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Oct 6, 2022

भारतीय संविधान एवं राजव्‍यवस्‍था- प्रस्‍तावना

 भारतीय संविधान एवं राजव्‍यवस्‍था- प्रस्‍तावना 

आज के पोस्‍ट के माध्‍यम से भारतीय संविधान एवं राजव्‍यवस्‍था- प्रस्‍तावना संबंधी महत्‍वपूर्ण जानकारी  प्राप्‍त करेंगे ।इसी प्रकार के अन्‍य महत्‍वपूर्ण लेख नीचे दिए गए लिंक के माध्‍यम से पढ़ सकते है।

भारतीय संविधान एवं राजव्‍यवस्‍था 

किसी भी संविधान की प्रस्तावना या उद्देशिका वह महत्वपूर्ण भाग होता है जिसमें संपूर्ण संविधान का मूल उद्देश्य अभिव्यक्त होता है। भारतीय संविधान की प्रस्तावना को संविधान की आत्मा कहा गया है जो पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा पेश किये गए उद्देश्य प्रस्तावपर आधारित है।  इसमें  संविधान के उद्देश्यों के साथ-साथ इसके स्रोत, राज्य का स्वरूप, लक्षित समूह और लागू होने की तिथि का भी उल्लेख मिलता है। 42वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 द्वारा इसमें समाजवादी, पंथनिरपेक्ष और अखंडता जैसे शब्दों को सम्मिलित किया गया।

भारतीय संविधान की प्रस्तावना

हम, भारत के लोग,भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्त्व-संपन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिये तथा इसके समस्त नागरिकों को

सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय
विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता
प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त कराने के लिये तथा

उन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता तथा अखंडता सुनिश्चित करने वाली 
बंधुता बढ़ाने के लिये

दृढ़ संकल्पित होकर अपनी इस संविधान सभा में आज दिनांक 26 नवंबर, 1949 ई. को एतद् द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।


प्रश्‍न- भारतीय संविधान की प्रस्‍तावना में निहित भारतीय संविधान के स्रोत, संविधान के मूल तत्‍व तथा शासन की प्रकृति पर चर्चा करें ।

किसी भी संविधान की प्रस्तावना या उद्देशिका वह महत्वपूर्ण भाग होता है जिसमें संपूर्ण संविधान का मूल उद्देश्य अभिव्यक्त होता है। भारतीय संविधान की प्रस्तावना को संविधान की आत्मा कहा गया है जो पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा पेश किये गए उद्देश्य प्रस्तावपर आधारित है।  

संविधान का स्रोत

प्रस्तावना के अनुसार भारतीय संविधान का स्रोत समस्त जनता में निहित है। हम, भारत के लोग,....अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं। इस कथन से 3 महत्वपूर्ण तथ्य प्रतिध्वनित होती है

  1. संविधान द्वारा प्रदत्त प्रभुसत्ता अंतिम रूप से भारत की जनता में निहित है।
  2. संविधान के निर्माता भारतीय जनता के प्रतिनिधि थे।
  3. संविधान भारतीय जनता की इच्छाओं का प्रतिफल है।

इस प्रकार प्रस्‍तावना से ही संविधान के स्रोत का पता चलता है जिसमें भारत की संप्रभु जनता ने अपने प्रतिनिधियों को अपनी सपनों के भारत के निर्माण की जिम्‍मेवारी सौंपी और जब संविधान का निर्माण कार्य पूर्ण हुआ तो उसे भारत की जनता द्वारा ही इसे स्‍वीकार किया गया अपने ऊपर लागू किया गया । इस प्रकार संविधान का स्रोत भारतीय जनता में निहित है  ।

 भारतीय संविधान की प्रस्‍तावना के मूल तत्‍व

संविधान की प्रस्‍तावना को देखा जाए तो इसमें निहित मूल तत्‍वों को 4 भागों में बांटा जा सकता है जिसमें संविधान के अधिकार के स्रोत, संविधान के उद्देश्‍य, भारत की प्रकृति तथा लागू होने की तिथि शामिल है । 


प्रस्तावना के अनुसार भारतीय शासन की प्रकृति

प्रस्‍तावना के अनुसार शासन की प्रकृति को समझने के लिए इसमें निहित कुछ शब्‍दों पर ध्‍यान देना होगा जिसमें कहा गया है कि हम, भारत के लोग,भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्त्व-संपन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिये ................. संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।


