बिहार में शराबबंदी
समाज में व्याप्त सामाजिक समस्याओं में शराबखोरी एक बड़ी समस्या है क्योंकि शराब सेवन से न केवल शराबी व्यक्ति बल्कि उसके परिवार के साथ-साथ पूरा समाज प्रभावित होता है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 47 में भी यह प्रावधान है कि राज्य स्वास्थ्य के लिए हानिकारक नशीले पेय और दवाओं पर रोक लगाने के लिए सतत् प्रयत्नशील रहे जिनके मद्देनजर बिहार सरकार ने वर्ष 2016 में बिहार में पूर्ण शराबबंदी लागू की है।
बिहार में शराबबंदी कानून
बिहार की आम जनता विशेषकर महिलाओं के व्यापक समर्थन और
मांग को ध्यान में रखते हुए बिहार सरकार द्वारा कई कड़े प्रावधानों के साथ 5 अप्रैल 2016 को पूर्ण शराब लागू कर दिया।
यद्यपि 30 सितम्बर 2016 को पटना हाइकोर्ट ने इस कानून के कड़े प्रावधानों और लोगों के मौलिक अधिकारों के हनन का हवाला देकर इसे अवैद्ध करार दिया तथापि बिहार सरकार द्वारा दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ और कड़े प्रावधानों के साथ नया बिहार मद्यनिषेध और उत्पाद अधिनियम 2016 लागू कर दिया। कालांतर में वर्ष 2018 में इसके कुछ धाराओं में संशोधन किया गया ।
पिछले कुछ दिनों में सुप्रीम कोर्ट ने अदालतों में शराब
के मामलों,
विशेष रूप से जमानत से संबंधित मामलों को लेकर आलोचनाओं का सामना करने
के बाद बिहार सरकार ने 2022 में शराबबंदी कानून में संशोधन किया
ताकि बिहार में कानूनी व्यवस्था शराब के मामलों से अधिक न हो। इसके तहत सरकार द्वारा
संशोधन किया गया कि
- पहली बार शराब पीते हुए पकड़े जाने वालों को जुर्माना भरने के बाद रिहा किया जाएगा ।
- अगर दूसरी बार शराब पीते पकड़े गए तो अनिवार्य रूप से एक वर्ष की जेल की सजा का प्रावधान किया गया है।
शराबबंदी के पूर्व प्रयास
वर्ष 2016 के पूर्व भी बिहार में शराबबंदी के प्रयास हुए तथा 1977 में बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री कर्पूरी ठाकुर ने शराब पर प्रतिबंध
लगाया था लेकिन यह पूरी तरह असफल रहा। शराबबंदी के बाद शराब की तस्करी और कालाबाजारी
बढ़ गयी और गैरकानूनी तरीके से शराब वंचना प्रारंभ हो गया था।
तत्कालीन
अनेक विधायक भी सरकार के खिलाफ हो गए लगभग डेढ़ साल बाद रामसुंदर दास सरकार ने शराबबंदी
का फैसला वापस ले लिया था। इस तरह 1977 का शराबबंदी अंशकालिक
साबित हुई।
बिहार में सख्त शराबबंदी कानून की आवश्यकता
बिहार के शराबबंदी कानून के कुछ प्रावधान काफी सख्त है
जिस पर विपक्षी पार्टियों के साथ कुछ बुद्धिजीवियों और आम जनता ने भी आपत्ति उठाएं । एक कड़े कानून
को देखते हुए प्रश्न यह उठता है कि
एक कल्याणकारी और उदारवादी राज्य में शराब सेवन को लेकर इतने
सख्त प्रावधान क्यों बनाए गए?
