BPSC Mains Test practice- 22.10.25
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प्रश्न: नवीनतम आंकड़ों के अनुसार भारतीय रिजर्व बैंक के विदेशी मुद्रा भंडार में स्वर्ण के हिस्सा बढ़कर 15% हो गया है, इसका आर्थिक, रणनीतिक और भू-राजनीतिक संदर्भ में विश्लेषण कीजिए। क्या यह कदम भारत की वित्तीय सुरक्षा को सुदृढ़ करता है या नए जोखिमों का द्वार खोलता है? 38 Marks
उत्तर:
भारतीय रिजर्व बैंक के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार भारत का स्वर्ण भंडार 102.3
बिलियन डॉलर तक पहुँच गया है, जो
पहली बार 100 बिलियन डॉलर के पार गया है। इस वृद्धि के साथ विदेशी मुद्रा भंडार
में स्वर्ण का हिस्सा अब लगभग 15% हो गया है, जबकि एक दशक पूर्व यह केवल 7% था।
यह
परिवर्तन भारत की विदेशी मुद्रा नीति और आरक्षित परिसंपत्ति प्रबंधन में गहरे
बदलाव का संकेत देता है जिसके आर्थिक, रणनीतिक और भूराजनीतिक महत्व निम्न प्रकार समझ जा सकता है
आर्थिक
संदर्भ
- वैश्विक स्तर पर अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता को कम करने की प्रवृत्ति डी-डॉलराइजेशन की दिशा में कदम है। स्वर्ण भंडार में वृद्धि भारत की इसी रणनीति को दर्शाती है, जिससे विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियों में विविधता लाई जा सके और अमेरिकी डॉलर की अस्थिरता से अर्थव्यवस्था को सुरक्षित रखा जा सके।
रणनीतिक
संदर्भ
- मुद्रास्फीति के दौर में स्वर्ण को ‘सुरक्षित निवेश परिसंपत्ति’ माना जाता है। जब मुद्राओं का मूल्य घटता है, तब स्वर्ण अपनी क्रय शक्ति बनाए रखता है। यह विदेशी मुद्रा भंडार को विनिमय दर में उतार-चढ़ाव के जोखिम से बचाने वाला बफर प्रदान करता है।
भू-राजनीतिक
संदर्भ
- रूस-यूक्रेन युद्ध और पश्चिमी प्रतिबंधों के बाद कई देशों ने अपने भंडार में स्वर्ण का हिस्सा बढ़ाया है। भारत भी भू-राजनीतिक अनिश्चितताओं से सुरक्षा के लिए यह नीति अपना रहा है, ताकि किसी एक मुद्रा या वित्तीय प्रणाली पर अत्यधिक निर्भरता न रहे।
इस प्रकार
भारत की यह नीति मुद्रा जोखिम से सुरक्षा, मुद्रास्फीति नियंत्रण और रणनीतिक
स्वायत्तता के लिए यह कदम विवेकपूर्ण प्रतीत होता है लेकिन इसके कुछ संभावित जोखिम
और सीमाएँ भी है जैसे-
- स्वर्ण की तरलता सीमित होने के होती है और इसे नकद में परिवर्तित करने की प्रक्रिया धीमी और महंगी होती है।
- स्वर्ण पर कोई ब्याज नहीं मिलता, जबकि विदेशी मुद्रा परिसंपत्तियाँ कुछ प्रतिफल देती हैं।
- भंडारण और सुरक्षा लागत अधिक होने से दीर्घकाल में यह महँगा विकल्प बन सकता है।
निष्कर्षत:
भारत का बढ़ता स्वर्ण भंडार आर्थिक विवेक और वैश्विक वित्तीय यथार्थ का प्रतीक है।
तथापि, यह नीति तभी सफल मानी जाएगी जब
स्वर्ण भंडार में वृद्धि के साथ-साथ भारत अपनी उत्पादक परिसंपत्तियों, निर्यात क्षमता और मुद्रा स्थिरता को
भी समानांतर रूप से सशक्त करे। इस प्रकार भारत की इस नीति को अवसर और चुनौती दोनों
का संगम कहा जा सकता है।
प्रश्न: हाल ही में GST में किए गए बदलावों ने राज्यों की
