Bihar Special Question and answer BPSC Mains answer writing practice
प्रश्न: वर्तमान बिहार के विभिन्न औद्योगिक प्रदेशों की विशेषताओं, उनके विकास के कारकों एवं औद्योगिक परिदृश्य पर उनका प्रभाव स्पष्ट करें।
उत्तर: बिहार का
औद्योगिक विकास ऐतिहासिक,
भौगोलिक एवं आर्थिक परिस्थितियों पर निर्भर करता रहा है। वर्ष 2000
में झारखंड के अलग होने के बाद बिहार के अधिकांश खनिज-आधारित उद्योग
वहां चले गए, जिससे राज्य को कृषि, ऊर्जा
एवं लघु उद्योगों के माध्यम से औद्योगिक पुनर्गठन की आवश्यकता पड़ी। वर्तमान बिहार
में कई औद्योगिक प्रदेश विकसित हुए हैं।
|
औद्योगिक प्रदेश |
प्रमुख स्थल |
1 |
तराई क्षेत्र का चावल औद्योगिक प्रदेश |
रामनगर,
रक्सौल, नरकटियागंज, सीतामढ़ी,
मधुबनी, जोगबनी, फारबेसगंज,
ठाकुरगंज |
2 |
उत्तरी
पश्चिमी गंगा मैदान का चीनी औद्योगिक प्रदेश |
गोपालगंज, मोतीपुर,
सीवान, गोरोल |
3 |
दक्षिण पश्चिमी बिहार मैदान के औद्यौगिक
प्रदेश |
डुमराव,
पटना,बिहटा, फतुहा |
4 |
सोन
बेसिन औद्योगिक प्रदेश |
डालमियानगर, बंजारी |
5 |
गया गुरारू औद्योगिक प्रदेश |
गया, गुरारू |
6 |
मोकामा
बरौनी औद्योगिक प्रदेश |
मोकामा, बरौनी |
7 |
पूर्वी बिहार का जूट औद्योगिक प्रदेश |
किशनगंज,
पूर्णिया, कटिहार |
8 |
पूर्वी
गंगा नदी औद्योगिक प्रदेश |
मुंगेर, जमालपुर,
भागलपुर, कहलगांव |
वर्तमान बिहार के औद्योगिक प्रदेशों की विशेषताओं, विकास के कारण एवं औद्योगिक परिदृश्य पर प्रभावों को निम्न प्रकार समझा जा सकता है।
1. तराई क्षेत्र का चावल औद्योगिक प्रदेश
v यह
औद्योगिक प्रदेश बिहार के उत्तरी भाग में रामनगर से किशनगंज तक विस्तृत है। इस
क्षेत्र में चावल की गहन कृषि होने के कारण कई चावल मिलें स्थापित हुई हैं।
v किशनगंज, नरकटियागंज,
जनकपुर रोड, रक्सौल, सीतामढ़ी,
जयनगर, झंझारपुर, जोगबनी
और फारबिसगंज प्रमुख चावल मिल केंद्र हैं।
v यह प्रदेश
कृषि आधारित उद्योगों का उत्कृष्ट उदाहरण है।
2. उत्तरी पश्चिमी गंगा मैदान का चीनी औद्योगिक
प्रदेश
v बिहार की
उष्णकटिबंधीय जलवायु एवं क्ले युक्त मृदा गन्ने की खेती के लिए अनुकूल है, जिसके
कारण यह क्षेत्र भारत में चीनी उत्पादन का प्रमुख केंद्र बन गया।
v गोपालगंज, मोतीपुर,
सीवान एवं गोरोल इस क्षेत्र के मुख्य औद्योगिक स्थल हैं। इसके अलावा,
लकड़ी, प्लाई, कागज एवं
वनस्पति उद्योग भी यहाँ विकसित हुए हैं।
3. दक्षिण-पश्चिमी बिहार
मैदान का औद्योगिक प्रदेश
v पटना से
बक्सर तक फैला यह क्षेत्र ऐतिहासिक, भौगोलिक
एवं आर्थिक कारणों से औद्योगिक रूप से विकसित हुआ है।
v पटना का
बल्ब उद्योग, फुलवारी
शरीफ का साइकिल एवं सूती वस्त्र उद्योग, बिहटा का चीनी
उद्योग तथा बक्सर का रसायन एवं हस्तकरघा उद्योग इस क्षेत्र में प्रमुख हैं।
v इस क्षेत्र