- शराबखोरी एक मनोवैज्ञानिक लत है जिसे छुड़ाने के लिए अन्य उपायों के साथ कानून का डर भी आवश्यक है।
- शराबबंदी के पूर्व बिहार में शराब का अत्यधिक प्रसार और सुलभ उपलब्धता से शराबखोरियों की संख्या में हो रही व्यापक वृद्धि ।
- शराब के कारण प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष बढ़ रहे अपराधों, महिला
हिंसा में कमी लाने हेतु।
- शराबबंदी की कालाबाजारी, भ्रष्टाचार और शराब
व्यापार में अपराधियों की बढ़ती संख्या परनियंत्रण एवं रोक हेतु। सख्त कानून के डर से
जहां शराब के मांग में कमी आएगी वहीं कालाबाजारी भी हतोत्साहित होगी।
- शराब के व्यापार, परिवहन, भंडारण, कालाबाजारी, तश्करी,
और इसे करने वाले तत्वों से सख्ती से निपटने हेतु।
- हरियाणा, आंध्र प्रदेश,कर्नाटक, मिजोरम, नागालैंड आदि में हुई असफल शराबबंदी
से सबक लेते हुए सख्त कानून बनाने की आवश्यकता।
- गुजरात में 1960 से लगातार शराबबंदी लागू
होने के बावजूद अवैध शराब की बिक्री, जहरीली शराब पीने से होनेवाली
मौत इत्यादि ।
- पुलिस एवं इसकेक्रियान्वयन से संबंधित पदाधिकारियों की जवाबदेही तय करने हेतु ।
- बिहार में पूर्व लागू हुए शराबबंदी के अनुभवों को देखते हुए कड़े नियम बनाया गया।
सख्त कानून शराबखोरियों में डर पैदा करने के साथ शराब की कालाबाजारी और तस्करी के पूर्ण नियंत्रण सख्त कानून से संभव है। अतः उपरोक्त कारणों से बिहार सरकार द्वारा शराबबंदी कानून को सख्त बनाना पड़ा ताकि अन्य राज्यों की तरह बिहार में भी शराबबंदी असफल न हो जाए । हालांकि इस कानून के बनने के बाद इसके कुछ संशोधन कर इसमें कुछ ढील दी गई फिर भी शराबबंदी के मूल उद्देश्य को बनाए रखा गया है।
शराबबंदी का बिहार पर सकारात्मक
प्रभाव
- पूर्ण
शराबबंदी के कारण महिलाओं एवं बच्चों के प्रति अपराध, घरेलू
हिंसा और घरेलू कलह में कमी आई है ।
- शराबबंदी
के कारण घर-परिवार में आर्थिक बचत भी रही है तथा शराबी सकारात्मक कार्यों की ओर बढ़ रहे
हैं।
- बिहार में सड़क दुर्घटना के मामले में कमी आयी ।
- धार्मिक जुलूमों और शादियों का आयोजन शांतिपूर्ण एवं सौहार्दपूर्ण माहौल में हो रहे हैं तथा पहले की तरह कानून व्यवस्था पर सरकार के खर्च में कमी आयी।
- पूर्ण शराबबंदी से कई लोग शराब पर करने वाले खर्च को अब
वह शिक्षा,
स्वास्थ्य, अन्य उत्पादक गतिविधियों और उपभोक्ता
वस्तुओं पर कर रहे हैं ।
- शराबबंदी में पर्यटन एवं होटल उद्योग पर भी नकारात्मक असर
पड़ने का अनुमान लगाया गया लेकिन बिहार में देखा जाए तो अधिकांश पर्यटन स्थल धार्मिक,
आध्यात्मिक केन्द्रों के रूप में है जहां अधिकांश लोग धार्मिक श्रद्धा
भाव से आते हैं । इस कारण से बिहार में पर्यटन उद्योग को कोई विशेष हानि नहीं पहुंची
है ।
- बिहार आर्थिक समीक्षा 2021-22 के अनुसार बिहार
में वर्ष 2016 में जहां 295.3 लाख देशी
विदेशी पर्यटक आते थे वहीं 2019 में इसकी संख्या
