भारत एवं बिहार में खाद्य एवं पोषण सुरक्षा
संयुक्त राष्ट्र संघ के खाद्य एवं कृषि संगठन के अनुसार खाद्य सुरक्षा का अर्थ है सभी लोगों की हर समय पर्याप्त, सुरक्षित और पोषक आहार तक भौतिक, सामाजिक और आर्थिक पहुंच जो उनके सक्रिय और स्वस्थ जीवन हेतु उनकी आहार आवश्यकताओं तथा भोजन वरीयताओं को भी संतुष्ट करें।
खाद्य एवं कृषि संगठन की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार विश्व की वर्तमान 6.8 अरब की आबादी 2050 तक 9.1 अरब हो जाएगी। ऐसे में जनसंख्या बढ़ने
से खाद्यान्न एवं पोषण संबंधी मांग में वृद्धि होगी तथा इसकी पूर्ति हेतु जलवायु
परिवर्तन, कृषि भूमि की कमी, जल
संकट जैसी समस्याओं से निपटा जाना अत्यंत आवश्यक है।
महत्वपूर्ण संकेतकों के आधार पर भारत में पोषण एवं स्वास्थ्य
की स्थिति
- ग्लोबर हंगर इंडेक्स 2021 के
अनुसार भारत भारत 116 देशों की सूची में 101वें स्थान पर है तथा 2021
में भारत में चाइल्ड वेस्टिंग 17.3 % बढ़ा
है जो किसी अन्य देश की अपेक्षा सबसे अधिक है ।
- NFHS-5 के अनुसार भारत में पांच साल से कम उम्र के लगभग 35% बच्चे स्टंटिंग से प्रभावित हैं।
- NFHS -5 के अनुसार बीते पाँच वर्षों में अधिकांश राज्यों में पांच साल से कम उम्र के बच्चों में कुपोषण के मामले बढ़े हैं।
- एक अध्ययन के अनुसार भारत
के 5 वर्ष से
कम उम्र के 68.2 प्रतिशत बच्चों की मृत्यु कुपोषण के कारण
होती है।
- हाल ही में प्रकाशित
यूनिसेफ की रिपोर्ट के अनुसार भारत में 50% बच्चे
कुपोषित है।
- खाद्य और कृषि संगठन के
अनुसार वर्ष
2014 के सापेक्ष वर्ष 2019 तक
6.2 करोड़ अन्य लोग भी खाद्य असुरक्षा के दायरे में आ गए हैं तथा
भारत सबसे बड़ी खाद्य असुरक्षित आबादी वाला देश है।
- Public Health Foundation of India, ICMR और National Institute of Nutrition द्वारा जारी कुपोषण पर जारी रिपोर्ट के अनुसार 5 वर्ष की उम्र से छोटे हर 3 में से 2 बच्चों की मौत का कारण कुपोषण है।
बिहार में
कुपोषण की स्थिति
बिहार में
लगभग 42% लोग गरीबी रेखा ने नीचे रहते हैं ऐसे राज्य में कुपोषण एक गंभीर समस्या
है। बिहार में स्थिति ज्यादा खराब है क्योंकि यहा कुपोषण का शिकार ज्यादातर
महिलाएं और बच्चे है। विश्व में सबसे अधिक कुपोषित बच्चे बिहार में हैं।
राष्ट्रीय
परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण की रिपोर्ट के अनुसार बिहार में 0-5 साल तक
के 48.3 फीसद बच्चे कुपोषण के कारण बौनेपन का
शिकार हो रहे हैं। इसका प्रमुख कारण बिहार में 40% से ज्यादा लड़कियों की शादी कम उम्र में हो जाना, टीकाकरण के प्रति उदासीनता, जागरुकता की कमी
है। बिहार में 12% बच्चे ऐसे हैं जिन्हें कोई
टीका नहीं लगता।
बिहार में 55% बच्चों
में कुपोषण तथा15-49 वर्ष की 63.5% महिलाएं एनिमिया से ग्रस्त है।
बिहार में
कुपोषण का मुख्य कारण गरीबी तथा पोषक खाद्य पदार्थों तक पहुंच न होना है। सूखा
