प्रश्न- 'प्रायद्वीपीय भारत
चट्टान और खनिज संसाधनों में अधिक समृद्ध है' । उनके भूवैज्ञानिक संरचनाओं और संबंधित उत्खनन और खनन
गतिविधियों के संबंध में कथन पर चर्चा करें। 38 Marks (70th BPSC PYQ)
भारत का प्रायद्वीपीय भाग
भूगर्भीय दृष्टि से सबसे प्राचीन और स्थिर क्षेत्र माना जाता है। हिमालय और उत्तर
भारतीय मैदान अपेक्षाकृत नवीन एवं अवसादी संरचनाएँ होने के कारण दृष्टि से सीमित
हैं वहीं यह क्षेत्र न केवल संरचनात्मक दृष्टि से बल्कि खनिज संसाधनों की समृद्धत
एवं विविधतायुक्त है
प्राचीन आग्नेय एवं कायांतरित
चट्टानों जैसे नीस, शिस्ट, ग्रेनाइट से निर्मित जो खनिजों के जमाव के लिए उपयुक्त होते हैं। भूगर्भिक
दृष्टि से यह क्षेत्र बहुत कम परिवर्तनशील होने से खनिज संरचनाएँ संरक्षित रहीं।
दक्कन ट्रैप क्षेत्र में विशाल
ज्वालामुखीय गतिविधियों के कारण मोटी बेसाल्ट की परतें हैं जो खनिज विविधता से
युक्त है।
छोटा नागपुर पठार और दक्षिण-पश्चिमी
प्रायद्वीपीय बेल्ट जैसे मुख्य खनिज क्षेत्र इसी भाग में हैं। यहाँ प्रमुख
धात्विक खनिज में लौह अयस्क, तांबा, सोना, यूरेनियम, क्रोमाइट तो अधात्विक खनिज में कोयला, बॉक्साइट, चूना पत्थर, अभ्रक, ग्रेफाइट प्रमुख है।
इस प्रकार प्रायद्वीपीय भारत
भूवैज्ञानिक संरचनाओं तथा खनिज संसाधनों की समृद्धता से परिपूर्ण है जिसने राष्ट्रीय
औद्योगिक विकास को आधार प्रदान किया। प्रायद्वीपीय भारत में झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, महाराष्ट्र, तमिलनाडु आदि राज्यों में खनिज पदार्थों की बहुलता है जिससे यह खनन कार्य व्यापक
रूप से होता है। यहां के प्रमुख खनन क्षेत्र निम्न है
- कोयला भंडार से युक्त दामोदर, सोन, महानदी, गोदावरी घाटियां ।
- लौह अयस्क और बॉक्साइट से समृद्ध कर्नाटक-गोवा-पश्चिमी घाट ।
- बेसाल्ट आधारित खनिज और काली मिट्टी की प्रचुरता वाला दक्कन ट्रैप।
प्रायद्वीपीय भारत के क्षेत्रों से
90% से अधिक कोयला और 93% लौह अयस्क
प्राप्त होते हैं जहां के खनिज समृद्ध पठारी क्षेत्रों में निम्न खनन
पद्धतियाँ अपनाई जाती हैं
- गहरे खनन/ओपन कास्ट माइनिंग – इस पद्धति में सतह से ऊपर की मिट्टी और चट्टानों को हटाकर खनिजों को सीधे निकाला जाता है। यह पद्धति अपेक्षाकृत सस्ती और सुरक्षित होती है तथा लौह अयस्क, बॉक्साइट, कोयला जैसे खनिजों के लिए उपयुक्त है।
- भूमिगत खनन – भूमिगत खनन उन स्थानों पर किया जाता है जहाँ खनिज गहराई में स्थित होते हैं। यह तकनीक अधिक जटिल और खर्चीली होती है, परंतु अभ्रक और कोयले की गहरी परतों के लिए आवश्यक है।
निष्कर्षत: प्रायद्वीपीय भारत की भूवैज्ञानिक
स्थिरता, चट्टानों की प्राचीनता और संरचनात्मक
विविधता इसे भारत का खनिज संसाधनों में सर्वाधिक समृद्ध क्षेत्र बनाते हैं। हांलाकि
इस क्षेत्र में खनन से विस्थापन, पुनर्वास, असुरक्षित खनन, पर्यावरणीय संबंधी चिंताएं भी है फिर भी यहाँ की खनिज संपदा और उस पर आधारित
व्यापक खनन गतिविधियाँ भारत के औद्योगिक, आर्थिक और ऊर्जा विकास में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
शब्द संख्या- 390
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