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May 13, 2025

70th BPSC Essay "जिअते माछी नाहीं घोंटाई"

"जिअते माछी नाहीं घोंटाई"


 

वर्ष 2023 में मणिपुर की एक घटना ने पूरे देश की आत्मा को झकझोर दिया, जब दो महिलाओं को भीड़ ने निर्वस्त्र कर सरेआम अपमानित किया। इस घटना पर कुछ समय तक समाज, मीडिया और प्रशासन मौन रहे, पर धीरे-धीरे कुछ आवाजें उठीं। यह आवाज उनलोगों की थी जिनके भीतर साहस, आत्‍मबल, संवेदना  और संघर्षशीलता थी। उन्होंने उस अन्याय को देखकर आँखें नहीं मूंदी। यह घटना उस मानवीय चेतना का प्रतीक है जो  पीड़ा और अन्याय को देख कर तटस्थ नहीं रह सकती।

 

भोजपुरी की कहावत “जिअते माछी नाहीं घोंटाई” का शाब्दिक अर्थ यही है कि जीवित मछली को मारना कठिन होता है लेकिन भावार्थ में  यह कहावत केवल मछली और उसके जीवन के संदर्भ में नहीं, बल्कि उस सजीव चेतना की ओर संकेत करती है जो अन्याय, पीड़ा या त्रासदी के सामने मौन नहीं रहती बल्कि अपने साहस, आत्मबल और कर्मशीलता से उसका सामना करती है। इस प्रकार यह कहावत आत्मनिर्भरता, संघर्ष और कर्मशीलता का दर्शन प्रस्‍तुत करती है  जो आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जितना पहले थी।

 

इतिहास इस बात का साक्षी है कि जब तक किसी जीव, समाज या व्यक्ति में चेतना, आत्‍मबल और साहस  जीवित रही है तब तक उसकी आवाज को दबाया नहीं जा सकता। जब महात्मा बुद्ध ने अपने समय में वर्णव्यवस्था और कर्मकांड के बोझ से दबे समाज को देखा, तो वे चुप नहीं रहे। उन्होंने सत्य की खोज की, और संपूर्ण समाज को दया, करुणा और मानवता का मार्ग दिखाया। ईसा मसीह ने जब रोमन सत्ता और यहूदी कट्टरता का प्रतिकार किया तो उनको सूली पर चढ़ाया गया लेकिन उनके विचार अमर हो गए। भारत के स्वतंत्रता संग्राम में हर एक स्वतंत्रता सेनानियों ने अंग्रेज़ों के अन्याय को सहने के बजाए उनकी सत्‍ता को चुनौती दी। भगत सिंह, गांधी, नेताजी, चंद्रशेखर आज़ाद हर कोई इस जीवन्तता का प्रतीक था। गांधीजी के सत्य और अहिंसा पर आधारित संघर्ष ने साबित किया कि जब अंतरात्मा जाग उठती है, तो सबसे शांत दिखने वाला व्यक्ति भी एक जनांदोलन खड़ा कर सकता है।

 

आज के वैश्विक परिदृश्य में देखें तो जब रूस ने यूक्रेन पर आक्रमण किया, तब ज़ेलेंस्की देश छोड़ने के बजाए डटकर मुकाबला करने का निर्णय लिया। मलाला यूसुफजई ने जब बालिकाओं की शिक्षा के अधिकार के लिए आवाज़ उठाई और आतंकियों की गोली की शिकार बनी। निर्भया कांड हो, हाथरस की बेटी हो या मणिपुर की महिलाएँ, इन्‍होंने हार नहीं मानी और इनसे जुड़ी घटनाएं इनको तोड़ नहीं पायी और इन्‍होंने सामना किया और हर संवेदनशील नागरिक के भीतर की चेतना को जागृत किया। इस प्रकार यह कहावत हमें बताती है कि जीवन में विभिन्‍न प्रकार की चुनौतियाँ और कठिनाइयाँ आती हैं, लेकिन जो लोग हार नहीं मानते वे अंततः विजयी होते हैं।  

 

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वर्तमान तकनीकी दुनिया में व्यक्ति को हर दिन बेरोजगारी, असमानता, मनोवैज्ञानिक दबाव, स्‍वास्‍थ्‍य आदि नई नई चुनौतियों से जूझना पड़ता है । लेकिन जो व्यक्ति कोशिश करता रहता है, वही आगे बढ़ता है। स्टार्टअप्स की दुनिया, महिला उद्यमिता सभी इस बात के उदाहरण हैं कि जब तक सक्रियता है, तब तक सम्भावना है। धीरूभाई अंबानी, नारायणमूर्ति, या एप्पल के स्टीव जॉब्स जैसे व्यक्तित्वों ने प्रारंभिक असफलताओं और विरोधों को पार करते हुए विश्व में अपनी पहचान बनाई। इन्‍होने न केवल स्वयं संघर्ष किया बल्कि दूसरों को भी प्रेरित किया। कोविड काल में डॉक्टर्स, सफाईकर्मी, और आम नागरिकों की जीवटता ने यह सिद्ध किया कि ज़िंदा चेतना किसी भी संकट को परास्त कर सकती है।

 

प्राचीन भारतीय विचारधारा में “जीवेत शरदः शतम्” केवल दीर्घायु की कामना नहीं, बल्कि सक्रिय जीवन जीने की प्रेरणा है। भगवद्गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं – "कर्मण्येवाधिकारस्ते"अर्थात कर्मशील रहो। बुद्ध ने भी कहा था – “अप्प दीपो भव” – स्वयं प्रकाश बनो। जब तक चेतना जागृत है, संघर्ष शेष है, और हार संभव नहीं। अंबेडकर ने कहा –किसी समाज का उत्थान तब होता है जब वह अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करता है।” यह संघर्ष तभी संभव है जब समाज जीवित चेतना से युक्त हो – और यही इस कहावत की आत्मा है।


राजनीति में जब तक विपक्ष जीवंत है, सत्ता संतुलित रहती है। विज्ञान में जब तक अनुसंधान जीवित है, प्रगति होती रहती है। साहित्य में जब तक रचनात्मकता जीवित है, भाषा जीवंत रहती है। प्रकृति में जब तक जैव विविधता जीवित है, पर्यावरण संतुलित रहता है। इस प्रकार यह कहावत न केवल व्यक्तिगत प्रेरणा का स्रोत है, बल्कि व्यापक सामाजिक-सांस्कृतिक चेतना का प्रतीक भी है।

 

 

इस प्रकार यह कहावत हमें आत्मपरीक्षण की ओर ले जाती है। यह सिखाती है कि कठिनाइयाँ स्थायी नहीं होतीं, पर जीवटता अमर होती है। यह कहावत हमें बताती है कि चाहे परिस्थिति जैसी भी हो, जब तक हममें सक्रियता और आत्मबल है, हम अपराजेय हैं। स्वामी विवेकानंद कहते थे –उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो।” यही भाव इस कहावत का सार है – जब तक भीतर जीवन का प्रकाश है, कोई भी अंधकार हमें निगल नहीं सकता।


यह निबंध एक मार्गदर्शन के रूप में आपके समक्ष प्रस्‍तुत है जिसमें आप अपनी मौलिकता, अपने विचार को जोड़कर इसे और बेहतर कर सकते हैं। 

 

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