जीविका बिहार - ग्रामीण सशक्तिकरण की कहानी
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जीविका (JEEViKA),
जिसे बिहार ग्रामीण आजीविका संवर्धन सोसाइटी (BRLPS) के नाम से भी जाना जाता है, बिहार सरकार की एक
प्रमुख योजना है, जो ग्रामीण महिलाओं को सामाजिक और आर्थिक
रूप से सशक्त बनाने पर केंद्रित है। यह विश्व बैंक समर्थित परियोजना स्वयं सहायता
समूहों (SHGs) के माध्यम से ग्रामीण गरीबों, विशेष रूप से महिलाओं को संगठित करके उनकी आजीविका को सुदृढ़ करती है।
इसका उद्देश्य बचत, ऋण, कौशल विकास,
और बाजार से जुड़ाव के अवसर प्रदान करके महिलाओं को आत्मनिर्भर
बनाना है, जिससे वे अपने परिवारों और गांवों का विकास कर
सकें।
जीविका की स्थापना 2006 में हुई थी और यह बिहार के सभी 38 जिलों के 534 प्रखंडों में फैल चुकी है। इसने 1.3
करोड़ से अधिक ग्रामीण परिवारों को प्रभावित किया है और 10.47
लाख से अधिक SHGs का गठन किया है। यह योजना न
केवल आर्थिक सशक्तिकरण पर ध्यान देती है, बल्कि सामाजिक
बदलाव, लैंगिक समानता, और सतत विकास को
भी बढ़ावा देती है। यह राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (NRLM) के तहत संचालित होती है और बिहार की ग्रामीण अर्थव्यवस्था को पुनर्जनन
करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
जीविका की परिभाषा और उद्देश्य
जीविका बिहार सरकार की एक पहल है, जो ग्रामीण गरीब महिलाओं को स्वयं
सहायता समूहों (SHGs या सखी मंडल) के माध्यम से संगठित करती
है। इसका प्राथमिक उद्देश्य ग्रामीण महिलाओं को आर्थिक और सामाजिक रूप से सशक्त
बनाना है, ताकि वे गरीबी के चक्र से बाहर निकल सकें और अपने
परिवारों की आजीविका को बेहतर बना सकें। यह योजना विश्व बैंक समर्थित बिहार
ग्रामीण आजीविका परियोजना (BRLP) का हिस्सा है, जो राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (NRLM) के तहत
संचालित होती है।
जीविका का मॉडल सामुदायिक संगठन, वित्तीय समावेशन, कौशल
विकास, और बाजार से जुड़ाव पर आधारित है। यह ग्रामीण महिलाओं
को छोटी बचत, सामूहिक ऋण, और
व्यावसायिक प्रशिक्षण के माध्यम से आत्मनिर्भर बनाती है। इसके अलावा, यह सामाजिक मुद्दों जैसे बाल विवाह, पोषण, और स्वच्छता पर भी काम करती है, जिससे यह एक समग्र
विकास मॉडल बन जाता है।
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प्रमुख हितधारक
जीविका के संचालन में कई हितधारक शामिल हैं, जो इसके प्रभाव को बढ़ाने में
महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं:
- ग्रामीण महिलाएं: जीविका की असली
नायिकाएं बिहार की ग्रामीण महिलाएं हैं, जो गरीबी रेखा से नीचे रहती हैं। ये
महिलाएं पारंपरिक "गृहिणी" की भूमिका से आगे बढ़कर उद्यमी बन रही हैं।
वे कृषि, पशुपालन, हस्तशिल्प, और खाद्य प्रसंस्करण जैसे क्षेत्रों में सक्रिय हैं।
- स्वयं सहायता समूह (SHGs): ये समूह जीविका की रीढ़
हैं। प्रत्येक SHG
में 10-15 महिलाएं होती हैं, जो नियमित बचत करती हैं और सामूहिक ऋण लेती हैं। 2024 तक, बिहार में 10.47 लाख SHGs
