भारत-चीन संबंध के विभिन्न आयाम
एशिया की महत्वपूर्ण
आर्थिक एवं सैन्य शक्ति के रूप में भारत और चीन 2 महत्वपूर्ण देश है। दोनों देश
विशाल जनसंख्या, उभरती अर्थव्यवस्था तथा पड़ोसी देशों के
साथ संघर्ष जैसी समानताएं रखते हैं। आजादी के बाद अनेक अवसरों पर भारत द्वारा चीन
को समर्थन दिया गया लेकिन साम्राज्यवादी चीन की नीतियों के कारण दोनों देशों के
संबंध सामान्य नहीं हो पाए और 1962 के युद्ध के बाद
डोकलाम और गलवान घाटी जैसी घटनाएं घटित हुई।
भारत एवं चीन संबंधों को देखा
जाए तो काफी उतार चढ़ाव वाले रहे हैं। जहां कई क्षेत्रों में दोनों देशों में
विवाद की स्थिति रहीं तो अनेक मोर्चों पर सहयोग भी रहा। भारत चीन संबंधों के दौर
को संक्षिप्त रूप से निम्न प्रकार से समझा जा सकता है।
भारत-चीन संबंधों का घटनाक्रम
1950 से
1975
1949 में चीन में
साम्यवादी दल की सत्ता स्थापित होने के बाद चीन को मान्यता देनेवाला प्रथम राष्ट्र
भारत था। इस प्रकार भारत तथा चीन के मध्य राजनयिक संबंध 1 अप्रैल 1950 को स्थापित हुए । इसके बाद 1954 में चीन के प्रधानमंत्री का
भारत दौरा तथा 1955 का वाडूंग सम्मेलन दोनों देशों के बीच
मित्रता का स्वर्णिम काल कहा जा सकता है। इस दौर में भारत द्वारा संयुक्त राष्ट्र
में चीन के प्रतिनिधित्व का पूरा समर्थन भारत द्वारा किया गया।
1959 में दलाई लामा एवं
लाखों शरणार्थियों का भारत आगमन तथा भारत द्वारा शरण देने के साथ भारत तथा चीन के
मध्य विवाद आरंभ हो गए थे। 1962 में भारत एवं चीन के मध्य
युद्ध हुआ जिसमें भारत की पराजय हुई और चीन ने मैक मोहन रेखा को अस्वीकार कर दिया।
जिसके बाद भारत तथा चीन के संबंध अत्यधिक शत्रुतापूर्ण हो गए और चीन ने कश्मीर के
मुद्दे पर पाकिस्तान का समर्थन आरंभ करते हुए 1965 तथा 1971
के युद्ध में स्पष्ट रूप से पाकिस्तान का समर्थन किया।
1976 से
2000
1976 से भारत तथा चीन
संबंध में कुछ सुधार आरंभ हुए जब भारत तथा चीन में राजदूत संबंधों को बहाल किया गया
तथा 1988 में राजीव गांधी द्वारा चीन की यात्रा की गई जो
34 वर्ष उपरांत किसी भारतीय प्रधानमंत्री की चीन यात्रा थी। इस दौर में जहां चीन ने अपनी विदेश नीति में सीमा
विवाद जैसे मुद्दों के बजाए आर्थिक मुद्दों पर बल दिया। वहीं भारत ने भी 1991
के उपरांत आर्थिक सुधारों को प्राथमिकता दी इसके फलस्वरपू दोनों
देश आपसी विवाद के बजाए आर्थिक सुधारों की ओर अग्रसर हुए।
1998 में भारत द्वारा
परमाणु परीक्षण किए जाने पर चीन द्वारा कड़ी आलोचना की गई और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा
परिषद में भारत के विरुद्ध प्रस्ताव लाने का प्रयास किया गया।
वर्ष 2000 से 2014
1998 में भारत द्वारा
परमाणु परीक्षण किए जाने के बाद संबंधों में आयी कड़वाहट इस दौर कम हुई और भारत तथा
चीन के संबंध पुनः सामान्य होने लगे तथा 2003 में भारतीय प्रधानमंत्री
अटल बिहारी बाजपेई द्वारा चीन का दौरा किया गया और दोनों देशों ने आपसी सहयोग
बढ़ाने तथा सीमा विवाद को शांत करने हेतु विशेष प्रतिनिधि बैठक तंत्र स्थापित करने
पर चर्चा की। इस दौर में वर्ष 2005 में भारत तथा चीन के मध्य
सामरिक संबंध स्थापित हुए तथा संयुक्त सैन्य अभ्यास भी आयोजित किया गया।
इस दौर में 2010 में चीन के द्वारा
