बिहार की मिट्टी
भूपटल के ऊपरी असंगठित पदार्थों की परत जिसका निर्माण चट्टानों के टूटने-फूटने से होता है मिट्टी कहलाती है। मिट्टी निर्माण में जल, आर्द्रता और तापमान जैसे जलवायविक कारकों की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। सामान्य रूप से मिट्टी में चट्टानों के कण, ह्यूमस, जल, वायु तथा सूक्ष्म जीवाणु पाए जाते हैं।
कृषि प्रधान राज्य बिहार में जहां अधिकांश लोगों की जीविका कृषि पर ही निर्भर है वहां मिट्टी एक बहुमूल्य प्राकृतिक संसाधन है । हांलाकि क्षेत्रफल की दृष्टि से बिहार जैसे छोटे राज्य में संरचनात्मक जटिलता, शैलों की विविधता, जलवायु तथा वनस्पतियों के प्रभाव से विभिन्न प्रकार की मिट्टीयां पायी जाती है फिर भी एक बहुत बड़े भाग पर जलोढ़ मिट्टी पायी जाती है जो गंगा तथा उसकी सहायक नदियों द्वारा लाए गए अवसादों से निर्मित है।
बिहार की मिट्टी की संरचनात्मक जटिलताएं
बिहार के विभिन्न क्षेत्रों में व्यापक रूप से संरचनात्मक
जटिलता पायी जाती है और यह जटिलताएं उन भागों में मिट्टियों में भी परिलक्षित होती
है जिसके फलस्वरूप उत्तरी बिहार के मैदानी भाग और दक्षिणी बिहार के पठारी भाग की मृदाए
अलग अलग विशेषताएं दर्शाती है।
बिहार के उत्तरी पश्चिमी भाग में शिवालिक क्रम की
पहाड़ियों के आस पास जहां नवीन काल की चट्टाने और बालू पत्थर, क्वार्टजाइट,
गोलाश्म आदि पायी जाती हैं वहीं बिहार के विशाल मैदानी भागों में
व्यापक रूप से जलोढ़ मृदा का विस्तार पाया जाता है जिसमें अनेक क्षेत्रीय विषमताएँ
देखने को मिलती है। उत्तर बिहार की मिट्टियाँ हिमालयी नदियों के अवसाद जमाव से
निर्मित है जिनमें काँप तथा बालू का अंश भिन्न मात्रा में देखने को मिलता है।
बिहार के सीमांत दक्षिणी भाग में कैमूर क्षेत्र में
जहां विन्धयन काल की चट्टाने बालुका पत्थर, डोलोमाइट, चूनापत्थर आदि से प्रभावित मिट्टियाँ पायी जाती है वहीं गया के पहाड़ी भाग
में आर्कियन एवं धारवाड़ काल की चट्टाने जैसे नीस एवं शिष्ट से प्रभावित मिट्टियाँ
मिलती है। इसके अलावा राजगीर, नवादा, बाँका
की पहाड़ियों में क्वार्टजाइट, शेल, आग्नेय
चट्टानों से प्रभावित मिट्टियाँ पायी जाती है।
दक्षिणी बिहार में पहाड़ी भागों में मृदाओं में वनस्पतियों
का भी प्रभाव भी दृष्टिगोचर होता है। दक्षिण बिहार की नदियाँ पठारी भाग से मिट्टी
तथा बालू का अंश लाकर जमा करती है जिससे मिट्टियों के गुणवत्ता में क्षेत्रीय
अन्तर आता है और कहीं उपजाऊ केवाल मिट्टी तो कहीं दोमट मिट्टी पायी जाती है।
कैमूर, जमुई क्षेत्रों की मिट्टियों
का रंग लाल होता है तो गंगा घाटी की मिट्टियां जीवाश्मयुक्त होने के कारण मटमैला होती
है। गंगा के मैदान में अतीत में हुए समुद्री निक्षेप के कारण जहां मिट्टियों की गहराई
2500 मीटर तक पाई जाती है वहीं पठारी क्षेत्रों में यह अपेक्षाकृत कम
गहरी होती है ।
इस प्रकार क्षेत्रफल की दृष्टि से बिहार जैसे अपेक्षाकृत
छोटे राज्य में मृदा में व्यापक भिन्नताएं देखने को मिलती है और इस कारण बिहार की मिट्टी
को वर्गों तथा अनेक उपवर्गों में बांटा गया है । बिहार सरकार के कृषि अनुसंधान विभाग
