बिहार में कृषि विकास योजनाएं एवं बागवानी
बिहार की अर्थव्यवस्था में कृषि विकास का महत्व
- बिहार में लगभग 74% श्रमशक्ति अपनी जीविका हेतु कृषि एवं सहवर्ती क्षेत्र पर निर्भर।
- गंगा के मैदानी भाग के समृद्ध प्राकृतिक संसाधन कृषि विकास के अवसर उपलबध कराना।
- राज्य की बहुसंख्यक जनसंख्या की गरीबी एवं कुपोषण दूर करने हेतु।
- सामाजिक आर्थिक विकास तेज करने हेतु।
- रोजगार के अवसर पैदा करने हेतु।
- ग्रामीण क्षेत्र की गरीबी निवारण हेतु।
- 2000 में झारखंड निर्माण के बाद खनिज संसाधन चले जाने से राज्य में आर्थिक विकास में कृषि की भूमिका बढ़ा जाना।
कोविड-19 महामारी के दौरान बिहार के कृषि क्षेत्र हेतु चुनौतियां
- कोविड 19 महामारी और लॉकडाउन के कारण वर्ष 2020 में कषि कार्यों जैसे गेहूं, मक्का की
कटनी दौनी में समस्या।
- बिहार में फैले भ्रम कि पाल्ट्री उत्पादों द्वारा संक्रमण फैलता है। इसके कारण मुर्गीपालकों को काफी नुकसान हुआ ।
- लॉकडाउन
के कारण आपूर्ति शृंखला में व्यवधान आने से दूध,फल, सब्जियों जैसी शीघ्र नाशवान चीजों की
समस्या। ।
- APMC एक्ट, कृषि मंडियां में मध्यस्थ, एजेंट आदि का प्रभाव के कारण सरकार की योजनाओं का लाभ पहुंच न होना।
कृषि रोडमैप 3
कृषि रोडमैप-3 के
तहत फसल क्षेत्र, पशुपालन, मत्स्यन, सहकारिता, जल संसाधन , भंडारण और खाद्य
प्रसंस्करण, जैविक कृषि से संबंधित कार्यक्रमों के
जरिए कृषि एवं सहवर्ती क्षेत्र के विकास हेतु व्यापक दृष्टिकोण अपनाया गया है ताकि
दूसरी हरित क्रांति बिहार में लाया जा सके।बिहार सरकार द्वारा लाए गए कृषि रोडमैप
का उद्देश्य है टिकाऊ कृषि की अवधारणा को बल देना।
इसके तहत मृदा की गुणवत्ता को बनाए रखने हेतु सरकार द्वारा अनेक पहल
आरंभ की गयी है- जैविक खेती, पोषक तत्वों की पुनचक्रण, मृदा स्वास्थ्य
कार्ड, फसल अवशिष्ट प्रबंधन, हरित खाद, वर्मी कम्पोस्ट इत्यादि ।
टिकाऊ कृषि हेतु गुणवतापूर्ण बीज, उर्वरक, कीटनाशी आदि का उपयोग आवश्यक है
तथा इनके गुणवत्ता मानक वैधानिक रूप से निर्धारित है जिनको लागू करने हेतु वैधानिक
प्रावधान तथा दंड की व्यवस्था लागू की गयी है।
कृषि उपदानों की गुणवतत्ता के निर्धारण हेतु राज्य में उर्वरक, कीटनाशी, बीज, मृदा जांच प्रयोगशालाएं के अलावा बायोकंट्रोल प्रयोगशाला, टीशू कल्चर प्रयोगशाला स्थापित किए जाने की योजना है। बिहार में उर्वरक
तथा कीटनाशी की जांच हेतु पटना में प्रयोगशाला कार्यरत है तथा मुजफ्फरपुर, सहरसा तथा भागलपुर में प्रयोगशालाओं का निर्माण कार्य जारी है।
बागवानी के प्रोत्साहन हेतु राष्ट्रीय बागवानी मिशन का क्रियान्वयन
राज्य के 23 जिलों में किया जा रहा है वही शेष 15 जिलों में मुख्यमंत्री बागवानी मिशन चलाया जा रहा है।
किसानों का मित्र केंचुआ मृदा की उर्वरा शक्ति को बनाए रखता है।
