भारत में जल संकट की वर्तमान स्थिति, कारण, परिणाम, सुझाव एवं योजनाएं
किसी एक क्षेत्र के अंतर्गत जल उपयोग की
मांगों को पूरा करने हेतु उपलब्ध जल संसाधनों की कमी ‘जल संकट’ कहलाती है। हाल के वर्षों में बढ़ते
औद्योगीकरण, नगरीकरण और
आधनिक जीवनशैली, गिरते भू-जल स्तर
के कारण जल संकट गहराता जा रहा है।
जल की उपलब्धता में कमी
के साथ-साथ
जलस्रोत का प्रदूषित होना इस संकट को और भयावह बना देता है। हाल ही में राष्ट्रीय हरित
अधिकरण द्वारा दिया गया आदेश इसी संकट की ओर इशारा करता है जिसमें कहा गया कि
“औद्योगिक कार्यों हेतु भूजल का प्रयोग आगे विनाशकारी सिद्ध हो सकता
है।”
जल संकट की वैश्विक स्थिति
पृथ्वी पर कुल जल का 97.3% लवणीय जल है और केवल 2.07% ही शुद्ध पीने योग्य जल है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार दुनिया के दो अरब लोगों को पीने योग्य जल नहीं मिल पाता जिससे हैजा, आंत्रशोध जैसी जलजनित बीमारियों के होने का खतरा बना रहता है।
‘The State of Climate Services 2021: Water’ रिपोर्ट बताती है कि मौजूदा जल प्रबन्धन, निगरानी, पूर्वानुमान और समय रहते चेतावनी प्रणालियों में समन्वय नहीं हैं, जबकि वैश्विक स्तर पर जलवायु वित्त पोषण के लिये प्रयास अपर्याप्त साबित हो रहे हैं।
दक्षिण एशिया में करीब 15.5 करोड़ बच्चे पानी की भारी किल्लत का सामना करने को मजबूर हैं जिसमें 9.14 करोड़ बच्चे भारत में रहते हैं।
अंतरराष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान के हालिया अध्ययन में पाया गया कि दुनिया की आधी से अधिक आबादी और वैश्विक अनाज उत्पादन का लगभग आधा हिस्सा 2050 तक पानी की कमी के कारण जोखिम में होगा।
भारत में जल संकट की स्थिति
- वर्ष
2020
के आंकड़ों के अनुसार भूजल
संसाधनों का अत्याधिक दोहन यानी वार्षिक पुनः पूर्तियोग्य भूजल पुनर्भरण से अधिक
निकासी के मामले उत्तर पश्चिम भारत और दक्षिण भारत के कुछ हिस्सों में ज्यादा हुई
है ।
- मानसूनी क्षेत्र होने के बावजूद भारत में जल की समस्या बढ़ रही है। नीति आयोग के अनुसार भारत बड़े जल संकट से गुजर रहा है।
- भारत में मानसून द्वारा पर्याप्त
वर्षा होती है लेकिन जल का पुनर्भंडारण नहीं पाता जिससे जल संकट और गहरा हो जाता
है। उल्लेखनीय है कि वर्षा का केवल 8% ही संरक्षित हो पाता हैं।
- कमज़ोर मानसून के कारण देश की लगभग एक-चौथाई जनसंख्या
गंभीर सूखे से प्रभावित हो जाती है । विशेष प्रभाव पश्चिमी और दक्षिणी राज्यों में
होता है जहां जल संकट की गंभीर स्थिति बनती है।
- यूनेस्को की विश्व जल विकास रिपोर्ट, 2018 के अनुसार,
भारत विश्व का सबसे बड़ा भूजल उपयोग करने वाला देश है।
- भारत सरकार के आंकड़ों के अनुसार देश का
भू-जल स्तर 0.3
मीटर सालाना की दर से गिरता जा रहा है।
- नीति आयोग द्वारा जारी समग्र जल
प्रबंधन सूचकांक रिपोर्ट के अनुसार 2030 तक भारत में जल
की मांग, उसकी पूर्ति से दोगुनी हो जाएगी।
- 2016 में विश्व बैंक के एक अध्ययन में कहा गया कि अगर भारत अपने जल संसाधनों का उपयोग प्रभावी ढंग से नहीं कर पाता है तो 2050 तक देश की GDP विकास दर 6% से भी कम रह सकती है।