द्वारा मूल चट्टान,
भूआकृति, भौतिक एवं रासायनिक संरचना के आधार पर
बिहार की मृदा का 3 भागों में वर्गीकरण किया गया है।
उत्तर बिहार के मैदान की मिट्टी
- पर्वतपदीय/ अवशिष्ट मिट्टी
- तराई मिट्टी
- पुरानी जलोढ़ या बाँगर मिट्टी
- नवनिर्मित जलोढ़ या खादर मिट्टी
दक्षिण बिहार के मैदान की मिट्टी
- गंगा कगारी मिट्टी
- टाल क्षेत्र की मिट्टी
- करैल कैवाल अथवा पुरानी जलोढ़ मिट्टी
- बलथर मिट्टी
दक्षिणी सीमांत पठार की मिट्टी
- लाल बलुई मिट्टी
- लाल व पीली मिट्टी
1. उत्तर बिहार के मैदान की मिट्टी
उत्तर बिहार में शिवालिक पर्वतीय क्षेत्र में वनीय या
पर्वतीय मिट्टी का विकास हुआ है जबकि मैदानी क्षेत्र में मुख्यतः जलोढ़ मिट्टी पाई
जाती है जिसका निर्माण हिमालयी नदियों गंडक, बूढ़ी गंडक, कोसी, महानंदा और उसकी सहायक नदियों द्वारा हुआ है।
उत्तर बिहार के मैदान की मिट्टी को कृषि अनुसंधान विभाग के द्वारा चार उपवर्गों
में बाँटा गया है।
पर्वतपदीय/ अवशिष्ट मिट्टी
यह मिट्टी चंपारण के उत्तरी-पश्चिमी भाग में सोमेश्वर
श्रेणी के पास पायी जाती है। कंकड, पत्थर युक्त इस मिट्टी को
अवशिष्ट मिट्टी भी कहा जाता है। पर्वतीय ढालों पर अधिक वर्षों के कारण मिट्टी की
परत पतली होती है। यह उपजाऊ मिट्टी होती है।
वन क्षेत्र की अधिकता के कारण इसका रंग हल्का भूरा तथा
ह्यूमस की अधिकता होती है। यह मिट्टी धान एवं गन्ना हेतु उपयुक्त मानी जाती है।
तराई मिट्टी
सोमेश्वर पहाड़ी के दक्षिण में बिहार एवं नेपाल की सीमा पर पश्चिमी चंपारण से किशनगंज तक एक पतली पट्टी के रूप में तराई मिट्टी का विस्तार पाया जाता है। इस क्षेत्र की मिट्टी में पर्याप्त नमी के कारण कई जगहों पर दलदली भूमि का भी विकास हुआ है।
महीन तथा मोटे कणों से युक्त इस मिट्टी का रंग हल्का
भूरा या पीला होता है जिसमें चूने की पर्याप्त मात्रा पाई जाती है। यह धान, जूट
और गन्ने की खेती के लिए अनुकूल होती है।
पुरानी जलोढ़ या बाँगर मिट्टी
जिन क्षेत्रों में बाढ़ का पानी प्रतिवर्ष नहीं पहुंचता
वहां पुरानी जलोढ़ या बांगर मिट्टी का विकास होता है। इसे बलसुंदरी मिट्टी के नाम
से भी जाना जाता है।
बिहार में इसका विस्तार क्षेत्र मुख्य रूप से घाघरा-गंडक
दोआब और बूढ़ी गंडक के पश्चिमी भाग में है। इसमें चूना और पोटाश की अधिकता होती है जो
गन्ना कृषि के लिए उपयुक्त मानी जाती है।
नवनिर्मित जलोढ़ या खादर मिट्टी
इस मिट्टी का क्षेत्र उत्तरी बिहार का बाढ़ का मैदान है
जो नदियों द्वारा प्रतिवर्ष बाढ़ के पश्चात् छोड़े गए अवसादों निर्मित होती है। इस
मिट्टी का विस्तार गंगा,
गंडक, बूढ़ी गंडक, बागमती,
कमला, कोसी और महानंदा की निचली घाटी में पाया
जाता है। यह उर्वर मिट्टी है जिसमें अनेक महत्त्वपूर्ण खनिज तत्त्व पाए जाते हैं।
नाइट्रोजन की कमी तथा चीका (क्ले) प्रधानता युक्त इस मिट्टी
का रंग गहरा भूरा होता है जो धान की कृषि के लिए उपयुक्त मानी जाती है।
2. दक्षिण
बिहार के मैदान की मिट्टी
गंगा के दक्षिण मैदान भाग में गंगा नदी से छोटानागपुर
पठार तक इसका विस्तार पाया जाता है जिसका निर्माण इस क्षेत्र में बहनेवाली पठारी नदियों
जैसे सोन,