बिहार में व्यापक स्तर पर वर्मी कम्पोस्ट के उत्पाद एवं उपयोग को बढ़ावा दिया जा
रहा है तथा वर्मी कम्पोस्ट के व्यवसायिक स्तर पर उत्पादन को बढ़ावा दिया जा रहा है।
सूक्षमजीवी जैव उर्वरक
मृदा की उर्वरता हेतु नीलहरित शैवाल, एजोटोवैक्टर, राइजोबियम जैसे सूक्ष्मजीवी
जैव उर्वरकों को बढ़ावा देने हेतु कृषकों को प्रशिक्षण दिया जा रहा है। 90% तक अनुदान के माध्यम से उनको जैव उर्वरक उपलब्ध कराया जा रहा।
राज्य में हरित खाद के रूप में ढैंचा, गरमा मूंग, काउपी आदि की खेती को बढ़ावा
दिया जा रहा है जो हरित खाद के रूप में भूमि की
उर्वरा शक्ति को बढ़ाते हैं। हरी खाद के लिए बिहार में बीज उत्पादन का प्रयास किया
जा रहा है तथा कृषकों को टोकन मूल्य पर बीज उपलब्ध कराया जा रहा है।
गोबर गैस प्लांट की स्थापना हेत बिहार सरकार द्वारा तकनीकी एवं
आर्थिक सहायता उपलबध करायी जा रही है। गोबर गैस इकाईयों की स्थापना हेतु सेवा
प्रदाता को चिह्नित करने का कार्य किया जा रहा हैं। शहरी क्षेत्र में इस दिशा में
कार्बनिक अवशिष्ट से कम्पोस्ट बनाने को प्रोत्साहित किया जा रहा है।
बिहार के उत्पादों को पहचान एवं कानूनी अधिकार देने हेतु जीआई टैग
देने का प्रयास भी बिहार सरकार द्वारा दिया जा रहा है। इस क्रम में भागलपुरी सिल्क, मखाना, कतरनी
चावल आदि को जीआई टैग प्रदान किया गया।
(एग्रीकल्चर टेक्नोलॉजी मैनेजमेंट एजेंसी)- यह एक स्वायत्त पंजीकृत संस्थान है जो जिला स्तर पर कृषि में प्रौद्योगिकी
प्रसार एवं अनुसंधान की गतिविधियों के एकीकरण के साथ सार्वजनिक कृषि प्रौद्योगिकी
व्यवस्था प्रबंधन के विकेन्द्रीकरण की दिशा में कार्य करता है। इसके माध्यम से विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं
- कृषक वैज्ञानिक मिलन,किसान मेला, कृषक गोष्ठी का आयोजन।
- कृषक
प्रशिक्षण कार्यक्रम, उपयोगी
कृषि साहित्य का प्रकाशन ।
- कृषि के विकास हेतु निजी क्षेत्र को प्रोत्साहन।
- कृषक हितार्थी समूह का गठन एवं दक्षता संवर्धन।
राज्य के किसानों को बीज उत्पादन, बीज प्रसंस्करण और बीज वितरण के लिए प्रोत्साहित करता है ।यह प्रमाणित
बीजों का प्रसंस्करण पैकिंग तथा कृषि विभाग द्वारा संचालित विभिन्न योजनाओं के तहत
सब्सिडी युक्त दर पर बीजों का वितरण कार्य भी करता है।
इसके अलावा बीज की खरीदी के लिए ऑनलाइन आवेदन, बीज को घर पहुंचाना और क्यूआर कोड का उपयोग करके बीज के स्रोत का पता लगाने जैसी नई
प्रौद्योगिकियों का उपयोग शुरू किया जा रहा है।
बामेती राज्य स्तरीय प्रशिक्षण संस्थान है जो राज्य में कृषि प्रसार
सेवाओं में नई प्रौद्योगिकी को शामिल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है । यह
मांग के अनुसार नए कार्यक्रम के लिए विभिन्न प्रौद्योगिकी और प्रबंधन संस्थानों से
