GK BUCKET is best for BPSC and other competitive Exam preparation. gkbucket, bpsc prelims and mains, bpsc essay, bpsc nibandh, 71th BPSC, bpsc mains answer writing, bpsc model answer, bpsc exam ki tyari kaise kare

Nov 17, 2025

68th BPSC Mains essay PYQ mus motaile lodha hoyehe na hathi Model answer

"मूस मोटइहें, लोढ़ा होइहें, ना हाथी, ना घोड़ा होइहें।"



Join our BPSC Mains special Telegram Group 
For more whatsapp 74704-95829 

For Youtube Video Click here


भोजपुरी कहावत “मूस मोटइहें, लोढ़ा होइहें, ना हाथी, ना घोड़ा होइहें” जीवन के गहन सत्य और व्यक्ति की सीमा को सरल शब्दों में व्यक्त करती है। इसका मूल अर्थ यह है कि प्रत्येक व्यक्ति या प्राणी की अपनी जन्मजात सीमा होती है, और वह अपनी स्वाभाविक प्रकृति या क्षमता को पूरी तरह नहीं बदल सकता। चूहा, चाहे कितना भी मोटा हो जाए, अधिकतम लोढ़े के आकार का हो सकता है, हाथी या घोड़ा बनने की उसकी क्षमता नहीं है।

 

इसका व्यापक अर्थ सिर्फ भौतिक सीमा तक सीमित नहीं है। यह हमें आत्म-जागरूकता, वास्तविक क्षमता और उद्देश्यपूर्ण प्रयास के महत्व की शिक्षा भी देता है। यह कहावत हमें याद दिलाती है कि जीवन में सफलता पाने के लिए हमें अपनी प्रकृति और सीमाओं को समझते हुए मेहनत करनी चाहिए, न कि अपनी तुलना दूसरों से करके निराश होने। चाणक्य ने अपनी नीतियों में कहा है कि जो व्यक्ति अपनी सीमाओं को समझता है और अपनी पूरी क्षमता का उपयोग करके परेशानियों को दूर करने के बारे में सोचता है, वही बुद्धिमान है।

 

स्‍वामी विवेकानंद ने कहा है कि मनुष्य अपनी प्रकृति से आगे नहीं बढ़ सकता, चाहे वह हजार बार प्रयत्न क्यों न करे।स्‍पष्‍ट है कि प्रकृति ने प्रत्येक जीव को उसकी भूमिका और क्षमता के अनुसार बनाया है। मछली उड़ नहीं सकती और पक्षी व्हेल की तरह गहरे पानी में नहीं तैर सकता। यह किसी प्राणी को कमतर नहीं बनाता, बल्कि दर्शाता है कि अलग-अलग शक्तियाँ अलग-अलग उद्देश्यों की पूर्ति करती हैं।

 

मानव जीवन में सार्थक विकास के लिए अपनी स्वाभाविक प्रवृत्ति और क्षमता को समझना आवश्यक है। समाज में हर व्यक्ति का स्थान उसकी योग्यता, भूमिका और योगदान के आधार पर तय होता है। जो लोग अपनी क्षमताओं को लेकर भ्रमित होते हैं, उनके लिए यह कहावत चेतावनी है। हर किसी का लक्ष्य विश्व नेता या महापुरुष होना जरूरी नहीं है, कुछ लोग शिक्षक, शिल्पकार, या समुदाय निर्माता के रूप में भी चमक सकते हैं।  स्वयं को दूसरों से तुलना करने के बजाय, अपनी शक्तियों और योग्यताओं को पहचानना ही असली आत्मसम्मान और आत्मस्वीकृति है। डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने प्रारंभ में यह समझ लिया था कि उनकी शक्ति विज्ञान और अनुशासन में है, और इसी क्षेत्र में उन्होंने उत्कृष्टता प्राप्त की।



Join our BPSC Mains special Telegram Group 
For more whatsapp 74704-95829


सभी छात्र और प्रतिभाएँ समान नहीं होतीं। एक बच्चा गणित में उत्कृष्ट हो सकता है, तो दूसरा संगीत या कला में। इस कहावत का संदेश यह है कि अपनी प्राकृतिक प्रतिभा को पहचानें और उसी में उत्कृष्टता पाने का प्रयास करें। अनुशासन और प्रशिक्षण से कुछ प्रदर्शन सुधारा जा सकता है, लेकिन कुछ कलात्मक प्रतिभाएँ जन्मजात होती हैं। हर महत्त्वाकांक्षी गायक लता मंगेशकर नहीं बन सकता, लेकिन अपनी कला में सार्थक पहचान पा सकता है।