और बाढ़ के कारण स्थिति और भयावह हो जाती है। जनकल्याण योजनाएं, स्वास्थ्य
सुविधाओं की हालत ठीक नहीं होने से योजनाओं का लाभ लोगों तक नहीं पहुंच रहा ।
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उपरोक्त तथ्यों से स्पष्ट है कि पिछले कुछ वर्षों में
किए जा रहे अनगिनत प्रयासों के बावजूद देश में कुपोषण का खतरा कम नहीं हुआ है जिसका
मुख्य कारण भारत में गरीबी, आहार
की विविधता का अभाव, मातृ
शिक्षा का निम्न स्तर, पुरुषवादी
मानसिकता सहित कई प्रकार की वंचनाओं का होना हैं।
भारत में खाद्य असुरक्षा के कारण
- भारत की एक चौथाई आबादी गरीबी के कारण पोषण-युक्त भोजन खरीद नहीं पाती ।
- न्यूनतम समर्थन मूल्य की नीति का अनाजों के पक्ष में होने से अन्य पोषक पदार्थों की खेती के प्रति उदासीनता।
- खाद्य प्रसंस्करण, भंडारण,
परिवहन, संचार जैसी अवसंरचनाओं का अभाव।
- भारत में विविधतापूर्ण एवं गुणवत्तापूर्ण खाने के स्थान पर अधिक भोजन खाने को महत्त्व दिया जाना।
- पोषण कार्यक्रमों जैसे ICDS,सूक्ष्म
पोषक कार्यक्रमों आदि पर सकल व्यय GNPका केवल 0.19% होना।
- सरकारी योजनाओं जैसे PDS, ICDS के क्रियान्वयन में व्याप्त भ्रष्टाचार तथा सही लाभार्थी की पहचान न होना।
- योजनाओं के लाभ हेतु पात्रता संबंधी बाध्यताएं जैसे आधार इत्यदि जैसे पहचान पत्र की आवश्यकता।
- मांसाहार, अंडा,
मत्स्य आदि पोषक खाद्य पदार्थों के प्रति धर्मिक तथा अन्य कारणों
से नकारात्मक प्रवृत्ति।
- भारत में महिला शिक्षा का अभाव तथा लैंगिक भेदभाव से महिलाओं को उचिति पोषण न मिल पाना।
- अंतर्राष्ट्ररीय स्तर पर विश्व व्यापार संगठन द्वारा व्यापार सुगमता के नाम पर खाद्यान्नों पर सब्सिडी कम करने का दबाव।
- खाद्य सुरक्षा कानून के क्रियान्वयन में कमियों से गरीबों तक खाद्यान्न नहीं पहुंच पाना ।
- कोविड महामारी से ज्यादातर गरीबी वाली जनसँख्या प्रभावित हुई जिससे आजीविका, रोजगार, स्वास्थ्य पर संकट आया।
ग्लोबर हंगर इंडेक्स 2021 |
ग्लोबर
हंगर इंडेक्स 2021 के अनुसार भारत 116 देशों की सूची में 101वें स्थान है जबकि वर्ष 2020 में 94वें स्थान पर था। यह स्पष्ट तौर पर दिखाता है कि भारत में खाद्य सुरक्षा
की स्थिति बेहतर नहीं है।
भारत के पड़ोसी देशों में पाकिस्तान 92वें, नेपाल और बांग्लादेश 76वेँ तथा श्रीलंका 65वें स्थान पर है। इस प्रकार पड़ोसी देशों की हालत भारत से कहीं बेहतर हैं। |
ग्लोबर हंगर
इंडेक्स 2021 रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2000 के बाद से भारत ने इस क्षेत्र में पर्याप्त प्रगति की है, लेकिन अभी भी बाल पोषण चिंता का मुख्य क्षेत्र बना हुआ है। वर्ष 2000 में भारत का GHI स्कोर 38.8 (चिंताजनक) था जबकि वर्ष 2021 में यह घटकर 27.5 (गंभीर) हो गया है। जनसंख्या में कुपोषितों का अनुपात और पाँच वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर अब अपेक्षाकृत निम्न स्तर पर है। 5 साल से कम उम्र के 17% से अधिक भारतीय