संपर्क करके राज्य सरकार के विभिन्न विभागों को प्रशिक्षण और प्रशिक्षण सामग्री
उपलब्ध कराता है।
बिहार सरकार के सात निश्चय के तहत आत्मनिर्भर बिहार के लिए राज्य
सरकार द्वारा हर खेत को पानी देने का प्रयास किया जा रहा है। इस कार्यक्रम के तहत
सिंचाई प्रणालियों के विकास के लिहाज से और सिंचित क्षेत्रों और संभावित जल
निकायों तथा सिंचाई योजनाओं की पहचान के लिए लघु जल संसाधन विभाग, कृषि विभाग, ऊर्जा, कृषि और पंचायती राज विभाग द्वारा
संयुक्त रूप से तकनीकी सर्वेक्षण कार्य किया जा रहा है जिसमें जल संसाधन विभाग नोडल अभिकरण की तरह है।
जलवायु अनुकूल कृषि कार्यक्रम
बिहार के छोटे और सीमांत किसानों को जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक
आपदाओं की स्थिति में होने वाले प्रभावों से सहायता हेतु चलायी गयी योजना ।
बिहार के छोटे और सीमांत किसान जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक आपदाओं की स्थिति में बड़े पैमाने पर
प्रभावित होते हैं। इसे ध्यान रखते हुए राज्य सरकार ने वर्ष 2019 में बिहार के 8 जिले नालंदा, नवादा, गया, भागलपुर, मुंगेर, बांका, खगड़िया और मधुबनी में जलवायु अनुकूल कृषि की एक पायलट योजना शुरू की जिसके परिणाम
उत्साहवर्धक थे।
डॉ राजेंद्र प्रसाद कृषि केंद्रीय विश्वविद्यालय पूसा, बिहार कृषि विश्वविद्यालय सबौर, बोरलॉग इंस्टीट्यूट फॉर साउथ एशिया, पूसा
और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, पूर्वी क्षेत्र-पटना के वैज्ञानिकों द्वारा चिह्नित गांव में बड़े पैमाने पर निदर्शन
किए। इसके अलावा अंतर्राष्ट्रीय चावल अनुसंधान, मनीला
और अंतर्राष्ट्रीय आलू केन्द्र से भी तकनीकी सहायता ली जा रही है।
तृतीय कृषि रोड मैप के तहत अनाज, बागवानी, पशु उत्पाद, मत्स्य उत्पाद में वृद्धि का लक्ष्य निर्धारित किया गया है जो कृषि एवं कृषकों की हालत सुधारने में निश्चित रूप से सहायक है लेकिन
इसके साथ-साथ कृषि उत्पादन के लिए आधुनिक बाजार व्यवस्था का विकास भी किया जाना अति आवश्यक है ताकि किसानों को उनके उत्पाद का
उचित मूल्य सके तथा उनकी आय में वृद्धि हो सके।
- कृषि उत्पाद बाजार के ढांचागत सुधार के फलस्वरूप राज्य में सरकारी, सहकारी निजी एवं संयुक्त क्षेत्र में
बाजारों के विकास पर ध्यान दिया जाए।
- कृषि
उत्पाद की प्रकृति के अनुसार आधुनिक बाजार का विकास किया जाना चाहिए।
- फल
सब्जी जैसे शीघ्र नाशवान कृषि उत्पादों के विपणन के लिए किसानों को संगठित किया जाए इस हेतु
किसान समूह का गठन किया जा सकता है और दुग्ध फेडरेशन की तरह फल, सब्जी फेडरेशन की स्थापना की जा
सकती है।
- फल एवं सब्जी के वितरण व्यवस्था को आधुनिक तरीके से विकसित करने हेतु वैल्यू चैन को विकसित किया जाए।
- कृषि
उत्पादों के प्राथमिक प्रसंस्करण जैसे सफाई, छटनी, ग्रेडिंग की व्यवस्था गांव