बन चुके हैं, जो 1.3 करोड़
परिवारों को जोड़ते हैं।
- बिहार ग्रामीण आजीविका संवर्धन सोसाइटी (BRLPS): यह राज्य सरकार की
स्वायत्त संस्था है,
जो जीविका को संचालित करती है। यह NRLM की
नोडल एजेंसी के रूप में कार्य करती है और 2006 से सक्रिय है।
सहयोगी संस्थाएं:
- बैंक: कम ब्याज दरों पर ऋण प्रदान करते हैं, जिससे SHGs
को बड़े निवेश के लिए पूंजी मिलती है।
- प्रशिक्षण संस्थान: व्यावसायिक कौशल और वित्तीय साक्षरता प्रशिक्षण प्रदान
करते हैं।
- बाजार लिंकेज एजेंसियां: उत्पादों की बिक्री और
विपणन में सहायता करती हैं, जैसे ग्रामीण आजीविका बाजार (GRLM) और
ऑनलाइन प्लेटफॉर्म।
कार्य पद्धति
जीविका का संचालन एक चरणबद्ध प्रक्रिया के माध्यम से होता है, जो सामुदायिक
संगठन और आर्थिक सशक्तिकरण पर आधारित है। इसकी कार्य पद्धति निम्नलिखित चरणों में
विभाजित है:
समूह निर्माण: ग्रामीण महिलाओं को सखी मंडल बनाने के लिए
प्रेरित किया जाता है। सामुदायिक मोबिलाइजर्स की मदद से गांवों में नियमित बैठकें
शुरू की जाती हैं,
जिसमें गरीब और अति-गरीब परिवारों की महिलाएं शामिल होती हैं।
नियमित बचत: प्रत्येक SHG की सामान्य: रूप से होनेवाली साप्ताहिक बैठकों में महिलाएं छोटी राशि (जैसे ₹10-50) जमा करती हैं। यह सामूहिक निधि समूह की एकता को बढ़ाती है और वित्तीय अनुशासन सिखाती है।
आंतरिक ऋण: समूह की बचत से सदस्यों को छोटे ऋण दिए जाते हैं, जो आपातकालीन
जरूरतों या छोटे व्यवसायों के लिए उपयोग किए जाते हैं। ये कम ब्याज दरों पर होते
हैं, जिससे सूदखोरों पर निर्भरता कम होती है।
क्षमता निर्माण: महिलाओं को व्यावसायिक
प्रशिक्षण (जैसे सिलाई, कृषि तकनीक, पशुपालन) और वित्तीय
साक्षरता प्रदान की जाती है। डिजिटल साक्षरता और उद्यमिता प्रशिक्षण भी शामिल हैं।
बैंक लिंकेज: SHGs को बैंकों से जोड़ा जाता है, ताकि वे बड़े और सस्ते ऋण प्राप्त कर सकें। 2024 तक,
3.39 लाख से अधिक बैंक लिंकेज स्थापित किए गए हैं।
बाजार से जुड़ाव: SHGs के उत्पादों
को ग्रामीण आजीविका बाजार (GRLM), मेलों, और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म जैसे https://shop.brlps.in/ के
माध्यम से बेचने में मदद की जाती है।
समयरेखा
जीविका की औपचारिक शुरुआत 2006 में बिहार ग्रामीण आजीविका परियोजना
(BRLP) के रूप में हुई थी, जिसे 2007
में विश्व बैंक के समर्थन से पूर्ण रूप से लागू किया गया। इसकी
समयरेखा और प्रमुख मील के पत्थर निम्नलिखित हैं:
प्रारंभिक चरण (2006-2011): इस चरण में SHGs का गठन,
छोटी बचत, और कृषि पायलट प्रोजेक्ट जैसे
सिस्टम ऑफ राइस इंटेंसिफिकेशन (SRI) और बैकयार्ड पोल्ट्री पर
ध्यान केंद्रित किया गया। 6 जिलों (गया, खगड़िया, मधुबनी, मुजफ्फरपुर,
नालंदा, पूर्णिया) में शुरू हुई यह योजना 1.5
मिलियन महिलाओं तक पहुंची।
विस्तार और गहराई (2012-2015): इस दौरान बैंक ऋण
लिंकेज शुरू किए गए,
प्रशिक्षण कार्यक्रमों का विस्तार हुआ, और
सिस्टम ऑफ क्रॉप इंटेंसिफिकेशन को बढ़ावा दिया गया। 2014 में
