GK BUCKET is best for BPSC and other competitive Exam preparation. gkbucket, bpsc prelims and mains, bpsc essay, bpsc nibandh, 71th BPSC, bpsc mains answer writing, bpsc model answer, bpsc exam ki tyari kaise kare

Nov 13, 2025

लोकोक्ति एवं मुहावरे पर निबंध -अँधा गाँव में कन्हा राजा

 

अँधा गाँव में कन्हा राजा



भारतीय समाज में कहावतें केवल वाक्य नहीं, बल्कि अनुभवों का संक्षिप्त ज्ञान होती हैं।अँधा गाँव में कन्हा राजाऐसी ही कहावत है, जो उस स्थिति को व्यक्त करती है जहाँ सामाजिक जागरूकता और विवेक के अभाव में साधारण क्षमता वाला व्यक्ति भी नेतृत्व का स्थान प्राप्त कर लेता है। यह केवल ग्रामीण जीवन का चित्रण नहीं, बल्कि हमारे राजनीतिक, सामाजिक और प्रशासनिक ढांचे की एक गहरी सच्चाई है। जैसे कि रामधारी सिंह दिनकर कहते हैं- भूमि का जो भाग अंधकार में है, वहीं से प्रकाश की माँग उठती है।यह कहावत बताती है कि नेतृत्व की गुणवत्ता समाज की सामूहिक चेतना से ही निर्धारित होती है।

 

नेतृत्व तभी प्रभावी होता है जब समाज स्वयं विचारशील, शिक्षित और तर्कनिष्ठ हो। जिस समाज में आलोचनात्मक समझ और तथ्याधारित निर्णय क्षमता कमजोर होती है, वहाँ नेतृत्व का चयन बाहरी प्रभाव, लोकप्रियता या भीड़-प्रबंधन कौशल पर आधारित होने लगता है। परिणामस्वरूप, नेतृत्व योग्यता की जगह मात्र आकर्षण, प्रभाव या भाषण-कौशल वाला व्यक्ति सत्ता या समाज संचालन की भूमिका में आ जाता है। अरस्तू का कथन है- “लोकतंत्र वह है जहाँ जनता सत्ता देती है; परंतु प्रश्न यह है कि जनता उस सत्ता के योग्य है या नहीं। यह कथन दर्शाता है कि नेतृत्व की सच्ची गुणवत्ता का निर्धारण जनता की चेतना पर निर्भर करता है।

 

लोकतांत्रिक व्यवस्था में जनता सर्वोच्च होती है, किंतु यदि जनता ज्ञान और विवेक से दूर हो जाए तो लोकतंत्र केवल रूप और प्रक्रिया का ढाँचा भर रह जाता है। यहाँ नेतृत्व योग्यता से नहीं, धारणाओं और प्रभावों से संचालित होने लगता है। यही स्थिति है जहाँकन्हाजैसा साधारण व्यक्ति गांव काराजाबन जाता है। महात्मा गांधी ने कहा था- “लोकतंत्र में जनता वही प्राप्त करती है, जिसके योग्य वह स्वयं होती है।इस रूप में नेतृत्व समाज की चेतना का सीधा प्रतिबिंब है, न कि किसी व्यक्ति का व्यक्तिगत प्रभाव मात्र।

 

Join our BPSC Mains special Telegram Group 
For more whatsapp 74704-95829 

For Youtube Video Click here


इतिहास में भारतीय समाज में नेतृत्व को नैतिकता, स्वभावगत त्याग और लोककल्याण की भावना से जोड़ा गया था। कौटिल्य ने राजधर्म की व्याख्या करते हुए कहा है- “राजा वही है जो प्रजा के सुख में सुख और प्रजा के दुःख में दुःख अनुभव करे।परंतु समय के साथ नेतृत्व का मापदंड बदलने लगा। आधुनिक युग में सामाजिक संपर्क, मीडिया प्रभाव और दृश्यात्मक लोकप्रियता नेतृत्व चयन का प्रमुख आधार बन गए। आजदिखना ही पहचानबन चुका है। ऐसे समय में नेतृत्व तर्क और नीति पर नहीं, बल्कि छवि और प्रचार पर अधिक केंद्रित हो जाता है। समकालीन संदर्भों में यह स्थिति और स्पष्ट दिखाई देती है। गाँवों और कस्बों में वह व्यक्ति नेता माना जाता है जो सरकारी संपर्क में रहता है, अधिक बोल लेता है या भीड़ जुटाने की क्षमता रखता है। वहीं राष्ट्रीय स्तर पर भी भाषण, नारे और भावनात्मक अपील नेतृत्व की योग्यता का आधार बन जाते हैं।