350.8 लाख हो गया । हालांकि 2020 में पर्यटकों
की संख्या में गिरावट आयी जिसका कारण कोविड महामारी रहा ।
बिहार में शराबबंदी एवं
न्यायालय की टिप्पणी
बिहार के शराबबंदी कानून के कारण अदालतों में बढ़े मामलों
पर सुप्रीम कोर्ट ने चिंता जाहिर करते हुए राज्य सरकार से पूछा कि “क्या
इस कानून को बनाने से पहले सरकार ने अदालतों पर पड़ने वाले बोझ के बारे में कोई अध्ययन
किया था।”
वर्ष 2021 में भी भारत के मुख्य न्यायाधीश एक
सेमिनार में चिंता जाहिर करते हुए यह कहा था कि “सरकार कानून
बना देती है लेकिन उससे पैदा होने वाले मुकदमों के लिए कोई इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं तैयार
करती जिससे मौजूदा प्रणाली पर ही सारा बोझ आ जाता है।”
पटना हाईकोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए सितंबर 2016 में शराबबंदी क़ानून के तहत मिलने वाली सज़ा को अनुचित बताते हुए इसे ग़ैर
क़ानूनी करार दिया था।
शराबबंदी का बिहार पर नकारात्मक प्रभाव
- शराबबंदी के बाद शराब की तस्करी और कालाबाजारी बढ़ी और गैरकानूनी तरीके से शराब बिक्री आरंभ हो गयी।
- बिहार में पूर्ण शराबबंदी लागू होने के बाद से मादक पदार्थों की मांग बढ़ती देखी गई।
- नेशनल
फैमिली हेल्थ सर्वे
5 के अनुसार कानूनी तौर पर ड्राइ स्टेट बिहार में महाराष्ट्र की तुलना
में शराब का उपभोग ज़्यादा हो रहा है।
- शराबबंदी
से कानून और व्यवस्था पर भी प्रभाव पड़ा है और पुलिस, प्रशासनिक
इकाइयों में भ्रष्टाचार बढ़ा है।
- शराबबंदी लागू होने के बाद इसका सबसे बड़ा बोझ राज्य के राजस्व पर पड़ा।
- इस क़ानून से न्यायपलिका पर बढ़ते बोझ के कारण अन्य गंभीर मामलों की सुनवाई पर असर पड़ रहा है।
- एक
अनुमान के अनुसार बिहार में प्रत्येक 100 में से लगभग 20
मामले शराब से जुड़े रहते हैं और इस क़ानून के तहत जेल में गए लोगों
में ज्यादातर पिछड़े और दलित शामिल हैं ।
बिहार में शराबबंदी कानून की आलोचना
बिहार में पूर्ण शराबबंदी लागू होने के बाद भी आज भी बिहार
में शराब उपलब्ध हो जाता है। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 5 के अनुसार कानूनी तौर पर
ड्राइ स्टेट बिहार में महाराष्ट्र की तुलना में शराब का उपभोग ज़्यादा हो रहा है। इसी
क्रम में बिहार में पूर्ण शराबबंदी लागू होने के बाद से मादक पदार्थों की मांग बढ़ती
देखी गई।
शराबबंदी कानून के अनुपालन में महत्वपूर्ण भूमिका निभानेवाले
पुलिस एवं प्रशासन की भूमिका पर भी सवाल उठ रहे हैं। क़ानून बना देना मात्र से ही वह
सफल नहीं होता बल्कि सही तरीके से उसे लागू करना भी महत्वपूर्ण
होता है।
शराब एक सामाजिक एवं मानसिक बुराई भी है जिसके लिए लोगों
को कानून के साथ साथ लोगों को जागरुक करना भी आवश्यक है लेकिन इस दिशा में बिहार सरकार
द्वारा कोई विशेष कदम नहीं उठाया गया। ।
शराबबंदी के कारण इसके व्यापार, व्यवसाय