फार्मर प्रोड्यूसर ऑर्गनाइजेशंस (FPOs) की शुरुआत हुई,
और योजना 179 प्रखंडों तक पहुंची।
उद्यमिता और बाजार पर फोकस (2016-वर्तमान): कौशल विकास, बाजार से जुड़ाव, और
डिजिटलीकरण पर जोर दिया गया। 2016 में बिहार ट्रांसफॉर्मेटिव
डेवलपमेंट प्रोजेक्ट (BTDP) शुरू हुआ, जो
2026 तक विस्तारित है। 2021 तक 10.35
लाख SHGs गठित किए गए, जो
1.27 करोड़ परिवारों को प्रभावित करते हैं।
हाल के रुझान (2023-2025): जीविका ने सतत और
डिजिटल फोकस बढ़ाया है। हरीत आजीविका (जैविक खेती, सौर ऊर्जा), डिजिटल सशक्तिकरण (मोबाइल बैंकिंग, बायोमेट्रिक
ट्रांजैक्शन), और सामाजिक मुद्दों (बाल विवाह रोकथाम,
पोषण) पर काम किया जा रहा है।
प्रभाव और केस स्टडीज
जीविका का प्रभाव बिहार के सभी 38 जिलों में देखा जा सकता है, विशेष रूप से आर्थिक रूप से पिछड़े क्षेत्रों जैसे गया, नालंदा, मधुबनी, पूर्णिया,
मुजफ्फरपुर, और खगड़िया में। कुछ प्रमुख केस
स्टडीज निम्नलिखित हैं:
मधुबनी जिला: मिथिला पेंटिंग करने वाली महिलाओं को SHGs के माध्यम
से संगठित किया गया। 100+ SHGs ने मिथिला आर्ट को साड़ी और
दीवार चित्रों जैसे उत्पादों में बदला, जिसे दिल्ली, मुंबई, और निर्यात बाजारों तक पहुंचाया गया। इससे आय
में 20-30% की वृद्धि हुई।
नालंदा/गया: सहयोग विमेन जीविका एग्री प्रोड्यूसर
कंपनी ने 471,000 SHGs को SRI विधि से
जोड़ा, जिससे 77,478 एकड़ पर सब्जी
खेती (जैसे आलू, 1,230 MT उत्पादन) हुई। जैविक सब्जियों की
बिक्री से 15-20% अधिक दाम मिले।
पूर्वी चंपारण: डेयरी विकास में
SHGs की बड़ी भूमिका रही। 61,700 परिवारों
को डेयरी से जोड़ा गया, और 400+ सहकारी
समितियां स्थापित की गईं। दूध उत्पादन में वृद्धि (82.88 लाख
टन राज्य स्तर पर) और पशु चिकित्सा सेवाओं ने आय बढ़ाई।
पटना: ग्रामीण आजीविका बाजार (GRLM) ने ग्रामीण उत्पादों को शहरी ग्राहकों तक पहुंचाया। 2019 में शुरू हुए इस बाजार में मधुबनी पेंटिंग, सब्जियां,
और दूध जैसे उत्पाद बेचे जाते हैं।
आर्थिक और सामाजिक प्रभाव
आर्थिक प्रभाव:
जीविका ने बिहार की ग्रामीण संस्कृति में सामूहिकता की परंपरा को आर्थिक
सशक्तिकरण का माध्यम बनाया है। पारंपरिक रूप से गृहिणी तक सीमित मानी जाने वाली
महिलाएं अब कृषि, पशुपालन, हस्तशिल्प, और खाद्य
प्रसंस्करण जैसे क्षेत्रों में उद्यमी बन रही हैं। SHGs ने
सामाजिक पूंजी को मजबूत किया है, जिससे महिलाएं सामूहिक बचत
और ऋण तंत्र का लाभ उठाकर निवेश कर रही हैं।
- SHGs से परिवारों की आय में 20-30% की वृद्धि हुई।
- सामूहिक उद्यमों ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था को पुनर्जनन किया है, जिससे स्थानीय
बाजारों में गतिविधियां बढ़ी हैं।
- 1.3 करोड़ महिलाओं ने $103 मिलियन से अधिक बैंक क्रेडिट प्राप्त किया, जिससे गरीबी दर में कमी आई और स्थानीय अर्थव्यवस्था मजबूत हुई।
सामाजिक प्रभाव:
- महिलाओं की गतिशीलता और निर्णय लेने की क्षमता बढ़ी।
- बाल विवाह,
शिक्षा, और स्वास्थ्य जैसे मुद्दों पर उनकी
आवाज मजबूत हुई।
