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Jan 28, 2025

70th BPSC Mains Answer writing Group Daily answer writing and model answer

 

70th BPSC Mains Answer writing Group

Daily answer writing and model answer  






प्रश्न: सामाजिक सुरक्षा योजनाएं समाज में असमानता को कम करने में कैसे सहायक होती हैं? इन योजनाओं के दीर्घकालिक प्रभावों पर चर्चा करें। 200 शब्‍द

उत्तर:सामाजिक सुरक्षा योजनाएं समाज के कमजोर वर्गों को सुरक्षा और सहायता प्रदान कर सामाजिक असमानता को कम करने का प्रयास करती हैं। इन योजनाओं का उद्देश्य हर नागरिक को मूलभूत सुविधाएं और समान अवसर प्रदान करना है।

1.    असमानता में कमी:

o    आर्थिक सुधार: आयुष्मान भारत योजना जैसे कार्यक्रमों ने गरीब परिवारों के चिकित्सा खर्च को कम किया।

o    शिक्षा और स्वास्थ्य:पोषण भी, पढ़ाई भी’ कार्यक्रम ने बच्चों की शिक्षा और पोषण में सुधार किया। आयुष्मान भारत योजना के तहत 34.7 करोड़ कार्ड जारी किए गए, और 7.37 करोड़ मरीजों को चिकित्सा लाभ मिला।

o    रोजगार के अवसर: पीएम-आवास और ग्राम सड़क योजना जैसे कार्यक्रमों ने रोजगार के अवसर बढ़ाए। पीएम आवास योजना के अंतर्गत 2.63 करोड़ घर बनाए गए, जबकि ग्राम सड़क योजना से 15.14 लाख किलोमीटर सड़क का निर्माण हुआ।

o    आर्थिक असमानता में कमी: 2023-24 की आर्थिक समीक्षा के अनुसार, गिनी कोइफिशियंट ग्रामीण क्षेत्रों में 0.266 और शहरी क्षेत्रों में 0.314 तक घटा।

2.    दीर्घकालिक प्रभाव:

o    सामाजिक सशक्तिकरण: महिलाओं और हाशिए पर मौजूद वर्गों के जीवन स्तर में सुधार।

o    आर्थिक उत्पादकता: बेहतर स्वास्थ्य और शिक्षा से दीर्घकाल में मानव संसाधन की गुणवत्ता में वृद्धि।

o    सामाजिक समावेश: समाज के सभी वर्गों को समान अधिकार और अवसर प्राप्त होना।

निष्कर्ष:

सामाजिक सुरक्षा योजनाएं असमानता को कम करते हुए समाज के समावेशी विकास को बढ़ावा देती हैं। दीर्घकालिक प्रभावों को साकार करने के लिए योजनाओं के कार्यान्वयन में सुधार और जागरूकता बढ़ाना आवश्यक है।

 

प्रश्न: डिजिटल भुगतान की बढ़ती लोकप्रियता से क्या भारतीय सरकार की कर व्यवस्था पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है? इसे समझाइए।

उत्तर: इलेक्ट्रिोनिक माध्‍यम से किया जानेवाला भुगतान डिजीटल भुगतान कहलाता है। इसकी लोकप्रियता का अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि जहां भारत विश्‍व डिजीटल पेमेंट का 46 प्रतिशत कवर करता है वहीं भारत में 80 प्रतिशत तक लेनदेन इसी में होता है। डिजीटल पेमेंट की संख्‍या वर्ष 2012-13 के 162 करोड़ से बढ़कर वर्ष 2023-24 में 14,700 हजार करोड़ से ज्‍यादा हो गयी।

डिजिटल भुगतान प्रणालियों के उपयोग में वृद्धि से भारतीय सरकार की कर व्यवस्था पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है जिसे निम्‍न प्रकार समझा जा सकता है

मुख्य भाग:

1.    कर चोरी में कमी:
डिजिटल भुगतान प्रणालियाँ जैसे UPI और IMPS ने लेन-देन को ट्रैक करना सरल बना दिया है, जिससे कर चोरी में कमी आई है। अब सरकार के लिए यह संभव हो गया है कि वह छोटे से लेकर बड़े लेन-देन का आसानी से हिसाब रख सके और इससे जुड़ी कर चोरी पर नजर रखे।

