प्रश्न- कृषि प्रधान राज्य होने के बावजूद बिहार में हरित क्रांति का संतुलित एवं समुचित प्रभाव नहीं पड़ा और बिहार हरित क्रांति का लाभ लेने में पिछड़ गया। बिहार में हरित क्रांति लाने के लिए आप किन उपायों को अपनाना चाहेंगे?
उत्तर-
हरित
क्रांति का तात्पर्य है कृषि में आधारभूत परिवर्तन जिससे कृषि उत्पादकता में अपार वृद्धि
हो जाती है । हरित क्रांति कृषि क्षेत्र में संरचनात्मक, वित्तीय,
तकनीकी सुधार से ही संभव है ।
बिहार में कृषि उत्पादकता बढ़ाने की दिशा में हरित क्रांति
लाने हेतु अनेक कार्य किए गए लेकिन इसका प्रभाव संतुलित एवं समुचित रूप से नहीं
पड़ा जो निम्न तथ्यों से स्पष्ट है।
- बिहार में हरित क्रांति के पूर्व धान, गेहूँ,
मक्का आदि खाद्य फसले ही उत्पादित होते थे किन्तु हरित क्रांति के पश्चात
कृषि प्रतिरूप में बदलाव आया और विभिन्न प्रकार की लाभदायक फसले, नकदी फसले भी उगायी जाने लगी।
- गेहूँ क्षेत्र तथा उपज दर में बढ़ोतरी हुई लेकिन चावल का क्षेत्र घटा ।
- नकदी फसलों में मामूली वृद्धि हुई है जबकि आलू उत्पादन में अत्यधिक वृद्धि दर्ज की गयी।
- हरित क्रांति का प्रसार केवल कमान क्षेत्र जैसे-कोसी,
गंडक, सोन कमान क्षेत्र में ही ज्यादा देखने को
मिला ।
इस प्रकार संपूर्ण बिहार में हरित
क्रांति का संतुलित एवं समुचित प्रभाव नहीं पड़ा है जिससे क्षेत्रीय विषमता, कृषि आय में विषमता, ग्रामीण विकास में
असमानता देखने को मिली है। कुल मिलाकर बिहार हरित क्रांति का लाभ उठाने में पिछड़ गया
है जिसके अनेक कारण है ।
- बिहार में भूमि सुधार प्रभावी रूप से लागू नहीं हो पाया।
उल्लेखनीय है कि बिहार में प्रति व्यक्ति भूधारण क्षमता 0.4 हेक्टेयर से भी कम है जिसके कारण कृषि योग्य भूमि का बेहतर उपयोग नहीं हो
पाया।
- बिहार में 70% सीमांत एवं छोटे किसान
है जो कृषि मशीनरी का प्रयोग नहीं करते हैं।
- उन्नत बीजों का कम प्रयोग तथा रासायनिक खाद, कीटनाशकों
की खपत कम होना।
- किसानों की गरीबी तथा क्रय शक्ति निम्न होना तथा पर्याप्त आर्थिक सहायता समय पर नहीं मिलना।
- मानसून पर निर्भरता तथा सुनिश्चित सिंचाई व्यवस्था का अभाव।
- बाढ के कारण बहुफसली प्रणाली नहीं अपनायी जाती जिसके कारण खेत फसलविहीन रह जाता है ।
- बिहार की कृषि को उद्योग से नहीं जोड़े जाने से किसानों
को अधिक आय, फसल उत्पादन हेतु प्रोत्साहन नहीं
मिल पाता ।
- लगभग प्रत्येक वर्ष बाढ़, सूखे
जैसी प्राकृतिक आपदा का प्रकोप।
- हरित क्रांति हेतु तकनीक तथा पर्याप्त वित्तीय सहायता उपलब्ध नहीं कराया जाना।
- बिहार में भंडारण व्यवस्था एवं दोषपूर्ण विपणन प्रणाली के कारण कृषकों को उपज का सहीं मूल्य नहीं मिल पाता।
इस प्रकार विविध कारणों से बिहार हरित क्रांति का लाभ
उठाने से वंचित रहा गया। उल्ललेखनीय है कि बिहार एक कृषि प्रधान राज्य है जिसमें हरित
प्रदेश बनने की पूर्ण संभावना है तथा इस दिशा में सार्थक प्रयास के तहत नीति निर्माण, अनुपालन
तथा क्रियान्वयन के स्तर पर किया निम्न कार्य किए जाने की आवश्यकता है।
- भूमि सुधार प्रभावी रूप से लागू कर संबंधित विवादों का त्वरित निपटारा किया जाए ।
- उन्नत बीज, रासायनिक खाद, कीटनाशकों के वितरण व प्रयोग को प्रोत्साहन।
- सिंचाई सुविधा नहर, जलाशय आदि में विस्तार ।
- पर्यावरणीय संतुलन को ध्यान में रखते हुए नदियों को जोड़े जाने की व्यवस्था ।
- कृषि साख व्यवस्था, फसल बीमा के लिए नियमों
को उदार एवं सरल बनाया जाए ।
- कृषि में निजी निवेश, अनुसंधान, स्टार्टअप को बढ़ावा दिया जाए ।
- खाद्य प्रसंस्करण को बढ़ावा देने हेतु कृषि एवं उद्योग के बीच लिंकेज बढ़ाया जाए ।
- नकदी, बागवानी फसलों को उपज के लिए
प्रोत्साहित किया जाए ।
- बिहार को कृषि उपज के आधार पर कृषि विशिष्टीकरण क्षेत्र में बांट कर तदनुसार वैज्ञानिक एवं जलवायु अनुकूल कृषि को बढ़ावा दिया जाए।
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