बिहार में गरीबी एवं बहुआयामी गरीबी सूचकांक
गरीबी रेखा आय का वह स्तर है जिसमें उपभोक्ता अपने जीवन निर्वाह के लिए आवश्यक वस्तुएं नहीं जुटा पाता। गरीबी की प्रकृति बहुआयामी होती है इसमें साक्षरता, जीवन प्रत्याशा, बाल मृत्यु दर, कुपोषण, स्वच्छ जल, स्वच्छता जैसे क्षेत्रों में उत्पन्न अभाव को भी गरीबी के तौर पर माना जाता है।
बिहार का लगभग एक तिहाई आबादी गरीब है जो संपूर्ण भारत को अपेक्षा काफी अधिक है। तेंदुलकर समिति के अनुमान तथा बिहार आर्थिक सर्वेक्षण 2019-20 के अनुसार बिहार में गरीबी की दर 33.7% है । जो राष्ट्रीय औसत 21.9% से ज्यादा है। इसके अलावा ग्रामीण क्षेत्र में गरीबी दर शहरी क्षेत्रों के मुकाबले ज्यादा है।
बहुआयामी गरीबी सूचकांक (Multidimensional Poverty Index) एवं बिहार
बहुआयामी गरीबी सूचकांक रिपोर्ट एवं बिहार में गरीबी के संदर्भ में प्रमुख बिंदु
- बिहार की 51.91% जनसंख्या गरीब है जबकि देश के न्यूनतम
गरीब राज्य केरल में केवल 0.71% जनसंख्या ही गरीब है।
- बिहार इस सूचकांक के 6 मानकों में देश में सबसे अंतिम पायदान पर है ।
- बिहार की 51.88% जनसंख्या (देश में सर्वाधिक) कुपोषण की
शिकार है जबकि सिक्किम सबसे कम कुपोषित राज्य है।
- इस सूचकांक में बिहार को 0.265 स्कोर प्राप्त हुआ जिसमें ग्रामीण
क्षेत्रों का MPI स्कोर 0.286 एवं शहरी
क्षेत्रों का MPI स्कोर 0.117 है जो
बताता है कि बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक गरीबी है।
- बिहार में कई जिले बेहद गरीबी का
सामना कर रहे हैं तथा इन जिलों में अधिकतर आबादी गरीबी रेखा से नीचे हैं । किशनगंज बिहार का सबसे गरीब ज़िला है जहाँ की 64.75 प्रतिशत जनसंख्या गरीब है। इसके अलावा
अररिया (64.65 प्रतिशत), मधेपुरा (64.35
प्रतिशत), पूर्वी चंपारण (64.13 प्रतिशत) एवं सुपौल (64.10 प्रतिशत) सर्वाधिक गरीब
ज़िले हैं । बिहार के 11 जिले ऐसे हैं जहां गरीबी रेखा के
नीचे जीवनयापन करने वालों की संख्या सबसे अधिक है।
- पटना बिहार का सबसे कम गरीब ज़िला है
जहाँ की सिर्फ 29.20 प्रतिशत जनसंख्या
ही गरीब है।
बिहार में गरीबी के कारण
जनसंख्या का दबाव
बिहार जनसंख्या के दृष्टिकोण से भारत का तीसरा सबसे बड़ा राज्य है तथा जनघनत्व के मामले में सबसे आगे हैं।संपूर्ण भारत के 2.86% क्षेत्रफल पर देश की कुल जनसंख्या का 8.6% निवास करती है जिससे बिहार पर जनसंख्या के दबाव को समझा जा सकता है।
बिहार
जैसे अविकसित और कम संसाधनों वाले राज्य में सरकार पर कल्याणकारी योजनाओं, शिक्षा,
स्वास्थ्य, सब्सिडी पर राज्य को अधिक व्यय
करना पड़ता है। अतः इन सभी के फलस्वरूप कई कोशिशों के बावजूद भी बिहार में बिहार
में निर्धनता का अस्तित्व बना हुआ है।
मजबूत अधिसंरचना का अभाव
बिहार
में मूलभुत अवसंरचनाओं की कमी है । हांलाकि पिछले कुछ वर्षों में अधिसंरचना के कई
क्षेत्रों में सुधार हुआ है लेकिन अभी भी स्थिति अच्छी नहीं कही जा सकती । बेहतर अवसंरचना
की कमी राज्य के आर्थिक विकास में बाधा डालती है जिसके कारण बिहार में बेरोजगारी और गरीबी बढ़ी
है।
उद्योगों की दयनीय स्थिति
बिहार
औद्योगिक रूप से पिछड़ा राज्य है हालांकि पिछले कुछ वर्षों में स्थितियां बदली है