पुनपुन, फल्गु तथा उनकी सहायक नदियों के
निक्षेपण से हुआ है। दक्षिण बिहार की मिटिटयों को संरचना एवं गुण के आधार पर चार
उपवर्गों में बाँटा गया है
कगारी मिट्टी
दक्षिण बिहार में गंगा के दक्षिणी तट, सोन,
पुनपुन, फल्गु किउल नदियों के किनारे एक संकीर्ण
पट्टी के रूप में पायी जानेवाली मिट्टी कगारी मिट्टी कहलाती है । यह मोटी काँप के
रूप में चूना की प्रधानता वाली मिट्टी है जिसका गठन हल्का एवं रंग भूरा होता है।
इस मिट्टी की प्रमुख फसल मकई, जौ, सरसों,
मिर्च, साग सब्जी आदि हैं।
टाल मिट्टी
टाल निम्न भूमि का क्षेत्र है, जो
वर्षा काल में जलमग्न रहता है। यह मिट्टी बक्सर से भागलपुर तक 8 से 10 किलोमीटर चौड़ी पट्टी में फैली हुई है। यह
बारीक से मोटे कणों वाली भूरे रंग की मिट्टी है। प्रति वर्ष बाढ़ के प्रभाव के कारण
यह काफी उपजाऊ रहती है। वर्षा काल में यह क्षेत्र जलमग्न रहने के कारण कषि कार्य नहीं
आता लेकिन रबी फसल के लिए यह अनुकूल हो जाता है।
पुरानी जलोढ़ या करैल- केवाल मिट्टी
इस मिट्टी का विस्तार टाल क्षेत्र के दक्षिण में
उत्तरी रोहतास,
बक्सर, भोजपुर, उत्तरी
गया, नालंदा, जहानाबाद, मुंगेर, पटना आदि में पाया जाता है। यह बालू,
सिल्ट और चीका मिश्रण से युक्त उर्वर मिट्टी होती है जिसमें जल सोखने
की क्षमता ज्यादा होती है ।
इसका रंग गहरा भूरा से लेकर पीला तक होता है। इस
मिट्टी में उपजाई जानेवाली प्रमुख फसल धान, गेहूँ, बाजरा, अरहर आदि हैं।
बलथर मिट्टी
गंगा के मैदान की दक्षिण सीमा तथा छोटानागपुर पठार के
मिलन क्षेत्र में कैमूर से भागलपुर तक 5 से 15 किलोमीटर तक एक संकीर्ण पट्टी के रूप में बलथर मिट्टी का विस्तार पाया
जाता है।
इस मिट्टी का रंग पीलापन लिए हुए लाल होता है। इसमिट्टी
में कंकड एवं रेत की बहलता होने के कारण पानी अधिक देर तक ठहर नहीं पाता । अपरदन
की अधिकता तथा उर्वरा शक्ति कम होने के कारण इस मिट्टी में कृषि की संभावना कम
होती है। इस मिट्टी में मुख्यत: ज्वार, बाजरा, मोटे अनाज आदि उपजाए जाते हैं।
3. दक्षिणी
सीमांत पठार की मिट्टी
दक्षिण बिहार के सीमांत पठारी क्षेत्र में अवशिष्ट मिट्टी
मिलती है जिसे भौतिक एवं रासायनिक विशेषताओं के आधार पर दो उपवर्ग में बाँटा गया
है
लाल बलुई मिट्टी
यह मिट्टी कैमूर एवं रोहतास के पठारी क्षेत्रों में
पाई जाती है जिसमें बालू,
लाल चीका और लेटेराइट के अंश पाए जाते हैं। इस क्षेत्र में
प्राकृतिक वनस्पति की अधिकता के कारण इस मिट्टी में जीवांश अधिक पाया जाता है। यह
कम उपजाऊ मिट्टी है जिसमें मुख्य रूप से मोटे अनाज जैसे ज्वार, बाजरा, मडुआ आदि उपजाए जाते हैं।
लाल व पीली मिट्टी
इस मिट्टी का विस्तार जमुई, मुंगेर
के खड़गपुर पहाड़ी, बाँका, नवादा,
गया और औरंगाबाद के पठारी क्षेत्र में पाया जाता है। इस मिट्टी का
निर्माण ग्रेनाइट, नीस, शिस्ट आदि
चट्टानों के विखंडन से हुआ है जिसमें लौह तत्त्व की अधिकता के कारण इसका रंग लाल
होता है। इसमें नाइट्रोजन, फास्फोरस तथा ह्यूमस की कमी पाई
जाती हैजिसके कारण यह अनुपजाऊ मिट्टी है। इस मिट्टी में मुख्यतः मोटे अनाज,
दलहन, मकई की खेती होती है।
बिहार में मिट्टी की समस्याएं
