70th BPSC Mains answer writing- Geography and Economy
प्रश्न: भारत के अवसंरचना विकास में
लॉजिस्टिक्स सुधार की भूमिका पर चर्चा करें। कैसे लॉजिस्टिक्स सुधार भारत की
वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ाने में मदद करता है?
उत्तर: आपूर्ति श्रृंखला का वह भाग
जिसमें उत्पादों की आपूर्ति,
पैकेजिंग, परिवहन, सूची प्रबंधन और भंडारण
शामिल होता है,
लॉजिस्टिक
प्रबंधन कहलाता है। भारत का लॉजिस्टिक्स क्षेत्र देश के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का लगभग 13% है।
अवसंरचना
विकास में लॉजिस्टिक में सुधार परिवहन दक्षता, पारदर्शिता, उत्पादन लागत में कमी
लाने में,
प्रतिस्पर्धा
बढ़ाने,
निर्यात
को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
भारतमाला, सागरमाला, डेडिकेटेड फ्रेट कोरिडोर, राष्ट्रीय अवसंरचना
पाइपलाइन,
राष्ट्रीय
लॉजिस्टिक नीति 2022, पीएम
गति शक्ति योजना से भारत की लॉजिस्टिक्स यानी वस्तुओं की बाधारहित आवाजाही और
आपूर्ति श्रृंखला दक्षता बढ़ रही है। यह वैश्विक प्रतिस्पर्धा में भारत की स्थिति
को बेहतर बनाने में मदद करती है।
लॉजिस्टिक्स
सुधार के माध्यम से लागत में कमी लाकर, निर्यात क्षमता बढ़ाकर भारत को 5 ट्रिलियन डॉलर की
अर्थव्यवस्था बनने का लक्ष्य प्राप्त करने में मदद मिलेगी। विश्व बैंक के
लॉजिस्टिक्स प्रदर्शन सूचकांक (LPI) में
भारत का दर्जा 2014 में
44वें
स्थान से 2023 में
वें स्थान पर आना इस क्षेत्र में प्रगति को दर्शाता है।
इस
प्रकार सरकार के प्रयासों एवं सुधारों से लॉजिस्टिक्स दक्षता बढ़ी है, जिससे भारत की निर्यात
प्रतिस्पर्धात्मकता और सतत विकास के लक्ष्य को हासिल करने में मदद मिल रही है।
प्रश्न: क्या भारत में अवसंरचना विकास
सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) की प्राप्ति में
योगदान कर सकता है? विश्लेषण करें।
उत्तर: अवसंरचना विकास, सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) की प्राप्ति में
महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, क्योंकि
यह न केवल आर्थिक गतिविधियों को गति देता है, बल्कि
रोजगार सृजन और पर्यावरण संरक्षण में भी मददगार है। भारत में स्वच्छ ऊर्जा क्षेत्र
में 2014 से
2023 तक
8.5 लाख
करोड़ रुपये का निवेश हुआ है, जो
SDG 7 (सस्ती
और स्वच्छ ऊर्जा) की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
राष्ट्रीय
अवसंरचना पाइपलाइन और राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन जैसी योजनाओं ने रोजगार के नए
अवसर उत्पन्न किए हैं, जिससे
SDG 8 (आर्थिक
विकास और सम्मानजनक कार्य) को बढ़ावा मिला है। पीएम गति शक्ति योजना ने अवसंरचना
परियोजनाओं के समेकन और तेज कार्यान्वयन को सुनिश्चित किया है।
इसके
अतिरिक्त, भारतमाला
और सागरमाला परियोजनाओं ने सड़क और बंदरगाह अवसंरचना को मजबूत किया है, जो SDG 9 (आधारभूत संरचना और
औद्योगिक नवाचार) के अनुरूप है। इन प्रयासों के माध्यम से, भारत पर्यावरण अनुकूलता और
आर्थिक प्रगति के बीच संतुलन बनाकर सतत विकास की दिशा में अग्रसर है। हालांकि, संसाधनों के न्यायसंगत
वितरण और कार्यान्वयन में सुधार की आवश्यकता है।
प्रश्न : बिहार में भौतिक अवसंरचना में सुधार के बावजूद सामाजिक और आर्थिक असमानता
दूर करना एक चुनौती क्यों है? इसका समाधान कैसे हो सकता है?