और बिहार सरकार औद्योगिक विकास हेतु प्रयास भी हुए है लेकिन इन सबके बावजूद
उद्योगों का विकास नहीं हो पाया है। कई उद्योग या तो बीमार घोषित है या घाटे में
चल रहा है। इसके अलावा नए उद्योगों की स्थापना नाममात्र की हुई ।
राज्य
के सकल राज्य घरेलू उत्पाद में औद्योगिक क्षेत्र का योगदान मात्र 20.0% है जो अन्य राज्यों की तुलना में सबसे कम है। संपूर्ण भारत में यह 31.2%
है। राज्य में उद्योगों की दशा अच्छी नहीं होने के कारण बेरोजगारी,
पलायन होता है जो निर्धनता का एक बड़ा कारण है।
नई आर्थिक सुधारों का लाभ नहीं उठा पाना
वर्ष
1991 में आयी नई आर्थिक नीतियों का कई राज्यों ने लाभ उठाकर अपनी आर्थिक
स्थिति मजबूत की लेकिन बिहार इसके लाभों से वचित रह गया। नए सुधारों से व्यापक
स्तर पर राज्य की पूँजी अन्य विकसित राज्यों की ओर पलायन कर गया ।
हांलाकि
बिहार में पिछले कुछ वर्षों से आर्थिक विकास दर में वृद्धि दर्ज हुई किन्तु इसका
समावेशी लाभ प्राप्त नहीं हो पा रहा है और कई लोग इसके लाभों से वंचित है।
बेरोजगारी
बेरोजगारी
तथा निम्न आय के कारण बिहार में प्रति व्यक्ति आय बहुत कम एवं काफी असमानतायुक्त है।
आय का स्तर निम्न होना तथा आय में समानता न होना भी गरीबी का एक बड़ा कारण है।
किराया समानीकरण की नीति
झारखंड
के अलग होने के पूर्व तक बिहार खनिज संसाधन के मामलों में सम्पन्न रहा। 1950 से 1990 के दशक तक बिहार
को खनिज संसाधन के मामले परिवहन पर केंद्र सरकार द्वारा सब्सिडी दी
जाती थी। इस कारण यहां उद्योग स्थापित होने के बजाए अन्य राज्यों में स्थापित होने
थे। इस नीति के कारण बिहार में उद्योग धंधे पनप नहीं पाए तथा अन्य स्थानों पर
उद्योगों को सस्ता माल मिलता रहा। इस प्रकार बिहार साधनों की प्रचुरता के बावजूद
निर्धन बना रह गया।
भूमि सुधार एवं कृषि सुधार में कमी
कृषि
प्रधान राज्य में भूमि सुधार एवं कृषि में प्रगति द्वारा निर्धनता एवं बेरोजगारी
उन्मूलन की दिशा में सार्थक परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं लेकिन काफी प्रयासों के
बावजूद बिहार में कृषि विकास एवं भूमि सुधार योजनाओं, कार्यक्रमों
का उचित कियान्वयन नहीं हो पाया ।
भूमि
का असमान वितरण,
कृषि में सरकारी प्रोत्साहन, ऋण, सिंचाई, निवेश आदि में उदासीनता तथा प्राकृतिक आपदाओं के कारण कृषकों
की हालत में सुधार नहीं आया और बिहार की ग्रामीण आबादी का बड़ा हिस्सा गरीबी के जाल
से मुक्त नहीं हो पाया ।
प्राकृतिक आपदाएं
बिहार
विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं से ग्रस्त है जिसमें बाढ़ एवं सूखाड़ को तो वार्षिक
समस्या माना जाता है। यह दुर्भाग्य है कि अभी तक इन आपदाओं से होनेवाले जानमाल को नुकसान
पर नियंत्रण नहीं पाया जा सका । एक तरफ आपदाएं जहां जनता में निर्धनता बढ़ा रही है
तो दूसरी ओर सरकार के राजस्व पर भी बोझ डालती है जिससे सरकार की विकास कार्य एवं
जनकल्याणकारी योजनाओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
कुशल मानव पूंजी की कमी
बिहार
राज्य साक्षरता एवं कौशल एवं तकनीकी शिक्षा में अन्य राज्यों की अपेक्षा पीछे रहा ।