स्टेपल वीजा प्रदान करने, भारत में चीन के सामानों का भी विरोध
जैसी घटनाएं हुई जिससे भारत तथा चीन के संबंध पुनः खराब होने लगे।
2014 के
बाद नवीन दौर में संबंध
वर्ष 2014 में चीन के
राष्ट्रपति की भारत यात्रा के बाद से ही भारत चीन संबंधों में गिरावट आने लगी तथा
अनेक ऐसी घटनाएं घटी जिससे भारत चीन संबंधों में तनाव बढ़ाने में मदद की
- भारत चीन के मध्य द्विपक्षीय वार्ता की निरंतर असफलता ।
- दलाई लामा की तवांग यात्रा का चीन द्वारा विरोध किया जाना।
- चीन द्वारा भारत पर तिब्बत में अलगाववाद को बढ़ावा देने का आरोप लगाना।
- CPEC मामले में चीन द्वारा भारत की संप्रभुता संबंधी चिंताओं को अस्वीकार किया जाना।
- परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह की सदस्यता
हेतु चीन द्वारा का
भारत का समर्थन न करना।
- भारत के पड़ोसी देशों के मध्य प्रभाव बढ़ाना तथा हिंद महासागर में भारत को घेरने हेतु मोतियों की माला।
- आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान का समर्थन करना तथा मसूद अजहर के मामले में वीटो का प्रयोग।
- भारत द्वारा चीन के महत्वाकांक्षी
परियोजना बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव BRI को अस्वीकार
करना ।
- हिंद प्रशांत क्षेत्र में अमेरिका के
साथ सहयोग को बढ़ावा देते हुए भारत का QUAD में शामिल होना।
- 2018 के बाद भारत तथा चीन का सीमा विवाद बढ़ गया तथा डोकलाम तथा गलवान घाटी जैसी घटनाएं हुई।
भारत-चीन संबंध में सहयोग के क्षेत्र
राजनीतिक संबंध
- 1949 में चीन में साम्यवादी दल की सत्ता स्थापित होने के बाद चीन को मान्यता देनेवाला प्रथम राष्ट्र भारत था।
- इसके बाद संयुक्त राष्ट्र में चीन के प्रतिनिधित्व का पूरा समर्थन भारत द्वारा किया गया।
- वर्ष 1962 में भारत और चीन के मध्य सीमा संघर्ष से
दोनों देशों के संबंधों में दूरी आयी परन्तु 1988 में प्रधानमंत्री
राजीव गांधी की ऐतिहासिक यात्रा से दोनों देशों के मध्य संबंधों में पुनः सुधार आने
लगा।
वाणिज्यिक और आर्थिक संबंध
- भारत और चीन ने 1984 में एक व्यापार
समझौते द्वारा मोस्ट फेवर्ड नेशन (MFN) का दर्जा प्रदान किया
गया।
- वर्ष 1994 में दोनों देशों ने दोहरे कराधान से बचने
के लिये भी एक समझौते पर हस्ताक्षर किये।
- वर्ष 2020 में चीन भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक
साझेदार बना रहा। भारत ने चीन से 58.7 अरब डॉलर का सामान
आयात किया जबकि भारत ने चीन को 19 अरब डॉलर का सामान
निर्यात किया।
रक्षा संबंध
भारत तथा चीन के बीच हैंड-इन-हैंड
संयुक्त आतंकवादरोधी अभ्यास आयोजित किये जाते हैं।
अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत एवं चीन के मध्य सहयोग
|
सांस्कृतिक संबंध
- भारत और चीन के मध्य सांस्कृतिक आदान-प्रदान प्राचीन काल
से ही होता रहा और कई बौद्ध तीर्थयात्रियों और विद्वानों ने ऐतिहासिक ‘रेशम मार्ग’ के माध्यम से चीन की यात्रा की।
अनेक चीनी यात्री जैसे- इत्सिंग, फाह्यान और ह्वेनसांग आदि भी भारत की यात्रा पर आए।
- 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के रूप में नामित करने हेतु संयुक्त राष्ट्र प्रस्ताव के सह-प्रायोजकों में चीन भी शामिल था।
- वर्ष 2003 में शैक्षणिक आदान-प्रदान हेतु पेकिंग विश्वविद्यालय में भारतीय अध्ययन केंद्र की स्थापना