- भारत के 600 ज़िलों में से एक
तिहाई में भूजल मुख्य रूप से फ्लोराइड और आर्सेनिक के माध्यम से दूषित है।
- भारत की पर्यावरण रिपोर्ट 2019 के अनुसार 2011-2018
के बीच सकल प्रदूषणकारी उद्योगों की संख्या में 136% की वृद्धि हुई है।
- जल संकट इस परिप्रेक्ष्य में अत्यन्त चिन्तनीय है कि यह प्राकृतिक नहीं मानवीय कारणों से उत्पन्न संकट है जिसके समाधान के लिए अभी भी कोई ठोस कदम उठाए नहीं गए हैं।
भारत में भूमिगत जल भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक द्वारा दिसम्बर 2021 में प्रस्तुत
एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में भूजल खपत का राष्ट्रीय औसत 63% है। यानी
जितना पानी एक साल में जमीन के अंदर जाता है उसका 63% निकाल लिया जा रहा है। देश के कई राज्य
ऐसे हैं जहां भूजल खपत के आंकड़े राष्ट्रीय औसत से ज्यादा हैं। सरकार द्वारा
भूजल संरक्षण की दिशा में प्रयास किए गए लेकिन अनेक कारणों से यह सफल नहीं हो
पाया। रिपोर्ट के अनुसार देश के कई इलाकों में मौजूद भूजल में
आर्सेनिक, फ्लोराइड, नाईट्रेट, लोहा और
खारापन तय सीमा से ज्यादा है और जिन राज्यों में ये स्थिति पाई गई, वहां पर भूजल
संबंधित विभागों में कर्मचारियों की कमी है। कैग ने रिपोर्ट में टिप्पणी की है कि भूजल संरक्षण के
इरादे से दिसंबर 2019 तक देश के 19 राज्यों में
कानून बनाया गया था। लेकिन सिर्फ आज तक सिर्फ चार राज्यों में ये कानून आंशिक
तौर पर लागू हो पाया है । बाकी राज्यों में या तो कानून बना नहीं या फिर लागू
नहीं हो पाया । भारत में भूजल की 89% खपत सिंचाई क्षेत्र में होती है, 9 प्रतिशत भूजल
घरेलू और 2 प्रतिशत
व्यावसयिक उद्देश्य में। देश में मौजूद भूलज स्रोतों का सही तरीके से पता लगाना और
प्रबंधन करने हेतु 'भूजल प्रबंधन और विनयमन' योजना 12वीं पंचवर्षीय
योजना में चलायी गयी थी लेकिन इस हेतु बजट में आवंटित धन के आधा धन ही खर्च हो
पाया । कैग के रिपोर्ट के अनुसार स्थानीय समुदायों के जल प्रबंधन
तरीकों को मजबूत करने के लिए कोई काम नहीं किया गया है जिसके कारण आपेक्षित
सफलता नहीं मिल पायी। |
भारत में जल संकट का कारण
भौगोलिक स्थिति एवं
मानसून
भारत के चेन्नई तट पर दक्षिण-पश्चिम मानसून से
वर्षा नहीं हो पाती है। इसी प्रकार उत्तर-पश्चिम में
मानसून पहुँचते-पहुँचते कमज़ोर हो जाता है जिससे वर्षा की
मात्रा भी घट जाती है।इस प्रकार वर्षा की असमान मात्रा भारत के विभिन्न भागों को
प्राप्त होती है।
घरेलू एवं औद्योगिक
मांग
बढ़ती जनसंख्या तथा आर्थिक विकास के
कारण कारण जल की मांग में वृद्धि हुई है । विश्व की भारत में निवास करनेवाली 17% आबादी हेतु शुद्ध जल का मात्र 4%ही उपलब्ध है।
भूजल का अत्यधिक दोहन
भूजल का लगभग 89% उपयोग सिंचाई
में होता है और संपूर्ण घरेलू जल आपूर्ति में लगभग 80% भूजल
का योगदान है । इस प्रकार जल आपूर्ति हेतु मुख्य रूप से भूजल पर निर्भरता है और इस
कारण वर्षा जल संचय पर ध्यान नहीं दिया जाता।
मानसून की अनियमितता
हाल के वर्षों में भूमंडलीय तापन, एल-नीनो आदि के प्रभाव के कारण मानसून में अनियमितता आयी है जिसके कारण भी
