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Oct 9, 2025

71th BPSC Mains answer writing test

 

71th BPSC Mains answer writing test 



प्रश्न: भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा रुपये के अंतर्राष्ट्रीयकरण को बढ़ावा देने हेतु हाल ही में घोषित उपायों की चर्चा कीजिए। साथ ही, इसके संभावित लाभों का विश्लेषण कीजिए। 8 Marks

उत्तर: भारतीय रुपये को वैश्विक व्यापार और वित्तीय लेन-देन की मान्य मुद्रा बनाने की दिशा में हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक ने रुपये के अंतर्राष्ट्रीयकरण की दिशा में महत्‍वपूर्ण कदम उठाए है जिसे निम्‍न प्रकार देख सकते हैं:-

मुख्य उपाय:

  • अनिवासियों को रुपये में ऋण देने की अनुमति भारत के अधिकृत डीलर बैंक और उनकी विदेशी शाखाएँ अब भूटान, नेपाल और श्रीलंका के निवासियों को भारतीय रुपये में ऋण दे सकेंगी। इससे सीमा-पार वित्तीय लेन-देन सरल होंगे और क्षेत्रीय वित्तीय एकीकरण को बल मिलेगा।
  • रेफरेंस रेटरुपये की प्रमुख वैश्विक मुद्राओं के सापेक्ष पारदर्शी रेफरेंस रेट विकसित होने से अंतरराष्ट्रीय निवेशकों,  व्यापारिक संस्थानों को विश्वसनीय मूल्य-संदर्भ मिलेगा।
  • विशेष रूपी वोस्ट्रो अकाउंट्स का विस्तार विशेष रुपी वोस्‍ट्रो खाते द्वारा सरकार की प्रतिभूतियों, कॉर्पोरेट बॉण्ड्स और कमर्शियल पेपर्स में निवेश का अवसर

 

संभावित लाभ:

  • विदेशी मुद्रा भंडार पर निर्भरता में कमीव्यापार के अधिक हिस्से के रुपये में निपटान से डॉलर की मांग घटेगी।
  • विनिमय दर जोखिम में कमीअमेरिकी डॉलर में उतार-चढ़ाव या वैश्विक तरलता संकट से सुरक्षा मिलेगी।
  • आर्थिक स्वतंत्रता में वृद्धि भारत बाहरी झटकों और डॉलर प्रभुत्व से मुक्त होकर आत्मनिर्भर वित्तीय ढांचा विकसित कर सकेगा।
  • व्यापार प्रोत्साहन रुपये को स्थिर क्षेत्रीय मुद्रा के रूप में स्थापित करने से दक्षिण एशिया में भारत की व्यापारिक स्थिति मजबूत होगी।
  • वैश्विक प्रतिष्ठा में वृद्धि भारत को एक प्रभावशाली वित्तीय शक्ति के रूप में स्थापित करेगा।

 

इस प्रकार यह पहल और भारत की आर्थिक भूमिका को विश्व मंच पर सुदृढ़ करने की दिशा में एक दूरगामी कदम है हांलाकि डॉलर से प्रतिस्‍पर्धा, अस्थिर विनिमिय दर जैसी चुनौतियां भी है जिसे दूर करने के प्रयास करने होंगे।

 


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प्रश्न: सामाजिक सुरक्षा कवरेज का विस्तार समावेशी विकास और कल्याणकारी राज्य की दिशा में एक परिवर्तनकारी कदम है। भारत के सामाजिक सुरक्षा तंत्र के संस्थागत सुधारों और उनके सामाजिक-आर्थिक प्रभावों के संदर्भ में कथन का विश्लेषण कीजिए। 8 Marks

उत्तर: सामाजिक सुरक्षा वह व्यवस्था है जिसके माध्यम से राज्य नागरिकों को आय, स्वास्थ्य और जीवन सुरक्षा का आश्वासन देता है। सामाजिक सुरक्षा की दिशा में भारत में कई संस्थागत और नीतिगत सुधार हुए हैं जिसने भारत को सामाजिक न्याय आधारित विकास मॉडल के रूप में स्थापित किया है। इसी क्रम में वर्ल्ड सोशल सिक्योरिटी फोरम 2025 में भी भारत की प्रगति को वैश्विक स्तर पर सराहा गया।

