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Feb 13, 2025

BPSC Mains answer writing

 BPSC Mains answer writing 



प्रश्न 1: बिहार की भौगोलिक संवेदनशीलता को देखते हुए, आपदा प्रबंधन की प्रभावशीलता किन कारकों पर निर्भर करेगी? क्या वर्तमान आपदा प्रबंधन नीतियाँ जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न चुनौतियों का सामना करने के लिए पर्याप्त हैं?

उत्तर: बिहार की आपदा संवेदनशीलता मुख्यतः इसकी भौगोलिक अवस्थिति, उच्च जनसंख्या घनत्व और जलवायु अनिश्चितता से प्रभावित होती है। उत्तर बिहार के अधिकांश जिले बाढ़ और नदी कटाव से प्रभावित होते हैं, जबकि दक्षिण बिहार सूखा, लू और बिजली गिरने जैसी आपदाओं से ग्रस्त रहता है।

राष्ट्रीय जलवायु भेद्यता आकलन रिपोर्ट (2021) के अनुसार बिहार छठे स्थान पर है तथा बिहार में उच्च जनघनत्व, कमजोर बुनियादी ढाँचा और सीमित संसाधन आपदा प्रबंधन को और अधिक जटिल बनाते हैं जिसके फलस्‍वरूप आपदा प्रबंधन की प्रभावशीलता हेतु निम्‍न पर विशेष ध्‍यान देना होगा।

 

v सटीक पूर्वानुमान प्रणाली बाढ़, चक्रवात और लू जैसी आपदाओं के लिए GIS और कृत्रिम बुद्धिमत्ता आधारित चेतावनी प्रणाली विकसित करनी होगी।

v संरचनात्मक सुधार तटबंधों के रखरखाव, जल निकासी प्रणालियों के सुधार और शहरी नियोजन में आपदा जोखिम न्यूनीकरण (DRR) को शामिल करना आवश्यक है।

v सामुदायिक सहभागिता स्थानीय निकायों और स्वयंसेवी संगठनों को प्रशिक्षण देकर आपदा प्रतिक्रिया तंत्र को मजबूत बनाना होगा।

v जलवायु अनुकूल कृषि बाढ़ और सूखे से निपटने के लिए फसल चक्र में विविधता, सूखा-रोधी फसलों को बढ़ावा, तथा मृदा और जल संरक्षण तकनीकों का विकास आवश्यक होगा।

v वित्तीय संसाधन और नीति क्रियान्वयन राज्य सरकार को दीर्घकालिक आपदा न्यूनीकरण कोष विकसित करने के साथ-साथ आपदा बीमा योजनाओं को अधिक प्रभावी बनाना होगा।

 

इस प्रकार आपदा प्रबंधन की प्रभावशीलता हेतु उपरोक्‍त कारकों पर बेहतर ध्‍यान देना होगा। हांलाकि बिहार की भौगौलिक स्थिति तथा आपदाओं के प्रति सुभेद्यता को ध्‍यान में रखते हुए बिहार सरकार ने "बिहार आपदा जोखिम न्यूनीकरण रोडमैप (2015-2030)" और सेंडाई फ्रेमवर्क के तहत कई महत्वपूर्ण नीतिगत उपाए किए हैं जिनमें प्रमुख निम्‍नानुसार है  

 

v आपदा पूर्वानुमान प्रणाली का सुदृढ़ीकरण।

v आपदा अनुकूल आवास और बुनियादी ढांचे का विकास

v आपदा प्रबंधन में समुदाय-आधारित दृष्टिकोण

v आपदा प्रबंधन में प्रशिक्षित मानव संसाधन की तैनाती

 

इस प्रकार बिहार सरकार ने नीतिगत उपायों के तहत क्षमता निर्माण, जन जागरुकता, निवेश, पर्यावरणीय अवसंरचनाओं के संरक्षण, आपदा रोकथाम, शमन, न्यूनीकरण, त्वरित रेस्पोंस, पुर्नस्थापन, पुर्ननिर्माण आदि जैसे कार्यो को प्राथमिकता दे रही है लेकिन जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभावों को देखते हुए ये प्रयास पर्याप्त नहीं कहे जा सकते।

 

जलवायु परितर्वन के कारण अत्यधिक वर्षा, तीव्र लू, और चक्रवातों की बढ़ती तीव्रता को देखते हुए नवाचार-आधारित आपदा प्रबंधन रणनीतियाँ विकसित करनी होंगी। मल्टी-हजार्ड अर्ली वार्निंग सिस्टम, हरित अवसंरचना, और आपदा अनुकूल शहरी नियोजन जैसी नई पहल आवश्यक हैं। अतः आपदा प्रबंधन को जलवायु अनुकूलन रणनीतियों के साथ और अधिक समेकित करने की आवश्यकता है।


 

