उत्कृष्ट
कला हमारे अनुभव को प्रकाशित करती है या सत्य को उद्घाटित करती है।
कला केवल मनोरंजन का
साधन नहीं है, बल्कि यह जीवन
के गहनतम अनुभवों को अभिव्यक्त करने और छिपे हुए सत्य को सामने लाने का माध्यम है।
अरस्तू ने कहा था—“कला जीवन का अनुकरण करती है।” जबकि प्लेटो ने कला को “सत्य की
छाया” बताया। भारतीय परंपरा में कला को “सत्यम्, शिवम्,
सुंदरम्” के रूप में देखा गया, जिसका अर्थ
है—कला सत्य, कल्याण और सौंदर्य का संगम है। कबीर की साखियाँ,
तुलसीदास का रामचरितमानस और मीराबाई के पद केवल काव्य नहीं, बल्कि भक्ति और सत्य का उद्घाटन करने वाली रचनाएँ हैं। उत्कृष्ट कला हमारे
अनुभव को न केवल उजागर करती है, बल्कि हमें उस सत्य तक
पहुँचाती है जो केवल तर्क से नहीं, बल्कि संवेदना और अनुभूति
से ही समझा जा सकता है।
कला का उद्देश्य केवल
सौंदर्य निर्माण नहीं, बल्कि
सत्य का उद्घाटन है। भारतीय आचार्य भरतमुनि ने नाट्यशास्त्र में कहा कि कला
(नाट्य) जीवन का अनुकरण है जो मनुष्य के भीतर रस और भाव जगाकर उसे जीवन के गूढ़
अनुभवों से परिचित कराती है। उपनिषदों की उक्ति “सत्यं ज्ञानम् अनन्तं ब्रह्म” यह
बताती है कि कला जब सत्य को छूती है तो वह अनंत हो जाती है। पाश्चात्य दर्शन में
भी टॉल्स्टॉय ने कहा—“कला का उद्देश्य वही है, जो धर्म का
है—मनुष्य को उच्चतर भावनाओं से जोड़ना।” यही कारण है कि उत्कृष्ट कला हमारे
अनुभवों को प्रकाशित करती है और उन सच्चाइयों से हमारा परिचय कराती है जिन्हें
सामान्य जीवन में हम अक्सर अनदेखा कर देते हैं।
इतिहास में हड़प्पाकाल
से लेकर आधुनिक काल तक कला विविध रूपों में हमारे समक्ष कला विविध रूपों में विद्यमान
हैं जिसने न केवल हमारे अनुभव और ज्ञान को बढ़ाया बल्कि हमें उस समय के समाज, तकनीकी कौशल, धार्मिक
मान्यताओं एवं विचारों का ज्ञान भी कराया। हड़प्पाकालीन मूर्तियां, अशोक स्तंभ, पाल मूर्तिकला, नालंदा
स्थिति भगनावशेष, विभिन्न शासकों के शिलालेख, विभिन्न धर्मों के मंदिर, चैत्य, पूजा स्थल, देवी देवताओं की मूर्तिया, चित्रकला आदि समकालीन समाज के अनुभवों को व्यक्त करने के साथ साथ गहरे सत्य
और जीवन के उद्देश्यों को भी व्यक्त करती है।
हमारे जीवन के अनुभव
बिखरे हुए होते हैं, कला
उन्हें अर्थ और संरचना देती है। जब हम किसी चित्रकला को देखते हैं, किसी कविता को पढ़ते हैं या किसी नाटक को देखते हैं, तो हमें अपने ही अनुभव नए रूप में दिखाई देते हैं। भारत में कालिदास की अभिज्ञान
शाकुंतलम् में प्रेम, वियोग और पुनर्मिलन का चित्रण केवल कथा
नहीं, बल्कि मानव जीवन के सार्वभौमिक अनुभवों को प्रकाशित
करने वाली उत्कृष्ट कला है। रवीन्द्रनाथ ठाकुर की कविताएँ केवल शब्द नहीं, बल्कि जीवन के अनुभवों की उजली रोशनी हैं। उन्होंने कहा था—“कला वह दर्पण
है जिसमें जीवन अपने अनदेखे सौंदर्य को देखता है।” संगीत भी यही कार्य करता है।
तानसेन की रागदीपक या राग मेघ मल्हार की कथाएँ केवल किंवदंती नहीं हैं, बल्कि यह इस बात का प्रमाण हैं कि संगीत अनुभव को किस तरह प्रकाशित कर
सकता है।