स्तर पर तथा किसान समूह के स्तर पर की जानी चाहिए।
- विभिन्न स्तरों पर आधुनिक बाजार के विकास के साथ-साथ ग्रामीण स्तर पर ग्रामीण हाट को आधुनिक सुविधाएं दी जाएं तथा टर्मिनल मार्केट तथा इंटीग्रेटेड वैल्यू चैन को विकसित किया जाए।
- निजी उद्यमियों को आधुनिक कृषि बाजार की स्थापना के लिए प्रोत्साहित किया जाए।
- खाद्य प्रसंस्करण में निवेश एवं उद्यमियों को आकर्षित करने हेतु सरकार द्वारा आकर्षक नीति एवं योजनाएं बनाई जाए।
मुख्यमंत्री तीव्र बीज विस्तार कार्यक्रम
उन्नत प्रभेदों के बीज उपलब्ध करा कर बीज उत्पादन हेतु किसानों को
प्रोत्साहित करना।
नवीनतम प्रभेद के बीज की पहुंच ग्रामीण क्षेत्रों में सुनिश्चित करने
हेतु अनुदानित दर पर बीज उपलब्ध कराना।
धान,गेहूं, दलहन एवं तिलहन फसल हेतु अनुदानित दर पर आधार/ प्रमाणित बीज
उपलब्ध कराना।
समकित कीट प्रबंधन हेतु बीज उपचार तकनीक को अपनाने हेतु किसानों को
बीजोपचार रसायन का अनुदनित दर पर वितरण
पावरटिलर, सीड
ड्रील, हार्वेस्टर जैसे 44 प्रकार के विभिन्न कृषि यंत्रों पर अनुदान की व्यवस्था ।
कृषि के समग्र विकास हेतु कृषि विभाग द्वारा बिहार के सभी प्रखंडों
में ई किसान भवन का निर्माण ।
प्रत्येक पंचायत में पदस्थापित किसान सलाहकारों के मानदेय राज्य
योजना से देने हेतु।
टाल क्षेत्रों में कीट प्रबंधन एवं पर्यावरण संतुलन को ध्यान में
रखते हुए फसल उत्पादन बढ़ाने तथा कृषक आत्मनिर्भरता हेतु कृषक प्रक्षेत्र पाठशाला
का संचालन।
बिहार में दियारा क्षेत्र के विकास पर आधारित योजना जिसके तहत संकंर
प्रजति के सब्जी बीज तथा पाईप बोरिंग हेतु अनुदान दिया जाता है।
धान कटाई के उपरांत गेहॅू की बोआई जीरोटिलेज तकनीक से करने
हेतुकिसानों को प्रोत्साहित करनेवाली योजना । इसके तहत बुआई समय में 20-25दिन की बचत होती है और जुताई का पैसा बच
जाता है।
अन्न भंडारण हेतु किसानों को अनुदानित दर पर धातु कोठिला का वितरण ।
बिहार में कृषि में तकनीकी की आवश्यकता
- बिहार के छोटे कृषि जोत से अधिक उत्पादकता प्राप्त करने हेतु ।
- जलवायु परिवर्तन तथा प्राकतिक आपदाओं से फसल क्षति को कम करने हेतु ।
- बिहार में खाद्य सुरक्षा तथा पोषण को सुनिश्चित करने हेतु ।
- उत्पादन, फसल कटाई प्रबंधन, मूल्य संवर्धन, कृषि उत्पादों के
प्रसंस्करण हेतु ।
- कम लागत से उत्पादकता में वृद्धि हेतु नवचार तकनीक एवं प्रबंधन की आवश्यकता ।
- कृषकों की आय वद्धि एवं उत्पादों की उत्तरजीविता एवं गुणवत्ता बढ़ान हेतु।
- बिहार की बढ़ती जनसंख्या तथा घटते कृषि क्षेत्र के मध्य पर्यावरण संतुलन हेतु।
- बिहार में उद्योगों के विकास एवं रोजगार सृजन हेतु कृषि में तकनीकी सहयोग आवश्यक।