बच्चे चाइल्ड वेस्टिंग से प्रभावित हैं।
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बिहार में खाद्य असुरक्षा/कुपोषण के कारण
- गरीबी, अशिक्षा
एवं रोजगार की कमी।
- पोषक खाद्य पदार्थों तक पहुंच न होना।
- सूखा और बाढ़ के कारण स्थिति और भयावह हो जाना।
- जनकल्याण
योजनाएं, स्वास्थ्य
सुविधाओं की हालत ठीक नहीं होने से लाभ लोगों तक नहीं पहुंचना ।
- जनसंख्या की तीव्र वृद्धि से विकट होती स्थिति।
- सामाजिक अंधविश्वास के कारण तथा जागरुकता की कमी
- पोषण कार्यक्रम टीकाकरण, स्तनपान
के प्रति उदासीनता।
COVID-19 महामारी का
प्रभाव |
वैश्विक
स्तर पर लगभग 690 मिलियन लोग कुपोषित हैं तथा COVID-19 महामारी
के कारण भुखमरी और गरीबी को कम करने की दिशा
में हो रहे प्रयासों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
कोरोना
काल में लॉकडाउन के कारण स्कूल बंद होने से मिड डे मिल बंद है जिससे 6-14 वर्ष के बच्चों का स्वास्थ्य प्रभावित हो रहा है।
COVID-19 संकट के कारण 4.90 करोड़ अतिरिक्त लोग
गरीबी का शिकार हो सकते हैं और कुपोषित लोगों की संख्या में बढ़ोत्तरी होने की
संभावना है।
महामारी
के कारण खाद्यान्न उपलब्ध होने के बावजूद खाद्य आपूर्ति शृंखला में व्यवधान पैदा
होने से कुपोषण समस्या बढ़ने का जोखिम है।
वैश्विक
महामारी के कारण वर्ष 2030 तक शून्य भुखमरी के लक्ष्य को प्राप्त करना कठिन प्रतीत हो रहा है।
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उपरोक्त आंकड़ों तथा
वर्तमान कोविड-19
महामारी ने स्पष्ट कर दिया है कि वर्तमान में हमारी नीतियां,
खाद्य प्रणालियाँ, 'ज़ीरो हंगर' की स्थिति प्राप्त करने करने के लिये अपर्याप्त हैं। उल्लेखनीय है कि
भारत ने वर्ष 2022 तक ‘कुपोषण
मुक्त भारत’ के लिये एक कार्ययोजना विकसित की है। अतः
उपरोक्त को ध्यान में रखते हुए इसमें सुधार अपेक्षित है।
आप भारत में खाद्यय एवं पोषण सुरक्षा एवं बिहार में खाद्य एवं पोषण सुरक्षा संबंधी पोस्ट पढ़ रहे हैं जो सिविल सेवा की मुख्य परीक्षा हेतु अत्यंत उपयोगी एवं प्रासंगिक है। इसी प्रकार के अन्य लेख भी आप हमारे वेवसाइट पर पढ़ सकते हैं ।
खाद्य एवं पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने के उपाय
खाद्यान्न की बर्बादी
रोकना
यूनाइटेड नेशन के अनुसार
एक तिहाई अनाज विभिन्न कारणों से नष्ट हो जाता है। अतः खाद्यान्नों की
बर्बादी को रोकना अति आवश्यक है। भारत में भी खाद्यान्न
भंडारण की समस्या है और इस कारण से 25 से 30% तक खाद्यान्न नष्ट हो जाता है ।
कृषि विपणन व्यवस्था
में सुधार
बाज़ार में खाद्यान्न की
पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित करने हेतु कृषि विपणन व्यवस्था में सुधार की आवश्यकता है।
शुष्क कृषि
भारत में सूखाग्रस्त
क्षेत्र खाद्यान्न उत्पादन में लगभग 44% योगदान देता है। अतः