में परिवहन एवं संचार सुविधाओं का अच्छा विकास हुआ है, जिससे औद्योगीकरण को गति मिली है।
4. सोन
बेसिन औद्योगिक प्रदेश
v यह क्षेत्र
सोन नदी घाटी में स्थित है और यहाँ औद्योगीकरण मुख्य रूप से डोलोमाइट, चूना पत्थर एवं बालू जैसे खनिज संसाधनों
पर आधारित है। डालमियानगर, जपला एवं बंजारी में सीमेंट,
कागज एवं रसायन उद्योग स्थापित हैं।
v इस क्षेत्र
में जलविद्युत परियोजना, रेलवे
और सड़कों की अच्छी उपलब्धता ने औद्योगिक विकास को प्रोत्साहित किया है।
5. गया-गुरारू
औद्योगिक प्रदेश
v इस क्षेत्र
में वस्त्र, खाद्य
प्रसंस्करण एवं स्थानीय उद्योगों का विकास हुआ है। गया और मानपुर का सूती वस्त्र
उद्योग, गुरारू का चीनी उद्योग, तंबाकू,
चावल मिल, बिस्कुट, फर्नीचर,
तिलकुट और पर्यटन उद्योग यहाँ विकसित हैं।
v गया में
बौद्ध तीर्थस्थल होने के कारण पर्यटन उद्योग भी फल-फूल रहा है।
6. मोकामा-बरौनी
औद्योगिक प्रदेश
v यह बिहार
का सबसे महत्वपूर्ण औद्योगिक क्षेत्र है,
जिसमें पेट्रो-रसायन, तेलशोधक कारखाना,
नेप्था आधारित रासायनिक खाद, तापीय विद्युत
संयंत्र और मक्खन उद्योग शामिल हैं।
v मोकामा में
बाटा शू, बिस्कुट,
दाल-छँटाई मिल और रेलवे डिब्बा निर्माण उद्योग स्थापित हैं।
v राजेंद्र
सेतु इस क्षेत्र को परिवहन सुविधा प्रदान करता है।
7. पूर्वी
बिहार का जूट औद्योगिक प्रदेश
v यह क्षेत्र
जलवायु की अनुकूलता के कारण जूट उत्पादन का प्रमुख केंद्र है। पूर्णिया, कटिहार, किशनगंज,
अररिया, सहरसा और खगड़िया में जूट उद्योग
विकसित हुए हैं।
v कटिहार, पूर्णिया, किशनगंज
एवं समस्तीपुर में जूट मिलें स्थापित हैं, जो बिहार के औद्योगिक
परिदृश्य में महत्वपूर्ण योगदान देती हैं।
8. पूर्वी
गंगा नदी औद्योगिक प्रदेश
v यह क्षेत्र
लखीसराय से कहलगांव तक विस्तृत है और विभिन्न प्रकार के उद्योगों का केंद्र है।
v जमालपुर
में रेलवे वर्कशॉप, मुंगेर
में सिगरेट एवं हथियार निर्माण उद्योग, भागलपुर में सूती
वस्त्र एवं रेशमी उद्योग, कहलगांव में NTPC तापीय विद्युत संयंत्र, अभयपुर एवं दशरथपुर में
पत्थर तोड़ने के उद्योग यहाँ प्रमुख हैं।
बिहार के
औद्योगिक प्रदेश विभिन्न कारकों पर आधारित हैं, जिनमें कृषि, खनिज,
ऊर्जा और परिवहन सुविधाएँ शामिल हैं। हालांकि, विभाजन के बाद औद्योगिक विकास की गति धीमी पड़ी, लेकिन
सरकार द्वारा नई औद्योगिक नीतियाँ, आधारभूत संरचना का विकास
और निजी निवेश को प्रोत्साहित करने से बिहार के औद्योगिक परिदृश्य में सुधार की
संभावना बढ़ रही है। बिहार को अपनी औद्योगिक संरचना को और अधिक सुदृढ़ बनाने के
लिए आधुनिक तकनीकों, उद्यमशीलता और पूंजी निवेश को बढ़ावा
देने की आवश्यकता है।
प्रश्न-
"भूमि सुधार के संदर्भ में बिहार सरकार द्वारा किए गए नवीन डिजिटल पहलें क्या
भूमि विवादों के निराकरण में प्रभावी सिद्ध हो सकती हैं?"चर्चा करें