2.    GST और टैक्स रेट संग्रह में वृद्धि:
डिजिटल भुगतान से जीएसटी और अन्य टैक्स संग्रह की प्रक्रिया पारदर्शी और सटीक हो गई है। व्यापारी अब अधिक लेन-देन डिजिटल रूप से करते हैं, जिससे सरकार को टैक्स संग्रह में वृद्धि हुई है।

3.    आर्थिक गतिविधियों का विस्तार:
डिजिटल भुगतान ने छोटे व्यापारियों को भी संगठित किया है, जिससे अर्थव्यवस्था में वृद्धि हुई है। इस वृद्धि का सीधा प्रभाव सरकार के कर राजस्व पर पड़ा है, क्योंकि अधिक लोग करों का भुगतान कर रहे हैं।

निष्कर्ष:
डिजिटल भुगतान प्रणालियाँ सरकार की कर व्यवस्था को मजबूत कर रही हैं। इन प्रणालियों के माध्यम से कर चोरी पर अंकुश लगाने में मदद मिली है, और सरकार को कर राजस्व में वृद्धि का अनुभव हो रहा है। यह प्रक्रिया सरकार के वित्तीय प्रबंधन को अधिक पारदर्शी और सक्षम बना रही है।

 

 

 


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प्रश्न: भारतीय रुपये के अंतर्राष्ट्रीयकरण के प्रयास वैश्विक वित्तीय प्रणाली में शक्ति संतुलन को किस प्रकार प्रभावित कर सकते हैं? इसके संभावित दीर्घकालिक परिणामों का मूल्यांकन करें। 350 शब्‍द

उत्तर:
भूमिका:
भारतीय रुपये के अंतर्राष्ट्रीयकरण के प्रयास न केवल भारत की आर्थिक ताकत को प्रदर्शित करते हैं, बल्कि यह वैश्विक वित्तीय प्रणाली में शक्ति संतुलन को प्रभावित करने की भी क्षमता रखते हैं। यह पहल वर्तमान में अमेरिकी डॉलर के वर्चस्व को चुनौती देने और एक बहु-मुद्रा प्रणाली को स्थापित करने की दिशा में एक कदम है।

मुख्य भाग:

वैश्विक वित्तीय प्रणाली पर प्रभाव

1.    डॉलर पर निर्भरता में कमी: भारतीय रुपये को स्वीकार्य बनाना, विशेष रूप से उभरती अर्थव्यवस्थाओं में, डॉलर के प्रभुत्व को कमजोर कर सकता है।

2.    बहु-मुद्रा प्रणाली का विकास: रुपये के साथ-साथ अन्य उभरती मुद्राओं (जैसे युआन) का उपयोग वैश्विक वित्तीय प्रणाली को बहुध्रुवीय बना सकता है।

3.    नई साझेदारियों का उदय: द्विपक्षीय समझौतों और मुद्रा स्वैप से भारत कमजोर अर्थव्यवस्थाओं का प्रमुख भागीदार बन सकता है।

4.    वित्तीय स्वायत्तता: रुपये में व्यापार से भारत और उसके सहयोगी देश बाहरी मुद्रा उतार-चढ़ाव से बच सकते हैं।

दीर्घकालिक परिणाम

1.    आर्थिक स्थिरता: रुपये की स्थिरता सुनिश्चित करना चुनौतीपूर्ण होगा, क्योंकि यह घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय संतुलन पर निर्भर करेगा।

2.    ग्लोबल ट्रेड पर प्रभाव: डॉलर आधारित अर्थव्यवस्था में बदलाव से व्यापार और वित्तीय नीतियों में व्यापक परिवर्तन होंगे।

3.    भू-राजनीतिक प्रभाव: अमेरिका जैसे देशों के साथ आर्थिक और राजनीतिक तनाव बढ़ सकता है।

4.    वैश्विक संस्थाओं में भारत की भूमिका: IMF और WTO जैसे संस्थानों में भारत का प्रभाव बढ़ सकता है।

निष्कर्ष:
रुपये का अंतर्राष्ट्रीयकरण वैश्विक वित्तीय शक्ति संतुलन में एक निर्णायक भूमिका निभा सकता है। हालांकि, इसके लिए मजबूत आर्थिक नीतियां, पूर्ण परिवर्तनीयता, और वैश्विक सहयोग आवश्यक है। दीर्घकालिक सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि भारत किस हद तक घरेलू स्थिरता बनाए रखते हुए अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में अपनी मुद्रा को स्वीकार्य बना पाता है।