कृषि प्रधान राज्य बिहार में मिट्टी के अवैज्ञानिक, अनियोजित
उपयोग और मृदाक्षरण की समस्या पायी जाती है। एक अनुमान के अनुसार बिहार की लगभग
32% भूमि क्षरण को समस्या से ग्रसित है। यह समस्या बिहार के मैदानी और
पठारी दोनों क्षेत्रों में है ।
मैदानी क्षेत्रों में तटबंध कटाव, नदियों
के मार्ग परिवर्तन से यह समस्या ज्यादा गंभीर है। कोसी नदी द्वारा मार्ग परिवर्तन के
कारण सहरसा, मधेपुरा, सुपौल, मधुबनी, कटिहार पूर्णिया जिलों की मिट्टी काफी प्रभावित
हुई है। इसके अलावा गंगा, गंढक, घाघरा,
महानंदा जैसी नदियां के कारण भी इनके क्षेत्र की मृदा प्रभावित हुई है।
बिहार के दक्षिणी भाग में कैमूर, गया,
नवादा, मुंगेर, जमुई,
बांका आदि जिलों के पहाड़ी क्षेत्र में नदी क्रियाओं द्वारा मृदा अपक्षरण
की समस्या ज्यादा है । उल्लेखनीय हैकि इस क्षेत्र में ढाल ज्यादा होने से वर्षाकाल
में वनस्पतिविहीन क्षेत्रों की कोमल मिट्टी ज्यादा प्रभावित होती है।
बिहार के मैदानी क्षेत्र में ज्यादा उपज लेने हेतु रासायनिक
कृषि के बढ़ते प्रचलन के कारण भी मिट्टी की गुणवत्ता प्रभवित हो रही है। इसी प्रकार
अवैज्ञानिक एवं अनियोजित उपयोग भी मिट्टी संबंधी समस्याएं को बढ़ा रहा है।
सरकार के प्रयास
बिहार सरकार द्वारा केन्द्र सरकार की योजनाओं एवं
प्रयासों के साथ समन्वय बनाते हुए टिकाऊ विकास एवं मृदा संरक्षण की दिशा में प्रत्यक्ष
तथा अप्रत्यक्ष अनेक योजनाएं जैसे जल-जीवन हरियाली अभियान,
कृषि रोड मैप, जैविक कृषि गुणवत्ता नियंत्रण प्रयोगशाला, बागवानी प्रोत्साहन, वर्मी कम्पोस्ट, सूक्षमजीवी जैव उर्वरक,
हरित खाद, हर खेत को पानी, जलवायु अनुकूल कृषि कार्यक्रम आदि को सफलतापूर्वक लागू करने की दिशा में
प्रयास किए जा रहे है ।
- केन्द्र सरकार द्वारा बजट 2022-23 में रसायनमुक्त खेती तथा जैविक एवं शून्य बजट प्राकृतिक खेती के प्रति प्रतिबद्धता
व्यक्त करने हेतु राष्ट्रीय कृषि विकास योजना को 10,433 करोड़
रुपए का आवंटन दिया गया जो पिछले वर्ष की तुलना में 4.2 गुना अधिक है । इसके अलावा
हाल ही में नीति आयोग द्वारा प्राकृतिक खेती (Natural Farming) पर एक राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन किया गया।
- जल जीवन हरियाली योजना के तहत लगभग 4436 हेक्टेयर वन क्षेत्र को मृदा एवं नमी संरक्षण कार्य के तहत उपचारित किया
गया ।
- गैर वानिकी कार्यों हेतु वन भूमि को अंतरित करने के
कारण परितंत्र को होने वाले नुकसान की भरपाई हेतु क्षतिपूर्ति वनीकरण कोष का गठन
किया गया । वर्ष 2021-22 में इसके तहत 79.59 लाख लगाए गए तथा वर्ष 2020-21 में लगभग 26.16
हेक्टेयर वन भूमि को कैंपा के जरिए मृदा एवं नमी संरक्षण हेतु
उपचारित किया गया ।
- बिहार सरकार द्वारा जैविक कृषि को बढ़ावा देने हेतु 13 जिलों की एक जैविक पट्टी का
विकास किया जा रहा है। कृषि रोड मैप में जैविक कृषि को बढ़ावा देने एक मुख्य उद्देश्य
है।
- जैविक उत्पादन में लगे किसानों को सहायता देने हेतु बिहार सरकार द्वारा जैविक मिशन की स्थापना की गई है जिसके तहत कृषक
उत्पादक संगठन गठित किए जा रहे हैं।
- बिहार में जलवायु अनुकूल कृषि कार्यक्रम के तहत कृषि संबंधी
