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Oct 4, 2022

बिहार में पाश्चात्य शिक्षा का विकास

 

बिहार में पाश्चात्य शिक्षा का विकास

इस पोस्‍ट में आप बिहार में पाश्‍चात्‍य शिक्षा के विकास से संबंधित लेख को पढ़ सकते हैं जो बिहार लोक सेवा आयोगी की परीक्षा हेतु उपयोगी है । इसी प्रकार के अन्‍य लेख को आप नीचे दिए गए लिंक के माध्‍यम से पढ़ सकते हैं । 

बिहार विशेष-मुख्‍य परीक्षा 

भारतीय शिक्षा प्रणाली का इतिहास देखा जाए तो बिहार का नाम ऐसे राज्यों में शुमार होता है जहां के नालंदा, विक्रमशिला, ओदंतपुरी प्राचीन काल में तथा पटना, बिहार शरीफ, भागलपुर आदि में मध्यकाल में शैक्षणिक गतिविधियों के महत्वपूर्ण केन्द्र रहे ।हांलाकि समय के साथ-साथ शैक्षणिक केन्द्र के रूप में धीरे-धीरे इनका अवसान होता गया और जब आधुनिक काल में जब भारत में औपनिवेशिक शासन का आगमन हुआ ।

बिहार एवं पाश्चात्य शिक्षा

औपनिवैशिक शासन के आरंभ होने के बाद बिहार की शिक्षा व्यवस्था में व्यापक बदलाव आए और पाश्चात्य शिक्षा का एक नया अध्याय प्रारंभ हुआ । इस क्रम में बिहार में अनेक शैक्षणिक संस्थाओं का गठन किया गया जिसने न केवल बिहार की जनता में बौद्धिक जागरूकता का प्रसार हुआ बल्कि इसके माध्यम से राजनीतिक चेतना भी आयी। भारत में औपनिवैशिक शासन का एक लम्बा दौर चला और इस दौर में बिहार में पाश्चात्य शिक्षा का विकास अनेक चरणों में हुआ जिसे निम्न तथ्यों से समझा जा सकता है-

पाश्चात्य शिक्षा का विकास- प्रथम चरण

बिहार में पाश्चात्य शिक्षा के विकास में 1835 का वर्ष एक महत्वपूर्ण बिन्दु माना जाता जब लार्ड विलियम बैंटिक के प्रयास से 1835 में अंग्रेजी शिक्षा हेतु कोष आवंटन किया गया तथा मैकाले प्रस्ताव के अनुरूप पटना, पूर्णिया, बिहार शरीफ, भागलपुर, आरा, छपरा आदि में जिला स्कूल तथा सरकारी सहायता प्राप्त उच्च विद्यालय स्थापित स्थापित किया गया ।

इसी क्रम में 1863 में देवधर, हजारीबाग, मोतिहारी, चाईबासा में भी जिला शिक्षा केन्द्र स्थापित किए गए। औपनिवैशिक काल में स्थापित ये जिला स्कूल कालांतर में पश्चिमी शिक्षा के एक महत्वपूर्ण केन्द्र बने जिनके माध्यम से बिहार में पश्चिमी शिक्षा का प्रसार हुआ ।

बिहार में पाश्चात्य शिक्षा का विकास- द्वितीय चरण

पाश्चात्य शिक्षा के विकास का दूसरा दौर 1854 के चार्ल्स वुड के वुड डिस्पैच से आरंभ होता है इसेभारतीय शिक्षा का मैग्नाकार्टाकहा गया । इसमें व्यावसायिक के साथ-साथ तकनीकी शिक्षा पर भी बल दिया गया।

हांलाकि इस दौर में बिहार में व्यावसायिक एवं तकनीकी शैक्षणिक केन्द्र के बजाय उच्च शिक्षण संस्थान ज्यादा स्थापित किए गए और जो व्यावसायिक एवं तकनीकी शैक्षणिक केन्द्र स्थापित हुए उनमें राज्य के बजाए निजी व्यक्तियों की भूमिका अधिक महत्वपूर्ण रही।