- आय में वृद्धि से बच्चों की शिक्षा और स्वास्थ्य में सुधार हुआ है।
- स्थानीय बाजारों में मांग-आपूर्ति में वृद्धि, रोजगार सृजन,
और सामाजिक समरसता में बढ़ोतरी।
मनोवैज्ञानिक प्रभाव:
- आत्मविश्वास और सामाजिक नेटवर्क में वृद्धि हुई, जिससे महिलाएं
बाहरी दुनिया से संवाद करने में सक्षम हुईं।
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प्रमुख चुनौतियां
जीविका ने भारी सफलता हासिल की है, लेकिन कुछ चुनौतियां इसके सतत प्रभाव को
सीमित करती हैं:
- बुनियादी ढांचे की कमी: सिंचाई, कोल्ड स्टोरेज,
और सड़क कनेक्टिविटी की कमी से उत्पादकता और बाजार पहुंच प्रभावित
होती है।
- डिजिटल साक्षरता: अधिकांश ग्रामीण
महिलाएं स्मार्टफोन और डिजिटल लेन-देन से अपरिचित हैं, जिससे LoKOS
जैसे ऐप्स का उपयोग सीमित है।
- बाजार पहुंच: FPCs का 45% कार्यात्मक
नहीं है, जिसके कारण उत्पादों को उचित मूल्य नहीं मिलता।
- सामाजिक बाधाएं: पारिवारिक और सामाजिक नियम महिलाओं की पूर्ण भागीदारी को बाधित करते हैं।
- आर्थिक प्रभाव का असमान वितरण: बचत और ऋण ने तात्कालिक
सहायता दी, लेकिन दीर्घकालिक संपत्ति निर्माण में सुधार सीमित रहा।
समाधान और सुधार
इन चुनौतियों को दूर करने के लिए निम्नलिखित उपाय सुझाए गए हैं:
- बुनियादी ढांचा सुदृढ़ीकरण: माइक्रो-सिंचाई परियोजनाएं और कोल्ड स्टोरेज इकाइयां स्थापित करना। ग्रामीण सड़कों के लिए बजट बढ़ाना।
- डिजिटल साक्षरता: "डिजिटल
सखी" अभियानों के तहत स्मार्टफोन उपयोग और डिजिटल भुगतान पर प्रशिक्षण देना।
प्रत्येक प्रखंड में तकनीकी सहायता केंद्र स्थापित करना।
- बाजार लिंकेज: FPCs के लिए प्रशासनिक प्रशिक्षण और
कॉर्पोरेट ऑफ-टेक अनुबंधों को बढ़ावा देना।
- सामाजिक समर्थन: पुरुषों और परिवारों
में जागरूकता बढ़ाने के लिए संवाद-परिवर्तन अभियान चलाना। SHG नेतृत्व के
लिए गतिशील प्रशिक्षण लागू करना।
- परिणाम-आधारित निगरानी: आय और संपत्ति निर्माण के दीर्घकालिक संकेतकों पर नियमित सर्वेक्षण करना। प्रभाव आकलन रिपोर्ट को सार्वजनिक करना।
भविष्य की दिशा
जीविका का भविष्य सतत विकास, डिजिटलीकरण, और
सामाजिक समावेशन पर केंद्रित है। हरित आजीविका (जैविक खेती, सौर
ऊर्जा), डिजिटल सशक्तिकरण (मोबाइल बैंकिंग, बायोमेट्रिक ट्रांजैक्शन), और सामाजिक मुद्दों (बाल
विवाह, पोषण) पर निरंतर ध्यान दिया जा रहा है। 2026 तक, जीविका का लक्ष्य सभी 534 प्रखंडों
में डिजिटल सुविधाएं स्थापित करना और 1.5 करोड़ परिवारों को
प्रभावित करना है।
जीविका ने बिहार की ग्रामीण महिलाओं को स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से
सशक्त बनाया है, जिससे उनकी आय बढ़ी, पलायन कम हुआ, और स्थानीय अर्थव्यवस्था मजबूत हुई। हालांकि, बुनियादी
ढांचे, डिजिटल साक्षरता, और बाजार
पहुंच जैसी चुनौतियां बनी हुई हैं। सुझाए गए सुधारों को लागू करके, जीविका न केवल महिलाओं के जीवन को बेहतर बनाएगी, बल्कि
पूरे ग्रामीण बिहार की सामाजिक-आर्थिक तस्वीर को स्थायी रूप से बदल देगी।
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