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Jun 25, 2022

बिहार की जलवायु

 

बिहार की जलवायु

    अक्षांशीय दृष्टिकोण से  कर्क रेखा के उत्तर में स्थित  संपूर्ण बिहार उपोष्ण कटिबंध में पड़ता है जहां मुख्य रूप से उष्ण मानसूनी जलवायु पायी जाती है । बिहार की जलवायु को प्रभावित करनेवाले कारकों में अक्षांश, ऊँचाई, समुद्र से दूरी और वर्षा की मात्रा आदि हैं।


स्थलबद्ध राज्य बिहार के उत्तर में हिमालय की उपस्थिति है जो मध्य एशिया की ठंडी हवाओं को रोक महाद्वीपीय जलवायु स्वरूप प्रदान करती है लेकिन बिहार की जलवायु में वर्ष के अधिकांश समय वायु में नमी (आर्द्रता) होने के कारण बिहार की जलवायु को महाद्वीपीय जलवायु न कहकर संशोधित महाद्वीपीय जलवायु कहा जाता है।


बिहार की जलवायु की महत्वपूर्ण विशेषता अल्प वर्षाकाल एवं दीर्घ शुष्ककाल है तथा मुख्य रूप से बंगाल की खाड़ी मानसून शाखा से ज्यादा प्रभावित होती है । बिहार के पूर्वी भाग अररिया, किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया, सहरसा आदि जिलों में अधिक वर्षा होने के कारण आर्द्र जलवायु पाई जाती है, जबकि उत्तरी-पश्चिमी भाग में गोपालगंज, सीवान, सारण आदि में अर्ध-शुष्क जलवायु पाई जाती है।




 बिहार के जलवायु की विशेषता

    1. उष्ण मानसूनी जलवायु की उपस्थिति 
    2. उत्तर में हिमालय की उपस्थिति तथा वर्ष के अधिकांश समय वायु में नमी के कारण संशोधित महाद्वीपीय जलवायु ।
    3. बिहार के पूर्वी भाग में आर्द्र तथा पश्चिमी भाग में अर्द्धशुष्क जलवायु पायी जाती है
    4. बिहार की जलवायु में अल्प वर्षाकाल एवं दीर्घ शुष्ककाल  उपस्थिति ।
    5. दैनिक एवं वार्षिक तापांतर न्यून ।
    6. ग्रीष्म काल की तुलना में वर्षा काल में वायु में अधिक आर्द्रता रहना ।
    7. ऋतु परिवर्तन चक्र का पूरे वर्ष चलते रहना ।
    8. बिहार का मानसून मुख्य रूप से बंगाल की खाड़ी मानसून शाखा प्रभावित ।
    9. वर्षा की अधिकतम मात्रा ग्रीष्म काल में जबकि न्यूनतम मात्रा शीत काल में होना ।
    10. वर्षा की मात्रा में पूरब से पश्चिम की ओर घटती जाती है।

बिहार में उष्ण मानसूनी जलवायु पायी जाती है जहां 3 प्रकार की ऋतुएँ स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होती है। इन ऋतुओं को प्रभावित करने वाले अनेक भौगोलिक कारक है जिसे निम्न प्रकार से समझा जा सकता है।

    1. बिहार का अंक्षाशीय विस्तार 24°N से 27°N होने के कारण ग्रीष्म काल में अत्यधिक सूर्याताप प्राप्त करना ।
    2. नारवेस्टर या काल वैशाखी जैसे चक्रवातों से मार्च एवं अप्रैल माह में ओला गिरना एवं वर्षा होना ।
    3. बिहार का बंगाल की खाड़ी के निकट होने से दक्षिण पश्चिमी मानसून से बंगाल की खाड़ी शाखा का ज्यादा प्रभाव ।
    4. उत्तर में हिमालय की अवस्थिति के कारण बंगाल की खाड़ी की मानसूनी हवाएँ का हिमालय से टकराकर उत्तर बिहार में वर्षा कराना ।
    5. हिमालय पर्वत के कारण साइबेरिया की ठंडी हवा का बिहार में प्रवेश नहीं कर पाना ।
    6. पश्चिमी विक्षोभ के सहारे ठंडी हवाओं का बिहार में प्रवेश ।
    7. पश्चिमोत्तर क्षेत्र से आने वाले ठंडी हवाओं से शीतकालीन वर्षा होना। 


ग्रीष्म ऋतु

बिहार में इस ऋतु की अवधि मार्च से जून तक रहती है। इस समय सूर्य के उत्तरायण होने से तापमान बढ़ने लगता है । मई तथा जून माह में तो कुछ स्थानों पर तापमान 46°C तक पहुंच जाता है। गया जिले में सर्वाधिक औसत तापमान 40.50 C तक होता है।


तापमान बढ़ने से मैदानी क्षेत्र में निम्नदाब का क्षेत्र बनने लगता है । इस समय धूल भरी गर्म हवाओं  लू के चलने के कारण गर्मी और बढ़ जाती है और वायु की आर्द्रता तथा वायुदाब में कमी आती है । इस समय वायुदाब में कमी आने से चक्रवातीय तूफान उत्पन्न होता है जिससे पूर्णिया, कटिहार जिले में वर्षा होती है।