बिहार की श्रम शक्ति का एक बड़ा भाग निरक्षर और अकुशल है जिसके कारण वे उच्च आय आजीविका
कर नहीं पाते और उनकी आय कम होती है और गरीबी में जीवनयापन करते हैं ।
सामाजिक एवं आर्थिक बुराइयाँ
बिहार
शराबखोरी,
बाल श्रम, दहेज प्रथा, जातीयता
आदि कई प्रकार की सामाजिक बुराइयों से ग्रसित रहा । इसके अलावा बचत, निवेश में कमी, नवचार के अभाव आदि के कारण बिहार में सामाजिक एवं आर्थिक गतिशीलता का चक्र
अवरुद्ध रहा और लाखों
लोग अन्य राज्यों में पलायन की ओर मजबूर हुए।
जाति आधारित राजनीति
बिहार
में जाति आधारित राजनीति होने के कारण विकास का मुद्दा गौण रहता है और शिक्षा,
स्वास्थ्य, विकास, रोजगार आदि मुद्दे
को महत्व नहीं दिया जाता। इस कारण सत्ता वर्ग द्वारा मानव संसाधन के विकास पर
विशेष ध्यान नहीं दिया जाता जिसके कारण गरीबी की समस्या का समाधान नहीं हो पाता।
अपराध एवं भ्रष्टाचार
बिहार
में व्यापक स्तर पर अपराध एवं भ्रष्टाचार माहौल रहा जिसके कारण राज्य में उद्योग,निवेश आदि नहीं हो पाया । इसी क्रम में भ्रष्टाचार, जन
प्रतिनिधि एवं आपराधियों के साठगांठ से राज्य की नकारात्मक छवि बनी जिसके कारण राज्य
लगातार पिछड़ता चला गया। हांलाकि पिछले कुछ वर्षों में इस पर नियंत्रण हेतु अनेक प्रयास
हुए हैं लेकिन उस छवि
में सुधार लाने हेतु और प्रयास किया जाना होगा ।
कार्य संस्कृति का अभाव
बिहार
में भ्रष्टाचार एवं लालफीताशाही वाली कार्य संस्कृति रही । सरकार के कार्यालयों में
कार्य शिथिलता से प्रशासनिक शिथिलता भी आयी जिससे नीतियाँ, योजनाओं
एवं कार्यक्रमों के क्रियान्वयन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा ।
राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी
गरीबी
निवारण एवं कल्याणकारी योजनाओं के निर्माण और उसके क्रियान्वयन में मजबूत राजनैतिक
इच्छाशक्ति की आवश्यकता होती है लेकिन बिहार में इसका अभाव रहा है जिसके कारण स्थिति
बद से बदतर होती चली गई।
बिहार में गरीबी दूर करने के उपाय
- कृषि में निवेश एवं उपयुक्त तकनीक को अपनाया जाए ।
- कृषि
में विकास हेतु जल प्रबंधन एवं बाढ़ नियंत्रण, गुणवत्तापूर्ण बीजों का
उपयोग, उर्वरकों का समुचित प्रयोग को बढ़ावा ।
- कृषि
पर जनसंख्या के दबाव कम करने हेतु पशुपालन, मत्स्य पालन आदि द्वारा रोजगार
सृजन।
- रोजगार
सृजन हेतु श्रम गहन उद्योगों, लघु एवं कुटीर उद्योगों को प्रोत्साहन ।
- बड़े, मध्यम,
लघु, कुटीर एवं कृषि आधारित उद्योगों, खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों की स्थापना को प्रोत्साहन।
- रोजगार
सृजन के साथ साथ लोगों को स्वरोजगार हेतु कौशल,वित्त
आदि द्वारा प्रोत्साहन ।
- गरीबी निवारण में स्थानीय स्वशासन संस्थाओं के माध्यम से योजना निर्माण तथा क्रियान्वयन ।
- बढ़ते जनसंख्या के दबाव में कमी लाने हेतु जनसंख्या नियंत्रण उपायों को अपनाना होगा ।
- संसाधनों के बेहतर उपयोग हेतु कुशल वित्तीय प्रबंधन एवं निवेश को बढ़ावा देना होगा ।
- भ्रष्टाचार, अधिकारियों
अपराधियों के गठजोड़
को समाप्त करना होगा ।
बिहार में गरीबी निवारण हेतु प्रयास
केंद्र