की गई।
- शैक्षिक सहयोग को बढ़ाने हेतु दोनों
देशों ने 2006 में एजुकेशन एक्सचेंज प्रोग्राम पर हस्ताक्षर किये जिसके तहत भारत और चीन
एक-दूसरे के देश में उच्च शिक्षा के मान्यता प्राप्त संस्थानों
के 25 छात्रों को सरकारी छात्रवृत्ति प्रदान करते हैं।
- चीन तथा भारत ने सिस्टर सिटीज़ तथा प्रांतों के जोड़े स्थापित किये हैं। फ़ुज़ियान प्रांत और तमिलनाडु को सिस्टर राज्य तथा चिनझोऊ एवं चेन्नई को सिस्टर सिटीज़ के रूप में विकसित किया जाएगा।
भारत-चीन के मध्य विवाद के बिंदु |
सीमा विवाद भारत तथा चीन
के मध्य लगभग 3488 किमी लंबी सीमा है जो लद्दाख, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश में स्थित है। ये सीमाएं अभी तक स्पष्ट नहीं है जिसके
कारण चीन द्वारा सीमाओं का अतिक्रमण किया जाता है और विवाद की स्थिति बनती है। 1962 में "हिंदी-चीनी
भाई भाई" तथा पंचशील सिद्धांत को भूलकर चीन
द्वारा भारत पर हमला किया गया जिसमें भारत की पराजय हुई इसी युद्ध के साथ चीन ने
मैक मोहन रेखा को अस्वीकार कर दिया। चीन ने कश्मीर के मुद्दे पर पाकिस्तान का
समर्थन किया तथा 1965 तथा 1971 के युद्ध में स्पष्ट रूप से पाकिस्तान का समर्थन किया। डोकलाम गतिरोध, पैंगोंग त्सोमोरी
झील विवाद, 2019, अरुणाचल प्रदेश में आसफिला क्षेत्र
पर विवाद आदि इसके हलिया उदाहरण हैं। 15 जून 2020 में गलवान घाटी में भारतीय और चीनी सैनिकों के मध्य हिंसक झड़प घटना इसी
का उदाहरण है। इस घटना को 1967 के बाद का सबसे
बड़ा सैनिक तनाव माना गया । हाल ही में
चीन द्वारा संसद द्वारा नवीन सीमा कानून पारित किया गया तथा भारत के अरुणाचल
प्रदेश राज्य के 15 स्थानों को नवीन नाम से मानकीकृत किया है। चीन का यह कदम भारत चीन के
तनाव को और अधिक बढ़ा सकता है। |
तिब्बत और दलाई लामा 1959 में दलाई लामा समेत लाखों शरणार्थियों का भारत आने के बाद भारत द्वारा
दलाई लामा को शरण देना, तिब्बती शरणार्थियों के
पुनर्वास में भारत की भूमिका आदि को लेकर चीन का रवैया भारत के प्रति आलोचनात्मक
रहा है। |
स्टेपल वीजा चीन द्वारा
अरुणाचल प्रदेश के नागरिकों को स्टेपल वीजा जारी किया जाता है जो विवाद का एक
कारण है। |
स्ट्रिंग ऑफ
पर्ल्स मोतियो की
माला यानी स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स चीन की एक नीति है जिसके तहत चीन हिंद महासागर में
भारत को घेरने हेतु बंदरगाहों और नौसेना ठिकानों का निर्माण चीन द्वारा किया जा
रहा है। इसके तहत
म्यांमार में कोकोस द्वीप, बांग्लादेश में चटगांव, श्रीलंका में हंबनटोटा मालदीव में मारो एटॉल तथा पकिस्तान में ग्वादर
बंदरगाह पर निर्माण किया जा रहा है। हाल ही में
चीन के चेंगदू को यांगून (म्याँ मार) के माध्यम से हिंद महासागर तक
पहुँच प्रदान करने वाला एक नया समुद्री-सड़क-रेल लिंक शुरू किया गया है। |
प्रतिकूल रूख चीन द्वारा कई
अवसरों पर भारत को एक साम्राज्यवादी देश के रूप में प्रस्तुत किया गया तथा 1974 में हुए
भारत के शांतिपूर्ण परमाणु परीक्षण को चीन ने परमाणु ब्लैक मेलिंग का नाम दिया। अंतर्राष्ट्रीय
मंचों जैसे परमाणु आपूर्तिकर्त्ता समूह में भारत के प्रवेश, संयुक्त राष्ट्र
सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता, मसूद अजहर
