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Oct 8, 2025

68th BPSC PYQ Essay model answer hindi pdf -अपने अनिवार्य कर्तव्य का पालन करें क्योंकि कर्म, निष्क्रियता से अवश्य ही उत्तम है।

अपने अनिवार्य कर्तव्य का पालन करें क्योंकि कर्म, निष्क्रियता से अवश्य ही उत्तम है।


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मानव जीवन का सार कर्म है। जब तक मनुष्य जीवित है, तब तक वह किसी न किसी रूप में कर्म करता ही रहता है। भगवद्गीता का यह उपदेश—“नियतं कुरु कर्म त्वं कर्म ज्यायो ह्यकर्मणः”—जीवन का शाश्वत सत्य है। इसका अर्थ है कि अपने अनिवार्य कर्तव्यों का पालन करो क्योंकि कर्म निष्क्रियता से श्रेष्ठ है। कर्म का यह सार न केवल मानव बल्कि संसार के प्रत्‍येक प्राणी यहां तक कि प्रकृति भी निरंतर अपने कर्तव्‍यों का पालन करती है जिसके कारण ही यह संसार सदियों से संचालित होता आ रहा है। निष्क्रियता जहां जड़ता और पतन लाती है वही कर्म जीवन को गति और अर्थ प्रदान करता है। यही कारण है कि भारतीय दर्शन से लेकर आधुनिक युग के महान चिंतक तक सभी ने कर्म के महत्व को सर्वोच्च माना है।

 

भारतीय संस्कृति में कर्म को जीवन का केंद्रीय तत्व माना गया है। उपनिषदों से लेकर गीता तक यही संदेश मिलता है कि बिना कर्म के जीवन अधूरा है। गीता में भगवान कृष्ण ने अर्जुन से कहा—“कर्म ही मनुष्य का धर्म है। निष्क्रिय रहना अधर्म के समान है।” बुद्ध ने भी जीवन का सार सम्यक कर्म को माना। जैन और बौद्ध दर्शन में भी कर्म सिद्धांत जीवन की दिशा निर्धारित करता है। कर्म का अर्थ केवल भौतिक क्रिया नहीं, बल्कि वह हर प्रयास है जो व्यक्ति अपने कर्तव्य की पूर्ति और समाज के कल्याण के लिए करता है। निष्क्रियता से व्यक्ति आत्मिक और सामाजिक दोनों स्तरों पर पिछड़ता है।

 

इतिहास हमें बार-बार यह सिखाता है कि महानता उन्हीं को मिली जिन्होंने अपने कर्तव्यों का पालन किया और निष्क्रियता से दूर रहे। जहां भगवान राम ने अपने राजधर्म और पुत्रधर्म का पालन करते हुए चौदह वर्षों का वनवास स्वीकार किया वहीं युद्धभूमि में अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्‍ण के मार्गदर्शन में अपने कर्तव्‍यों का पालन किया। गौतम बुद्ध ने सांसारिक सुख छोड़कर मानवता के उद्धार का कर्तव्य निभाया और करुणा तथा मध्यम मार्ग का संदेश दिया तो सम्राट अशोक ने युद्ध का त्‍याग कर धर्म एवं अहिंसा का मार्ग अपनाया । इस प्रकार अनेक ऐसे उदाहरण है जो यह दिखाता है कि कर्तव्य का पालन ही श्रेष्‍ठ और महान बनने का मार्ग है।

 

कर्म हमारे दिनचर्या के साथ साथ हमारी सार्थकता, हमारे उद्देश्‍य, हमारे चरित्र को भी निर्धारित करता है। महात्मा गांधी ने अपने जीवन का हर क्षण सत्य और अहिंसा के कर्तव्य के पालन में लगाया। उन्होंने कहा था-“कर्म ही जीवन है, निष्क्रियता मृत्यु।” स्वामी विवेकानंद ने युवाओं को जगाते हुए कहा- “उठो, जागो और अपने लक्ष्य की प्राप्ति तक रुको मत।” यह स्पष्ट रूप से कर्म की प्राथमिकता पर बल देता है। अरस्तू ने कहा था “मनुष्य क्रियाशील प्राणी है, उसका स्वभाव ही कर्म करना है।” वहीं अल्बर्ट आइंस्टीन ने अपने वैज्ञानिक अनुसंधानों से यह सिद्ध किया कि कर्म ही सृजन का आधार है।