 

  • सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020 द्वारा नौ श्रम कानूनों को एकीकृत कर असंगठित क्षेत्र के करोड़ों श्रमिकों को औपचारिक सुरक्षा दायरे में लाया गया।
  • -श्रम पोर्टल, जन धन योजना, DBT और आयुष्मान भारत जैसी पहलों ने पहचान, भुगतान और लाभ वितरण में पारदर्शिता दक्षता बढ़ाई।
  • प्रधान मंत्री सुरक्षा बीमा योजना , अटल पेंशन योजना, प्रधान मंत्री उज्ज्वला योजना और लखपति दीदी पहल ने सामाजिक सुरक्षा को सामाजिक सशक्तीकरण के साथ जोड़ा।

 

भारत सरकार के इन सुधारों से सामाजिक सुरक्षा कवरेज 2015 के 19% से बढ़कर 2025 में लगभग 64% तक पहुँच गई है, जिससे लगभग 940 मिलियन नागरिक संरक्षित हुए हैं। इसके सामाजिक-आर्थिक प्रभाव निम्‍न प्रकार देखा जा सकता है:

  • गरीबी, असमानता और असुरक्षा में कमी आयी।
  • श्रमिकों की औपचारिक अर्थव्यवस्था में भागीदारी में वृद्धि हुई ।
  • महिलाओं और कमजोर वर्गों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार आया।
  • आर्थिक स्थिरता और मानव पूंजी विकास को बल मिला।

 

निष्कर्षतः, भारत की सामाजिक सुरक्षा नीतियाँ अब केवल राहतकारी उपाय नहीं रहीं, बल्किविकसित भारत 2047” की दिशा में समावेशी, मानव-केंद्रित विकास के लिए सशक्त आधार बन चुकी हैं।

 


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प्रश्न : मतदाता सूची में विलोपन और सुधार की प्रक्रिया में प्रक्रियात्मक सुरक्षा लोकतंत्र की स्वच्छता, वैधता और जनता के विश्वास को बनाए रखने के लिए अनिवार्य है। चर्चा करें 8 Marks

उत्तर: मतदाता सूची लोकतंत्र की आधारशिला है और किसी भी नागरिक का मताधिकार संवैधानिक अधिकार है। विलोपन और सुधार प्रक्रिया में प्रक्रियात्मक सुरक्षा आवश्यक है ताकि किसी भी मतदाता को अनुचित रूप से सूची से हटाए जाने से बचाया जा सके। भारत में यह सुरक्षा नोटिस जारी करना, BLO सत्यापन, और आवेदक को अपनी बात रखने का अवसर देना शामिल है।

 

इस सुरक्षा तंत्र का अभाव चुनावी प्रणाली की वैधता और मतदाता विश्वास को प्रभावित कर सकता है। उदाहरणस्वरूप, बिहार और कर्नाटक के निर्वाचन क्षेत्र में उठे विवाद दर्शाते हैं कि गलत या सामूहिक विलोपन के प्रयास मतदाताओं को मतदान के अधिकार से वंचित कर सकते हैं। ऐसे मामलों में मतदाता संदेह करने लगते हैं कि उनका नाम सूची में है या नहीं, जिससे चुनाव प्रक्रिया के प्रति अविश्वास पैदा होता है।

 

प्रक्रियात्मक सुरक्षा न केवल न्याय और पारदर्शिता सुनिश्चित करती है, बल्कि यह लोकतंत्र में नागरिक भागीदारी को भी प्रोत्साहित करती है। यदि प्रक्रिया कमजोर हो, तो मतदाता सूची में दोहराव, अयोग्य नाम या गलत विलोपन लोकतांत्रिक अवसरों में असमानता और चुनावी दुरुपयोग का माध्यम बन सकते हैं।

 

अतः विलोपन और सुधार में प्रक्रियात्मक सुरक्षा लोकतंत्र की स्वच्छता, वैधता और जनता के विश्वास को बनाए रखने के लिए अनिवार्य है। भविष्य में डिजिटल प्रमाणीकरण, जागरूकता अभियान और तृतीय-पक्ष ऑडिट जैसे उपाय इसे और सुदृढ़ कर सकते हैं।



 


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