BPSC Civil service Mains answer writing
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1. प्रश्न: लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था में बाज़ार के वर्चस्व ने शासन, समाज और नैतिक मूल्यों को किस प्रकार प्रभावित किया है? उदारीकरण के बाद के भारत के संदर्भ में विश्लेषण करें। 38
अंक
उत्तर: 1991
में भारत द्वारा नयी आर्थिक नीति अपनायी गयी जिसके तहत भारतीय
अर्थव्यवस्था में उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण सुधारों का आगमन हुआ। हांलाकि इन सुधारों ने भारत में आर्थिक स्वतंत्रता ने नई ऊर्जा दी लकिन इसके साथ बाज़ार का वर्चस्व भी बढ़ा जो लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए नई चुनौतियाँ लेकर आया।
उल्लेखनीय है कि लोकतंत्र जहां नागरिक-केंद्रित व्यवस्था है, वहीं बाज़ार लाभ-केंद्रित प्रणाली पर आधारित है। भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में बढ़ता
बाजारवाद न केवल शासन, समाज और नैतिक मूल्यों को
प्रभावित कर रहा है बल्कि समाज और शासन की दिशा भी तय कर रहा है जिसे निम्न प्रकार समझ सकते हैं।
शासन पर प्रभाव
- उदारीकरण के बाद राज्य की भूमिका “कल्याणकारी” से बदलकर “सुविधादाता” की हो गई। नीतियाँ अब अक्सर निजी निवेश को आकर्षित करने पर केंद्रित हैं, न कि नागरिक कल्याण पर।
- नीति-निर्माण में लोकतांत्रिक विमर्श सीमित हुआ है और नीतिगत निर्णयों पर कॉरपोरेट लॉबी का प्रभाव बढ़ा है।
- जनता की अपेक्षाओं, जनकल्याण और प्रशासनिक प्राथमिकताओं में असंतुलन पैदा हुआ है।
सामाजिक संरचना पर प्रभाव
- बाज़ार ने समाज को उपभोक्ता मानसिकता की ओर मोड़ा।
- असमानता और वर्ग विभाजन तेज़ी से बढ़े।
- शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास जैसी सेवाएँ बाज़ार-निर्भर हुईं, जिससे सामाजिक न्याय की भावना कमजोर पड़ी।
- सांस्कृतिक जीवन में भी बाज़ार-उन्मुख उपभोग ने परंपरागत मूल्यों को प्रतिस्थापित किया।
नैतिक मूल्य
पर प्रभाव
- लोकतंत्र का नैतिक आधार समानता, सहभागिता और उत्तरदायित्व पर टिका है, परंतु बाज़ार ने इन सिद्धांतों को चुनौती दी है।
- व्यक्ति जहां अब “नागरिक” से अधिक “ग्राहक” बन गया है वहीं सामूहिक उत्तरदायित्व की जगह व्यक्तिगत लाभ ने ले ली है।
- लोकतंत्र के चौथे स्तंभ मीडिया और राजनीति दोनों में नैतिकता पर लाभ-प्रेरणा हावी हुई है।
भारत आज आर्थिक रूप से सशक्त तो हो रहा है, परंतु सामाजिक रूप से कमजोर भी। यदि लोकतंत्र को जीवंत बनाए रखना है, तो आवश्यक है कि विकास और नैतिकता के बीच संतुलन बनाया जाए। राज्य बाजार का सेवक बनने के बजाए बाज़ार का नियामक बने और नीति-निर्माण में सामाजिक उत्तरदायित्व और पारदर्शिता को पुनर्स्थापित करें। लोकतंत्र तभी सार्थक है जब राज्य केवल आर्थिक वृद्धि का नहीं, बल्कि मानव कल्याण का साधन बने।
प्रश्न: भारत
उन्नत प्रौद्योगिकी को अपनाकर विनिर्माण क्षेत्र में वैश्विक नेतृत्व कैसे प्राप्त
कर सकता है? विश्लेषण कीजिए। 8 अंक
उत्तर: भारत का विनिर्माण क्षेत्र का GDP का
मात्र 15–17% का योगदान रहा है,
जो तुलनात्मक रूप से काफी कम है। अतः भारत को
वैश्विक विनिर्माण नेतृत्व हासिल करने के लिए संरचनात्मक सुधारों के साथ उन्नत प्रौद्योगिकियों
का तीव्र एकीकरण आवश्यक है।
इस दिशा में अग्रणी प्रौद्योगिकी
जैसे कृत्रिम बुद्धिमत्ता/मशीन लर्निंग, एडवांस्ड मटेरियल, डिजिटल
ट्विन्स और रोबोटिक्स क्षेत्र भारतीय विनिर्माण की उत्पादकता और दक्षता बढ़ाने में
निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं जिसे निम्न प्रकार समझ सकते हैं
- कृत्रिम बुद्धिमत्ता/मशीन लर्निंग के उपयोग से फार्मा, रसायन आदि में क्षेत्रीय मांगों के अनुसार उत्पादन अनुकूलित किया जा सकेगा।
- डिजिटल ट्विन्स से उद्योगों को रियल-टाइम डेटा विश्लेषण और प्रिडिक्टिव मेंटेनेंस की सुविधा मिलेगी, जिससे लागत घटेगी और मशीनरी की कार्यशीलता बढ़ेगी।
- एडवांस्ड मटेरियल्स जैसे थर्मोप्लास्टिक यौगिक रेलवे व रक्षा क्षेत्र में संरचनात्मक मजबूती के साथ ध्वनि अवरोध व कंपन अवशोषण प्रदान करेंगे।
- रोबोटिक्स और एक्सोस्केलेटन तकनीक खतरनाक उद्योगों जैसे रासायनिक एवं परमाणु संयंत्रों आदि में श्रमिकों की सुरक्षा और उत्पादकता को बढ़ाएगी।
यदि ये तकनीकें बड़े पैमाने पर अपनाई
जाएँ तो इससे न केवल निर्यात प्रतिस्पर्धा में वृद्धि होगी, बल्कि
भारत “मेक इन इंडिया 2.0” के तहत विनिर्माण हब के रूप में उभर सकता है
जो भारत को वैश्विक नेतृत्व प्रदान करने में सहायक होगा। हांलाकि अनुसंधान
एवं विकास में निवेश की कमी, विखंडित मूल्य श्रृंखला और नीतिगत अनिश्चितता अभी
भी प्रमुख अवरोध हैं जिस पर ध्यान दिया जाना आवश्यक है।


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