उल्लेखनीय है कि तकनीक का समावेश समय की मांग है और मॉलिक्यूलर बायोलॉजी, बायो टेक्नोलॉजी, नैनो टेक्नोलॉजी, इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी जैसे क्षेत्र से न केवल बिहार के कृषि विकास एवं खाद्यान्न उत्पादन में क्रांतिकारी परिवर्तन आ सकता है बल्कि पर्यावरण संरक्षण के प्रयासों को भी प्रोत्साहन दिया जा सकता है ।
कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा को बढ़ावा देने हेतु उपाय
- कृषि शिक्षा की पढ़ाई हेतु जागरूकता बढ़ाई जाए ताकि छात्रों में कृषि के प्रति वैज्ञानिक सोच विकसित हो और
कृषि विज्ञान की पर्याप्त जानकारी दी जाए।
- छात्रों को स्नातक एवं स्नातकोत्तर स्तर पर छात्रवृत्ति प्रदान की जाए।
- कृषि की गरिमा स्थापित करने हेतु कृषि सेवा को प्रोन्नत किया जाए।
- महाविद्यालयों
में कृषि में जैव प्रौद्योगिकी, नैनो तकनीक, आणविक जीव विज्ञान जैसे नए
स्नातकोत्तर विभाग की शुरुआत।
- कृषि
विश्वविद्यालयों तथा कृषि संबंधी अनुसंधान संस्थानों को उन्नत करने के साथ-साथ पर्याप्त
वित्तीय आवंटन दिया जाए।
- कृषि अनुसंधान में निवेश एवं निजी क्षेत्र को बढ़ावा देने हेतु प्रयास किया जाए।
- कृषि
विश्वविद्यालय में कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा हेतु आउटसोर्सिंग, नेटवर्किंग को बढ़ावा दिया जाए।
बिहार में बागवानी- एक नजर
बिहार में बागवानी क्षेत्र में बहुत तरह के फलों, सब्जियों, फूलों, मसालों तथा औषधीय और सुगंधित पौधों की खेती होती है। बागवानी छोटे और
सीमांत किसानों के बीच ज्यादा लोकप्रिय है क्योंकि श्रम प्रधान और लाभप्रद होने के
कारण ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार एवं आय के प्रचुर अवसर उपलब्ध कराता है।
बिहार की अनुकूल जलवायु, मृदा, भूआकृति, जल संसाधन, तकनीकी सुधार एवं प्रगति, सूक्ष्म सिचाई तकनीक और बेहतर अवसंरचना विकास के कारण बागवानी का
पर्याप्त विकास हुआ है ।
उल्लेखनीय है कि स्वास्थ्य एवं पोषण संबंधी लाभों के कारण राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में इनकी मांग बढ़ी है ।
इस प्रकार देखा जाए तो राज्य के सकल शस्य क्षेत्र में फल और सब्जियों का लगभग 6% हिस्सा है लेकिन कृषि उत्पादों के कुल मूल्य में 35% से ज्यादा हिस्सा है।
बागवानी के प्रोत्साहन हेतु राष्ट्रीय बागवानी मिशन का क्रियान्वयन
राज्य के 23 जिलों में किया जा रहा है वही शेष 15 जिलों में मुख्यमंत्री बागवानी मिशन चलाया जा रहा है।
कृषि रोडमैप-3 के
तहत बागवानी को प्रोत्साहन देने की बात कही गयी है। फलों और सब्जियों के बेहतर
प्रबंधन हेतु शीतगृहों की क्षमता बढ़ायी जा रही है। इस क्षेत्र में जैविक खेती को
बढ़ावा दिया जा रहा है और सूक्ष्म सिंचाई प्रणाली के द्वारा पानी के उपयोग को
बढ़ावा दिया जा रहा है।
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