के साथ साथ बिहार सरकार द्वारा अनेक योजनाएं प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से
गरीबी उन्मूलन हेतु लायी गयी है जिसमें प्रमुख निम्न है
- बिहार
सरकार ने महत्वकांक्षी योजना सात निश्चय के माध्यम से स्वास्थ्य, शिक्षा, सडकें और ग्रामीण विकास जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों को लक्ष्य बनाकर व्यापक
सुधार कार्यक्रम शुरु किया ।
- प्रधानमंत्री
आवास योजना ग्रामीण में गरीब परिवार को आवास हेतु 1.20 लाख दिए जाने
का प्रावधान किया गया। बिहार सरकार द्वारा जमीन की खरीद हेतु 60 हजार देने की व्यवस्था की गयी है।
- गरीब,
वंचित परिवार को मुख्यमंत्री सतत जीविकोपार्जन योजना के तहत रोजगार के लिए 60
हजार से एक लाख तक दिये जाने का प्रावधान ।
- ग्रामीण महिलाओं को सशक्त एवं आत्मनिर्भर बनाने हेतु जीविका योजना का संचालन ।
- बच्चों
की शिक्षा एवं पोषण हेतु हर बच्चे को आंगनबाड़ी, मध्यान्ह भोजन योजना से
जोड़े जाने की योजना ।
- 2015 में बिहार में गरीबी दूर करने हेतु रोडमैप बनाने हेतु एस. गुलरेज होदा की अध्यक्षता में टास्क फोर्स का गठन किया गया।
- सरकार द्वारा कानून और व्यवस्था तथा निवेश का माहौल सुधारने पर ध्यान केन्द्रित किया गया ।
- विश्व बैंक की बिहार ग्रामीण आजीविका परियोजना द्वारा बिहार के ग्रामीण गरीबों का सामाजिक तथा आर्थिक सशक्तिकरण किया गया।
- अवसंरचना
सुधार के तहत सड़क,
संचार, परिहवन, बिजली, आदि के क्षेत्र में बिहार सरकार द्वारा
उल्लेखनीय कार्य किया गया।
बिहार में गरीबी निवारण हेतु सुझाव/आगे की राह
केंद्र
और राज्य सरकार द्वारा दी जाने वाली जनकल्याणकारी योजनाओं का क्रियान्वयन यदि
जमीनी स्तर तक की आ जाए और गरीब लोगों को योजनाओं का लाभ दिया जाय तो एक हद तक
गरीबी समाप्त किया जा सकता है।
बिहार आर्थिक सर्वेक्षण:2019-2020’ की रिपोर्ट में कहा
गया है कि बिहार में प्रति व्यक्ति आय अन्य राज्यों की तुलना में कम है। अतः बिहार
की आर्थिक गतिविधियां को बढ़ाने की दिशा में अतिरिक्त प्रयास करने की आवश्यकता है
जिससे कि बिहार की प्रति व्यक्ति आय राष्ट्रीय औसत के बराबर पहुंच सके ।
बिहार
में कृषि और उससे संबिधित क्षेत्र में ज्यादा रोजगार मिलता है लेकिन इस क्षेत्र का
विकास दर काफी कम है जिसके कारण गरीबी बढ़ती है और दूसरे राज्यों में लोगों का
पलायन होता है। अतः कषि एवं सहवर्ती क्षेत्र के विकास एवंनिवेश पर ध्यान देना होगा
।
बिहार
में शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी मूलभुत सेवाओं पर ध्यान नहीं देने से गरीबी, कुपोषण,
भ्रष्टाचार और सामाजिक विषमता जैसी समस्याएं बढ़ी है और बिहार के
विकास को प्रभावित कर रही हैं। जिसके फलस्वरूप गरीबों की संख्या में कमी नहीं आ
रही है । अतः समग्र रूप से मूलभुत सुविधाओं की गुणवत्तापूर्ण एवं आसान उपलब्धता
सुनिश्चित करना होगा ।
आशा है बिहार में गरीबी एवं बहुआयामी निर्धनता सूचकांक के इस पोस्ट से आपको लाभ हुआ होगा । इसी तरह के और किसी विषय पर पोस्ट हेतु आप कमेंट कर सकते हैं और हमारी टीम द्वारा उसको आपके लिए उपलब्ध कराने का प्रयास किया जाएगा ।
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