में लगे लोगों के लिए उचित पुनर्वास की व्यवस्था भी नहीं
की गयी जिसके कारण शराबबंदी
लागू होने के बाद इनमें से कई लोग इसके अवैध उत्पाद, व्यापार
आदि में लग गए और कानून
की नजर में अपराधियों की संख्या में वद्धि हुई।
सख्त कानून के कारण न्यायालय में शराब संबंधी प्रकरणों
की संख्या बढ़ी जिससे कई अन्य महत्चपूर्ण प्रकरणों पर न्यायालय सुनवाई हेतु पर्याप्त
समय नहीं दे पा रहा है। हांलाकि शराबबंदी के सख्त प्रावधानों पर समय समय पर न्यायालय द्वारा टिप्पणी की गयी जिसको ध्यान में रखते हुए
कुछ सीमा तक कानून में संशोधन भी किए गए।
2016
में शराबबंदी लागू हुई तो उस वर्ष महिलाओं के ख़िलाफ़ होनेवाले कुल अपराध
के मामलो में कमी आयी और यह घटकर 4% हो गया लेकिन उसके बाद के
वर्षों में महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध के मामले तेज़ी से बढ़ते चले गए और
2019 में बढ़कर 4.6 फ़ीसदी पर पहुंच गया। अतः महिला
अपराधों को रोकने में शराबबंदी उतना प्रभावी नहीं दिखता।
बिहार में शराबबंदी कानून की चुनौतियां
- शराबबंदी संगठित अपराध और भ्रष्टाचार को भी जन्म देती है तथा बिहार में इसका असर दिखने लगा है।
- अवैध शराब की अधिक मांग एवं अधिक लाभ कमाने के उद्देश्य से अपराधियों की संख्या में भी वृद्धि हुई है जिसका प्रमाण न्यायालयों में बढ़ती संख्या से लगाया जा सकता है।
- शराबबंदी लागू किए जाने के बाद इसमें पुलिस एवं प्रशासनिक
स्तर पर लापरवाही,
कानून पालन में ढील के कारण शराबबंदी विफलता की ओर से जा रहा है।
- पुलिस, ठेकेदारों अपराधियों और नेताओं
के गठजोड़ शराबबंदी कानून को निष्प्रभावी करने की ओर अग्रसर है। उल्लेखनीय है कि इतने
सख्त कानून होने के बावजूद चोरी छुपे शराब की होम डीलिवरी बिहार में हो रही है।
- राज्य में शराबबंदी लागू होने के बाद से गिरफ्तार हुए अधिकतर गरीब तबके से हैं तथा राज्य में मेडिकल जाँच की पर्याप्त व्यवस्था नहीं होने के कारण अधिकतर लोगों का मेडिकल जांच नहीं हो पाया है।
- बिहार के पड़ोसी राज्यों का असहयोगात्मक रवैया तथा नेपाल के साथ खुली सीमा एक बड़ी चुनौती है।
- उपरोक्त कारणों से शराबबंदी कानून की सफलता सवालों के घेरे में है और कई तबको से इस कानून को समाप्त करने की बात की जा रही है।
आगे की राह
निश्चित
रूप से बिहार में पूर्ण शराबबंदी सराहनीय कदम है तथा शराबबंदी कानून के प्रावधान राज्य
के परिस्थितियों एवं पूर्व के अनुभवों को देखते हुए सही प्रतीत होती है लेकिन इसको
पूर्ण रूप से लागू करने हेतु कानूनी प्रावधानों को कड़ाई से लागू करने के साथ साथ सामाजिक
स्तर पर भी जागरुकता लानी होगी।
आवश्यकता इस बात की है कि जिस जिस राजनैतिक इच्छा शक्ति और प्रतिबद्धता के साथ बिहार सरकार द्वारा इसे लागू किया है इसे लागू किया है उसी इच्छाशक्ति के साथ इसके कार्यान्यन में आ रही चुनौतियों से निपटा जाए ।
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