जल संकट की स्थिति उत्पन्न हो गई।
कृषि गहनता
अवैज्ञानिक कृषि तथा जलसघन फसलों की
खेती बढ़ने के कारण जल की खपत कृषि में बढ़ी है। उल्लेखनीय है कि भारत की अनेक
फसले जैसे चावल, गेहूँ, गन्ना, जूट
कपास इत्यादि ऐसी फसलें है जिनके उत्पादन में अधिक जल की आवश्यकता होती है इस कारण
से इन फसलों के क्षेत्रों जैसे- हरियाणा, पंजाब में में जल संकट की समस्या विशेष रूप से विद्यमान है। कृषि
गहनता से ही जल संकट की स्थिति उत्पन्न हुई है। उपलब्ध जल का 84% कृषि, 12% उद्योगों तथा 4% घरेलू कार्यों में प्रयोग होता है।
जल के पुर्नप्रयोग न
होना
भारतीय नगरों में जल संसाधन के
पुर्नप्रयोग की कोई विशेष व्यवस्था नहीं होने से शहरी क्षेत्रों में जल संकट की
समस्या बढ़ती जा रही है।
जल प्रदूषण
उल्लेखनीय है कि विश्व की 17% आबादी भारत में निवास
करती है जबकि विश्व के शुद्ध जल का मात्र 4% ही भारत को उपलब्ध
है। इसी क्रम में अधिकांश भू-जल गुणात्मक रूप से पीने की स्थिति में नहीं है तथा तेजी से प्रदूषित हो
रहा है जिससे समस्या और गंभीर होती जा रही है।
संरक्षण एवं जनजागरुकता
का अभाव
जनसामान्य में जल संरक्षण को लेकर
जागरूकता की कमी है इस कारण जल का दुरुपयोग बढ़ता जा रहा हैं। इसी क्रम में आधुनिक
जीवनशैली जैसे- गाड़ी की धुलाई, गार्डन, RO वाटर आदि के कारण जल की बर्बादी हो रही है।
जल संकट के परिणाम
आजीविका संकट एवं
प्रवासन
जल जीवन हेतु मौलिक आधार है जिसके
बिना जीवन की संभावना नहीं है अतः यदि जल में कमी आएगी तो आजीविका संकट उत्पन्न
होगा और प्रवासन को बढ़ावा देगा।
खाद्य असुरक्षा
कृषि तथा खाद्य प्रसंस्करण उद्योंगों
में जल की आवश्यकता होती है । जल की कमी से कृषि मत्स्य क्षेत्र के साथ छोटे-बड़े खाद्य
प्रसंस्करण उद्योग भी प्रभावित होगे तथा खाद्यान्न संकट होगा।
जैव विविधता की हानि
जल संकट से पेड़-पौधों जीव-जंतुओं को भारी नुकसान पहुँचेगा तथा इससे पर्यावरण पर भी नकारात्मक
प्रभाव होगा जिससे जैव विविधता प्रभावित होगी।
आर्थिक अस्थिरता
विश्व बैंक के अनुसार, जल की कमी के चलते
कई देशों की GDP प्रभावित होगी और आर्थिक समस्याओं में भी
वृद्धि हो सकती है।
हिंसक झड़प की संभावना
जल संकट वाले क्षेत्रों में उपलब्ध जल
स्रोतों पर कब्ज़े को लेकर कई बार हिंसक झड़प हो जाती है तथा अराजकता की स्थिति हो
जाती है। इसका उदाहरण महाराष्ट्र के लातूर जिले में देखा जा सकता है जहां प्रशासन
को जल को लेकर धारा 144
लगानी पड़ी।
गरीबी में वृद्धि
भोजन और पानी की कीमतों में बढ़ोतरी
जो गरीबों के लिए वहन करना मुश्किल होता है, पानी और भोजन के आवंटन को लेकर
प्रतिस्पर्द्धा और से संघर्ष, पलायन, हिंसा से गरीबी बढ़ेगी।
भारत में संचालित जल परियोजनाएं
- जल जीवन मिशन
- राष्ट्रीय जल मिशन
- नमामि गंगे
- राष्ट्रीय नदी जोड़ो परियोजना
- नदी बेसिन प्रबंधन
- राष्ट्रीय जल विज्ञान कार्यक्रम
- प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना
- राष्ट्रीय जलभृत मानचित्रण और प्रबंधन कार्यक्रम
- अटल भूजल योजना