के मामले पर वीटो का प्रयोग आदि पर चीन का प्रतिकूल रुख भारत चीन रिश्ते को
असामान्य करता है। |
CPEC भारत का मानना
है कि चीन द्वारा बनाया जा रहा चीन पकिस्तान आर्थिक गलियारा भारतीय संप्रभुता और
अखंडता में हस्तक्षेप है लेकिन चीन इसकी परवाह नहीं कर रहा। |
नदी जल विवाद ब्रह्मपुत्र
तथा सहायक नदियों पर चीन द्वारा रन ऑफ द रिवर डैम बनाया जाना चिंता का विषय है।
चूंकि यह नदी भारत में भी बहती है अतः इसका प्रतिकूल प्रभाव भारत पर पड़ सकता
है। |
आतंकवाद पकिस्तान
प्रायोजित आतंकवाद को चीन द्वारा समर्थन दिया जाता है इसका उदाहरण मसूद अजहर के
मामले में देखा जा सकता है जब संयुक्त राष्ट्र में चीन द्वारा वीटो का प्रयोग
किया गया। |
व्यापार
असंतुलन चीन भारत का
सबसे बड़ा भागीदारी है। उल्लेखनीय है कि भारत और चीन के बीच लद्दाख सीमा पर हुई
झड़प और इससे पैदा हुए गंभीर तनाव के बावजूद वर्ष 2020 में चीन भारत का सबसे बड़ा
व्यापारिक साझेदार बना रहा। भारत ने चीन से 58.7 अरब डॉलर का सामान आयात किया जबकि भारत ने चीन को 19 अरब डॉलर का सामान निर्यात किया। |
QUAD भारत द्वारा
क्वाड का सदस्य बने जाने पर चीन ने असंतोष जाहिर किया। चीन का मानना है कि हिंद-प्रशांत महसागरीय
क्षेत्र हेतु गठित क्वॉड चीन विरोधी है। |
दक्षिण चीन
सागर दक्षिणी चीन
सागर में चीन आसियान देशों के क्षेत्रों का अतिक्रमण कर रहा है तथा आशियान देश
भारत को एक सुरक्षा प्रदाता की भूमिका में देखते हैं। अतः यह स्थिति भारत तथा
चीन के मध्य विवाद का एक कारक है। भारत द्वारा
वियतनाम के लिए दक्षिण चीन सागर में तेल के अन्वेषण कार्य पर चीन की आपत्ति है। |
इस पोस्ट में आप भारत एवं चीन संबंध के विभिन्न आयाम को पढ़ रहे हैं । भारत चीन का पड़ोसी देश है और भारत के चीन के साथ संबंध हमेशा चर्चा में रहता है । इस कारण यह लेख आनेवाले प्रतियोगी परीक्षाओं हेतु अत्यंत प्रासंगिक एवं महत्वपूर्ण है।
भारत-चीन सीमा विवाद
आजादी के समय भारत के चीन
के साथ किसी प्रकार का सीमा विवाद नहीं था तथा तिब्बत एक बफर स्टेट के रूप में था किन्तु
जब चीन द्वारा तिब्बत का विलय किया गया तो भारत-चीन की सीमा प्रत्यक्ष मिलने से
दोनों देशों में बीच सीमा विवाद आरंभ हुआ। चीन की सीमा 14 देशों
के साथ लगती है तथा 12 पड़ोसियों के साथ इसने सीमा विवाद सुलझा को लिये हैं लेकिन भारत और
भूटान दो ऐसे देश हैं जिनके साथ चीन को अभी सीमा समझौतों को अंतिम रूप देना है।
भारत
तथा चीन के मध्य लगभग 3488 किमी
लंबी सीमा है जो लद्दाख, उत्तराखंड, हिमाचल
प्रदेश, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश में
स्थित है। ये सीमाएं अभी तक स्पष्ट नहीं है जिसके कारण चीन द्वारा सीमाओं का अतिक्रमण
किया जाता है और विवाद की स्थिति बनती है। 1962 में चीन द्वारा
भारत पर हमला किया गया जिसमें भारत की पराजय हुई इसी युद्ध के साथ चीन ने मैक मोहन
रेखा को अस्वीकार कर दिया। डोकलाम गतिरोध, पैंगोंग त्सोमोरी
झील विवाद, 2019, अरुणाचल प्रदेश में आसफिला क्षेत्र पर विवाद,
जून 2020 में गलवान घाटी में भारतीय और चीनी
सैनिकों के मध्य हिंसक झड़प सीमा विवाद का उदाहरण है ।
भारत
चीन के साथ लगी सीमा को 3 भागों
में बांटा जा सकता है जो निम्नलिखित है ।
भारत-चीन के मध्य सीमा
- पूर्वी सीमा -सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश
