प्रश्न- निम्न आय वर्ग अथवा वंचित समुदाओं की जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय क्षरण के प्रभाव से निपटने की असमर्थता किस प्रकार उनके मौलिक अधिकारों को बाधित करती है। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा हालिया दिए गए निर्णय के संदर्भ में कथन की समीक्षा करें।
उत्तर- हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने मौलिक अधिकारों के दायरे का विस्तार करते हुए "जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों के खिलाफ अधिकार" को भी इसके दायरे में शामिल किया और कहा कि यह संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 21 (प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता का अधिकार) को बाधित करता है।
उल्लेखनीय है कि "जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों के खिलाफ अधिकार" को पेरिस समझौता 2015, जिनेवा संकल्प तथा अंतरपीढ़ीगत समानता के सिद्धांत द्वारा मानवाधिकारों के साथ एकीकरण करते हुए भी मान्यता प्रदान किया गया है।
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि सरकारी नीति और नियम-कायदों के बावजूद जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों एवं चिंताओं से संबंधित कानून नहीं है लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि भारत के लोगों को जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों के खिलाफ अधिकार नहीं है। इस संदर्भ में मौलिक अधिकारों के उल्लंघन को निम्न प्रकार समझा जा सकता है-
जीवन के अधिकार (अनुच्छेद 21)- स्वास्थ्य का अधिकार (जो अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार का एक हिस्सा है) वायु प्रदूषण, वेक्टर जनित बीमारियों में बदलाव, बढ़ते तापमान, सूखा, फसल की विफलता के कारण खाद्य आपूर्ति में कमी जैसे कारकों के कारण प्रभावित होता है। इस प्रकार वंचित समुदायों की जलवायु परिवर्तन के अनुकूल ढलने या इसके प्रभावों से निपटने में असमर्थता जीवन के अधिकार (अनुच्छेद 21) का उल्लंघन करती है।
समानता के अधिकार (अनुच्छेद 14)- जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय क्षरण के कारण होने वाली खाद्य की कमी, जल संकट, आजीविका संकट से उच्च आय वर्गों की तुलना में निम्न एवं अति निम्न आय वर्ग के लोग अधिक प्रभावित होते हैं और निपटने में असमर्थ होते हैं । इस प्रकार यह असमानता को जन्म देती है जिससे "समानता के अधिकार" (अनुच्छेद 14) का उल्लंघन होता है।
उल्लेखनीय है कि एम. सी. मेहता बनाम कमल नाथ (1996) तथा वीरेंद्र गौड़ बनाम हरियाणा राज्य (1995) जैसे मामलों में भी न्यायालय ने इसी प्रकार निर्णय देते हुए अनुच्छेद 21 के तहत "स्वस्थ जीवन के अधिकार" को अभिन्न पहलू माना वहीं 2021 में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद ने 'मानवाधिकार और जलवायु परिवर्तन' पर एक संकल्प पारित कर जलवायु परिवर्तन के नकारात्मक प्रभाव से सुभेद्य (Vulnerable) आबादी के अधिकार को सुनिश्चित करने की दिशा में जलवायु परिवर्तन से संबंधित कार्रवाइयों के साथ मानवाधिकारों के एकीकरण की आवश्यकता पर जोर दिया।
जलवायु परिवर्तन एक वैश्विक मुद्दा है जिससे निम्न आय वर्ग अथवा वंचित समुदाओं के जीवन, भोजन, आवास, आजीविका प्रतिकूल रूप से प्रभावित होते हैं। अत: इसके समाधान की दिशा में वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों, संसाधन संरक्षण आदि को बढ़ावा देने, परियोजनाओं के निर्माण एवं कार्यान्वयन में प्रभावित समुदायों की भागीदारी सुनिश्चित करने जैसी अनुकूलन रणनीतियों को अपनाया जा सकता है।
No comments:
Post a Comment