तकनीकी क्षेत्र में कृषि अनुसंधान को बढ़ावा देने हेतु 1902 में हेनरी फिलिप द्वारा पूसा एग्रीकल्चरल रिसर्च सेंटर एंड एक्सपरिमेंट फार्म की स्थापना हुई। उल्लेखनीय है कि इस चरण में मुख्य रूप से तकनीकी शिक्षा के केन्द्र स्थापित किए जाने थे किन्तु बिहार में इसका प्रभाव सीमित रहा ।

उच्च शिक्षा की बात की जाए तो इस संदर्भ में बिहार में अनेक संस्थान स्थापित किए गए। इस क्रम में 1863 में पटना कॉलेज स्थापित हुआ जो आज भी उच्च शिक्षा हेतु उत्कृष्ट संस्थान माना जाता है। इसके बाद मुंगेर, रांची, मुजफ्फरपुर, हजारीबाद आदि स्थानों पर कॉलेज स्थापित किए गए ताकि औपनिवेशिक शासन हेतु उच्च शिक्षित, कुशल तथा प्रशिक्षित भारतीय श्रमबल पैदा हो ।


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बिहार में वुड्स डिस्पैच

कुछ अपवादों को छोड़कर बिहार में वुड्स डिस्पैच केवल उच्च शिक्षा तक सीमित रहे। इसके अलावा देखा जाए तो बिहार तत्कालीन समय में बंगाल का एक प्रांत था और इस कारण भी बिहार में पाश्चात्य शिक्षा बाधित रहा क्योंकि शिक्षण संस्थानों की स्थापना में बंगालियों का प्रभुत्व होता था और शिक्षण संस्थान की स्थापना में बंगाली अपने क्षेत्र बंगाल को प्राथमिकता देते थे।

जब बंगाल प्रांत में अंग्रेजी शिक्षा तथा संस्कृत शिक्षा हेतु 2 कॉलेज स्थापित करने का निर्णय हुआ तो दोनों ही कॉलेज बंगाल में स्थापित हुए जबकि संस्कृत शिक्षा हेतु प्रस्तवित कॉलेज तिरहुत, बिहार में स्थापित किया जाना था। कालांतर में जब बिहार पृथक प्रांत बना तो 1917 में पटना विश्वविद्यालय की स्थापना हुई जो पश्चिमी तर्ज पर स्थापित बिहार में पहला विश्वविद्यालय माना जाता है।

बिहार में पाश्चात्य शिक्षा का विकास- तृतीय चरण

इस चरण का आरंभ यदि देखा जाए तो 1917 से माना जा सकता है जब सैडलर आयोग ने व्यावहारिक विज्ञान एवं तकनीकी शिक्षा हेतु व्यवसायिक कॉलेज तथा डिग्री की उपाधि हेतु कॉलेज खोलने संबंधी प्रस्ताव दिया। इस चरण में शिक्षा के क्षेत्र में निम्न संस्थान स्थापित किए गए-

  1. 1917 में पटना विश्वविद्यालय
  2. 1925 में पटना मेडिकल कॉलेज
  3. 1926 गवर्नमेंट आयुर्वेदिक स्कूल
  4. 1926 में इंडियन स्कूल ऑफ माइन, धनबाद
  5. 1928 पटना साइंस कॉलेज
  6. 1930 में पटना वेटनरी (पशु चिकित्सा) कॉलेज 
  7. पटना इंजीनियरिंग कॉलेज (वर्तमान-NIT)

बिहार में पाश्चात्य शिक्षा का विकास-नारी शिक्षा

औपनिवशिक काल में बिहार में नारी शिक्षा से संबिधित संस्थान भी स्थापित किए गए। हांलाकि इस दिशा में ज्यादा प्रगति नहीं हो पायी फिर भी इस दिशा में तत्कालीन सरकार द्वारा कुछ प्रयास किए गए।