- मध्य
सीमा -उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश
- पश्चिमी
सीमा-
लद्दाख
1. पूर्वी
क्षेत्र
चीन पूर्वी सेक्टर में अरुणाचल प्रदेश
पर अपना दावा करता है। चीन का मानना है कि ये दक्षिणी तिब्बत का हिस्सा है चीन का कहना
है कि तिब्बत को मैकमोहन रेखा के निर्धारण करनेवाले 1914 के शिमला कन्वेंशन पर हस्ताक्षर करने का
अधिकार नहीं था। इस प्रकार चीन अरुणाचल प्रदेश में मैकमोहन लाइन को नहीं मानता।
हाल ही में चीन द्वारा संसद द्वारा नवीन
सीमा कानून पारित किया गया तथा भारत के अरुणाचल प्रदेश राज्य के 15 स्थानों को नवीन
नाम को मानकीकृत किया है जो सीमा विवाद को और बढ़ा सकता है।
2. मध्य क्षेत्र
मध्य क्षेत्र में 625 किमी लम्बी सीमा
रेखा लद्दाख से नेपाल तक दोनों देशों के मध्य फैली हुई है जिस पर कोई विशेष विवाद नहीं
है।
3. पश्चिमी
क्षेत्र
1962 के युद्ध में
चीन ने भारत के 37,000 वर्ग किमी भूमि पर कब्जा कर लिया
जिसे अक्साई चीन नाम से जाना जाता है। पश्चिमी क्षेत्र में भारत तथा चीन के मध्य मुख्य
रूप से अक्साई चीन को लेकर विवाद है। भारत अक्साई चीन पर अपना दावा करता है जो चीन
के नियंत्रण में है।
उल्लेखनीय है कि ब्रिटिश शासनकाल में भारत
एवं चीन के मध्य
2 सीमाएं प्रस्तावित थी जॉनसन लाइन तथा मैकडॉनाल्ड लाइन। जॉनसन लाइन
अक्साई चीन को भारतीय सीमा में जबकि मैकडॉनाल्ड लाइन अक्साई चीन को के नियंत्रण में
प्रदर्शित करता है।
इस प्रकार चीन द्वारा अक्साई चीन पर भारत
के दावे को भी ख़ारिज करता है तथा अरुणाचल प्रदेश को दक्षिणी तिब्बत यानी अपना क्षेत्र
मानता है। उल्लेखनीय है कि अक्साई चीन वर्तमान में चीन के पास है जबकि अरुणाचल प्रदेश
भारत के पास। उपरोक्त विवादों के कारण दोनों देशों के बीच अभी तक सीमा निर्धारण नहीं
हो सका। हालांकि यथास्थिति बनाए रखने हेतु Line of Actual Control (LAC) का इस्तेमाल किया
जाने लगा लेकिन LAC पर भी दोनों देशों के मत अलग अलग हैं।
भारत-चीन संबंध के हालिया मुद्दे
चीन ने दिसंबर, 2021 में एक
बयान देते हुए अपने नक्शे में अरुणाचल प्रदेश के 15 स्थानों
के नाम बदल दिए थे। इन नवीन नामों का प्रयोग चीन अपने
आधिकारिक चीनी दस्तावेजों और मानचित्रों में करेगा। इन मानचित्रों में अरुणाचल को
"दक्षिण तिब्बत" के रूप में दिखाया
जाता है। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2017 में चीन ने पहली बार अरुणाचल
प्रदेश के छह स्थानों के लिए "आधिकारिक"
नाम जारी किए थे। भारत द्वारा
चीन के इस कदम पर आपतति दर्ज करते हुए कहा गया है कि "आविष्कृत नामों को निर्दिष्ट करने" से जमीन
स्तर पर कोई भी परिवर्तन नहीं होने वाला है क्योंकि अरुणाचल प्रदेश भारत का अभिन्न
अंग है।
हालिया विवाद के मुद्दे 1.
चीन द्वारा अरुणाचल
प्रदेश के 15 स्थानों का नया नामकरण किया गया तथा इस क्षेत्र पर कथित रूप से को चीन
द्वारा अपना अधिकार क्षेत्र होने का दावा किया गया। 2.
चीन द्वारा सीमा
सुरक्षा, सीमा निर्धारण,
सीमा प्रबंधन तथा व्यापार से संबंधित नवीन सीमा कानून लाया गया जो
1 जनवरी 2022 से लागू है जो हैं। यह कानून
चीन के सैन्य, नागरिक अधिकारियों को राष्ट्रीय संप्रभुता की
रक्षा हेतु आवश्यक कदमों को उठाने में सशक्त करती है। 3.