 

वर्तमान भारतीय समाज में आवाज़ की ऊँचाई को तर्क की गहराई से अधिक महत्व दिया जाता रहा है और यह कथन उस मानसिकता को समझने में सहायक है, जिसमें सतही नेतृत्व मजबूत नेतृत्व का रूप ले लेता है। जो लोग पर्यावरणीय आर्थिक स्‍वास्‍थ्‍य आदि मुददों के प्रति जागरुक नहीं होते या उनको जानकारी नहीं होती है तो वे अपनी अल्‍प या आधी-अधूरी जानकारी के साथ विशेषज्ञ बन जाते हैं और समस्‍याओं के वास्‍तविक समाधान के बजाए अक्‍सर गलत सलाहों, उपाय बताने लगते हैं।

 



इस स्थिति के दुष्परिणाम गंभीर और व्यापक होते हैं। सामाजिक स्तर पर विवेक और तार्किकता का ह्रास होता है, जिससे भीड़-मानसिकता बढ़ती है। राजनीतिक स्तर पर निर्णय-प्रक्रियाएँ असंतुलित और अल्पकालिक प्रभावों पर आधारित हो जाती हैं, जिससे नीति-निर्माण और विकास की दिशा अव्यवस्थित हो जाती है। आर्थिक रूप से संसाधनों का उपयोग सही दिशा में नहीं हो पाता और समाज लंबे समय तक पिछड़ेपन या भ्रम की स्थिति में रह जाता है।

 

इस स्थिति में न केवल समाज बल्कि पूरा देश पिछड़ता जाता है। अत: इसके समाधान के रूप में सबसे जरूरी है कि शिक्षा का वास्तविक पुनर्गठन किया जाए। शिक्षा केवल साक्षरता नहीं, बल्कि विचार करने, तुलना करने और निर्णय लेने की क्षमता विकसित करे। डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने कहा था- “शिक्षा का उद्देश्य बुद्धि को तीक्ष्ण करना नहीं, चरित्र को उज्ज्वल बनाना है।जब शिक्षा विचारशील नागरिक बनाती है, तब नेतृत्व स्वाभाविक रूप से गुणवान व्यक्तियों के हाथ में आता है। इसके अलावा स्थानीय स्तर पर पंचायत नेतृत्व प्रशिक्षण, युवा समूहों में नेतृत्व कौशल विकास, और सामुदायिक संस्थाओं के माध्यम से नैतिक मूल्यों का प्रसार के साथ साथ  सूचना और मीडिया के व्यापक प्रभाव के इस दौर में तथ्य-आधारित समझ और सूचना-साक्षरता को विकसित करना अपरिहार्य है। क्योंकि आज लोकप्रियता ज्ञान नहीं, पहुँच का परिणाम है।

 

अंततः यह कहावत एक चेतावनी की तरह है। नेतृत्व का स्तर समाज की स्थिति का दर्पण है। यदि समाज अज्ञान और अंधानुकरण में रहेगा, तो नेतृत्व औसत और तदर्थ होगा। परंतु यदि समाज जागरूक, विचारशील और उत्तरदायी बनेगा, तो नेतृत्व भी दूरदर्शी, नैतिक और जनकल्याणकारी होगा। इस प्रकार, समस्या केवलकन्हाकाराजा होनानहीं, बल्कि गाँव का अँधेरा है जिसे शिक्षा, चेतना और मूल्य के प्रकाश से ही दूर किया जा सकता है।

No comments:

Post a Comment