नारी शिक्षा पर 1914 में गठित समिति की सिफारिश के आधार पर बांकीपुर में कन्या विद्यालय की स्थापना हुई।

प्रत्येक कमिश्नरी में कम से कम एक कन्या महविद्यालय खोलने का निर्णय लिया गया। पटना में सेंट जोसेफ स्कूल तथा बालिका विद्यालय की भी स्थापना की गयी।

भारतीय बुद्धिजीवी द्वारा किए गए प्रयास

औपनिवैशिक काल में भारतीय बुद्धिजीवियों एवं राष्ट्रवादियों द्वारा भी शिक्षा के क्षेत्र में प्रयास किए गए। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान राष्ट्रवादियों द्वारा न केवल विदेशी शिक्षा एवं शैक्षणिक संस्थानों का बहिष्कार किया गया बल्कि इस क्रम में वैकल्पिक शिक्षा का भी प्रबंध किया गया।

पारम्परिक एवं आधुनिक शिक्षा के बीच संतुलन स्थापित करते हुए आर्य-समाज द्वारा वैदिक शिक्षा के उद्धार हेतु डीएवी स्कूलों की श्रृंखला स्थापित की गयी । इसके अलावा ब्रह्म समाज द्वारा पटना में राजा राम मोहन राय सेमेनरी की स्थापना की गयी ।

अलीगढ़ आंदोलन से प्रेरित होकर बिहार, मुजफ्फरपुर में साइंटिफिक सोसाइटी तथा कालांतर में मोहम्मडन एजुकेशनल सोसाइटी की स्थापना पटना में की गयी।

पटना-गया रोड पर नेशनल कॉलेज की स्थापना की गयी और 1921 में बिहार दौरे पर गांधीजी ने नेशनल कॉलेज के प्रांगण में बिहार विद्यापीठ का उद्घाटन किया जिसके कुलपति मजहरूल हक बनाए गए।

पाश्चात्य शिक्षा का विकास-मूल्यांकन        

औपनिवेशिक काल की ब्रिटिश शिक्षा पद्धति ने अंग्रेजी शासन को मजबूत बनाने तथा भारत के शोषण हेतु पाश्चात्य विचारों से युक्त एक वर्ग तैयार करने का प्रयास किया । हांलाकि देखा जाए तो बहुत हद तक अंग्रेज शसन इस उद्देश्य में सफल भी रहे क्योंकि पाश्चात्य शिक्षा का इतना गहरा प्रभाव भारत पर पड़ा कि वह आज भी हमारी शिक्षा व्यवस्था में विद्यमान है फिर भी इसने तमाम नकारात्मक बातों के अलावा बिहार में नवीन एवं वैज्ञानिक सोच के विकास में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया तथा इस काल में हुए शिक्षा के विकास ने राष्ट्रीयता के उदभव के साथ-2 लोगों को जोड़ने का भी कार्य किया ।

उपरोक्त से स्पष्ट है कि औपनिवेशिक शासनकाल के दौरान पश्चिमी शिक्षा के विकास में अंग्रेज सरकार के साथ-साथ अनेक राष्ट्रवादियों तथा संस्थाओं द्वारा अपने-अपने स्तर से प्रयास किया गया जिसके फलस्वरूप बिहार में आधुनिक शिक्षा की नींव पड़ी ।

उल्लेखनीय है कि औपनिवेशिक काल में बिहार में तकनीकी एवं व्यावसायिक शिक्षा की विशेष प्रगति नहीं हुई और यही कारण है बिहार तकनीकी तथा व्यावसायिक शिक्षा के क्षेत्र में वर्षों तक अपेक्षाकृत पिछड़ा राज्य रहा । हांलकि सरकार के हलिया प्रयासों को देखा जाए तो IIT, AIIMS, IIM, NIFT, चन्द्रगुप्त प्रबंधन संस्थान, चाणक्य विधि विश्वविद्यालय आदि की स्थापना कर इस कमी को दूर करने का प्रयास किया गया है।

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