नमामि गंगे मिशन नमामि गंगे मिशन का उद्देश्य गंगा नदी बेसिन की रक्षा, संरक्षण और
कायाकल्प करना है । वर्ष 2015 में 5 वर्ष की अवधि हेतु इस मिशन को मंजूरी दी गई है । इस मिशन की हिस्से के
रूप में की गई गतिविधियां चार स्तंभों निर्मल गंगा (अप्रदूषित
प्रवाह), अविरल प्रवाह (निरंतर
प्रवाह), जन गंगा (पीपुल
रिवर कनेक्ट) तथा ज्ञान
गंगा(अनुसंधान और ज्ञान) प्रबंधन
पर टिकी हुई है । इस मिशन के तहत दिसंबर 2021 तक कुल 363 परियोजनाओं को मंजूरी दी गई
है। भारत के नागरिकों, NRIs, उद्योग जगत, संगठनों से योगदान प्राप्त कर गंगा नदी की स्वच्छता में सुधार हेतु
स्वच्छ गंगा कोष की स्थापना की गई है। नमामि गंगे मिशन के तहत सीवरेज बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को भी शुरू
किया गया है जिसमें उत्तर प्रदेश,बिहार, उत्तराखंड राज्यों में सबसे ज्यादा पर योजनाएं आरंभ की गई है। गंगा नदी के अविरल प्रवाह को सुनिश्चित करने हेतु नदी के
अपने पानी पर अधिकार को मान्यता दी गई है। इसके अलावा वनरोपण, आर्द्रभूमि की
पहचान एवं एकीकृत प्रबंधन इत्यादि कार्यों को प्राथमिकता दी गई है। जन गंगा का घटक लोगों और नदी के बीच
के संबंध को मजबूत करने पर लक्षित है। गंगा उत्सव 2021 में नदियों के स्थाई प्रबंधन हेतु विचार विमर्श चर्चा और सूचनाओं का
आदान प्रदान किया गया ताकि गंगा और लोगों के बीच एक संबंध स्थापित किया जा सके। गंगा प्रबंधन अध्ययन और
प्रौद्योगिकी विकास को प्राथमिकता देने हेतु ज्ञान
गंगा के तहत गंगा ज्ञान केंद्र की स्थापना की गई। |
आप भारत में जल संकट की वर्तमान स्थिति, कारण, परिणाम, सुझाव एवं योजनाएं संबंधी पोस्ट को पढ़ रहे है जो सिविल सेवा मुख्य परीक्षा हेतु अत्यंत प्रासंगिक एवं उपयोगी है ।
जल संकट से निपटने हेतु उपाए
- जनसंख्या नियंत्रण।
- घरेलू जल संरक्षण एवं मितव्ययिता के साथ प्रयोग।
- कृषि में फसल चक्र एवं जलवायु के अनुसार वैज्ञानिक कृषि को बढ़ावा।
- प्रदूषण नियंत्रण, वन संरक्षण,
वृक्षारोपण जैसे प्रयासों को बढ़ावा
- नदी जल प्रबंधन, वाटरशेड मैनेजमेंट
को प्रभावी ढंग से लागू करना ।
- औद्योगिक क्षेत्र में नई तकनीकों के
प्रयोग द्वारा जल संरक्षण,
वर्षा जल संचयन को अनिवार्य बनाना।
- जल संरक्षण के प्रति विभिन्न माध्यमों द्वारा जनजागरुकता अभियान चलाना।
- भवन निर्माण संबंधी नियमों में संशोधन करते हुए वर्षा जल संचयन को अनिवार्यतः किया जाना।
- जल संकट से निपटने हेतु भू-स्थानिक
प्रौद्योगिकियों जैसे सैटेलाइट आधारित रिमोट सेंसिंग, जीपीएस
आधारित उपकरण और सेंसर, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, बिग डेटा एनालिटिक्स, इंटरनेट ऑफ थिंग्स,
5 जी, रोबोटिक्स तथा डिजिटल ट्विन जैसी भू-स्थानिक एवं डिजिटल तकनीकों का प्रभावी ढंग से उपयोग किया जा सकता है।
जल जीवन मिशन अगस्त 2019 में
आरंभ इस मिशन के माध्यम से वर्ष 2024 तक ग्रामीण भारत के सभी घरों में व्यक्तिगत घरेलू नल कनेक्शन द्वारा पर्याप्त
सुरक्षित पेयजल उपलब्ध कराने की कल्पना की गई।
इस मिशन से जहां 90 करोड़ से अधिक ग्रामीण आबादी को लाभ होगा वहीं ग्रामीण शहरी अंतर कम होगा। योजना के माध्यम से जीवन की