इस प्रकार यहां पर भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्त्व-संपन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने की चर्चा हो रही है जो भारतीय शासन की प्रकृति को स्‍पष्‍ट करता है । 

संपूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न

इसका तात्पर्य है कि भारत ना तो किसी अन्य देश पर निर्भर है और ना ही किसी अन्य देश का डोमिनियन है। इसके ऊपर और कोई शक्ति नहीं है और यह अपने आंतरिक और बाहरी मामलों का निस्तारण करने के लिए स्वतंत्र हैं।

समाजवादी 

भारत में लोकतांत्रिक समाजवाद को अपनाया गया है जिसमें जहां सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र दोनों साथ रहते हैं। 1991 की नई आर्थिक नीति ने भारत के समाजवादी प्रतिरूप को थोड़ा लचीला बनाया है फिर भी भारतीय समाजवाद का उद्देश्य गरीबी, अपेक्षा एवं अवसर की असमानता को समाप्त करना है।

धर्मनिरपेक्ष

धर्मनिरपेक्ष शब्द का स्पष्ट रूप से संविधान में उल्लेख नहीं किया गया था तथापि संविधान निर्माता इसी प्रकार के राज्य की स्थापना करने चाहते थे। इसलिए संविधान में अनुच्छेद 25 से 28 तक धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार जोड़ा गया है। भारतीय संविधान में धर्मनिरपेक्षता की सभी अवधारणाएँ विद्यमान हैं अर्थात् हमारे देश में सभी धर्म समान हैं।

लोकतांत्रिक

भारतीय संविधान की प्रस्तावना में लोकतांत्रिक शब्द का इस्तेमाल वृहद् रूप में किया है जिसमें न केवल राजनीतिक लोकतंत्र बल्कि सामाजिक व आर्थिक लोकतंत्र को भी शामिल किया गया है। व्यस्क मताधिकार, कानून की सर्वोच्चता, न्यायपालिका की स्वतंत्रता, समानता भारतीय राजव्यवस्था के लोकतांत्रिक स्वरूप को बताते हैं।

गणतंत्र

भारतीय संविधान के अंतर्गत लोकतंत्रीय गणतंत्र को अपनाया गया है जिसका तात्पर्य है कि यहां राष्ट्राध्यक्ष निर्वाचित होता है। भारतीय गणतंत्र के संबंध मेंनिम्न बातें स्पष्ट होती है

  1. राजनीतिक संप्रभुता किसी एक व्यक्ति जैसे राजा के हाथ में होने के बजाय लोगों के हाथ में होती हैं। 
  2. किसी भी विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग की अनुपस्थिति।


प्रश्‍न- भारतीय संविधान की प्रस्‍तावना का क्‍या महत्‍व है ? संविधान के एक भाग के रूप में प्रस्‍तावना की स्थिति पर चर्चा करें ।

किसी भी संविधान की प्रस्तावना या उद्देशिका वह महत्वपूर्ण भाग होता है जिसमें संपूर्ण संविधान का मूल उद्देश्य अभिव्यक्त होता है। भारतीय संविधान की प्रस्तावना को संविधान की आत्मा कहा गया है जो पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा पेश किये गए उद्देश्य प्रस्तावपर आधारित है।  प्रस्‍तावना के महत्‍व को निम्‍न प्रकार से समझा जा सकता है


संविधान की व्‍याख्‍या एवं संदर्भ के रूप में

  1. प्रस्तावना संविधान का मूल ढांचा निर्धारित करता है अथार्त यह भारतीय संविधान की नींव है।
  2. प्रस्तावना का महत्व इस बात से भी पता चलता है कि प्रस्तावना में प्रतिबंधकारी शक्तियाँ न होते हुए भी संविधान की आत्माकहलाती है। 

भारतीय शासन की प्रकृति के निर्धारण में महत्‍वपूर्ण

  1. प्रस्तावना भारतीय शासन की प्रकृति और राज्य के स्वरूप की जानकारी देता है जिसके अनुसार भारत एक संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक और गणतांत्रिक राष्ट्र है।

संविधान के अधिकार का स्रोत तथा लागू होने की जानकारी

  1. प्रस्तावना संविधान के प्राधिकार के स्रोत की जानकारी उपलब्ध कराते हुए स्पष्ट करता है कि भारतीय जनता संप्रभु है और उसी की ओर से संविधान सभा के प्रतिनिधियों द्वारा संविधान का निर्माण एवं अंगीकार किया गया।
  2. प्रस्तावना से इस बात की जानकारी मिलती है कि संविधान के अधिकार का स्रोत भारतीय जनता है तथा भारतीय संविधान 26 नवंबर 1949 को लागू हुआ।