आधुनिक तकनीकों तथा वैज्ञानिक कृषि को अपनाकर खाद्यान्न उत्पादन को बढ़ाया जा सकता
है।
मृदा उर्वरता बनाए रखना
वैज्ञानिक कृषि तथा
रसायनों के अत्यधिक उपयोग के कारण मृदा की उर्वरता नष्ट हो रही है । मृदा में सूक्ष्म तत्व जैसे जिंक, सल्फर, बोरान की भी कमी देखी जा रही है। अतः इस दिशा में जैविक कृषि, फसल चक्र, जैव उर्वरक तथा कीटनाशक जैसे पहल को
अपनाना आवश्यक है।
रोजगार योजना
वैश्विक महामारी के दौरान
आर्थिक गतिविधियाँ बाधित होने से लोगों की पास धन का संकट है अतः मनरेगा जैसी
योजनाओं को चलाया जाना चाहिए ताकि इनके रोज़गार एवं खाद्यान्न तक पहुँच सुनिश्चित
हो।
सार्वजनिक वितरण
प्रणाली में सुधार
सार्वजनिक वितरण प्रणाली
को व्यापक एवं प्रभावी बनाने के साथ प्रत्येक परिवार को खाद्यान्न कूपन, बहु-उपयोगी स्मार्ट कार्ड व्यवस्था द्वारा खाद्यान्न उपलब्धता जैसी योजना
को सुनिश्चित करना होगा।
जलवायु परिवर्तन
मानसून अनियमितता, सूखा,
बाढ़, तापमान में वृद्धि इत्यादि जलवायु
परिवर्तन के परिणाम हैं जिनमें मानवीय क्रियाकलापों का महत्वपूर्ण योगदान है। अतः पर्यावरण
संरक्षण एवं जलवायु परिवर्तन की दिशा में भी व्यापक कार्य किए जाने की आवश्यकता
है।
खाद्य प्रसंस्करण
भारत खाद्यान्न विविधता
के मामले में विश्व के प्रमुख देशों में एक है। इसके अलावा खाद्यान्न उत्पादक देशों
में भी भारत का प्रमुख स्थान है। फिर भी वैश्विक स्तर पर खाद्य प्रसंस्करण के
क्षेत्र में
भारत केवल 1-1.5% योगदान दे पाता है और
इस कारण कई खाद्य पदार्थ नष्ट हो जाते हैं।
अतः खाद्य प्रसंस्करण की दिशा में भी कार्य
किए जाने की आवश्यकता है।
खाद्य एवं पोषण सुरक्षा
हेतु भारत सरकार के प्रयास
- एनीमिया और सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की कमी को दूर करने हेतु भारत सरकार द्वारा वर्ष 2019-20 में 3 साल की अवधि हेतु "सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत चावल का फोर्टिफिकेशन और इसके वितरण" को मंज़ूरी ।
- मनरेगा द्वारा रोज़गार एवं खाद्यान्न तक पहुंच ।
- राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम द्वारा सस्ते दर पर खाद्यान वितरण।
- बच्चों
के पोषण हेतु समेकित बाल विकास परियोजना, मिशन इन्द्रधनुषण, प्रधानमंत्री पोषण योजना इत्यादि।
- खाद्यानों की बेहतर मूल्य सुनिश्चित करने हेतु राष्ट्रीय कृषि मंडी।
- सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के द्वारा देश के गरीब तबके को सस्ते दर पर भोजन।
- सितम्बर
2020 को राष्ट्रीय
पोषण माह के रूप में मनाया गया था।
- खाद्य
प्रसंस्करण के क्षेत्र में अवसंरचना विकास के साथ-साथ फुड पार्क इत्यादि की स्थापना।
भारत सरकार की
प्रमुख योजनाए एवं कार्यक्रम
पोषण अभियान
2018
में महिला और बाल विकास मंत्रालय द्वारा आरंभ योजना का लक्ष्य
स्टंटिंग, अल्पपोषण, एनीमिया
(छोटे बच्चों, महिलाओं और किशोर लड़कियों के बीच) को कम
करना है।