गुणवत्ता में सुधार, जीवन की सुगमता और सार्वजनिक
स्वास्थ्य में वृद्धि होगी। इस मिशन के मुख्य विशेषताएं निम्नलिखित हैं। जल आपूर्ति के बुनियादी
ढांचे के निर्माण के साथ-साथ प्रत्येक घर में पीने योग्य गुणवत्तापूर्ण जल की
आपूर्ति सुनिश्चित करना। जल आपूर्ति सुनिश्चित
करने हेतु स्थानीय ग्राम समुदाय द्वारा जल आपूर्ति प्रणाली का स्वामित्व, संचालन
एवं रखरखाव। ग्राम जल एवं स्वच्छता
समिति में न्यूनतम 50% सदस्य महिलाओं
तथा समाज के कमजोर वर्गों का समानुपातिक प्रतिनिधित्व की व्यवस्था। विद्यालय, आंगनबाड़ी
केंद्रों, आश्रमशालाओं में पेयजल की सुनिश्चित को
प्राथमिकता । जल गुणवत्ता की समस्या
से ग्रसित गांव, बस्तियों क्षेत्र को प्राथमिकता। जल गुणवत्ता के परीक्षण
हेतु फील्ड टेस्ट किट, न्यूनतम शुल्क पर प्रयोगशालाओं की स्थापना। दीर्घकालीन पेयजल संरक्षण हेतु जल आपूर्ति प्रणालियों तथा जल स्रोतों के संरक्षण
के साथ साथ जल पुनचक्रण व्यवस्था। दीर्घकालिक एवं नियमित
जल आपूर्ति हेतु समुचित संचालक एवं रखरखाव की व्यवस्था। सामूहिक भागीदारी, सामूहिक
योगदान तथा जागरूकता के माध्यम से जल के संरक्षण
में सभी की भागीदारी सुनिश्चित करना। जल संरक्षण एवं
उपलब्धता सुनिश्चित करने में पारदर्शिता एवं जवाबदेही लाने हेतु तकनीक जैसे पोर्टल,ऐप, रियल टाइम निगरानी, सेंसर आधारित
आईओटी समाधान, जियो टैगिंग, नल कनेक्शन को आधार से जोड़ना इत्यादि का प्रयोग। जनवरी 2022 में
प्राप्त आंकड़े के अनुसार लगभग 5.52 घरों को इस
मिशन के माध्यम से नल जल आपूर्ति प्रदान की गई तथा
गोवा, तेलंगाना, अंडमान
निकोबार दीप समूह, पुदुचेरी, दादर नगर हवेली और दमन दीव तथा हरियाणा ने नल जल आपूर्ति
के साथ 100% घरों की स्थिति हासिल की है। |
सरकार द्वारा उठाये गए कदम
- जल संकट की स्थिति से निपटने हेतु सरकार द्वारा जल शक्ति मंत्रालय का गठन ।
- जल संसाधन मंत्रालय को पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय के साथ विलय किया गया ।
- जल शक्ति मंत्रालय द्वारा जल शक्ति अभियान
देश के 255 जिलों में प्रारम्भ
किया गया।
- राज्य सरकारों के परामर्श से भूजल के
कृत्रिम पुनर्भरण के लिये मास्टर प्लान 2020
- अटल भूजल योजना तथा राष्ट्रीय जलभृत मानचित्रण और प्रबंधन कार्यक्रम ।
- वर्षा जल संचयन को बढ़ावा देने के
लिये कैच द रेन’ अभियान ।
- 2018 में नीति आयोग द्वारा जारी अभिनव भारत@75 के लिये जल सुरक्षा हेतु कार्यनीति।
- राज्यों के जल प्रबंधन में सुधार,प्रतिस्पर्द्धा
हेतु नीति आयोग द्वारा संयुक्त जल प्रबंधन सूचकांक जारी किया गया।
- अधिशेष जल वाले क्षेत्रों से जल को जल न्यूनता वाले क्षेत्रों में भेजने हेतु नदी जोड़ो परियोजना ।
- जलवायु परिवर्तन के कारण उपजी चुनौतियों का सामना करने हेतु राष्ट्रीय जल मिशन आरंभ।
- बिहार में हर घर नल का जल योजना, जल जीवन हरियाली
योजना चलायी गयी।
- जल जीवन मिशन द्वारा जापानी
इंसेफेलाइटिस एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम से प्रभावित 5 राज्यों असम,
