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Oct 4, 2022

भारतीय संविधान में संशोधन

भारतीय संविधान में संशोधन की श्रेणियां  

आज के पोस्‍ट के माध्‍यम से भारतीय संविधान एवं राजव्‍यवस्‍था में भारतीय संविधान में संशोधन संबंधी महत्‍वपूर्ण जानकारी  प्राप्‍त करेंगे ।इसी प्रकार के अन्‍य महत्‍वपूर्ण लेख नीचे दिए गए लिंक के माध्‍यम से पढ़ सकते है।

भारतीय संविधान एवं राजव्‍यवस्‍था 

26 जनवरी 1950 को संविधान लागू होने के बाद जनवरी 2019 तक इसमें 103 संशोधन किए जा चुके है जो संशोधन प्रक्रिया की कठोरता को देखते हुए संशोधनों की यह संख्या बड़ी मानी जाएगी। भारतीय संविधान में किए गए संशोधनों को देखा जाए तो तीन श्रेणियों में बाँटा जा सकता है।


1.तकनीकी या प्रशासनिक प्रकृति वाले संशोधन

इस श्रेणी में उन संशोधनों को शामिल किया जा सकता है जो संविधान के मूल उपबंधों को स्पष्ट बनाने, उनकी व्याख्या करने तथा छिटपुट संशोधन से संबंधित हैं तथा इन संशोधनों से संविधान के उपबंधों में कोई विशेष बदलाव नहीं और और केवल तकनीकी भाषा में संशोधन कहा जा सकता है जिसे निम्‍न उदाहरणों से समझा जा सकता है-

  1. 15वें संशोधन द्वारा उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की सेवानिवृत्ति आयु सीमा को 60 वर्ष से बढ़ाकर 62 वर्ष करना । 
  2. सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों का वेतन बढ़ाने संबंधी 54वाँ संशोधन ।
  3. विधायिकाओं में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के सीटों के आरक्षण संबंधी उपबंधों में संशोधन करते हुए प्रत्येक दस वर्षों की समाप्ति पर एक संशोधन द्वारा अगले 10 वर्षों के लिए बढ़ाना जाना जिससे मूल उपबंधों में कोई अंतर नहीं आया है।
  4. मूल संविधान में यह प्रावधान था कि भारत की संसदीय व्यवस्था में राष्ट्रपति सामान्यतः मंत्री परिषद् की सलाह के अनुसार कार्य करेगा जिसमें अनुच्छेद 74 (1) के माध्‍यम से संशोधन करते हुए यह स्पष्ट कर दिया गया कि मंत्री परिषद् की सलाह राष्ट्रपति के लिए बाध्यकारी होगी।  इस प्रकार इस संशोधन को स्थापित परंपरा की निरंतरता के रूप में देखा जा सकता है यानी इस संशोधन में केवल संवैधानिक उपबंधों की व्याख्या की गई है।

2.संविधान की विभिन्न व्‍याख्‍या के कारण होनेवाले संशोधन

संविधान की व्याख्या को लेकर न्यायपालिका और सरकार के बीच अकसर मतभेद होते रहते हैं और अनेक संशोधन इन्हीं मतभेदों की उपज के रूप में देखे जा सकते हैं।

प्रजातंत्र में विभिन्न संस्थाएँ संविधान और अपनी शक्तियों की अपने-अपने तरीके से व्याख्या करती हैं तथा इस तरह के टकराव होने पर संसद अपने अनुसार तथा न्‍यायपालिका अपनी व्‍याख्‍या देती है। संसद जहां कई बार संशोधन के माध्‍यम से संविधान की किसी व्याख्या को प्रामाणिक सिद्ध करती है तो कई बार संसद इन न्यायिक व्याख्याओं से सहमत नहीं होती और उसे न्यायपालिका के नियमों को नियंत्रित करने के लिए संविधान में संशोधन करना पड़ता है ।