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कर्म का अर्थ केवल व्यक्तिगत कर्तव्य नहीं, बल्कि सामाजिक जिम्मेदारी भी है। कर्म की महत्‍ता को समझते हुए ही भारतीय संविधान में भी नागरिकों के मौलिक कर्तव्‍यों को स्‍थान दिया गया है। यदि व्यक्ति अपने कर्तव्यों से विमुख हो जाए और निष्क्रियता का रास्ता अपनाए, तो वह केवल अपने जीवन को ही नहीं, बल्कि समाज और राष्ट्र को भी संकट में डाल देता है। एक अबोध शिशु निष्क्रिय होता है, लेकिन वयस्क होकर निष्क्रिय रहना पतन का कारण है। जब व्यक्ति अपने परिवार, समाज और राष्ट्र के प्रति दायित्व निभाता है, तभी सच्चे अर्थों में कर्मयोगी कहलाता है। यदि समाज में हर व्यक्ति अपने कर्तव्य का पालन करे, छात्र पढ़ाई का, शिक्षक शिक्षा का, किसान खेती का और शासक शासन का तो कोई भी शक्ति समाज को प्रगति से रोक नहीं सकती।

 

इतिहास में अनेक उदाहरण मिलते हैं कि जब शासक अपने राजधर्म का पालन नहीं करते, तो राज्य का पतन निश्चित होता है। मौर्य से लेकर मुग़ल साम्राज्य का इतिहास देखें तो पता चलता है कि महान साम्राज्‍यों का पतन आंशिक रूप से उत्तराधिकारियों की निष्क्रियता और विलासिता का परिणाम था। इसी प्रकार व्यक्तिगत स्तर पर भी निष्क्रियता आलस्य, अवसाद और आत्महीनता तथा पतन को जन्म देती है।

 

आज के वैश्विक युग में कर्म का महत्व और भी बढ़ गया है। यदि नागरिक अपने कर्तव्यों का पालन न करें तो कोई भी राष्ट्र आगे नहीं बढ़ सकता। कोविड-19 महामारी के समय डॉक्टरों, नर्सों और स्वास्थ्यकर्मियों ने अपने कर्तव्य का पालन करते हुए दिन-रात सेवा की। यही कर्म था जिसने लाखों जिंदगियों को बचाया। भारत ने आत्मनिर्भर भारत अभियान, स्टार्टअप इंडिया और मेक इन इंडिया जैसी पहलों से यह दिखाया है कि राष्ट्र तभी प्रगति करता है जब उसके नागरिक कर्मशील हों और निष्क्रियता से दूर रहें। अंतरिक्ष में चंद्रयान-3 और आने वाले गगनयान मिशन भारत की कर्मठता का परिणाम हैं।

 

हालाँकि कर्म श्रेष्ठ है, पर इसका अर्थ अंधी सक्रियता नहीं है। आपसी हितों का टकराव, युद्ध, आतंकवाद, पर्यावरण का अतिदोहन, आचरण में अनैतिक कर्मो, भ्रष्‍टाचार का समावेश आदि सकारात्‍मक श्रेष्‍ठ कर्म नहीं माने जा सकते। कर्म तभी श्रेष्ठ है जब वह धर्म और विवेक के अनुरूप हो। यदि कर्म से समाज का कल्याण न हो, तो वह कर्म भी विनाशकारी बन सकता है। आधुनिक दुनिया में अति-उत्पादन और अनियंत्रित औद्योगिकीकरण इसी अंधे कर्म का परिणाम है, जिसने जलवायु संकट, वैश्विक टकराव को जन्‍म दिया है। इसलिए कर्म और निष्क्रियता के बीच संतुलन आवश्यक है। कभी-कभी चिंतन, ध्यान और विश्राम भी जरूरी है, ताकि कर्म की दिशा सही रहे।

 

मानव जीवन का वास्तविक मूल्य कर्म में ही है। निष्क्रियता केवल जड़ता और पतन लाती है, जबकि कर्म जीवन को गति और अर्थ प्रदान करता है। आज जब दुनिया अनेक संकटों से जूझ रही है जलवायु परिवर्तन, युद्ध, असमानता तो कर्म ही वह साधन है जो हमें समाधान की ओर ले जा सकता है। निष्क्रिय होकर बैठना किसी समस्या का उत्तर नहीं है। इसलिए जीवन का मूलमंत्र यही होना चाहिए“ अपने अनिवार्य कर्तव्य का पालन करो, क्योंकि कर्म ही वास्तविक धर्म है और निष्क्रियता उसका पतन।”


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