चीन द्वारा
भारत के केंद्रशासित प्रदेश लद्दाख में स्थित पैंगोंग त्सो झील पर पुल का निर्माण
किया जा रहा है जबकि इस क्षेत्र पर भारत अपना दावा करता रहा है। |
चीन के नवीन सीमा कानून संबंधी चिताएं
यह कानून चीन द्वारा सीमावर्ती क्षेत्रों में आर्थिक, सामाजिक
एवं बुनियादी ढांचे संबंधी कार्यों को प्रोत्साहित करेगा। इसके माध्यम से चीन सीमा
पर और अधिक माडल गांवों को बसाने का काम कर सकता है जिनका उपयोग सैन्य और नागरिक
दोनों उद्देश्यों के लिए कर सकता है।
चीन का नया भूमि सीमा कानून चीनी सेना
को ‘‘आक्रमण, अतिक्रमण, घुसपैठ और उकसावे’’ के विरुद्ध कदम उठाने और चीनी क्षेत्र की रक्षा करने का पूर्ण उत्तरदायित्व
सौंपता है।
भारत चीन सीमा पर पिछले लगभग 2 वर्षो से निरंतर विवाद
की स्थिति बनी हुई है। वर्तमान में चीन ने विश्व के अधिकांश देशों के साथ सीमा विवाद
को सुलझा लिया है परंतु वह भारत के साथ सीमा विवाद को नहीं सुलझा रहा है। इस प्रकार
चीन की यह मंशा लगती है कि वह सीमा विवाद सुलझाना नहीं चाहता।
नए भूमि सीमा कानून के अनुच्छेद 7 के प्रावधानों के
अनुसार चीन द्वारा अरुणाचल प्रदेश के 15 स्थानों का नया नामकरण
किया गया तथा इस क्षेत्र पर कथित रूप से अपना अधिकार क्षेत्र होने का दावा किया गया।
प्रभाव
- वैश्विक शक्तियों के हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में बढ़ते प्रभाव के परिपेक्ष्य में चीन का यह कदम तनावों
को बढ़ा सकता है।
- चीन द्वारा भारत तथा भूटान के कई क्षेत्रों पर अनाधिकृत क्लेम किया गया है तथा चीन का यह नया कानून चीन के सेना द्वारा किए जा रहे गैर कानूनी गतिविधियों को विधिक सहायता देगा तथा इससे हो सकता है सीमा प्रबंधन पर द्विपक्षीय तनाव की स्थिति उत्पन्न हो जाए।
- चीन द्वारा नया सीमा कानून लागू करने से आने वाले समय में भारत को उत्तरी सीमा पर और अधिक चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। इसके बाद चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा पर मौजूदा विवादित स्थानों को लेकर और अडि़यल रुख अपना सकता है ।
- इस कानून के तहत चीन सीमावर्ती इलाकों में अपनी दखल बढ़ाने के प्रयासों के तहत वहां आम लोगों को बसाने की तैयारी कर रहा है जिसके बाद वैसी किसी भी दूसरे देश के लिए इन इलाकों में सैन्य कार्रवाई और मुश्किल हो जाएगी।
- भारत पर दबाव बढ़ाने की रणनीति के तहत चीन ने जहां हाल में भूटान के
साथ आपसी सीमा विवाद को सुलझाने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं, वहीं पड़ोसी देश नेपाल और बांग्लादेश में उसकी
बढ़ती सक्रियता भी सरकार की चिंता बढ़ा रही है।
- नया कानून भारत तथा भूटान क्षेत्र में दावा किए गए चीनी क्षेत्र को अधिकृत करने हेतु में चीनी सेना तथा राज्य को विधिक सहायता प्रदान करेगा जिससे विवाद की स्थिति भी उत्पन्न हो सकती है।
- भारत तथा चीन दोनों परमाणु शक्ति संपन्न देश है तथा भारत-चीन के बीच आक्रामक सीमा विवाद भयानक युद्ध में परिणत
हो सकता है।
- भारत चीन के मध्य बढ़ते विवादों से देशों के आर्थिक व्यापार एवं संबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव डालरहे हैं जो दोनों विकासशील देशों के लिये अच्छा संकेत नहीं है।
भारत-चीन
