प्रश्न- सतत खाद्य प्रणालियों के लिए कृषि खाद्य नीतियों को मृदा, जल, वायु और जैवविविधता के साथ समन्वय स्थापित करते हुए बनाया जाना चाहिए । कथन के संदर्भ में विचार प्रस्तुत करें।
उत्तर- सतत खाद्य प्रणाली में जहां
जलवायु अनुकूल कृषि पद्धति पर बल दिया जाता है वहीं मृदा, जल, स्थानीय परितंत्र के संरक्षण पर भी ध्यान दिया जाता है लेकिन पिछले कुछ
दशकों में अपनायी गयी कृषि खाद्य नीतियों को देखा जाए तो संसाधनों के अंधाधुंध
दोहन के द्वारा उत्पादन बढ़ाने पर जोर दिया गया जिसके फलस्वरूप पर्यावरण पर कई
प्रकार के नकारात्मक प्रभाव हुए।
हाल ही में Indian Council for Research on
International Economic Relations (ICRIER) द्वारा जारी एक रिपोर्ट
में भी कृषि-खाद्य नीतियों के पर्यावरण पर प्रभाव का आकलन किया गया और मृदा,
जल, वायु और जैव-विविधता के साथ समन्वय स्थापित
सतत खाद्य प्रणाली अपनाने पर बल दिया गया जिसे निम्न प्रकार समझ सकते हैं
मृदा
रिपोर्ट के अनुसार लगभग
36% मृदा नमूनों में जहां जैविक कार्बन की कमी पायी गयी वहीं नाइट्रोजन युक्त
यूरिया का लगभग 34% भाग ही फसलों द्वारा अवशोषित किया गया। इसी क्रम में ईंट
निमा्रण में मृदा ऊपरी संस्तर के प्रयोग के कारण कई स्थानों पर मृदा की उर्वरता
प्रभावित हुई ।
अत: कृषि नीतियों में उर्वरक
सब्सिडी के बजाए प्रत्यक्ष नकद अंतरण व्यवस्था, ईंट निर्माण हेतु मृदा के बजाए फ्लाई ऐश प्रयोग
संबंधी नीतियों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
जल
1950-51 और 2021-22 के
बीच कुल सिंचाई में जहां भूजल हिस्सेदारी 29% से बढ़कर 60% हो गयी वहीं नहर
सिंचाई की हिस्सेदारी 40% से घटकर 25% हो गई। स्पष्ट है इस अवधि में सरकार की निःशुल्क
बिजली एवं सब्सिडी नीति ने भूजल के दोहन को बढ़ावा दिया।
अत: इस दिशा में ड्रिप
और स्प्रिंकलर प्रणाली जैसी सूक्ष्म सिंचाई तकनीकों के साथ साथ कुछ चुनिन्दा
फसलों के बजाए विविध फसलों की खरीद नीति को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
जलवायु परिवर्तन
2023 में कुल ग्रीन
हाउस गैस उत्सर्जन में कृषि का योगदान लगभग 13.44% था जो बताता है कि फसलों की
उत्सर्जन तीव्रता बढ़ रही है जिससे पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है।
अत: किसानों को कम
कार्बन उत्सर्जन करने वाली फसलें उगाने के लिए प्रोत्साहन दिए जाने संबंधी नीतियों
को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
इस प्रकार सरकार
द्वारा अपनायी जा रही नीतियों से भारत खाद्यान्न आयातक से निर्यातक की स्थिति में
तो आया लेकिन इसके कारण फसलों की स्थानीय प्रजातियों, रासायनिक
कीटनाशकों, उर्वरकों से जैव विविधता तथा पर्यावरण पर व्यापक
प्रभाव पड़ा।
भारत में जहां एक
तिहाई से अधिक आबादी खाद्य असुरक्षा, कुपोषण एवं जलवायु परिवर्तन के कारण उत्पन्न
संकटों का सामना कर रही है वहां सरकार को ऐसी नीतियों को प्रोत्साहित करना होगा
जो सतत खाद्य प्रणाली को बढ़ावा देती है। हांलाकि इस दिशा में जैविक कृषि, जल जीवन हरियाली, मृदा स्वास्थ्य कार्ड, पराली प्रबंधन नीतियां, कैच द रेन आदि जैसी योजनाओं
से प्रयासरत है लेकिन प्रभावी तरीके से क्रियान्वयन किए जाने के साथ साथ तकनीकी
प्रयोगों एवं नवचार आधारित नीतियों को बढ़ावा दिया जाए।
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