मिशन इन्द्रधनुष
- 2 वर्ष से कम उम्र के बच्चों और गर्भवती महिलाओं को 12 वैक्सीन निवारक रोगों के खिलाफ टीकाकरण।
- नियमित
टीकाकरण से छूट गए, बिना टीकाकरण वाले और आंशिक
रूप से टीकाकरण वाले बच्चों एवं गर्भवती महिलाओं तक पहुँच हेतु फरवरी 2022 में सघन मिशन इंद्रधनुष 4.0 को लांच किया गया। उल्लेखनीय है कि कोविड-19
महामारी के कारण नियमित टीकाकरण की गति धीमी हो गई थी जिसे इसके माध्यम से क्षतिपूर्ति किया जाएगा।
- अप्रैल
2021 तक मिशन इंद्रधनुष के विभिन्न चरणों के दौरान कुल
3.86 करोड़ बच्चों और 96.8 लाख गर्भवती महिलाओं
का टीकाकरण किया जा चुका है।
- सघन मिशन इंद्रधनुष में शामिल 190 ज़िलों में किये गए एक सर्वेक्षण से पता चलता है कि NFHS-4 (राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण -4)की तुलना में पूर्ण टीकाकरण कवरेज में 18.5% की वृद्धि हुई है।
एकीकृत बाल विकास योजना
- 1975 में आरंभ इस योजना के तहत 0-6 वर्ष के आयु वर्ग के बच्चों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं को पूरक पोषण, पूर्व-विद्यालयी गैर-औपचारिक शिक्षा, पोषण और स्वास्थ्य शिक्षा, टीकाकरण, स्वास्थ्य जाँच एवं रेफरल सेवाओं को उपलब्ध कराया जाता है।
राष्ट्रीय पोषण रणनीति
- सबसे कमजोर और महत्वपूर्ण
आयु समूहों पर ध्यान देने के साथ 2030 तक सभी प्रकार
के कुपोषण को समाप्त करना।
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अभियान
- कानूनी रूप से
ग्रामीण जनसंख्या के 75% और शहरी जनसंख्या के
50% हिस्से को लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत
रियायती खाद्यान्न उपलबध कराना।
प्रधानमंत्री मातृ वंदन योजना
- महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा क्रियान्वित एक मातृत्व लाभ कार्यक्रम।
ईट राइट इंडिया मूवमेंट
- भारतीय को उचित
खाद्य पदार्थों को भोजन में शामिल करने के लिये प्रेरित करने हेतु भारतीय खाद्य
सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) द्वारा आरंभ योजना।
फूड फोर्टिफिकेशन
- प्रमुख विटामिनों तथा खनिजों जैसे आयरन,
आयोडीन, जिंक, विटामिन
ए और डी को चावल, दूध एवं नमक आदि मुख्य खाद्य पदार्थों
में शामिल करना पोषण सामग्री में सुधार करना।
खाद्य एवं पोषण सुरक्षा
हेतु बिहार सरकार के प्रयास
- वर्ष 2013-14 से 2018-19 के बीच
बिहार के बाल बजट के आवंटन में लगातार वृद्धि हुई है। वर्ष 2013-14 से 2018-19 के बीच बच्चों के लिए समग्र आवंटन
में 23.6% की वार्षिक दर से वृद्धि हुई है।
- कृषि रोडमैप 2012-17 की अवधि में खाद्य सुरक्षा हेतु खाद्य प्रसंस्करण की समेकित विकास
योजना एवं फुड पार्क योजना के तहत राज्य में फुड पार्क, राईस मिल, गेहॅू मिल,
बाजरा प्रोसेसिंग, ग्रामीण कृषि व्यवसाय सेन्टर, ड्राई वेयर हाऊस, कोल्ड स्टोरेज,
मिल्क प्रोसेसिंग, मखाना प्रोसेसिंग, हनी प्रोसेसिंग, खाद्य प्रसंस्करण इकाईया की
स्थापना।
