महिला आरक्षण विधेयक (नारी शक्ति वंदन विधेयक)
देश की संसद के नए भवन में उस समय इतिहास रचा गया जब
लोक सभा एवं राज्य विधान सभाओं (दिल्ली विधान सभा सहित) में महिलाओं के लिए 33
प्रतिशत सीटें आरक्षित करने वाले विधेयक को पारित किया गया।
विधेयक में कहा गया कि यद्यपि पंचायती राज संस्थाओं और
नगर निकायों में महिलाएं पर्याप्त रूप से भाग लेती हैं तथापि राज्य विधानसभाओं और
संसद में उनका प्रतिनिधित्व अभी भी सीमित है। महिला सांसद लोकसभा में मात्र 15% हैं, और कई
राज्य विधानसभाओं में उनकी संख्या केवल 10% है।
20 सितम्बर 2023 को महिला आरक्षण विधेयक भारी बहुमत से
लोक सभा में पारित किया गया। केवल
असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM इस विधेयक के विरोध में रही।
लोक सभा द्वारा पारित विधेयक अगले ही दिन राज्य सभा
में भी सर्वसम्मति से पारित हो गया और 29 सितम्बर को राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी
मुर्मू के अनुमोदन 29 सितम्बर के पश्चात 106 वें संविधान संशोधन अधिनियम के रूप
में इसे अधिसूचित कर दिया गया।
महिला आरक्षण विधेयक संबंधी मुख्य तथ्य
- नारी शक्ति वंदन विधेयक को कानून मंत्री अर्जुन मेघवाल द्वारा लोकसभा में पेश किया गया।
- 128वाँ संविधान संशोधन विधेयक जो अधिनियमित होने के पश्चात 106वां संविधान संशोधन अधिनियम बना।
- अधिनियम के अनुसार आरक्षण संबंधी प्रावधान नई जनगणना व परिसीमन के बाद ही प्रभावी होगें।
- इस अधिनियम के तहत आरक्षण प्रावधान राज्य सभा तथा केन्द्रशासित पुदुचेरी विधान सभा के लिए लागू नहीं होगा।
- 106वें संविधान संशोधन अधिनियम में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान 15 वर्ष के लिए है तथा भविष्य में अवधि बढ़ाने पर सहमति बनने पर आवश्यकतानुसार विस्तार किया जा सकेगा।
- इस अधिनियम में अनुसूचित जाति एवं जनजाति अथवा अन्य पिछड़ा वर्गों के लिए अलग से आरक्षण का प्रावधान नहीं है। संविधान के अनुच्छेद 330 द्वारा अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के लिए लोक सभा की 131 सीटें पहले ही आरक्षित हैं और इन आरक्षित सीटों में ही अनुसूचित जाति एवं जनजाति महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत सीटें पारित किए गए अधिनियम के तहत स्वतः ही आरक्षित रहेंगी।
महिला आरक्षण की दिशा में पूर्व प्रयास
- महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण दिलाने के लिए सर्वप्रथम एचडी देवगौड़ा के नेतृत्व वाली यूनाइटेड फ्रंट सरकार ने 81 वीं संविधान संशोधन विधेयक के रूप में 1996 को लोक सभा में प्रस्तुत किया था जहाँ कुछ पार्टियों के विरोध के कारण इसे स्थायी समिति को सन्दर्भित कर दिया गया था
- 1998 में 12वीं लोक सभा में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के कार्यकाल में इसे लोक सभा में प्रस्तुत किया गया, किन्तु इसे पर्याप्त समर्थन नहीं मिला । इसी क्रम में वाजपेयी सरकार द्वारा 1999, 2002 और 2003 में भी इसके लिए प्रयास किए गए जो असफल रहे।
- डॉ. मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री रहते हुए 2008 में राज्यसभा में ऐसा विधेयक लाया गया था जो राज्य सभा से पारित हुआ, किन्तु लोक सभा में इसे पारित नहीं किया जा सका।
- इस प्रकार पूर्व की सरकारों द्वारा महिला आरक्षण की दिशा में विभिन्न प्रयासों के पश्चात 27 वर्ष की लंबी अवधि के बाद सितम्बर 2023 में इस दिशा में कानून बन सका।
कानून लागू करने की चुनौतियां
जनगणना
हांलाकि
राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद महिला आरक्षण विधेयक कानून बन चुका है लेकिन यह कानून
बन भी जाता है तो यह नयी जनगणना के बाद से ही लागू होगा।
परिसीमन
नई जनगणना के बाद लोकसभा एवं विधानसभा सीटों का
परिसीमन होगा । हांलाकि 2026 पर परिसीमन पर रोक है लेकिन उसके बाद परिसीमन किया जा
सकता है और परिसीमन होने के बाद ही नयी आरक्षण व्यवस्था लागू की जा सकती है। इस
कारण इस कानून के प्रभावी होने में अभी काफी समय लग सकता है।
राज्यों की सहमति
अनुच्छेद-368 के
अनुसार यदि केंद्र के किसी कानून से राज्यों के अधिकार पर कोई प्रभाव पड़ता है तो
उस कानून बनाने के लिए कम से कम 50 प्रतिशत विधानसभाओं की सहमति आवश्यक होगी। इस
प्रकार यह कानून का रूप तभी लेगा जब कम से कम 14 राज्यों की विधानसभाएं इस कानून
को मंजूरी देंगी।
अन्य पिछड़ा वर्ग महिलाओं के लिए आरक्षण
यह कानून महिलाओं के लिये 33% सीटें आरक्षित करता है लेकिन इसमें अन्य पिछड़े वर्ग की महिलाओं के लिये कोई कोटा शामिल नहीं है जबकि गीता मुखर्जी समिति ने इस संबंध में सिफारिश दी थी।
विधेयक के सकारात्मक प्रभाव
लैंगिक समानता
राजनीति में महिलाओं का उपयुक्त प्रतिनिधित्व मिलने से
लैंगिक समानता संबंधी सतत विकास लक्ष्य को प्राप्त करने में आसानी होगी।
समावेशी नीति निर्माण
महिलाओं की भागीदारी बढ़ने से नीति निर्माण एवं विचार
विमर्श की प्रक्रिया बेहतर एवं समावेशी बनेगी जिससे शासन व्यवस्था और बेहतर
होगी।
महिला नेतृत्व को प्रोत्साहन
इस कानून से न केवल
अधिकाधिक महिलाओं को राजनीति में भाग लेने के लिये प्रोत्साहन मिलेगा बल्कि उनको
अन्य क्षेत्रों में भी नेतृत्व की भूमिका निभाने के लिये प्रेरित करेगा।
महिला संबंधी मुद्दों को महत्व
जिस प्रकार से स्थानीय
सवशासन में महिला आरक्षण की व्यवस्था द्वारा महिला कल्याण एवं संबंधित मुद्दों
को महत्व मिला उसी प्रकार इस कानून से राष्ट्रीय स्तर पर महिला संबंधी मुद्दों
जैसे लिंग-आधारित हिंसा, महिला स्वास्थ्य, शिक्षा
आदि को बढ़ावा मिलेगा जिससे महिलाएं सशक्त होगी ।
प्रेरणास्रोत
किसी भी क्षेत्र में
महिलाओं की बढ़ती भूमिका से परिवार, समाज एवं पूरा देश प्रेरित होता है। राजनीति
में महिलाओं की बढ़ती भूमिका से भावी पीढि़यां प्रेरित होगी तथा महिलाओं के प्रति
जो रूढ़ीवादी एवं पुरुषवादी मानसिकता है उसमें बदलाव आएगा ।
राजनीति में इंदिरा
गांधी एवं सुषमा स्वराज, मीरा कुमार, वर्तमान
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, ममता बनर्जी आदि अनेक इसके उदाहरण है।
निष्कर्ष
राजनीति में महिला
प्रतिनिधित्व वर्तमान समय की मांग है तथा सरकार द्वारा लाया गया कानून महिलाओं को
राजनीति में सम्मानित स्थान दिलाने तथा
उनकी भागीदारी को बढ़ाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है।
इस कानून के साथ
आवश्यकता इस बात की है कि लिंग-आधारित हिंसा और उत्पीड़न को संबोधित करते हुए
महिलाओं के लिए सुरक्षित एवं समर्थनकारी माहौल उपलब्ध कराने की दिशा में प्रयास
किए जाए। इसी क्रम में पितृसत्तात्मक मानसिकता का त्याग कर महिला जागरूकता और
शिक्षा की वृद्धि करते हुए महिलाओं के स्वतंत्र निर्णयन प्रक्रिया को महिला अनुकूल
बनाने का प्रयास किया जाना चाहिए।
स्थनीय स्तर पर
महिलाओं की भागीदारी बढ़ने से शासन, महिला संबंधी मुद्दों आदि में नीति निर्माण एवं
क्रियान्वयन जैसे कार्य प्रभावी ढंग किए जा रहे हैं । अत: आशा की जा सकती है कि
इस कानून से भारतीय लोकतंत्र और भी मजबूत और समावेशी बनेगा ।
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