71th BPSC Mains Answer writing Practice
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प्रश्न 1: क्या आर्थिक वृद्धि अपने आप में सामाजिक समानता सुनिश्चित कर सकती है? विवेचना करें। 8 Marks
उत्तर: आर्थिक वृद्धि को अक्सर विकास का पर्याय माना जाता है, लेकिन वृद्धि और समानता में स्वाभाविक संबंध नहीं होता। वैश्विक खाद्य संकट रिपोर्ट
2025 दर्शाती है कि दुनिया में 29.5 करोड़ लोग अब भी भोजन की न्यूनतम जरूरत पूरी नहीं कर पा रहे। यह स्थिति बताती है कि आर्थिक वृद्धि GDP
में वृद्धि करती है लेकिन कोई जरूरी नहीं कि सामाजिक समानता को भी
सुनिश्चित करें।
आर्थिक वृद्धि से पूंजी और तकनीक बढ़ती है लेकिन यदि उसका लाभ केवल शीर्ष वर्ग को मिले तो सामाजिक असमानता और बढ़ती है। उदाहरण के लिए भारत में खाद्य उत्पादन और निर्यात दोनों बढ़े लेकिन गरीबी और कुपोषण बरकरार हैं। इसी क्रम में
विश्व बैंक के
अनुसार 10%
लोगों के पास 77% धन हैं। यही असमान वितरण सामाजिक तनाव और असुरक्षा को जन्म देता है।
- समानता तभी सुनिश्चित हो सकती है जब वृद्धि के साथ
- समान अवसरों का वितरण,
- शिक्षा और स्वास्थ्य में निवेश,
- रोजगार सृजन,
- सामाजिक सुरक्षा तंत्र मजबूत किए जाएँ।
इसलिए आवश्यक है कि विकास नीतियाँ केवल आर्थिक आँकड़ों पर नहीं, बल्कि मानव कल्याण पर आधारित हों। जब तक विकास का लाभ समाज के हर वर्ग तक नहीं पहुँचता तब तक सामाजिक
समानता अधूरी है। अंत: आर्थिक वृद्धि तभी सार्थक है जब वह सामाजिक न्याय और समानता को सशक्त करे।
प्रश्न 2 : दीनदयाल अंत्योदय योजना – राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन
(DAY–NRLM) भारत में ग्रामीण समुदायों के सशक्तिकरण का एक प्रभावी माध्यम कैसे बन गया है? विश्लेषण करें।
उत्तर: दीनदयाल अंत्योदय योजना – राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन भारत सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय की एक मिशन मोड योजना है। सरकार द्वारा स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार योजना के पुनर्गठन के बाद 2016 में इसका वर्तमान रूप दिया गया।
इसका उद्देश्य ग्रामीण गरीब परिवारों को स्व-रोजगार, कौशल और वित्तीय समावेशन के माध्यम से गरीबी से बाहर निकालना और उनका सशक्तिकरण करना है
जिसके प्रभावों को निम्न प्रकार देख सकते हैं।
- यह मिशन देश के 28 राज्यों और 6 केंद्र शासित प्रदेशों में सक्रिय है, जहाँ 10.05 करोड़ ग्रामीण परिवारों को 90.9 लाख स्वयं सहायता समूहों में संगठित किया गया है। इन समूहों के माध्यम से 4.6 करोड़ महिला किसानों और 3.74 लाख सूक्ष्म उद्यमों को वित्तीय सहायता और प्रशिक्षण प्राप्त हुआ है।
- महिला सशक्तिकरण इसका सबसे मजबूत पक्ष है। अब तक 11 लाख करोड़ रुपये का कोलेटेरल-मुक्त ऋण महिला SHGs को वितरित किया जा चुका है, जिसकी पुनर्भुगतान दर 98% से अधिक है। 47,952 बैंक सखियाँ ग्रामीण वित्तीय समावेशन की रीढ़ बन चुकी हैं।
- यह मिशन न केवल महिलाओं की आर्थिक स्थिति सुधार रहा है, बल्कि स्वास्थ्य, शिक्षा, पोषण, स्वच्छता और लिंग समानता के मुद्दों पर सामाजिक जागरूकता भी बढ़ा रहा है।
- आजीविका के विविधीकरण में मिशन ने कृषि और गैर-कृषि क्षेत्रों में उल्लेखनीय योगदान दिया है। कृषि-पारिस्थितिकी अभ्यासों, कृषि सखी और पशु सखी नेटवर्क, और स्टार्ट-अप ग्राम उद्यमिता कार्यक्रम (SVEP) के माध्यम से ग्रामीण महिलाएँ आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर हैं।
- कौशल विकास के क्षेत्र में दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल्य योजना और ग्रामीण स्वरोजगार प्रशिक्षण संस्थान जैसे कार्यक्रमों ने लाखों युवाओं को रोजगारोन्मुखी प्रशिक्षण और प्लेसमेंट दिया है।
इस प्रकार दीनदयाल अंत्योदय योजना – राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन केवल गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम नहीं, बल्कि ग्रामीण भारत के आर्थिक लोकतंत्रीकरण की दिशा में एक क्रांतिकारी पहल है। इसने महिला सशक्तिकरण, वित्तीय समावेशन और आत्मनिर्भरता की नई पहचान बनाई है। भविष्य में
इस योजना की गति इसी प्रकार बनी रही तो 2047 तक “समावेशी और आत्मनिर्भर ग्रामीण भारत” का लक्ष्य साकार हो सकता है।

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