- कृषि रोडमैप 2017-22 द्वारा जल्द खराब होनेवाले जैसे- फलों,
सबजियों, मछलियों के प्रसंस्करण में
ज्यादा जोर तथा प्रत्येक भारतीय के थाल में बिहार का एक व्यंजन पहुंचाने की योजना
जिससे खाद्य विविधता एवं पोषण में सुधार होगा।
- जल जीवन हरियाली योजना के माध्यम से जलवायु परिवर्ततन,
जल प्रबंधन जैसे मुद्दों पर ध्यान दिया जा रहा है।
- सब्जी उत्पादकों और उपभोक्ताओं के लिए त्रिस्त्रीय सहकारी व्यवस्था के तहत बिहार राज्य सब्जी प्रसंस्करण एवं विपणन योजना आरंभ।
- जीविका द्वारा परिवारों में भोजन की पौष्टिकता बढ़ाने हेतु जीविका रसोई बाड़ी की आवधारणा को बढ़ावा।
- स्वास्थ्य, पोषण
एवं स्वच्छता संबंधी पहलुओं पर समुदाय सदस्यों के व्यवहार परिवर्तन हेतु 4.5
लाख से भी अधिक स्वयं सहायता समूहों के सदस्यों को प्रशिक्षण
दिया गया।
- सात निश्चय-2 स्वच्छ गांव समृद्ध गांव के तहत मुर्गी पालन और मछली पालन को
प्रोत्साहन देने के साथ-साथ आधुनिक प्रौद्योगिकी का उपयोग करते हुए दूध उत्पादन और
प्रसंस्करण पर जोर।
- सात निश्चय-2 के तहत ग्रामीण एवं शहरी
क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं की बेहतर सुविधाओं तथा डॉक्टरी परामर्श हेतु सभी
स्वास्थ्य इकाईयों को टेलीमेडिसीन सेवाओं से जोड़े जाने की योजना ।
- स्वच्छ पेयजल और स्वच्छता हेतु “हर घर नल का जल” और “शौचालय
निर्माण घर का सम्मान”।
- मध्यान्ह भोजन योजना के अनुसार बिहार में कक्षा 1 से 8 तक के 1.10
करोड़ विद्यार्थियों को पोशाक और प्रतिदिन पौष्टिक भोजन तथा
सप्ताह में 2 दिन दो मौसमी फल और सप्ताह में 1 दिन उबला अंडा दिया जाने की व्यवस्था।
- बिहार सरकार द्वारा स्वास्थ्य, पोषण और जल, स्वच्छता पर सघन व्यवहार परिवर्तन संवाद अभियान चलाया गया।
- शिक्षा अधिकार अधिनियम 2009 के मानकों के अनुसार की बिहार सरकार
द्वारा विद्यालयों में पेयजल एवं शौचालय जैसी अधिसंरचनाओं
के साथ स्वच्छ वातावरण उपलब्ध कराया जा रहा है।
- स्वच्छता के क्षेत्र में बिहार को खुल में शौच से मुक्त
बनाने हेतु 1.09 करोड़ पारिवारिक शौचालय के निर्माण
कार्य पूर्ण ।
- महिला एवं बाल स्वास्थ्य एवं पोषण
हेतु प्रधानमंत्री मातृत्व वंदना योजना, बाल विकास कार्यक्रम, समेकित बाल विकास सेवा, पोषण माह, पूरक पोषाहार कार्यक्रम, राष्ट्रीय पोषण मिशन, किशोरी योजना राष्ट्रीय शिशुशाला योजना जैसे कार्यक्रम का संचालन।
उपरोक्त प्रयासों के
बावजूद भारत में भूखमरी एवं कुपोषण हालात बेहतर नहीं हो पाए हैं। अतः कुपोषणमुक्त भारत
हेतु व्यवस्थित डाटा संग्रह एवं योजनाओ के उचित क्रियान्वयन के साथ पोषण हेतु दीर्घकालिक
नीति तैयार करनी होगी। लोगों की पोषक खाद्ध पदार्थ तक पहुंच एवं वितरण सुनिश्चित करना
के अलावा पोषण और स्वास्थ्य शिक्षा, स्वच्छता जागरूकता तथा लोगों की क्रय शक्ति बढ़ाने हेतु प्रयास करने होंगे।
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