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कला का सर्वोच्च कार्य
केवल सौन्दर्य और अनुभव को व्यक्त करना नहीं,
बल्कि सत्य को उद्घाटित करना है। यह सत्य सामाजिक भी हो सकता है और
आध्यात्मिक भी। मौर्य कला ने जहां शक्ति, नैतिकता और धर्म को
व्यक्ति किया वहीं पाल कला ने बौद्ध धर्म की महान दार्शनिकता एवं आध्यात्मिकता को
प्रकट किया। इसी क्रम में अजंता और एलोरा की गुफाएँ केवल भित्तिचित्र नहीं हैं,
बल्कि वे उस युग के धार्मिक, सांस्कृतिक और
मानवीय सत्य को उजागर करती हैं। मधुबनी कला केवल रंगों का संयोजन नहीं बल्कि बिहार
के मिथिला क्षेत्र की सांस्कृतिक पहचान एवं परंपराओं को व्यक्त करता है। विश्व
स्तर पर पिकासो की प्रसिद्ध पेंटिंग गुएर्निका केवल चित्रकला नहीं, बल्कि युद्ध की भयावहता का उद्घाटन करने वाला दृश्य है। आज भी जब हम उसे
देखते हैं तो युद्ध का सत्य हमारे सामने जीवंत हो उठता है।
उत्कृष्ट कला केवल
व्यक्ति का अनुभव प्रकाशित नहीं करती, बल्कि समाज का सत्य भी सामने लाती है। रामधारी सिंह दिनकर ने लिखा—“कला
समाज के मर्म को स्पर्श करने वाली वाणी है।” प्रेमचंद ने किसानों की पीड़ा को,
महाश्वेता देवी ने आदिवासियों के संघर्ष को और नागार्जुन ने जनता की
आवाज़ को कला के माध्यम से प्रकट किया। पाश्चात्य साहित्य में शेक्सपियर का हैमलेट
या किंग लियर केवल नाटक नहीं, बल्कि मानव जीवन की त्रासदी और
मनोवैज्ञानिक सत्य को उद्घाटित करने वाले ग्रंथ हैं। टॉल्स्टॉय का वॉर एंड पीस
युद्ध और शांति के गहरे मानवीय सत्य को सामने लाता है।
आज की दुनिया में कला
का महत्व और बढ़ गया है। तकनीकी प्रगति ने कला को नए रूप दिए हैं । सिनेमा, डिजिटल आर्ट, स्ट्रीट
आर्ट और साहित्य की नई विधाएँ चलन में है लेकिन इनका उद्देश्य वही है जो पहले था यानी
मानव अनुभव को प्रकाशित करना और सामाजिक सत्य को उजागर करना। हालाँकि कला की भी
सीमाएँ हैं। कभी-कभी कला कल्पना की उड़ान में वास्तविकता से दूर चली जाती है। कुछ
कला केवल विलासिता या प्रचार का माध्यम बन जाती है। साथ ही, कला
का प्रभाव पाठक या दर्शक की संवेदनशीलता पर भी निर्भर करता है। यदि समाज कला को
केवल मनोरंजन के रूप में ले तो उसका गहरा संदेश छिपा रह जाता है।
उत्कृष्ट कला हमारे
अनुभवों को अर्थ देती है और उन सत्यों को उद्घाटित करती है जिन्हें हम सामान्य
दृष्टि से नहीं देख पाते। भारतीय और पाश्चात्य दोनों परंपराएँ इस तथ्य की पुष्टि
करती हैं कि कला का उद्देश्य केवल सौंदर्य या आनंद नहीं, बल्कि सत्य की खोज और समाज का
मार्गदर्शन है। आज जब दुनिया असमानता, युद्ध और पर्यावरण
संकट जैसी चुनौतियों से जूझ रही है, कला की भूमिका और भी
महत्वपूर्ण हो गई है। यह हमें न केवल संवेदनशील बनाती है, बल्कि
हमें सही दिशा में सोचने और कार्य करने के लिए प्रेरित भी करती है। इसलिए यह कहना
बिल्कुल उचित है कि—“उत्कृष्ट कला हमारे अनुभव को प्रकाशित करती है और सत्य को
उद्घाटित करती है, यही
उसकी वास्तविक शक्ति और उद्देश्य है।”
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