के शांति प्रयास एवं विवाद सुलझाने हेतु तंत्र |
|
पंचशील सिद्धांत |
आपसी विश्वास, शांति बहाली को समर्थित जिसके तहत भारत ने तिब्बत
को चीन का भाग माना । |
एकमुश्त समझौता |
सीमा विवाद सुलझाने के मामले पर चीन द्वारा एकमुश्त समझौते
के तहत प्रस्ताव लाया गया था कि अक्साई चीन को भारत चीन का भाग मान ले तो मैकमोहन
लाईन पर चीन विवाद नहीं करेगा। |
ज्वाइंट वर्किग ग्रुप |
बार्डर को नक्शे के द्वारा सुलझाने का प्रयास किन्तु इसमें पूर्वी क्षेत्र(अरुणाचल
प्रदेश) तथा पश्चिमी क्षेत्र (जम्मू
कश्मीर) की उपेक्षा की गयी । |
विशेष प्रतिनिधि दल तथा WMCC |
आपसी संवाद के द्वारा सीमा विवाद का हल का प्रयास। इसके अलावा अनेक
अवसरों पर भारत-चीन के बीच प्रतिनिधिमंडल स्तर की वार्ता। वर्ष 2003 2005,
2016 में दोनों देशों के मध्य सीमा विवाद मुद्दे पर विशेष
प्रतिनिधि वार्ता हुई थी। |
भारत-चीन के सीमा विवाद को
सुलझाने हेतु संभावित प्रयास
गलवान
घाटी में हुई झड़प से दोनों देशों के बीच फिर से तनाव पैदा हुआ तथा दोनों देशों के
मध्य 1993 से चल रहे विश्वास बहाली प्रक्रिया को अघात पहुंचा।
उल्लेखनीय है कि 1993 से 2013 के मध्य सीमा पर तनाव कम करने हेतु 5
समझौतो पर दोनों देशों द्वारा हस्ताक्षर किए गए थे। 2020
में मास्को में ‘शंघाई सहयोग संगठन’ बैठक में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर तनाव को कम करने के लिये पाँच सूत्रीय
योजना को लागू करने पर सहमति व्यक्त की गई। उपरोक्त व्यवस्थाओं
के बाद भी भारत-चीन के बीच यदा-कदा
डोकलाम, गलवान घाटी जैसे सीमा विवाद आदि विवाद होते रहते हैं।
वर्तमान हालात तथा चीन
द्वारा बनाए गए नए सीमा कानून से चीन और भारत के रिश्ते जल्द ही फिर से पटरी पर आते
मुश्किल लग रहे हैं। इन हालात में चीन से बिगड़ते
संबंधों के बीच भारत के पास सीमा विवाद सुलझाने तथा चीन के प्रति संतुलन बनाने के
प्रयासों में तेजी लानी होगी। भारत
तथा चीन के मध्य सीमा विवाद को सुलझाने हेतु निम्न प्रयास किए जा सकते है।
- नियमित संवाद, आपसी मतभेद तथा सीमा
विवाद हल हेतु संवाद-तंत्र ।
- किसी विवाद, युद्ध् जैसी हालात
में तत्काल संवाद हेतु हॉट लाईन ।
- दोनों देशों को राजनेताओं को रणनीतिक मार्गदर्शन
का पालन करना चाहिये।
- भारत व चीन को अंतर्राष्ट्रीय तथा क्षेत्रीय मामलों पर समन्वय को बढ़ाना चाहिये।
- विवादों के समाधान हेतु शंघाई सहयोग
संगठन जैसे क्षेत्रीय मंचों के माध्यम से सीमा विवाद पर समाधान।
- भारत एवं चीन को मैत्रीपूर्ण सहयोग एवं संबंधों को विकसित करने पर बल ।
- आपसी विश्वास की बहाली हेतु हैंड-इन-हैंड जैसे सैन्यभ्यासों को प्रभावी बनाया जाए।
- अंतर्राष्ट्रीय मंचों के माध्यम से चीन पर सीमा विवाद सुलझाने हेतु दबाव बनाए जाने हेतु भारत को प्रयास करना चाहिए।
पिछले कुछ वर्षों में चीन की नीतियों में आए आक्रमकता का कारण चीन विश्व महाशक्ति बनाना चाहता है
लेकिन भारत उसकी राह में एक बाधा है। अतः इस प्रकार की कार्यवाही को कर न केवल
भारत को परेशान करने की कोशिश करता है बल्कि वह संदेश देना चाहता है कि एशिया की
वह सबसे बड़ी शक्ति है। भारत
द्वारा जम्मू कश्मीर की वैधानिक स्थिति को बदलकर चीन व
पाकिस्तान के कब्जे से भारत की भूमि वापस लेने की बात कई बार दोहराई गई जिससे पाकिस्तान व चीन को डर है कि भारत अपनी
