BPSC Mains answer writing and test series
प्रश्न -"अमेरिका द्वारा H-1B वीज़ा शुल्क बढ़ाने के निर्णय से भारत के लिए उत्पन्न अवसरों और चुनौतियों का विश्लेषण कीजिए।" 8 अंक
उत्तर-
हाल ही में अमेरिका द्वारा H-1B वीज़ा शुल्क को 100,000 डॉलर तक बढ़ाने
का निर्णय लिया गया जो भारतीय छात्रों, व्यवसायियों, कंपनियों
के लिए चुनौतियों के साथ अवसर भी प्रदान करता है जिसे निम्न प्रकार देख सकते हैं
भारत के
लिए अवसर
- भारत विश्व का तीसरा सबसे बड़ा स्टार्ट-अप हब है जहाँ फिनटेक, एड-टेक और हेल्थ-टेक में यूनिकॉर्न कंपनियाँ उभर रही हैं।
- स्टार्ट-अप इंडिया, डिजिटल इंडिया और मेक इन इंडिया द्वारा नवाचार और उद्यमिता को बढ़ावा दिया जा रहा है। ऐसे में छात्रों, पेशेवरों के भारत में रहने से इन क्षेत्रों में और प्रगति होगी।
- कम लागत और बड़ा उपभोक्ता आधार निवेश को आकर्षित करने में सहायक ।
- AI व नई तकनीकों में भारत के पास "एशियन सिलिकॉन वैली" बनने की क्षमता ।
- भारतीय कंपनियां नए बाजार की तलाश करेंगी जिससे ज्यादा विकल्प मिलेगा।
भारत के
लिए चुनौतियाँ
- R&D पर खर्च जीडीपी का मात्र 0.7% होने से उच्च-स्तरीय नवाचार बाधित होता है।
- अवसंरचना व जटिल विनियमन तकनीकी प्रगति को धीमा करते हैं।
- बौद्धिक संपदा अधिकार संरक्षण और शोध के व्यावसायीकरण में कमजोरी है।
- विभिन्न देशों के बीच क्षेत्रीय सहयोग की कमी जैसी तकनीकी नेतृत्व की राह में बाधा है।
इस
प्रकार भारत को अवसर का लाभ उठाते हुए अनुसंधान, नवाचार और नियामक सुधारों में निवेश
करना होगा। तभी यह वैश्विक तकनीकी शक्ति के रूप में अपनी स्थिति मजबूत कर सकेगा।
प्रश्न -"AFSPA, 1958 के अंतर्गत
सशस्त्र बलों को प्राप्त विशेषाधिकारों से उत्पन्न प्रशासनिक व सामाजिक चुनौतियों
पर प्रकाश डालिए। साथ ही इनके समाधान हेतु उपाय सुझाइए।" 8 अंक
उत्तर-
जब राज्यों में आंतरिक सुरक्षा सुनिश्चित करने के उद्देश्य से नागरिक प्रशासन की
सहायता के लिए सशस्त्र बलों की आवश्यकता होती है तो सशस्त्र बल (विशेष शक्तियां)
अधिनियम (AFSPA)
1958 लागू किया
जाता है जैसे कि अभी असम, मणिपुर, नागालैंड, अरुणाचल प्रदेश आदि में लागू है।
यह
कानून सशस्त्र बलों को बिना वारंट गिरफ्तारी, तलाशी, भीड़ प्रतिबंध और हथियारबंद ठिकानों को
नष्ट करने जैसी असाधारण शक्तियाँ प्रदान करता है जिससे कई प्रशासनिक व सामाजिक
चुनौतियाँ उत्पन्न होती हैं
प्रशासनिक
- नागरिक समाज में अविश्वास और असुरक्षा की भावना से अलगाववाद को बढ़ावा।
- किसी भी कार्रवाई पर मुकदमा चलाने से पूर्व केंद्र सरकार की अनुमति से पीड़ितों को न्याय नहीं मिल पाता।
सामाजिक
- मनमानी गिरफ्तारी, फर्जी मुठभेड़ों और अत्यधिक बल प्रयोग से मानवाधिकार हनन के आरोप।
- विभिन्न समुदायों, लोगों के आपसी संबंध, रोजगार बाधित होने से स्थानीय लोगों पर नकारात्मक प्रभाव।
समाधान
के उपाय
- समय-समय पर स्थिति की समीक्षा कर AFSPA का आंशिक/क्षेत्रीय प्रयोग।
- सशस्त्र बलों की जवाबदेही बढ़ाने हेतु स्वतंत्र शिकायत निवारण तंत्र।