वर्षा ऋतु आरंभ होने से पूर्व मार्च से मई महीने तक होनेवाली इस बौछार को काल वैशाखी, नारवेस्टर या आम्र वर्षा भी कहा जाता है । यह वर्षा आम और लीची के साथ साथ बिहार के पूर्वी तथा कोसी प्रमंडल में जूट की फसल हेतु भी लाभदायक होती है


वर्षा ऋतु

बिहार में वर्षा ऋतु की अवधि जूलाई से सितम्बर रहती है तथा मानसून प्रत्यावर्तन (मानूसन लौटना) अक्टूबर से आरंभ हो जाता है।  ग्रीष्मकाल का अंत होते होते पश्चिमोत्तर भारतीय क्षेत्र एक विशाल निम्नदाब भार का क्षेत्र बन जाता है जो मानसूनी गर्त का कार्य करता है और मानसूनी हवाओं को आकर्षित करता है। मानसूनी गर्त को भरने के लिए अरब सागर शाखा एवं बंगाल की खाड़ी शाखा के रूप में मानसून भारत में प्रवेश करती है। बंगाल की खाड़ी शाखा हिमालय के समानांतर पूर्व दिशा एवं दक्षिण पूर्व दिशा से बिहार में प्रवेश करती है।


बिहार में मानसून पूर्व चक्रवातीय तूफान तथा दक्षिण पश्चिम मानसून का प्रवेश बिहार के पूर्वी भाग से होता है इस कारण बिहार का पूर्वी भाग मानसून से ज्यादा वर्षा प्राप्त करता है । किशनगंज बिहार का सर्वाधिक वर्षा प्राप्त करनेवाला जिला है। बिहार में वर्षा की मात्रा में कमी उत्तर से दक्षिण की ओर तथा पूर्व से पश्चिम की ओर देखी जाती है ।


15-20 जून तक सम्पूर्ण बिहार में बंगाल की खाड़ी शाखा का प्रभाव फैल जाता है। इसके आने से तापमान में कमी, सापेक्षिक आर्द्रता और उमस में वृद्धि होती है । बिहार में अधिकांश वर्षा  बंगाल की खाड़ी मानसून से होती है जबकि शीतकालीन वर्षा भूमध्य सागर की ओर से आनेवाली चक्रवातों से होती है।


बिहार में वर्षा का वितरण

  • उच्चावच में भिन्नता एवं समुद्र से बढ़ती दूरी जैसे कारणों से बिहार में वर्षा का वितरण असमान है। बिहार में औसत वार्षिक वर्षा 112 सेमी होती है। सर्वाधिक वर्षा किशनगंज में 205 सेमी तक होती है जबकि सबसे कम वर्षा औरंगाबाद में होती है। उत्तरी बिहार के मैदान में 100 से 200 सेंटीमीटर तक वर्षा होती है जबकि पूर्वोत्तर बिहार एवं तराई प्रदेश में वर्षा की मात्रा 200 सेंटीमीटर से अधिक होती है।

  • दक्षिण बिहार के मैदान में उत्तर बिहार की अपेक्षा वर्षा कम होती है। दक्षिणी बिहार के नवादागयाऔरंगाबादरोहतास एवं फैमूर जिले कम वर्षा ग्रहण करनेवाले जिले है

  • ग्रीष्मकालीन मानसूनी वर्षा के अलावा शीतकाल में जनवरी फरवरी माह में भी बिहार के मैदानी क्षेत्रों में वर्षा होती है। बिहार में शीतकालीन वर्षा का मुख्या कारण पश्चिमी विक्षोभ है । यह वर्षा भूमध्यसागर में उत्पन्न शीतोष्ण चक्रवात से होती है । भूमध्यसागर से बढ़ते हुए चक्रवातीय वायु आगे बढ़कर फारस की खाड़ी में नमी ग्रहण करती है तथा उत्तरी-पश्चिमी भारत में वर्षा कराती है जिसका प्रभाव बिहार में भी देखने में आता है।


शीत ऋतु


बिहार में इस ऋतु की अवधि अक्टूबर से फरवरी तक रहती है। वर्षा ऋतु के समाप्त होते ही सूर्य के दक्षिणायन होने से गर्मी की मात्रा में गिरावट शुरू हो जाती है और शरद ऋतु का आगमन होता है जो धीर धीरे शीत ऋतु में परिणत हो जाता है।

इस ऋतु में बिहार का औसत तापमान 16 डिग्री सेल्सियस रहता है तथा सर्वाधिक ठंड जनवरी माह में पड़ती है।  दिसम्बर-जनवरी माह में  में पश्चिमोत्तर भारत में चलने वाली पश्चिमी विक्षोभ हवा हिमालय के सहारे शीतलहरी एवं हल्की-फुल्की वर्षा कराती है जो रबी फसलों हेतु लाभदायक होती है। 


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