 

व्यवसाय और अर्थव्यवस्था में भी सीमाओं की पहचान जरूरी है। सभी उद्यम अरबों डॉलर की कंपनियों में तब्दील नहीं हो सकते। कुछ छोटे उद्यम स्थानीय और सतत् बने रहकर भी अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं। अपनी संसाधन सीमाओं को समझकर रणनीति बनाना, अवास्तविक महत्वाकांक्षा की बजाय दीर्घकालिक अनुकूलन की ओर ले जाता है। छोटे व्यवसाय भी सही दिशा में होने पर बड़ा प्रभाव पैदा कर सकते हैं।

 

यह कहावत सीमा बताती है लेकिन इतिहास ने यह भी दिखाया है कि उद्देश्य, मेहनत और अवसर के मेल से व्यक्ति असाधारण ऊँचाइयों तक पहुँच सकता है। डॉ. बी.आर. अंबेडकर दलित परिवार से उठकर भारतीय संविधान के निर्माता बने वहीं दशरथ मांझी ने सिर्फ हथौड़ा और छेनी का उपयोग करके पहाड़ी काटकर सड़क बनाई। पी. वी. सिंधु ने जहां साधारण परिवार से ओलंपिक पदक जीतकर देश का नाम रोशन किया वहीं धीरुभाई अंबानी ने मामूली पृष्ठभूमि से रिलायंस जैसी कंपनी खड़ी की। ये सभी उदाहरण दर्शाते हैं कि कर्म, धैर्य और संकल्प किसी जन्म या सामाजिक सीमा से परे सफलता ला सकते हैं।

 

प्रारंभिक संसाधनों की कमी के बावजूद, वैज्ञानिक और तकनीकी क्षेत्रों में सीमाओं को पार करते हुए डॉ. होमी जहांगीर भाभा ने भारत का परमाणु कार्यक्रम शुरू किया। ISRO ने 2017 में 104 उपग्रह एकसाथ प्रक्षेपित करके विश्व में अपनी वैज्ञानिक क्षमता दिखाई। डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने सपनों को विज्ञान और शिक्षा में बदल कर नयी मिसाल कायम की। ये उदाहरण स्पष्ट करते हैं कि जन्म या सामाजिक स्थिति किसी की प्रतिभा को बाधित नहीं कर सकती, यदि प्रयास और योजना सटीक हो। यह कहावत यह सिखाती है कि व्यक्ति को अपनी सीमाओं की स्वीकृति और वास्तविक क्षमता के अनुसार कर्म करना चाहिए।

 

मूस मोटइहें, लोढ़ा होइहें, ना हाथी, ना घोड़ा होइहें” केवल किसी की जन्मजात सीमा बताने वाली कहावत नहीं, बल्कि जीवन के कई सत्य छुपाए हुए हैं। यह आत्म-जागरूकता और आत्मसम्मान का संदेश देती है। यह व्यक्तिगत, सामाजिक, आर्थिक, शैक्षिक और वैज्ञानिक क्षेत्रों में सीमा और क्षमता को समझने का मार्ग दिखाती है। यह हमें प्रेरित करती है कि कर्म, धैर्य और सतत प्रयास से हम अपने और समाज के लिए सार्थक योगदान कर सकते हैं।

 

स्वामी विवेकानंद का संदेश - उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए।” यह आत्म-जागरूकता हमें यह समझने में मदद करती है कि सफलता का पैमाना किसी और से तुलना में नहीं, बल्कि अपनी पूरी क्षमता के उपयोग में है। एक चूहा हाथी नहीं बन सकता, लेकिन वह अपनी क्षमता के अनुसार अपना सार्थक योगदान दे सकता है। हर व्यक्ति की अपनी पहचान, अपना मार्ग और अपनी शक्ति होती है। अंत: हमें अपनी सीमा समझते हुए, क्षमता पहचानते हुए प्रयास करते रहना चाहिए और यही जीवन और सफलता की असली कुंजी है।

No comments:

Post a Comment