भूमि सुधार का मूल
उद्देश्य कृषि भूमि का न्यायपूर्ण वितरण सुनिश्चित करना, कृषकों को भूमि का मालिकाना हक प्रदान
करना और कृषि उत्पादन को बढ़ावा देना था। किंतु, विभिन्न
राज्यों विशेषकर बिहार में सामाजिक-सांस्कृतिक, राजनीतिक एवं
प्रशासनिक जटिलताओं के कारण भूमि सुधार में अपेक्षित सफलता प्राप्त नहीं हो सकी ।
भूमि सुधार नीतियों
की सफलता भूमि वितरण, भू-अधिकारों
की पारदर्शिता और विवादों के शीघ्र निपटारे पर निर्भर करती है। बिहार सरकार ने
भूमि सुधार की दिशा में विभिन्न डिजिटल पहलों को अपनाया है, जिनका
उद्देश्य भूमि अभिलेखों का डिजिटलीकरण, पारदर्शिता बढ़ाना और
भूमि विवादों के शीघ्र समाधान को सुनिश्चित करना है।
बिहार
सरकार के नवीन प्रयास:
·
भूमि प्रलेखों का
कंप्यूटरीकरण – 38
जिलों के भूमि अभिलेख ऑनलाइन अपलोड किए गए हैं।
·
डिजिटल मानचित्रण एवं
सर्वेक्षण
– राजस्व मानचित्रों
के डिजिटीकरण का कार्य पूर्ण हो चुका है।
·
ऑनलाइन दाखिल-खारिज प्रणाली – सभी 534 अंचलों
में ऑनलाइन दाखिल-खारिज की सुविधा।
·
ऑनलाइन भू-लगान भुगतान – सभी
अंचलों में ऑनलाइन भू-लगान भुगतान व्यवस्था लागू।
·
अभिलेखागार निर्माण- भूमि संबंधी सामग्रियों, दस्तावेजों के रखरखाव हेतु जोनल स्तर
पर डेटा केन्द्र एवं अभिलेखागार का निर्माण।
·
राजस्व सर्वेक्षण एवं
प्रशिक्षण संस्थान-
पटना में राजस्व
कर्मचारियों को नई प्रौद्योगिकी के उपयोग पर प्रशिक्षण हेतु।
·
बिहार भूमि विवाद निराकरण
अधिनियम,
2023 (BLDRA) –
v
ऑनलाइन वाद दायर करने की सुविधा।
v
90
दिनों में विवाद निपटाने का प्रावधान।
v
फर्स्ट कम फर्स्ट आउट (FIFO) आधार पर मामलों का समाधान।
बिहार सरकार द्वारा
भूमि सुधारों के तहत डिजिटल पहलों को अपनाना एक सकारात्मक कदम है तथा इन पहलों की प्रभावशीलता
निम्न प्रकार देखा जा सकता है।
पारदर्शिता
एवं भ्रष्टाचार में कमी:
v डिजिटल
रिकॉर्ड से भूमि स्वामित्व संबंधी धोखाधड़ी में कमी आएगी।
v सरकारी
अधिकारियों की मनमानी और भ्रष्टाचार पर नियंत्रण संभव होगा।
भूमि
विवादों के शीघ्र समाधान में सहायता:
v ऑनलाइन वाद
दायर करने की सुविधा से किसानों को त्वरित न्याय मिलेगा।
v डिजिटल
अभिलेखों के कारण स्वामित्व संबंधी अस्पष्टता कम होगी।
प्रशासनिक
दक्षता में वृद्धि:
v डिजिटल
सिस्टम से भूमि सुधार उप समाहर्ता कार्यालयों पर भार कम होगा।
v न्यायालयों
में अनावश्यक भूमि विवादों की संख्या में कमी आएगी।
निष्कर्षत:
सरकार के प्रयासों से भूमि विवादों के निराकरण में तेजी आएगी, पारदर्शिता बढ़ेगी और प्रशासनिक
कार्यक्षमता में सुधार होगा। हालाँकि, इन पहलों की पूर्ण
सफलता इस पर निर्भर करेगी कि किसानों को डिजिटल प्रक्रियाओं का उपयोग करने के लिए
कितना प्रशिक्षित किया जाता है और सिस्टम कितना सुचारु रूप से कार्य करता है।
No comments:
Post a Comment