बिहार, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल राज्यों में 97 लाख
से अधिक घरों में नल के पानी की पूर्ति की गयी है।
सतत् विकास लक्ष्य 6 के तहत
वर्ष 2030 तक सभी लोगों के लिये जल की उपलब्धता सुनिश्चित
करने हेतु जल संरक्षण की दिशा में निम्न प्रयास किये जा रहे हैं-
- सूखा प्रतिरोधी, कम पानी वाली
फसलों के प्रयोग को बढ़ावा ।
- रेनवाटर हार्वेस्टिंग द्वारा जल का संचयन।
- वर्षा जल को सतह पर संग्रहीत करने के
लिये पानी के टैंकों,
तालाबों और चेक-डैम आदि की व्यवस्था।
- प्राकृतिक जल निकायों जैसे झीलों, नदियों और सागरों
के संरक्षण हेतु प्रयास ।
बिहार सरकार द्वारा उठाये गए कदम
जल जीवन हरियाली मिशन
वर्ष 2019 में
बिहार सरकार द्वारा जल जीवन हरियाली मिशन की शुरुआत की गई । इस मिशन का एक
उद्देश्य तालाब, नहर, आहर,
पइन जैसी सार्वजनिक जल भंडारण संरचनाओं की पहचान करना और उनका जीर्णोंद्वार
करना है। जल जीवन हरियाली मिशन के महत्वपूर्ण उद्देश्य निम्न है ।
- सभी सार्वजनिक कुओं, चापाकल
और नलकूपों के आसपास जलशोषणए पुनर्भरण ढांचे का निर्माण करना।
- पहाड़ी क्षेत्रों में छोटी नदियों नालों पर चेक डैम और अन्य जल भंडारण संरचनाओं का निर्माण करना।
- सभी सरकारी भवनों में नए जल संसाधनों और वर्षा जल संग्रहण ढांचों का निर्माण करना।
- ग्रामवासियों को सार्वजनिक भवनों में वर्षा जल संग्रहण ढांचों के निर्माण करने हेतु प्रेरित करना।
- वृक्षारोपण अभियान आयोजित करना।
- किसानों को वैकल्पिक
फसलों, टपक
सिंचाई, जैविक खेती और अन्य नई प्रौद्योगिकियों अपनाने
हेतु प्रेरित करना ।
ग्रामीण पेयजल
पाइप से जलापूर्ति की योजनाओं के लिए संचालन और रखरखाव व्यवस्था के महत्व पर विचार करते हुए बिहार सरकार ने आत्मनिर्भर बिहार के सात निश्चय 2 के तहत योजना को शामिल किया है । बिहार में ग्रामीण क्षेत्र में दो योजनाएं हैं ।
- मुख्यमंत्री ग्रामीण पेयजल निश्चय योजना ( गुणवत्ता प्रभावित क्षेत्रों के लिए) -यह योजना उन क्षेत्रों के लिए है जहां पानी की गुणवत्ता आर्सेनिक, फ्लोराइड या आयरन से प्रभावित है । बिहार के 38 में से 29 जिले आर्सेनिक, फ्लोराइड या आयरन से प्रभावित है ।
- मुख्यमंत्री ग्रामीण पेयजल निश्चय योजना ( गैर गुणवत्ता प्रभावित क्षेत्रों के लिए) -मुख्यमंत्री ग्रामीण पेयजल निश्चय योजना उन क्षेत्रों के लिए है जहां के जल की गुणवत्ता प्रभावित नहीं हुई है ।
मुख्यमंत्री शहरी पेयजल निश्चय योजना
- वर्ष 2021-22 तक शहरी क्षेत्र के सभी घरों में साफ और सुरक्षित पेयजल उपलब्ध कराने के लिए राज्य सरकार द्वारा “हर घर नल का जल” योजना की शुरुआत की गई है । इस योजना के तहत चापाकल हटाने का लक्ष्य है जिस पर शहरी आबादी पानी की आवश्यकता हेतु निर्भर है।
मनरेगा के तहत जल संरक्षण के कार्य
- राज्य के पारंपरिक जल निकायों को अतिक्रमण से मुक्त कराकर पुनर्जीवित किया गया और चारों और पेड़ पौधे लगाए गए।
- मनरेगा के तहत तालाब, नहर, आहर, पाइन जैसी सार्वजनिक जल भंडारण संरचनाओं की पहचान और जीर्णोंद्वार जैसे कार्य ।
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