प्रश्न- बिहार में हाल ही में हुए जाति आधारित जनगणना के विविध पक्ष एवं बिहार की राजनीति में इसके प्रभाव को बताएं।
उत्तर- अक्टूबर 2023 में बिहार
ने जाति आधारित गणना के आंकड़े को जारी कर आजादी के बाद जाति आधारित गणना आंकड़े
जारी करने वाला भारत का पहला राज्य बन गया। बिहार सरकार के अनुसार इस आकड़ों का उपयोग
समावेशी विकास की नीतियों एवं विकासोन्मुखी कार्यक्रम निर्माण के लिए किया जाएगा ताकि बिहार में सामाजिक उत्थान एवं आर्थिक सुदृढ़ीकरण
का कार्य किया जा सके।
जाति आधारित जनगणना के अनुसार अति पिछड़ो, यादव,
दलित एवं मुस्लिम आबादी में वृद्धि देखी गयी वहीं सवर्णो की आबादी
में कमी आई है। बिहार में जाति आधारित आंकड़ों के सार्वजनिक होने से सकारात्मक एवं
नकारात्मक दोनों प्रभाव पड़ सकते हैं जिसे निम्न प्रकार समझा जा सकता है।
जाति आधारित जनगणना से लाभ
- इस जनगणना से बिहार के विभिन्न जातियों के लोगों की
संख्या एवं उनकी आर्थिक स्थिति का भी पता लगाना आसान होगा। लोगों की आर्थिक
स्थिति पता चलने से उनके लिए बेहतर योजनाएं, नीतियां बनाने में आसानी
होगी ।
- यह रिपोर्ट सामाजिक न्याय का गणितीय आधार बन सकती है जो भारत राजनीतिक में नए बदलाव लाएगी।
- इसके आधार पर जाति आधारित आर्थिक विश्लेषण एवं नीतियों के निर्धारण में सटीकता एवं सरलता आएगी।
- सामाजिक समानता लाने एवं आरक्षण नीतियों को ज्यादा बेहतर एवं लाभदायी बनाने में सहायक हो सकता है।
- केन्द्र एवं अन्य राज्यों पर भी इस प्रकार की जाति आधारित गणना का दबाव बनेगा।
जाति आधारित जनगणना से हानि
- बिहार में सामाजिक एवं राजनीतिक रूप से बहुसंख्यकवाद
मुखर हो सकता है जिसके प्रतिरोधस्वरूप आपसी टकराव बढ़ सकता है और जिस जाति की
संख्या कम रहेगी उनकी उपेक्षा, अत्याचार बढ़ सकते हैं ।
- बिहार में जातिवाद सदा ही प्रभावी भूमिका में रहा है ऐसे में इससे राजनीति में जातिवाद और आपसी मतभेद और बढ़ सकता है।
- राजनेता वोट बैंक, चुनाव जीतने, राजनीतिक उलटफेर के लिए प्रयोग कर सकते हैं।
- भारत तेजी से विकसित देश की श्रेणी में शामिल होने की ओर अग्रसर है अत: ऐसे मुद्दों का दुरुपयोग लोगों को बांटने और देश विकास में बाधा पहुंचाने का कार्य कर सकते हैं। औपनिवेशिक काल में भी भारत में कई जनगणना हुई जिससे कई बार आपसी टकराहट और तनाव के हालात बने थे।
- जातिगत जनगणना से जातियों के बीच अपनी संख्या के अनुसार आरक्षण लेने की होड़ बढ़ सकती है जिससे सामाजिक विभाजन और गहरा हो सकता है।
बिहार की सामाजिक एवं राजनीतिक संरचना में जहां जाति महत्वपूर्ण
भूमिका निभाती है वहां जाति आधारित आंकड़ों के सार्वजनिक होने के बाद से ही बिहार की
राजनीति में उथल पुथल आरंभ हो चुकी है तथा भविष्य में इसके प्रभाव को निम्न प्रकार
से समझा जा सकता है।
बिहार की राजनीति पर प्रभाव
राष्ट्रीय स्तर की अपेक्षा बिहार में अति पिछड़ा एक
सशक्त समूह है तथा इस गणना के बाद सबसे बड़े वर्ग के रूप में मान्यता मिलेगी और
बिहार की राजनीति में सियासी गणित और गोलबंदी में इनकी भूमिका बढ़ेगी ।
राजद का बड़ा आधार रहे ‘माई’ का भी आकार बढ़ने से इनका वोट प्रतिशत एवं जीत का आधार भी बढ़ जायेगा और भविष्य
में बिहार में सत्ता प्राप्ति के लिए इस समीकरण को बढ़ावा ध्रुवीकरण का प्रयास भी
किया जाएगा । उल्लेखनीय है कि बिहार चुनाव में वर्ग एवं जाति की राजनीति महत्वपूर्ण भूमिका
निभाती है ।
इस रिपोर्ट में पिछड़ा वर्ग की संख्या सबसे ज्यादा
है और देखा जाए तो उनको उस अनुपात में आरक्षण नहीं मिल रहा। इस कारण अब इन वर्गों
को आबादी के अनुपात में आरक्षण देने की मांग की जाएगी। उल्लेखनीय है कि बिहार में
85 प्रतिशत जातियां गैर स्वर्ण समुदाय से है। अत: बिहार में इनका आरक्षण कोटा बढ़ाने
तथा जाति आधारित संगठनों की मांग को बल मिलेगा।
जाति आधारित गणना के सकारात्मक
एवं नकारात्मक दोनों पहूल है तथा कोशिश की जाए कि इसका उपयोग सामाजिक विकास में
किया जाए। मंडल कमीशन की रिपोर्ट आने के बाद जो हालात बने उससे सबक लेते हुए सरकार
को यह सुनिश्चित करना होगा कि समाज में कोई बिखराव नहीं आए और बिहार जैसे पिछड़े
राज्य को किस प्रकार विकास के मार्ग पर अग्रसर किया जाए इस दिशा में इस रिपोर्ट
के आधार पर आगे बढ़ना बेहतर होगा।
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