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प्रश्न: नीति आयोग द्वारा जारी AI आधारित रोजगार सृजन रोडमैप के प्रमुख तत्व क्या हैं और यह भारत की अर्थव्यवस्था, कौशल विकास एवं वैश्विक नेतृत्व पर किस प्रकार प्रभाव डालेगा?
उत्तर:
नीति आयोग द्वारा
हाल ही में विकसित भारत के लिए AI आधारित
रोजगार सृजन रोडमैप प्रस्तुत किया गया। रिपोर्ट यह दर्शाता है कि AI केवल तकनीकी नवाचार तक सीमित नहीं बल्कि कार्य, श्रमिक और पूरे कार्यबल में संरचनात्मक परिवर्तन लाएगा । इसके विविध प्रभावों को निम्न प्रकार देखा जा सकता है।
अर्थव्यवस्था
पर प्रभाव
- उत्पादन में AI स्वचालन से नियमित और दोहराए जाने वाले कार्यों को सरल बनेगे।
- AI से जटिल समस्या-समाधान क्षमता बेहतर होने उत्पादकता बढ़ेगी।
- कार्यबल स्तर पर हाइब्रिड मॉडल लागू होगा जहाँ मानव और AI मिलकर काम करेंगे।
- अगले पांच वर्षों में लगभग 4 मिलियन नई नौकरियों के उत्पन्न होने की संभावना।
कौशल विकास
- नई कौशल की आवश्यकता होने से कुछ पारंपरिक नौकरियां समाप्त होंगी तो नई भूमिकाओं वाली नौकरियां उत्पन्न होंगी।
- कार्यबल एवं छात्रों में AI कौशल एवं दक्षता आएगी जिससे स्टार्टअप तथा अनुसंधान में नए अवसर आएंगे।
वैश्विक
नेतृत्व
- भारत तकनीकी नवाचार द्वारा वैश्विक रूप से प्रतिस्पर्धी बनेगा और नवाचार का वैश्विक केंद्र बनेगा।
इस
प्रकार नीति आयोग का दृष्टिकोण भारत को AI अर्थव्यवस्था में अग्रणी और प्रतिस्पर्धी
बनाने में निर्णायक साबित होगा। हांलाकि वर्तमान में रोजगार परिवर्तन का जोखिम, कौशल अंतराल जैसी चुनौतियां भी है
जिसके लिए नीति आयोग ने AI प्रतिभा मिशन, शिक्षा में AI एकीकरण, राष्ट्रीय AI साक्षरता कार्यक्रम, शोध एवं स्टार्ट-अप समर्थन जैसी
रणनीतियाँ सुझाई हैं।
प्रश्न: वर्तमान में भारतीय न्यायपालिका के समक्ष प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं? इन चुनौतियों का समाधान किस प्रकार किया जा सकता है जिससे भारत की न्यायपालिका को तीव्र, निष्पक्ष और पारदर्शी बनायी जा सके।
उत्तर: भारतीय न्यायपालिका लोकतंत्र और संविधान की रीढ़ है जो कानून के शासन को सुनिश्चित करती है। वर्तमान में भारतीय न्यायपालिका के समक्ष अनेक चुनौतियां है जिनमे प्रमुख निम्न है
- लंबित मामलों की संख्या- लगभग 5 करोड़ मामले लंबित हैं जिनमें 88,000 से ज्यादा सुनवाई के लिए सर्वोच्च न्यायालय में प्रतीक्षारत है।
- न्यायाधीशों की कमी-अधीनस्थ न्यायालयों में 5,000 से ज्यादा जबकि उच्च न्यायालयों में 345 पद खाली।
- अपर्याप्त अवसंरचना- ई-कोर्ट, डिजिटल उपकरण और न्यायालय कक्षों की कमी।
- मुकदमेबाज़ी का बोझ- सरकारी निकायों द्वारा दायर अत्यधिक मामले न्यायिक समय और संसाधन पर दबाव डालते हैं।
- पारदर्शिता एवं जवाबदेही की कमी- कॉलेजियम प्रणाली अस्पष्ट; न्यायिक नैतिकता पर पर्याप्त निगरानी नहीं।
इन चुनौतियों का समाधान केवल न्यायपालिका में सुधार से संभव नहीं है जिसके लिए विस्तृत संस्थागत और प्रक्रियात्मक सुधार आवश्यक हैं।
डिजिटल सुधार और तकनीकी एकीकरण
- ई-कोर्ट मिशन, NJDG और लाइव-स्ट्रीमिंग के माध्यम से न्याय प्रक्रिया तेज़, पारदर्शी और सुलभ।
- ऑनलाइन ट्रैकिंग, डिजिटल फ़ाइलिंग और AI द्वारा शेड्यूलिंग।
मानव संसाधन सुधार
- अखिल भारतीय न्यायिक सेवा का गठन।
- प्रशिक्षण मॉड्यूल और विशेष सेवा ट्रैक से दक्षता व विशेषज्ञता बढ़ाना।
सशक्त अवसंरचना और विकेंद्रीकरण
- राष्ट्रीय न्यायिक इंफ्रास्ट्रक्चर प्राधिकरण
- क्षेत्रीय पीठें और उच्च न्यायालयों की सर्किट पीठें।
- डिजिटल और फिजिकल कोर्ट सुविधाओं का समन्वय।
पारदर्शिता और जवाबदेही
- कॉलेजियम प्रक्रिया में स्पष्ट मापदंड और स्वतंत्र सचिवालय।
- न्यायिक नैतिकता आयोग और न्यायिक नैतिक संहिता।
नागरिक-केंद्रित न्याय
- बहुभाषी डिजिटल पोर्टल, ऑनलाइन विवाद समाधान।
- ग्राम न्यायालयों में मध्यस्थता केंद्र और मुकदमा-पूर्व समाधान।
निष्कर्षतः, न्यायपालिका में सुधार केवल न्यायालयों की क्षमता बढ़ाने तक सीमित नहीं होना चाहिए, बल्कि इसमें तकनीकी, मानव संसाधन और प्रक्रियात्मक समन्वय शामिल होना आवश्यक है। इस तरह न्यायपालिका तेज़, निष्पक्ष और पारदर्शी बनकर न केवल निर्णय देती है बल्कि राष्ट्र के विश्वास और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा भी करती है।
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