स्‍वतंत्रता सेनानियों के सपनों के भारत का प्रतिविम्‍ब

  1. भारतीय संविधान की प्रस्तावना को पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा पेश किया गया था जो उद्देश्य प्रस्तावपर आधारित है। इस प्रकार हमें यह बताता कि हमारे   स्‍वतंत्रता सेनानियों ने किस प्रकार के भारत निर्माण का स्‍वप्‍न देखा था ।

संविधानविद / भारतीय नेताओं के अनुसार 

  1. प्रस्तावना संविधान निर्माताओं की आकांक्षाओं, संविधान के उद्देश्य तथा राज्य से नागरिकों की अपेक्षाओं को बताता है। सर अल्लादी कृष्णस्वामी अय्यर के अनुसार-संविधान की प्रस्तावना हमारे दीर्घकालिक सपनों का विचार है।
  2. ठाकुर दास भार्गव के शब्‍दों में भारतीय संविधान की प्रस्तावना को संविधान की आत्माकहा गया है ।

न्‍यायलय के निर्णयन में मार्गदर्शक

  1. संविधान की व्याख्या करने के क्रम में प्रस्तावना मार्गदर्शक की भूमिका निभाता है।
  2. भारतीय संविधान के मूल ढांचे की पहचान में न्यायपालिका द्वारा प्रस्तावना का संदर्भ लिया जाता है। 
  3. केशवानंद भारती 1973 में सर्वोच्च न्यायालय ने प्रस्तावना को संविधान का भाग माना।
  4. सर्वोच्च न्यायालय द्वारा प्रस्तावना के महत्व को स्वीकार करते हुए यह कहा गया कि प्रस्तावना संविधान निर्माताओं के विचारों को जानने की कुंजी है।

इस प्रकार प्रस्‍तावना का अपना महत्‍व है जो संविधान का मूल्यांकन करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसलिए कहा गया है कि प्रस्तावना एक ऐसा उचित स्थान है, जहाँ से कोई भी संविधान का मूल्यांकन कर सकता है।


प्रस्तावना संविधान का भाग

संविधान सभा में जब संविधान के अन्य प्रावधानों को अंतिम रूप दे दिया गया था तो उसके बाद प्रस्तावना को अंत में संविधान सभा में प्रस्तुत किया गया जिसके बाद संविधान सभा में इसके संविधान के अंग होने या न होने पर प्रश्न उठा जिसमें संविधान सभा के सभापति डा. राजेन्द्र प्रसाद द्वारा कहा गया कि प्रस्तावना संविधान का हिस्सा है।


चूंकि संविधान में इस संबंध में स्‍पष्‍ट उल्‍लेख नहीं है इस कारण से संविधान लागू होने के बाद अनेक अवसर आए जब न्यायपालिका के समक्ष भी इस प्रकार के प्रश्न उठाए गए। हांलाकि न्यायपालिका ने आरंभ में प्रस्तावना को न तो संविधान का भाग माना और न ही न्यायालय द्वारा प्रवर्तनीय माना।


.के.गोपालन वाद 1950

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इस वाद निर्णय दिया गया कि प्रस्तावना शक्ति का स्रोत नहीं है और संविधान में प्रस्तावना को तब जोड़ा गया था जब बाकी संविधान पहले ही लागू हो गया था। 


बेरूबरी यूनियन मामला 1960

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा कहा गया कि प्रस्तावना संविधान का हिस्सा नहीं है। 


केशवानंद भारती मामला 1973

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अपने पूर्व निर्णय को पलटते हुए कहा गया कि प्रस्तावना संविधान का एक भाग है और संविधान के अनुच्छेद 368 के तहत संशोधित किया जा सकता है लेकिन इसके मूल ढांचे में परिवर्तन नहीं किया जा सकता।


इस प्रकार निष्‍कर्ष के रूप में वर्तमान स्थिति को देखा जाए तो प्रस्‍तावना संविधान का एक महत्‍वपूर्ण भाग माना जाता है  और भारतीय संविधान के भाग के रूप में इसमें संशोधन तो हो सकता है लेकिन इसके मूल स्‍वरूप में बदलाव नहीं किया जा सकता । 



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