 

 

प्रश्न: डिजिटल भुगतान के माध्यमों और उनका प्रभाव भारतीय अर्थव्यवस्था की पर किस प्रकार से पड़ा है? UPI, IMPS और e-RUPI के संदर्भ में चर्चा करें । 350 शब्‍द

उत्तर:

भूमिका: डिजिटल अर्थव्यवस्था ने भारतीय अर्थव्यवस्था को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। डिजिटल भुगतान प्रणालियाँ, जैसे कि UPI, IMPS और e-RUPI, न केवल लेनदेन की पारदर्शिता और त्वरितता को बढ़ावा देती हैं, बल्कि वित्तीय समावेशन को प्रोत्साहित करके अर्थव्यवस्था को अधिक समावेशी और स्थिर बनाती हैं। इन प्रणालियों का विकास आर्थिक अपराधों, कर चोरी और नकली मुद्रा के खात्मे में भी सहायक सिद्ध हुआ है।

मुख्य भाग:

UPI (यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस):

1.    देश में वित्तीय समावेशन: UPI ने 24/7 किसी भी स्थान पर भुगतान की सुविधा प्रदान की, जिससे ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच वित्तीय समावेशन को बढ़ावा मिला।

2.    व्यवसाय और निवेश को बढ़ावा: डिजिटल लेन-देन की बढ़ती संख्या से व्यापारियों को अधिक ग्राहक मिल रहे हैं और छोटे व्यवसायों को उधारी और कैश की समस्या से मुक्ति मिली है।

3.    भारत का वैश्विक नेतृत्व: UPI का भारत द्वारा भूटान जैसे देशों में विस्तार और सिंगापुर के साथ कनेक्टिविटी का विकास भारत को डिजिटल भुगतान के क्षेत्र में वैश्विक स्तर पर एक मजबूत खिलाड़ी बना रहा है।

IMPS (तत्काल भुगतान सेवा):

1.    लेन-देन की गति: IMPS ने वास्तविक समय में धन हस्तांतरण की सुविधा प्रदान की, जिससे व्यापार और व्यक्तिगत लेन-देन में त्वरित समाधान प्राप्त हुआ है।

2.    अर्थव्यवस्था में स्थिरता: इसके माध्यम से बड़े और छोटे दोनों प्रकार के व्यवसायों को व्यापार की समृद्धि मिली है और आर्थिक गतिविधियों में तेजी आई है।

3.    सार्वजनिक प्रशासन में सुधार: IMPS का उपयोग सरकारी योजनाओं के लाभार्थियों को त्वरित भुगतान और लाभ पहुंचाने के लिए किया गया है, जिससे सरकारी प्रशासन में पारदर्शिता बढ़ी है।

e-RUPI:

1.    निवेश और कल्याण योजनाओं में सुधार: e-RUPI ने विशिष्ट वाउचर आधारित लेन-देन को संभव बनाया, जिससे सरकार द्वारा संचालित कल्याण योजनाओं का लाभ सीधे लाभार्थियों तक पहुंच रहा है।

2.    डिजिटल समावेशन: यह प्रणाली उन क्षेत्रों के लिए महत्वपूर्ण है जहां बैंकिंग सेवाओं की पहुंच कम है, क्योंकि इसमें बैंक खाता और इंटरनेट की आवश्यकता नहीं होती है।

3.    महामारी प्रबंधन में योगदान: कोविड-19 के दौरान e-RUPI ने सरकारी सहायता योजनाओं की पारदर्शिता बढ़ाई, जिससे महामारी प्रबंधन में मदद मिली।

निष्कर्ष: डिजिटल भुगतान प्रणालियाँ भारत की आर्थिक संरचना और सार्वजनिक प्रशासन को बेहतर बना रही हैं। इन प्रणालियों ने वित्तीय समावेशन को बढ़ावा दिया, साथ ही साथ सरकारी योजनाओं के सही वितरण में सहायता की। UPI, IMPS और e-RUPI ने न केवल भारत में बल्कि वैश्विक स्तर पर भी डिजिटल लेन-देन की दिशा को आकार दिया है। इनका प्रभाव भारतीय अर्थव्यवस्था में स्थिरता और वृद्धि लाने में निर्णायक रहा है।

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