भूमि को वापस प्राप्त करने हेतु कोई बड़ी सैनिक कार्रवाई कर सकता है। अतः तनाव
पैदा करने हेतु चीन द्वारा यह साजिश रची गई । इसी समय नेपाल द्वारा कालापानी
भूमि विवाद उठाया गया तथा पाकिस्तान द्वारा भी इस समय सीमा पर तनाव बढ़ाया गया था।
2017 में डोकलाम
विवाद के समय भारत द्वारा चीन को मुंहतोड़ जवाब
दिया था जिसके फलस्वरूप चीन बौखलाया हुआ था और इसी का बदला लेने के लिए उसके
द्वारा ऐसा किया गया है । कोविड 19 पर विश्व में चीन की आलोचना, हांगकांग तथा ताइवान की मुश्किले, कम्यूनिस्ट
पार्टी के भीतर शी जिनपिंग के खिलाफ विरोध इत्यादि समस्याओं से जनता एवं विश्व
का ध्यान हटाने के लिए ऐसा किया गया। |
चीन को संतुलित करने हेतु
भारत द्वारा निम्न प्रयास किए जा सकते हैं।
- सीमाओं को परिभाषित करने, सीमांकन और परिसीमन किये जाने हेतु अंतर्राष्ट्रीय मंचों द्वारा चीन पर दबाव बनाएं।
- शक्ति संतुलन हेतु भारत को अपनी रक्षा/सैन्य शक्ति बढ़ानी
चाहिए।
- बहुध्रुवीय विश्व की स्थापना ताकि चीन की साम्रज्यवादी सोच पर अंकुश ।
- अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर चीन की साम्राज्यवादी नीति का विरोध की नीति।
- वर्तमान परिदृश्य में पश्चिमी देशों से चीन की बढ़ती दूरी का भारत लाभ उठाए।
- सांस्कृतिक, धार्मिक संबंधों द्वारा
भारत को चीन तथा पड़ोसी देशों में आपनी साफ्ट पावर बढ़ाने हेतु उपाए।
- चीन के साथ व्यापार घाटे को कम करने हेतु भारतीय सेवा क्षेत्र की भूमिका बढ़ाया जाए।
- भारत अपने विनिर्माण
क्षेत्र को मजबूत करने के साथ चीन पर आर्थिक निर्भरता, आयात कम करने हेतु
प्रयास।
- भारत को इलेक्ट्रोनिक्स
क्षेत्र के श्रेष्ठता हसिल करने हेतु मेक इन इंडिया, स्टार्ट अप को बढ़ावा दिया जाए।
- भारत क्षेत्रीय मंचों जैसे
सार्क,
आसियान आदि के साथ समन्वय, सहयोग एवं भागीदारी को बढ़ाए।
- एक्ट ईस्ट नीति के और प्रभावी क्रियान्वयन पर प्रयास।
- जैसे को तैसा जवाब देते
हुए CPEC मामले में भारतीय संप्रभुता के प्रति चीन की उदासीनता का जवाब देने हेतु
भारत द्वारा वन चाइना नीति के प्रति उदासीनता बरती जाए।
- दक्षिणी चीन सागर के वैसे
देशों जिनके साथ चीन का विवाद है जैसे ताइवान, फिलीपिंस, जापान
आदि के साथ संबंधों एवं सहयोग को बढ़ाया जाए।
भारत द्वारा चीन को प्रतिसंतुलित करने हेतु उठाए गए कदम
|
भारत
और चीन के बीच वर्तमान हालातों को देखते हुए समस्याओं को अल्पावधि में हल किया जाना
कठिन है फिर भी दोनों देशों द्वारा वर्तमान विवादों पर विराम लगाने,
मतभेदों को कम करने और यथास्थिति बनाए रखने जैसे उपायों को किया जा
सकता है ताकि आनेवाले समय के साथ आपसी संबंधों को और बेहतर बनाया जा सके।
भारत-चीन संबंध के विभिन्न आयाम को आपने पढ़ा । इस वेवसाइट पर इसी प्रकार के लेख आते रहते हैं जो प्रतियोगी परीक्षाओं हेतु अत्यंत प्रासंगिक एवं महत्वपूर्ण होते हैं। आप चाहे तो हमे सबसक्राइब भी कर सकते हैं ताकि जब भी कोई नया पोस्ट डाला जाए तो आपको इसकी सूचना मिल जाए ।
मुख्य परीक्षा के लिए संपूर्ण नोट्स के माध्यम से भी पढ़ कर अपनी तैयारी कर सकते हैं ज्यादा जानकारी के लिए आप 74704-95829 पर कॉल कर सकते है ।
No comments:
Post a Comment