- नागरिक प्रशासन की क्षमता वृद्धि और पुलिस बलों को आधुनिक प्रशिक्षण।
- स्थानीय जनसहभागिता और विश्वास बहाली कार्यक्रम।
इस
प्रकार AFSPA आंतरिक सुरक्षा और कानून
व्यवस्था बनाए रखने हेतु आवश्यक सुरक्षा उपाय है जिसे लोकतांत्रिक मूल्यों और
मानवाधिकार मानकों के साथ संतुलित करना अत्यावश्यक है।
प्रश्न-भारत में शहरी क्षेत्र की
परिभाषा को लेकर हाल ही में क्या प्रस्ताव रखा गया है? वर्तमान परिभाषा के
उपयोग से जुड़ी समस्याएं क्या हैं और इनके समाधान हेतु क्या विकल्प हो सकते हैं? 38 अंक
उत्तर-भारत
के रजिस्ट्रार जनरल और जनगणना आयुक्त ने सुझाव दिया है कि 2027 की जनगणना में वही शहरी परिभाषा अपनाई
जाए, जो 2011 में उपयोग में थी ताकि तुलनात्मक
अध्ययन को सरल बनाया जा सके और शहरीकरण की प्रवृत्तियों को ट्रैक किया जा
सके।
वर्तमान
परिभाषा के अनुसार भारत में किसी क्षेत्र को "शहरी" घोषित करने के दो
आधार हैं-
- वैधानिक कस्बे: वे सभी प्रशासनिक इकाइयां, जिन्हें कानून द्वारा शहरी के रूप में परिभाषित किया गया है, जैसे-नगर निगम, नगर पालिका, टाउन पंचायत आदि।
- जनगणना कस्बे: ऐसे कस्बे जो वैधानिक कस्बे नहीं है, लेकिन निम्नलिखित तीन विशिष्ट जनसांख्यिकीय और आर्थिक मानदंडों को एक साथ पूरा करते हैं:-
- जहाँ
न्यूनतम जनसंख्या 5,000 हो,
- जनसंख्या घनत्व 400 व्यक्ति/किमी² से अधिक हो
- 75% मुख्य कामकाजी पुरुष गैर-कृषि कार्यों में लगे हों।
वर्तमान
परिभाषा को देखें तो वर्तमान समय में इसके उपयोग में कुछ समस्याएं
है जिसके कारण इसमें बदलाव की मांग भी उठ रही है। प्रमुख समस्याएँ निम्न है
- पुरुष कार्यबल पर केन्द्रित- यह परिभाषा केवल पुरुष कार्यबल पर आधारित है, जिससे महिलाओं का योगदान उपेक्षित होता है।
- पुराना मानक- मानक पिछले पाँच दशकों से बदले नहीं हैं, जबकि सामाजिक-आर्थिक ढाँचा बदल चुका है।
- शहरी दर्जा न मिलना- कई बस्तियाँ शहरी स्वरूप की होते हुए भी आधिकारिक रूप से ग्रामीण बनी रहती हैं, जिससे उन्हें शहरी स्थानीय निकायों जैसी सुविधाएँ और संसाधन नहीं मिल पाते।
- प्रशासनिक असंगति-पंचायतों के अधीन रहते हुए इन कस्बों में अपशिष्ट प्रबंधन, स्वच्छता और आवास जैसी शहरी सुविधाओं की कमी बनी रहती है।
इस
प्रकार वर्तमान परिभाषा में कई समस्या है जिसके समाधान हेतु निम्न उपाए किए जा
सकते हैं:-
- परिभाषा में महिला कार्यबल को शामिल करना और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत पद्धति अपनाना, जो शहरीकरण को अधिक वास्तविकता से मापती है।
- नीति निर्माण में स्थानीय प्रशासन को सशक्त करना और शहरी चरित्र वाली बस्तियों को शहरी दर्जा देना।
निष्कर्षत:
भारत में शहरीकरण की सही तस्वीर पाने और बेहतर शहरी नीतियाँ बनाने के लिए मौजूदा
परिभाषा में सुधार आवश्यक है। यदि हम महिला कार्यबल और वैश्विक मानकों को शामिल
करें, तो यह भारत के सतत शहरी विकास
के लक्ष्य को मजबूत आधार प्रदान करेगा।
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