क्षेत्रीय परिषद
भारत के
पहले प्रधान मंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने 1956 में राज्य पुनर्गठन
आयोग की रिपोर्ट पर बहस के दौरान राज्यों के बीच 'सहकारी
कार्य करने की आदत विकसित करने' के लिए क्षेत्रीय परिषदों के
निर्माण का विचार दिया गया ।
सरकार द्वारा
क्षेत्रों का निर्माण करते समय राष्ट्रीय हित से संबंधित अनेक कारकों जैसे देश का
प्राकृतिक विभाजन,
सांस्कृतिक एवं भाषायी संबंध, आर्थिक विकास,
सुरक्षा एवं कानून व्यवस्था की आवश्यकता, संचार
के साधन, नदी प्रणाली को ध्यान में रखा गया है ।
उल्लेखनीय है कि नेहरू जी द्वारा यह सुझाव ऐसे समय में दिया जब भाषाई आधार पर राज्यों के पुनर्गठन के परिणामस्वरूप भाषाई शत्रुता और कटुता राष्ट्रीय हित एवं एकता के लिए खतरा बन रही थी। अत: इस स्थिति से निपटने और राष्ट्रीय हित को सुनिश्चित करने हेतु राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 1956 के भाग-III के तहत पांच क्षेत्रीय परिषदों की स्थापना की गई थी। क्षेत्रीय परिषद अपने उद्देश्य के माध्यम से राष्ट्रीय हित को पोषित करती है ।
क्षेत्रीय परिषद का उद्देश्य
- राष्ट्रीय एकीकरण लाना ।
- तीव्र राज्य चेतना, क्षेत्रवाद,
भाषावाद और विशिष्टतावादी प्रवृत्तियों के विकास को रोकना।
- केंद्र और राज्यों को सहयोग करने और विचारों और अनुभवों का आदान-प्रदान करने में सक्षम बनाना।
- विकास परियोजनाओं के सफल और त्वरित निष्पादन के लिए राज्यों के बीच सहयोग का माहौल स्थापित करना।
|
क्षेत्रीय
परिषद |
शामिल राज्य |
1 |
उत्तरी
क्षेत्रीय परिषद |
हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, पंजाब, राजस्थान, राष्ट्रीय
राजधानी क्षेत्र दिल्ली और केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ । |
2 |
मध्य क्षेत्रीय
परिषद |
छत्तीसगढ़, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश । |
3 |
पूर्वी
क्षेत्रीय परिषद |
बिहार, झारखंड, उड़ीसा, सिक्किम और पश्चिम
बंगाल । |
4 |
पश्चिमी
क्षेत्रीय परिषद |
गोवा, गुजरात, महाराष्ट्र राज्य और दमन और दीव और दादरा
और नगर हवेली के केंद्र शासित |
5 |
दक्षिणी
क्षेत्रीय परिषद |
आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु और
केंद्र शासित प्रदेश पुडुचेरी । |
6 |
उत्तर-पूर्वी
क्षेत्रीय परिषद |
असम , सिक्किम , नागालैंड, त्रिपुरा , मणिपुर , मिजोरम , अरुणाचल प्रदेश और मेघालय |
मूल रूप से 1956 के राज्य पुनर्गठित अधिनियम के अनुसार भारत में पाँच परिषदें स्थापित की
गई । कालांतर में वर्ष 1971 में उत्तर-पूर्वी क्षेत्रीय
परिषद की स्थापना की गई तथा वर्ष 2002 में उत्तर-पूर्वी
परिषद संशोधन अधिनियम द्वारा सिक्किम को उत्तर-पूर्वी क्षेत्र के तहत रखा गया। |
क्षेत्रीय
परिषद की प्रकृति
उल्लेखनीय
है कि सलाहकारी निकाय होने के नाते क्षेत्रीय परिषदों की बैठकों में विचारों के
स्वतंत्र और स्पष्ट आदान-प्रदान की पूरी गुंजाइश होती है। क्षेत्रीय परिषद निम्न किसी भी मामले पर चर्चा कर सकती है और सिफारिशें
कर सकती है।
- आर्थिक और सामाजिक नियोजन के क्षेत्र में आम हित का कोई मामला।
- सीमा
विवाद,
भाषाई अल्पसंख्यकों या अंतर्राज्यीय परिवहन से संबंधित कोई भी
मामला।
- राज्य पुनर्गठन अधिनियम के तहत राज्यों के पुनर्गठन से संबंधित या उससे उत्पन्न कोई भी मामला ।
क्षेत्रीय परिषद का गठन एवं कार्यशैली
- क्षेत्रीय परिषद के अध्यक्ष केंद्रीय गृह मंत्री होते हैं जबकि जोन में शामिल राज्यों के मुख्यमंत्री बारी-बारी से उपाध्यक्ष के रूप में कार्य करते हैं।
- इसके सदस्यों में मुख्यमंत्री और प्रत्येक राज्य से राज्यपाल द्वारा नामित दो अन्य मंत्री और उसमें शामिल केंद्र शासित प्रदेशों से दो सदस्य होते हैं जबकि सलाहकार के रूप में योजना आयोग (अब नीति आयोग) द्वारा नामित, मुख्य सचिव और क्षेत्रीय परिषद में शामिल प्रत्येक राज्य द्वारा नामित एक अन्य अधिकारी/विकास आयुक्त होता है ।
- आवश्यकतानुसार केंद्रीय मंत्रियों को भी क्षेत्रीय परिषदों की बैठकों में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया जाता है।
इस प्रकार क्षेत्रीय परिषदें केंद्र एवं राज्यों के बीच और राज्यों के बीच के विवादों, झगड़ों को स्वतंत्र चर्चा और परामर्श के माध्यम से हल करने हेतु एक उत्कृष्ट मंच प्रदान करती हैं ।
हांलाकि राज्यों में होनेवाली हिंसा, राज्यों
के जल, भाषायी एवं सांस्कृतिक विवाद, राज्यों
के बीच संसाधनों का वितरण, असमान विकास, क्षेत्रवाद, क्षेत्रीय परिषद का सलाहकारी होना आदि के
आधार पर क्षेत्रीय परिषद की भूमिका एवं कार्यप्रणाली की आलोचना भी की जाती है फिर भी
इसमें संदेह नहीं कि क्षेत्रीय परिषद आर्थिक, राजनीतिक और
सांस्कृतिक रूप से एक दूसरे से जुड़े राज्यों के मध्य सहकारी प्रयास के क्षेत्रीय
मंच हैं जिसके माध्यम से संघीय एवं राष्ट्रीय हित के मामलों को सुलझाया जाता है।
उपरोक्त के आधार पर नीचे दिए गए प्रश्न को हल करने का प्रयास करें । यह प्रश्न 68वीं बिहार लोक सेवा आयोग सामान्य अध्ययन-II में पूछा गया है ।
प्रश्न - क्षेत्रीय परिषदों अंतर्गत देश में राष्ट्रीय हित की सर्वोपरिता प्रतिष्ठापित है।" भारत में क्षेत्रीय परिषदों की प्रकृति एवं कार्यशैली का उपर्युक्त कथन के परिप्रेक्ष्य में, आलोचनात्मक दृष्टि से परीक्षण कीजिए। (68वीं बीपीएससी में पूछा गया प्रश्न )
मुख्य परीक्षा के ग्रुप में जुड़ने के लिए संपर्क करें 74704-95829
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