  1. मौलिक अधिकारों और नीति निर्देशक सिद्धांतों को लेकर संसद और न्यायपालिका के बीच होनेवाले मतभेद
  2. 1970 से 1975 के काल में संसद ने न्यायपालिका की प्रतिकूल व्याख्या को निरस्त करते हुए बार-बार किए जाने वाले संशोधन को देखा जाए तो वह संसद तथा न्यायपालिका के बीच उठने वाले विवादों को बताता है ।

3.राजनीतिक आम सहमति द्वारा होनेवाले संशोधन

अनेक संविधान संशोधन ऐसे हैं जो तत्कालीन राजनीतिक दर्शन और समाज की आकांक्षाओं को समाहित करने के लिए राजनीतिक दलों की आपसी सहमति के फलस्‍वरूप होते हैं ।

1984 के बाद किए गए राजनीतिक उथल-पुथल के दौर में अनेक संशोधन इसी श्रेणी में रखे जा सकते हैं क्‍योंकि यह गठबंधन सरकार का काल था और इसके इन काल के संशोधनों के पीछे राजनीतिक दलों की आम सहमति काम कर रही थी।

  1. दल बदल विरोधी कानून से संबंधित 52वें संशोधन ।
  2. मताधिकार की आयु को 21 से 18 वर्ष करने हेतु 61वाँ संशोधन।
  3. स्‍थानीय स्‍वशासन की दिशा में 73वाँ और 74वाँ संशोधन इसी सहमति के फलस्‍वरूप हुए किए गए।

इस प्रकार उपरोक्‍त संशोधनों को देखा जाए तो स्‍पष्‍ट होता है कि इन संविधान संशोधनों के पीछे मुल कारण केवल राजनीतिक सोच या संवैधानिक संस्‍थाओं के टकराव नहीं बल्कि तत्‍कालीन आवश्‍यकताओं और जन आकांक्षाओं के हितों को साधने वाले तत्‍व भी मौजूद है जो तत्‍कालीन समय की जरूरतों के अनुसार किए गए ।

संविधान में इतनी बड़ी संख्‍या में संशोधन क्‍यों ?  

26 जनवरी 1950 को संविधान लागू होने के बाद जनवरी 2019 तक इसमें 103 संशोधन किए जा चुके है जो संशोधन प्रक्रिया की कठोरता को देखते हुए संशोधनों की यह संख्या बड़ी मानी जाएगी।

संविधान के पहले दशक को छोड़कर शेष दशकों में देखा जाए तो संविधान संशोधनों की एक धारा सी बहने लगती है। हांलाकि 1970 से 1990 तक के दशकों के दौरान संविधान में बड़े स्तर पर संशोधन हुए फिर भी भारत के राजनीतिक इतिहास में निमन दो कालखंड बहुत महत्त्वपूर्ण हैं।

  1. संविधान में 1974 से 1976 बीच तीन वर्ष के अंतराल में दस संवैधानिक संशोधन किए गए तथा इस समय कांग्रेस भारी बहुमत के साथ सत्ता में थी तथा अधिकांश राज्य विधान सभाओं में भी वह बहुमत की स्थिति में थी। ।
  2. 2001 से 2003 तक तीन वर्षों के दौरान भी दस संवैधानिक संशोधन किए गए जो गठबंधन की राजनीति का काल माना जाता है। यह एक ऐसा भी काल था जिसमें विभिन्न राज्यों में अलग-अलग दलों की सरकारें काम कर रही थीं।

भारतीय संविधान में संशोधनों की संख्या को लेकर हमेशा आलोचना होती रही और कहा जाता है कि भारतीय संविधान में बहुत अधिक संशोधन किए गए हैं। हांलाकि  संविधान संशोधनों के पीछे केवल राजनीतिक सोच ही प्रमुख नहीं रही बल्कि  बल्कि ये संशोधन समय की जरूरतों के अनुसार तत्‍कालीन आवश्‍यकताओं और जन आकांक्षाओं को ध्‍यान में रख कर किया गया । 

मुख्‍य परीक्षा हेतु उपयोगी अन्‍य महत्‍वपूर्ण लेख का लिंक 

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