प्रश्न- "बिहार की राजनीति में जाति महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है" चर्चा करें ।
उत्तर- बिहार की चुनावी
राजनीति जाति के इर्द-गिर्द ही घूमती है। जातिगत
राजनीति की सफलता सोशल इंजीनियरिंग पर निर्भर करती है जिसके तहत विभिन्न
प्रभावशाली जातिगत, धार्मिक समूहों आदि को जोड़कर प्रभावशाली
सामाजिक गठबंधन बनाना शामिल है।
बिहार की राजनीति
में 80 के दशक में ऊंची एवं निम्न जातियों के मध्य संघर्ष को देखा जा सकता है जब
पिछड़ी जातियों द्वारा अगड़ी जातियों को चुनौती दी गयी तथा राजनीति में अपनी विशेष
स्थिति को प्राप्त किया। इसके बाद से बिहार की राजनीति में जाति प्रमुख भूमिका में
आयी और सत्ता प्राप्ति का आधार बना।
मंडल कमीशन के बाद
बिहार की राजीनीति में जाति की भूमिका इतनी महत्वपूर्ण हो गयी कि लंबे समय तक यह
सत्ता का आधार रहा और इसके आगे मंहगाई, विकास, रोजगार, सुशासन जैसे
मुद्दे गौण हो गए। कालांतर में वर्षों तक बिहार की राजनीति में जाति की भूमिका महत्वपूर्ण
रही जिसका प्रभाव वर्तमान में भी देखा जा सकता है।
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बिहार की राजनीति में जाति
की भूमिका
बिहार में कुछ तो
कुछ पार्टियों का आधार ही जाति धर्म रहा जैसे राजद का आधार मुस्लिम तथा यादव, जदयू
का आधार कुर्मी आदि। कई प्रमुख नेता तो स्वयं को किसी जाति विशेष या वर्ग विशेष का
नेता बताकर लाभ भी उठाने का प्रयास करते हैं।
बिहार के चुनावों
में चुनावी गठजोड़, उम्मीदवारों के चयन, टिकट
आवंटन, वोटर को लुभाने, इत्यादि में भी
जाति को प्राथमिकता दी जाती है।
हांलाकि उदारीकरण के
बाद मध्यम वर्ग, युवा वर्ग, महिलाओं में चेतना आई तथा जाति के स्थान पर सुशासन एवं विकास को भी
प्राथमिकता मिलने लगी फिर भी अभी भी राजनीति में जाति एवं वर्ग के आधार पर
जोड़-तोड़, चुनावी रणनीति का निर्धारण होता है और इसके प्रभाव हमें राजनीति में
देखने को मिल ही जाते हैं।
90 के दशक के बाद देखा जाए तो 2010 के चुनाव
को छोड़कर लगभग सभी चुनावों में जाति प्रभावी भूमिका में रहा। हालिया 2020 के विधान सभा चुनाव में भी इसका प्रभाव दिखा। इस चुनाव में जीत की रणनीतियों
को बनाने, गठबंधन करने, टिकटों का बंटवारा,
उम्मीदवारों के चयन, चुनाव प्रचार हेतु नेताओं
और क्षेत्र के चयन आदि में जातियों की भूमिका काफी प्रभावी रही और बेरोजगारी और श्रमिक
पलायन जैसे चुनावी मुद्दों के बावजूद अधिकांश लोगों ने जाति और धर्म के आधार पर ही
अपना मतदान किया ।
बिहार सरकार द्वारा हालिया
की गयी जातिगत जनगणना निश्चित रूप से पिछ़ड़ों के विकास की दिशा में सरकार का प्रयास
माना जा सकता है लेकिन जातिगत जनगणना के बाद जिस प्रकार से जाति की संख्या के
आधार पर आरक्षण संबंधी प्रस्ताव लाया गया उससे स्पष्ट होता है कि जाति पुन: आनेवाले
दिनों में एक महत्वपूर्ण आधार बनेगा।
सरकार के हालिया जातिगत
आरक्षण से न केवल बिहार में जाति आधारित राजनीति को हवा मिलेगी बल्कि संपूर्ण देश
में इसका प्रभाव आनेवाले दिनों में देखने को मिल सकता है।
स्पष्ट है कि 2020 का विधानसभा चुनाव में भी जाति एक प्रमुख
मुद्दा था और इस कथन से इंकार नहीं किया जा सकता कि जाति बिहार की चुनावी राजनीति का
एक मुख्य पक्ष है । बिहार जिस दिन जाति, वर्ग और धर्म से ऊपर
उठकर अपने मुद्दों के आधार पर मतदान करेंगे वह दिन बिहार की राजनीति में एक नया मोड़
होगा हांलाकि फिलहाल ऐसा नहीं लग रहा क्योंकि हालिया हुई जातिगत जनगणना और आरक्षण
संबंधी प्रस्ताव से कहीं न कहीं बिहार में जाति आधारित राजनीति को पुन: नई भूमिका
मिलेगी।
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