सर्वोत्तम
व्यवहार को अपनाने तथा
मिट्टी और जलवायु की उपलब्धि स्थितियों के अनुसार व्यवहारिक फसल विविधीकरण को बढ़ावा दिया जा रहा है।
- राज्य कृषि वानिकी नीति 2018, हर परिसर हरा परिसर योजना,
मरनेगा, जीविका आदि के माध्यम से वृक्षारोपण को
बढ़ावा ।
- मृदा उर्वरता में सुधार एवं उर्वरकों युक्तिसंगत उपयोग
हेतु मृदा स्वास्थ्य कार्ड । वर्ष 2020-21 में राज्य के लगभग 7000 गांवों में प्रत्यक्षण सह प्रशिक्षण के माध्यम सेकिसानों को मृदा स्वास्थ्य
कार्ड के प्रति जागरुकता हेतु कार्यक्रम रखा गया।
- वर्ष 2020-21 में 3.31 लाख किसानों को मृदा स्वास्थ्य कार्ड उपलबध कराया गया ।
- बिहार में प्रमंडलीय स्तर पर 9 चलंत मिट्टी जांच पयोगशाला कार्यरत है जो दूरस्थ गांवों में जाकर मिट्टी जांच
करने के साथ मृदा स्वास्थ्य कार्ड जारी कर रहे हैं।
- प्लास्टिक के कारण होनेवाले मृदा प्रदूषण में कमी हेतु
बिहार सरकार द्वारा एकल उपयोग वाले प्लास्टिक के समान जैसे खाने पीने के लिए पॉलिस्टीरीन
के चम्मच आदि प्लास्टिक के झंडे, बैनर पर पूरे राज्य में पूर्ण
प्रतिबंध लगा दिया है जो 1 जुलाई 2022 से
प्रभावी होगा ।
- पटना, नालंदा, शेखपुरा
और लखीसराय जिलों में स्थित टाल क्षेत्र के पानी के बेहतर उपयोग और प्रबंधन हेतु महत्वकांक्षी
योजना चलायी जा रही है जिससे भूजल संरक्षण के साथ साथ मृदा संरक्षण को बढ़ावा
मिलेगा ।
बिहार में मृदा संरक्षण
मृदा संरक्षण द्वारा न केवल पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा
दिया जा सकता है बल्कि फसलों में मात्रात्मक एवं गुणात्मक सुधार लाकर पोषण सुरक्षा एवं कृषि आय
में सुधार के उद्देश्यों को कुशलतापूर्वक प्राप्त किया जा सकता
है।
हांलाकि कृषि प्रधान राज्य में बिहार सरकार द्वारा मिट्टी संरक्षण हेतु अनेक प्रयासों
को किया जा रहा है फिर भी मृदा संरक्षण की दिशा में निम्नलिखित सुझाव को अपनाया जाना
बेहतर होगा।
मृदा संरक्षण की दिशा में सुझाव
- बिहार में वृक्षों की संख्या बढ़ाने हेतु व्यापक स्तर पर वृक्षारोपण अभियान चलाया जाए।
- मृदा संरक्षण हेतु व्यापक स्तर पर जनजागरुकता अभियान चलाया जाए ।
- ढालयुक्त भूमि पर पशुचारण को नियंत्रित कर समोच्च जुताई की जानी चाहिए
- स्थानांतरित कृषि पद्धित पर नियंत्रण के साथ कृषि में फसल चक्र पद्धित को बढ़ावा दिया जाना चाहिए ।
- मृदा कटाव रोकने हेतु नदियों पर बांध तथा तटबंध जैसी संरचनाओं को बनाया जाना चाहिए।
- टाल एवं चौर क्षेत्र में जल निकासी की व्यवस्था की जानी चाहिए।
- कृषि में पर्यावरण अनुकूल विकल्पों को तलाशने के साथ साथ
यूरिया,जैविक उर्वरक कम लागत तथा पर्यावरण अनुकूल जैविक साधन के उपयोग को बढ़ावा
।
- ड्रोन और कृत्रिम बुद्धिमता आधारित प्रणाली द्वारा रसायनिक उर्वरकों के उपयोग में कमी लाने के प्रयास को प्रोत्साहन ।
- कृषि में नवचार समर्थित स्टार्टअप सहित नई तकनीक के उपयोग पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए ।
- कृषि में निवेश, अनुसंधान एवं विकास,
तकनीकी अनुप्रयोग को प्रोत्साहन दिया जाना चहिए ।
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