Indian
foreign policy and neighbourhood first
भारतीय
विदेश नीति- पड़ोसी प्रथम नीति
स्वतंत्रता के बाद भारत
की विदेश नीति गुटनिरपेक्षता, शांतिपूर्ण सहअस्तित्व आदि तत्वों पर
आधारित रही है । कालांतर में
बदलते वैश्विक परिदृश्य में इसमें कुछ पूर्व की ओर देखो नीति, गुजराल डाक्ट्रिन जैसे बदलाव आए जिसमें पड़ोसी देशों को महत्व देने की बात
कही गयी।
इसी क्रम में भारत
दक्षिण एशिया की एक महत्वपूर्ण शक्ति है और क्षेत्रीय एकीकरण के नेतृत्व की भूमिका
भारत बेहतर ढंग से निभा सकता है। यही कारण है कि वर्ष 2005 के
बाद की विदेश नीतियों में पड़ोसी प्रथम (Neighbourhood first policy) को प्राथमिकता दी जा रही है तथा इस दिशा में
भारत सरकार द्वारा अनेक कदम उठाए गए ।
पड़ोसी प्रथम की नीति में भारत के प्रयास
- प्रधानमंत्री द्वारा शपथ ग्रहण समारोह में पड़ोसी देशों को आमंत्रण ।
- प्रधानमंत्री द्वारा अपने दूसरे कार्यकाल में पहले विदेश यात्रा के तहत मालदीव और श्रीलंका का चयन ।
- पड़ोसी देशों के साथ
हुए समझौतों, संधियों
को महत्व देना। जैसे- डोकलाम विवाद में भूटान के पक्ष में
खड़ा रहना ।
- आपदा एवं राहत बचाव
कार्यों में तीव्र एवं तत्काल सहायता। जैसे- नेपाल भूकंप, मालदीव को
सहायता ।
- लुक ईस्ट नीति के साथ एक्ट ईस्ट नीति पड़ोसी प्रथम की अवधारणा को बल ।
- नेपाल के साथ संबंधों
में मजबूती हेतु 2018 में
नेपाल के जनकपुर से अयोध्या हेतु बस सेवा की शुरुआत, भूकंप
में सहायता ।
- वर्ष 2021 में भारत ने पड़ोसी पहले' नीति के तहत वैक्सीन कूटनीति द्वारा प्राथमिकता के आधार पर पड़ोसी देशों को कोविड 19 के टीके प्रदान करना शुरू कर दिया। भारत सहायता अनुदान के तहत भूटान, मालदीव, बांग्लादेश, नेपाल, म्यांमार, सेशेल्स को कोविड19 के टीके की आपूर्ति के साथ दवा, स्वास्थ्य कार्यकताओं के प्रशिक्षण, आवश्यक उपकरण, बुनियादी ढाँचे की स्थापना में भी मदद की गयी।।
- पड़ोसी देशों में
बहुमुखी विकास हेतु संचार (दक्षिण
एशिया उपग्रह), शिक्षा, सांस्कृतिक
सहयोग हेतु तत्परता ।
- म्यांमार में सैन्य शासन पर पश्चिमी देशों के दबाव के बावजूद संतुलित नीति अपनाना ।
- संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में युद्ध अपराधों को लेकर श्रीलंका पर आए एक प्रस्ताव से भारत ने अनुपस्थित रहना तथा श्रीलंका के सबसे बुरे आर्थिक संकट के वर्तमान समय में भारत द्वारा विभिन्न मोर्चों पर सहयोग।
पड़ोसी प्रथम नीति (Neighbourhood first policy) प्रासंगिकता
भारत की भौगौलिक स्थिति
देखा जाए तो पकिस्तान और चीन है ऐसे पड़ोसी है जिनके साथ भारत के उतने अच्छे संबंध
नहीं है तथा ये अन्य पड़ोसी देशों पर अपना विभिन्न माध्यमों से अपना प्रभाव जमाना
चाहते हैं। अतः पड़ोसी देशों में भारत को अपनी साफ्ट पावर नीति को बढ़ावा देने
हेतु यह आवश्यक है ।
सामरिक रूप में देखा
जाए तो चीन श्रीलंका, मालदीव,
बांग्लादेश, भूटान, म्यांमार
आदि देशों में अपनी स्थिति मजबूत करना चाहता है जो किसी भी दृष्टि से भारतीय पक्ष
में नहीं है।
राजनीतिक रूप से पड़ोसी
देशों में भारत की छवि बिग ब्रदर्स की बनी हुई है तथा नेपाल, बांग्लादेश, भूटान, मालदीव देश कई बार इस तरह के आरोप भारत पर
लगा चुके हैं। अतः इस छवि से बाहर निकलने हेतु भारत को पड़ोसी देशों को प्राथमिकता
देने के साथ संबंधों को सहयोग एवं समन्वय पर स्थापित करना आवश्यक है।
पड़ोसी प्रथम नीति (Neighbourhood first policy) भारत की चुनौतियां
भारत ने दक्षिण एशिया में अपनी
भौगोलिक स्थिति,
आकार, जनसंख्या, तकनीक, आर्थिक
तथा सामरिक स्थिति को समझते हुए दशकों से विकास एवं सहयोग को बढ़ावा दिया है लेकिन
पिछले कुछ वर्षों में बदलते परिदृश्य तथा चीन के बढ़ते प्रभाव के कारण भारत को नई
चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
- चीन की महत्वकांक्षी परियोजना बॉर्डर एंड रोड इनीशिएटिव से भारतीय सुरक्षा एवं संप्रभुता को खतरा।
- भूटान को छोड़कर भारत के सभी पड़ोसी देशों द्वारा चीन की बॉर्डर एंड रोड इनीशिएटिव को समर्थन ।।
- पाकिस्तान के साथ चीन का सामरिक गठबंधन।
- नेपाल एवं श्रीलंका के साथ द्विपक्षीय आधार पर चीन द्वारा सामरिक व आर्थिक संबंधों का विकास।
- म्यांमार एवं बांग्लादेश में दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा चीन का प्रभाव।
- चीन समर्थित दक्षिण एशियाई पहल जिसके माध्यम से चीन दक्षिण एशिया में भारत की भूमिका को कम करना चाहता है।
- वर्तमान समय में पकिस्तान के साथ संबंधों में कड़वाहट ।
- अफगानिस्तान में तालिबान का बढ़ता प्रभाव ।
- म्यामांर में सैन्य शासन एवं रोहिंग्या की समस्या।
हम अपने मित्र बदल सकते
है, लेकिन
पड़ोसी नहीं और यदि पड़ोस में आग लगी हो तो आप भी चैन से नहीं बैठ सकते । अतः यह
आवश्यक है कि भारत अपनी नीतियों में पड़ोसी देशों के हितों को भी शामिल करें तभी
भारत सर्वमान्य नेतृत्वकर्ता की भूमिका प्राप्त कर सकता है।
No comments:
Post a Comment