उत्तर: बिहार में भौतिक
अवसंरचना, जैसे सड़क, रेलवे
और एयर कनेक्टिविटी में सुधार के बावजूद सामाजिक और आर्थिक असमानता एक बड़ी चुनौती
बनी हुई है जिसका प्रमुख कारण निम्न है
·
ग्रामीण
और शहरी क्षेत्रों के बीच विकास का असंतुलन
·
न्यूनतम
आय, न्यूनतम शिक्षा दर, कौशल विकास की कमी
·
बेरोजगारी
और अपर्याप्त स्वास्थ्य सुविधाएं
·
प्रतिवर्ष
आनेवाली आपदाएं ।
·
जातिगत
एवं सामाजिक संरचना एवं भेदभाव।
·
कमजोर
नीतियां एवं राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी
इस
प्रकार भौतिक अवसंरचना के विस्तार के बावजूद इसका लाभ समाज के हाशिए पर खड़े
वर्गों तक पर्याप्त रूप से नहीं पहुंच पाता। उदाहरण के लिए, ग्रामीण क्षेत्रों में सड़कों का निर्माण हो रहा है, लेकिन गुणवत्ता और रखरखाव में कमी इनका प्रभाव सीमित कर देती है।
समाधान
के लिए बुनियादी ढांचे को सामाजिक विकास के साथ जोड़ा जाना चाहिए। सार्वजनिक
परिवहन सेवाओं को ग्रामीण और दूरस्थ क्षेत्रों में बढ़ावा देना, स्थानीय रोजगार सृजन को प्राथमिकता देना और शिक्षा व स्वास्थ्य सेवाओं को
सुलभ बनाना आवश्यक है। साथ ही, योजनाओं का प्रभावी
क्रियान्वयन और सामाजिक भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए एक मजबूत निगरानी तंत्र की
आवश्यकता है। यदि इन पहलुओं पर ध्यान दिया जाए, तो भौतिक और
सामाजिक विकास के बीच संतुलन बनाकर असमानता को दूर किया जा सकता है।
प्रश्न: भारत में डिजिटल अवसंरचना के विकास से
संबंधित सरकारी पहलों ने आर्थिक समावेशन और औपचारिकता को किस प्रकार बढ़ावा दिया
है?
भारत में डिजिटल अवसंरचना के विकास के लिए सरकार ने कई
पहलें शुरू की हैं, जिनका उद्देश्य न केवल आर्थिक समावेशन
को बढ़ावा देना है, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था को औपचारिक
बनाना भी है। इन पहलों ने भारत के वित्तीय, व्यवसायिक और
सामाजिक ढांचे में महत्वपूर्ण बदलाव किए हैं।
सरकार की प्रमुख पहल जैसे "जनधन-आधार-मोबाइल (JAM) ट्रिनिटी", यूपीआई (यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस),
और डिजीटल भुगतान प्रणालियों ने भारत में वित्तीय समावेशन में
महत्वपूर्ण योगदान दिया है। 2015-16 में बैंक खाता धारकों की
संख्या 53% से बढ़कर 2019-21 में 78%
हो गई है। इसके परिणामस्वरूप, छोटे और मझोले
व्यापारों और असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों को औपचारिक आर्थिक व्यवस्था का हिस्सा
बनाया गया है।
इसके अलावा, डिजीटल सत्यापन, डिजीलॉकर,
और डिजिटल हस्ताक्षर जैसी व्यवस्थाओं ने सरकारी योजनाओं के
लाभार्थियों तक पहुँच को सरल और पारदर्शी बनाया है। आयकर, जीएसटी,
और ई-वे बिल जैसे डिजिटल सिस्टम ने व्यापार और वित्तीय लेन-देन को
औपचारिक रूप से बढ़ावा दिया है, जिससे करदाताओं की संख्या
में वृद्धि हुई है और व्यापार प्रक्रिया में पारदर्शिता आई है।
डिजिटल अवसंरचना के विकास ने भारत की अर्थव्यवस्था में
औपचारिकता और वित्तीय समावेशन को बढ़ावा दिया है। सरकार की पहलें न केवल असंगठित
क्षेत्र को औपचारिक रूप से शामिल कर रही हैं, बल्कि कारोबार के संचालन को भी अधिक
कुशल और पारदर्शी बना रही हैं। इसके परिणामस्वरूप, भारतीय
अर्थव्यवस्था को एक स्थिर और समावेशी दिशा में आगे बढ़ाने में मदद मिल रही है।
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