।

 


निर्णय का महत्‍व

पूर्व निर्णय में बदलाव

  • इसके द्वारा सर्वोच्‍च न्‍यायालय ने वर्ष 2004 के E.V. चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश राज्य में दिए गए अपने उस फैसले को खारिज कर दिया जिसमें यह माना था कि
  • आरक्षण के उद्देश्य से अनुसूचित जातियों के बीच उप-वर्गीकरण समानता के अधिकार का उल्लंघन होगा ।
  • इस निर्णय में न्‍यायालय ने कहा कि एससी सूची को एकल, समरूप समूह के रूप में माना जाना चाहिए।
  • अनुच्छेद 341 के तहत केवल राष्ट्रपति ही अनुसूचित जाति की सूची को अधिसूचित कर सकते हैं और इसमें संशोधन के लिए संसद अधिकृत है।

 

राज्‍य के कानून पर प्रभाव

  • पंजाबतमिलनाडु आदि राज्‍यों द्वारा अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति समूहों के भीतर उप-श्रेणियाँ बनाने की अनुमति देने वाले कानूनों को बरकरार रखा गया, हांलाकि इन कानूनों को पहले निरस्‍त कर दिया गया था।

 

प्रभावी नीति निर्माण

  • निर्णय के बाद अब राज्यों के पास उप-वर्गीकरण नीतियों को लागू करने का अधिकार होगा, जिससे अधिक सूक्ष्म और प्रभावी आरक्षण रणनीतियाँ बन सकेंगी। यह निर्णय संपूर्ण देश को प्रभावित करेगा ।
  • किसी भी राज्‍य के उप-वर्गीकरण की न्यायिक समीक्षा की जाएगी और इसके लिए राज्‍यों को अपने निर्णय को तार्किक और सही ठहराने के लिए आवश्‍यक तथ्‍य एवं सूचनाएं प्रस्‍तुत करना होगा। इस प्रकार प्रभावी नीति निर्माण होगा।

 

निर्णय के प्रभाव

  • यह निर्णय राज्यों को कोटे के अंदर कोटे की व्‍यवस्‍था के लिए प्रोत्साहन देगा जिससे उस समूह में हाशिये पर रहने वाले उन वर्गों को आरक्षण का लाभ मिलेगा जिन्‍होंने अभी तक इसके लाभ से वंचित है।
  • अब जब राज्‍य उप कोटा आरक्षित कर सकते हैं तो विभिन्‍न राज्‍यों में एक ही जाति के आरक्षण का प्रतिशत अलग-अलग हो सकता है।
  • यह निर्णय राज्य और राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर आरक्षण नीतियों में भावी सुधार को प्रोत्‍साहित कर सकता है।
  • भावी राजनीति में राज्‍यों की भूमिका बढ़ेगी क्‍योंकि भारत में विभिन्‍न राज्‍यों में कई जातियां रहती है तथा वोट बैंक के लिए राज्‍य द्वारा जाति आधारित राजनीति के तहत नीतियां बनायी जाएगी। 
  • यह निर्णय अनुसुचित जाति एवं जनजातियों के मध्‍य आपसी भेदभाव एवं फूट बढ़ा सकती है।

निष्‍कर्ष

न्‍यायालय का यह निर्णय कुछ हद तक न्‍यायसंगत माना जा सकता है लेकिन उप वर्गीकरण के बजाए यदि उन वर्ग के लोगों तक शिक्षा एवं अवसर उपलब्‍ध कराने की दिशा में प्रयास किया जाए जो इससे दूर है तो इस प्रकार के उपवर्गीकरण की आवश्‍यकता नहीं पड़ेगी।


अभ्‍यास प्रश्‍न

प्रश्‍न- बिहार जैसे राज्‍य जहां जाति एक प्रमुख भूमिका निभाती है वहां आरक्षित कोटे के सबकेटेराइजेशन पर सर्वोच्‍च न्‍यायालय द्वारा दिया गया हालिया निर्णय जातीय अनुक्रम में हाशिया पर पड़े वर्गों के लिए किस प्रकार एक महत्‍वपूर्ण कदम साबित हो सकता है? चर्चा करें ।

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