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Oct 3, 2022

कृषक आंदोलन एवं स्वामी सहजानंद

 

कृषक आंदोलन एवं स्वामी सहजानंद

बिहार का कृषक आंदोलन ब्रिटिश शासन एवं उसके संरक्षण में पल रहे जमींदारों, देसी रजवाड़ों के आर्थिक शोषण चक्र के विरूद्ध केंद्रित आंदोलन था। तत्कालीन  जमींदारी व्यवस्था से भूमि का केंद्रीयकरण बढ़ा तथा एक नया वर्ग जमींदारों के रूप में उभरा जिसके कारण कृषको के शोषण में वृद्धि हुई। इसी क्रम में ब्रिटिश शासन की नीतियां कृषक विरोधी होने के कारण आंदोलन की पृष्ठभूमि तैयार होने लगी।

कृषक आंदोलन के कारण

  1. लगान की दर अधिक होना।
  2. लगान वसूली के तरीके कठोर एवं अमानवीय।
  3. कृषि सुधार के प्रति ब्रिटिश शासन एवं जमींदारों की उदासीनता।
  4. महाजनी ऋण जाल।
  5. भ्रष्ट पुलिस प्रशासन द्वारा किसानों का शोषण।
  6. आपातकाल के समय किसानों हेतु राहत एवं छूट की व्यवस्था का अभाव।
  7. कृषि का अलाभकर कर होना, कृषि का वाणिज्यकरण।
  8. तत्कालीन आर्थिक मंदी एवं वामपंथ का उदय होना ।

कृषक आंदोलन  की पृष्ठभूमि

बिहार में कृषक आंदोलन की शुरुआत 1917 के चंपारण कृषक आंदोलन से हुई जहां महात्मा गांधी के प्रयासों से चंपारण में कृषकों को नीलहे गोरे बागान मालिकों की अवैध वसूली एवं तीन कठिया प्रणाली से मुक्ति मिली । चंपारण से बिहार के अन्य क्षेत्रों के किसानों को भी शोषण के विरुद्ध संगठित होने की प्रेरणा मिली । 1919 के मध्य में कृषक स्वामी विद्यानंद के नेतृत्व में दरभंगा राज के विरुद्ध संगठित विद्रोह हुए हालांकि दरभंगा राज द्वारा कुछ मांगों को मान लिए जाने के कारण कालांतर में यह आंदोलन शिथिल पड़ गया ।

बिहार में कृषक आंदोलन

1922-23 में मुंगेर में किसान सभा का गठन शाह मोहम्मद जुबेर और श्री कृष्ण सिंह द्वारा किया गया किंतु किसान आंदोलन को नई ऊर्जा स्वामी सहजानंद के नेतृत्व से मिली जब उन्होंने मार्च 1928 को किसान सभा की औपचारिक रूप से स्थापना की । 1929 से कृषक आंदोलन की गतिविधियों में तेजी आई और यह आंदोलन व्यापक स्तर पर संचालित होने लगा ।

इस आंदोलन की बढ़ती लोकप्रियता से जमींदार वर्ग चिंतित हुआ और इसके दमन के लिए सरकार पर दबाव बनाने लगा। इसी उद्देश्य से एक राजनीतिक दल यूनाइटेड पॉलिटिकल पार्टी का गठन हुआ । इसी क्रम में किसान सभा की लोकप्रियता दिनोंदिन बढ़ती जा रही थी तथा 1936 में इसकी सदस्य संख्या 2.5 लाख तक पहुंच गई। किसान सभा के संगठन को बिहार में फैलाने वाले प्रमुख नेताओं में कार्यानंद शर्मा, राहुल सांकृत्यायन,पंचानन शर्मा, यदुनंदन शर्मा आदि प्रमुख हैं ।

