प्रश्न- कॉलेजियम क्या है ? यह आलोचना के केंद्र में क्यों है? अपने विचार
व्यक्त कीजिए । 7
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उत्तर- कॉलेजियम
व्यवस्था भारत के सर्वोच्च एवं उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति और
स्थानांतरण संबंधी व्यवस्था है। इसका उल्लेख संविधान में नहीं है बल्कि इसका
विकास सर्वोच्च न्यायालय के दूसरे (1993) और तीसरे (1998) न्यायाधीश
मामलों से हुआ। न्यायिक व्यवस्था में कॉलेजिमय की भूमिका महत्वपूर्ण रही है
लेकिन पिछले कुछ वर्षो में इसकी आलोचना भी
हुई है जिसे निम्न प्रकार देख सकते हैं:-
पारदर्शिता- कॉलेजियम प्रक्रिया गोपनीय होने, नियुक्तियों के स्पष्ट मानदंड या सार्वजनिक जांच व्यवस्था नहीं होने से नियुक्तियों व
स्थानांतरण में स्पष्टता की कमी रहती है।
पक्षपात- नियुक्तियों में अपने पसंद या रिश्तेदारों को प्राथमिकता दिए जाने से
भाई-भतीजावाद, ‘अंकल जज
सिंड्रोम’ जैसे आरोप भी लगते हैं।
जवाबदेही- न्यायपालिका के भीतर ही निर्णय होने, बाहरी समीक्षा या अपील न होने से जवाबदेही सुनिश्चित करना कठिन होता है।
न्यायिक
नैतिकता- हाल ही में एक न्यायाधीश के आवास से बेहिसाब नकदी बरामद हुई जिससे न्यायाधीशों
की नैतिकता और जवाबदेही पर सवाल उठे।
नियंत्रण
एवं संतुलन सिद्धांत का उल्लंघन- कॉलेजियम व्यवस्था
विधायिका-कार्यपालिका-न्यायपालिका के संतुलन सिद्धांत का उल्लंघन करता है जिसमें
अन्य अंगों का दखल बेहद सीमित या नाममात्र ही है
हांलाकि कॉलेजियम प्रणाली ने न्यायपालिका की स्वतंत्रता संरक्षित करने में
ऐतिहासिक भूमिका निभाई, लेकिन उपरोक्त कारण से यह आलोचना के केन्द्र में रहा। अत: न्यायिक
स्वतंत्रता बनाए रखते हुए पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए संस्थागत
सुधार किया जाना आवश्यक है।
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