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प्रश्न : बिहार में पारिस्थितिक पर्यटन को सतत विकास के एक साधन के रूप में कैसे देखा जा सकता है? क्या यह राज्य की आर्थिक वृद्धि और जैव-विविधता संरक्षण के बीच संतुलन स्थापित कर सकता है? समालोचनात्मक दृष्टिकोण प्रस्तुत करें। 350 Words

 

उत्तर: पारिस्थितिक पर्यटन (इको-टूरिज्म) एक ऐसा पर्यटन मॉडल है, जिसमें पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ स्थानीय समुदायों की आर्थिक स्थिति को भी सुदृढ़ किया जाता है। बिहार, अपने समृद्ध वन क्षेत्रों, जल निकायों और जैव-विविधता के कारण, इको-टूरिज्म की अपार संभावनाएँ रखता है। सतत विकास तीन प्रमुख घटकों—पर्यावरणीय संरक्षण, आर्थिक संवृद्धि, और सामाजिक समावेशन पर आधारित होता है। बिहार में पारिस्थितिक पर्यटन के मॉडल इन तीनों तत्वों को एकीकृत करता है:

 

v पर्यावरणीय संरक्षण-जैव-विविधता संरक्षण और पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा।

v आर्थिक संवृद्धि-स्थानीय समुदायों को रोजगार और आर्थिक अवसर प्रदान करना।

v सामाजिक समावेशन- स्थानीय संस्कृति और परंपराओं का संरक्षण।

 

बिहार के पारिस्थितिक पर्यटन का मॉडल इन तीनों तत्वों को एकीकृत करता है और इस प्रकार, यह सतत विकास का एक आदर्श साधन बन सकता है जिसे निम्‍न प्रकार समझा जा सकता है।

 

v स्थानीय रोजगार सृजनगाइड, सुरक्षा कर्मचारी, स्थानीय हस्तशिल्प, भोजनालयों और पारंपरिक कलाओं को बढ़ावा देकर आजीविका के नए साधन उत्पन्न किए गए हैं।

v वन्यजीव संरक्षण बाघ, गंगा डॉल्फिन, दुर्लभ पक्षियों और अन्य जैव-विविधता को संरक्षित करने हेतु जागरूकता कार्यक्रम शुरू किए गए हैं। वाल्मीकि व्याघ्र आरक्ष, कैमूर वन्यजीव अभयारण्य, , राजगीर नेचर सफारी, विक्रमशिला डॉल्फिन अभयारण्य जैसे क्षेत्रों में संरचनात्मक विकास किया गया है।

v हरित पर्यटन अधोसंरचना इको-लॉज, सौर ऊर्जा संचालित सुविधाएँ, जैविक कचरा प्रबंधन जैसी परियोजनाएँ विकसित की जा रही हैं।

 

स्पष्ट है कि बिहार में पारिस्थितिक पर्यटन एक प्रभावी विकास मॉडल के रूप में स्थापित करने की पर्याप्त संभावनाएँ हैं। हांलाकि कुछ चुनौतियाँ भी है जिनका समाधान किया जाना अत्‍यंत आवश्‍यक है।

 

v पर्यावरणीय क्षति का खतरा:पर्यटन के अत्यधिक दबाव के कारण जल स्रोतों और भूमि प्रदूषण के अलावा वन क्षेत्रों एवं जैव-विविधता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। इसके समाधान में संवेदनशील क्षेत्रों में पर्यटकों की संख्या का नियमन, "कैरीइंग कैपेसिटी" (Carrying Capacity) सिद्धांत को अपनाया जाए।

 

v संरचनात्मक बाधाएँ: पर्यटकों के लिए सड़क, परिवहन, एवं बुनियादी सुविधाओं की कमी, सुरक्षा उपायों एवं पर्यटकों के लिए गाइडेंस सिस्टम का अभाव है जिसका समाधान हेतु सुविधाजनक इको-टूरिज्म अधोसंरचना की स्थापना करना होगा।

 

v स्थानीय समुदायों की भूमिका: पारिस्थितिक पर्यटन का सही लाभ स्थानीय समुदायों तक नहीं पहुँच पा रहा है । इसके  समाधान हेतु स्थानीय समुदायों को पर्यटन नीति निर्माण में शामिल किया जाए, उनके लिए विशेष प्रशिक्षण और वित्तीय सहायता प्रदान की जाए।

 

 

इस प्रकार एक संतुलित एवं दीर्घकालिक नीति के साथ पारिस्थितिक पर्यटन बिहार के आर्थिक विकास और जैव-विविधता संरक्षण के बीच समन्वय स्थापित कर सकता है। पर्यटन अधोसंरचना के विकास, पर्यावरणीय नियमन, और स्थानीय समुदायों की भागीदारी सुनिश्चित करके बिहार को एक प्रमुख इको-टूरिज्म केंद्र के रूप में विकसित किया जा सकता है।






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