कृषक आंदोलन एवं कांग्रेस

किसान आंदोलन की लोकप्रियता से कांग्रेस का ध्यान भी कृषक समस्याओं की तरफ आकर्षित हुआ । कांग्रेस एवं किसान सभा के मध्य कुछ समय के लिए तालमेल भी हुआ और 1937 के चुनाव के पूर्व दोनों में समझौता हुआ जिसके तहत कांग्रेस ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में किसानों की समस्याओं पर चर्चा की । चुनाव उपरान्त बिहार में कांग्रेस मंत्रिमंडल की स्थापना हुई तो किसान समस्याओं के प्रति कांग्रेस मंत्रिमंडल ने उदासीनता दिखाई जिसके कारण से दोनों में मतभेद हो गए । इस तनाव के कारण चंपारणसारण, मुंगेर की जिला कांग्रेस समितियों ने अपने सदस्यों को किसान सभा के जुलूस में भाग लेने से रोक दिया।

बकाश्त जमीन की वापसी का मुद्दा किसान सभा और कांग्रेस मंत्रिमंडल के बीच विवाद का मुद्दा बना इसके फलस्वरूप बढ़िया ताल के इलाके के किसानों द्वारा कार्यानंद शर्मा के नेतृत्व में जमींदारी उन्मूलन की मांग को लेकर आंदोलन प्रारंभ किया गया । गया में अभिनंदन शर्मा तथा अलवारी में राहुल सांकृत्यायन में किसान आंदोलन को नेतृत्व प्रदान किया । कांग्रेस की उदासीनता के कारण किसानों का झुकाव साम्यवाद के प्रति हुआ स्वयं स्वामी सहजानंद ने भी साम्यवाद में रुचि दिखाई ।

बकाश्त जमीन के सवाल पर आंदोलन 1938-39 तक अपने शीर्ष पर पहुंच चुका था लेकिन 1939. में सरकार द्वारा घोषित सुविधाएं, नए कानून और लगभग 6000 कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी से यह आंदोलन थम सा गया था । कुछ इलाकों में 1945 में किसानों की मांग फिर से उठाई गई और उनका आंदोलन तब तक जारी रहा जब तक जमीदारी प्रथा समाप्त ना हो गई ।

आलोचना

इस आंदोलन में स्वामी सहजानंद द्वारा ब्रिटिश सरकार के साथ-साथ जमींदार एवं जमीदारी प्रथा दोनों का विरोध किया जा रहा था। उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय आंदोलन के समय जमींदारों को अपना निशाना बनाना समय की मांग नहीं थी । यही कारण था कि कृषक हित में जमींदारों के विरुद्ध किसी बड़े कदम उठाने से कांग्रेस परहेज करती रही फलतः कांग्रेस और किसान सभा में मतभेद होते रहे ।

यह सत्य है कि स्वामी सहजानंद ब्रिटिश राज्य के साथ-साथ जमीदारी विरोधी आंदोलन भी चला रहे थे जो राष्ट्रीय आंदोलन की रणनीति से मेल नहीं खाती थी लेकिन उनका मूल उद्देश्य था शोषित एवं पीड़ित किसानों की शोषणकारी व्यवस्था से मुक्ति। अतः उनके आंदोलन तथा योगदान को भुलाया नहीं जा सकता।

भारत के किसान आंदोलन में स्वामी सहजानंद की भूमिका महत्वपूर्ण है उन्होंने न केवल कृषक आंदोलन को संगठित किया बल्कि इसे नई दिशा एवं ऊर्जा देकर किसानों की समस्याओं को अखिल भारतीय स्वरूप दिया मामलों को राष्ट्रीय स्तर पर उठाया ।

मूल्यांकन

यद्यपि यह आंदोलन आजादी पूर्व तक अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने में सफल नहीं हो सका क्योंकि ना तो जमींदारी प्रथा का उन्मूलन हो पाया और ना ही ग्रामीण ऋणग्रस्तता का स्थाई समाधान हो पाया । फिर भी इस आंदोलन ने कृषकों में अपने अधिकारों के प्रति जागरूकता लाने, वर्ग चेतना का संचार करने तथा आजादी बाद होने वाली  जमीदारी उन्मूलनकृषि सुधारभूमि सुधारों की महत्वपूर्ण पृष्ठभूमि तैयार करने में मुख्य भूमिका निभाई।

बिहार लोक सेवा आयोग मुख्‍य परीक्षा संबंधी अन्‍य महत्‍वपूर्ण लेख पर इस लिंक के माध्‍यम से जाएं। 

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