राजकोषीय स्थिति को किस प्रकार चुनौतीपूर्ण बना दिया है? केंद्र और राज्यों के बीच
कर-वितरण में संतुलन हेतु आप क्या सुझाव देना चाहेंगे। 38 Marks
उत्तर:
वस्तु एवं सेवा कर को भारत में 2017 में लागू किया गया था ताकि पूरे देश
में एक समान कर प्रणाली स्थापित हो सके और कर संग्रह की जटिलता घटाई जा सके।
प्रारंभ
में राज्यों को आश्वासन दिया गया था कि उन्हें 5 वर्षों तक राजस्व हानि की भरपाई के
लिए केंद्र द्वारा GST
प्रतिपूर्ति उपकर
प्रदान किया जाएगा लेकिन हाल ही में इसे समाप्त कर दिया गया, जिससे राज्यों की राजकोषीय स्थिति को चुनौतीपूर्ण
बना दिया है जिसे निम्न प्रकार समझ सकते हैं।
राजस्व
हानि और स्वायत्तता में कमी
- GST लागू होने के बाद राज्य अपने अधिकांश अप्रत्यक्ष कराधान अधिकार खो बैठे, क्योंकि कर संग्रह निर्णय अब GST परिषद के अंतर्गत आता है जहाँ केंद्र का प्रभुत्व है। इससे राज्यों की नीति निर्माण क्षमता घट गई है।
व्यय-संसाधन
असंतुलन
- राज्यों की जिम्मेदारी शिक्षा, स्वास्थ्य, पुलिस, और स्थानीय विकास जैसे क्षेत्रों में अधिक है, लेकिन कर संग्रह का बड़ा हिस्सा केंद्र के पास चला गया। इससे राजकोषीय असंतुलन और वित्तीय निर्भरता बढ़ी है।
केंद्रीय
हस्तांतरण पर अत्यधिक निर्भरता
- कई राज्यों के राजस्व में केन्द्रीय हस्तांतरण 44% तक हैं तथा बिहार जैसे कुछ राज्यों में तो राजस्व में 70% तक हिस्सेदारी केंद्रीय हस्तांतरण से आती है।
- इससे राज्यों की वित्तीय नीति केंद्र की राजनीतिक और प्रशासनिक प्राथमिकताओं पर निर्भर हो गई है। इस स्थिति में केन्द्र एवं राज्य में विपक्षी दल की सरकार होने पर राजनीतिक तनाव भी उत्पन्न हो सकते हैं।
उपकर
और अधिभार का बढ़ता प्रयोग
- केंद्र सरकार ऐसे करों का उपयोग बढ़ा रही है जो राज्यों के साथ साझा नहीं किए जाते। इससे राज्यों को प्राप्त सकल कर राजस्व का हिस्सा घट गया है।
इस प्रकार
GST प्रतिपूर्ति उपकर समाप्त किए जाने
से राज्यों की राजकोषीय स्थिति चुनौतीपूर्ण बन गयी है । इसी क्रम में वित्त
आयोग के कर बंटवारे मानदंड भी कुछ राज्यों द्वारा सवाल उठाए गए हैं जो प्राय:
प्रगतिशील राज्यों को प्रभावित करते हैं। इन स्थितियों में निम्न सुझाव अपनाए जा
सकते हैं:-
- राजस्व बंटवारे नियमों में सुधार- वित्त आयोग को राज्यों की वित्तीय जरूरतों और स्वायत्तता को ध्यान में रखकर कर बंटवारे के मानदंडों में सुधार करना चाहिए।
- कर संग्रह एवं व्यय में संतुलन- राज्यों को अधिक लचीलापन के लिए ऐसा मॉडल अपनाया जाना चाहिए जहाँ संघीय और प्रांतीय सरकारों के बीच कर संग्रह और व्यय में संतुलन हो।
- तर्कसंगत राजस्व वितरण प्रणाली- राज्यों की वित्तीय स्थिति का सतत मूल्यांकन कर राजस्व वितरण को और तर्कसंगत बनाया जा सकता है।
निष्कर्षतः, GST सुधारों ने जहां कर प्रशासन को
एकीकृत किया है,
वहीं राज्यों की
वित्तीय स्वायत्तता और नीति-निर्माण की स्वतंत्रता को चुनौती दी है। सहकारी संघवाद
की भावना को बनाए रखने के लिए केंद्र और राज्यों के बीच कर-वितरण में संतुलन
अनिवार्य है।


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