भारत में स्वास्थ्य क्षेत्र- Health Sector in India
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार स्वास्थ्य सिर्फ रोग या दुर्बलता की अनुपस्थिति नहीं बल्कि एक पूर्ण शारीरिक, मानसिक और सामाजिक खुशहाली की स्थिति है। इस प्रकार जनस्वास्थ्य एक बहुआयामी अवधारणा है जिसके तहत स्वास्थ्य संबंधी सुविधा के साथ-साथ जीने हेतु आवश्यक सुविधाएं जैसे-स्वच्छ पेयजल, स्वच्छता, पोषण आदि भी शामिल किए जाते हैं। डॉक्टर, नर्स, अस्पताल, टीकाकरण, दवा इत्यादि इसके महत्वपूर्ण घटक है जिसके आधार पर इसकी गुणवत्ता सुनिश्चित की जाती है।
बिहार में स्वास्थ्य अधिसंरचना के बारे में पढ़ने हेतु इस लिंक पर जाए ।
विभिन्न रोग के कारण
- जैविक कारक- वायरस, बैक्टिरिया, कवक इत्यादि।
- पौष्टिक कारक- प्रोटीन, विटामिन्स, खनिज कमी।
- रासायनिक कारक- होर्मोन्स, एंजाइम के कारण।
- यांत्रिक कारक- चोट, दुर्घटना आदि ।
- भौतिक कारक- विकिरण, ताप, दाब, आर्द्रता।
आजादी के बाद भारतीय स्वास्थ्य सेवा प्रणाली में सुधार आया तथा नई तकनीकों तथा परिवर्तन से स्वास्थ्य सेवा की गुणवत्ता में काफी सुधार हुआ। 1951 में भारतीय जीवन प्रत्याशा 37 वर्ष थी जो वर्तमान में 65 वर्ष है। खसरा, पोलियो, चेचक जैसी बीमारियों पर नियंत्रण पाया गया और टीवी, मलेरिया जैसी बीमारियों पर नियंत्रण हेतु प्रयास जारी है। इसी क्रम में कुपोषण, भुखमरी, मातृ मृत्यु दर, नवजात मृत्यु दर में कमी दर्ज हुई ।
इस प्रकार स्वस्थ मानव संसाधन से देश के आर्थिक विकास को नई गति मिली फिर भी वर्तमान में स्वास्थ्य देखभाल मानक पूरे देश में न तो एक समान हैं और न ही समावेशी। इसी क्रम में कोविड महामारी ने दिखाया है कि कैसे एक स्वास्थ्य संकट एक आर्थिक और सामाजिक संकट में परिवर्तित हो सकता है।
भारत में स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं
- सामाजिक जटिलताएं जैसे धर्म, जाति, अंधविश्वास।
- डॉक्टर नर्स, उपकरणों, अस्पतालों, संस्थागत सुविधाओं की कमी।
- स्वास्थ्य सुविधाओं पर GDP का 1-2% ही खर्च होना।
- केंद्र राज्य के बीच समन्वय का अभाव।
- केंद्रीय योजनाओं का राज्यों में समुचित तरीके से पालन नहीं होना।
- शहरी ग्रामीण क्षेत्रों में उपलब्ध स्वास्थ्य सुविधाओं में अंतर।
- निजी क्षेत्र का बढ़ता दायरा, महंगी होती स्वास्थ्य सुविधाएं।
- स्वच्छता के प्रति जागरूकता में कमी।
भारत में स्वास्थ्य सुविधाएं
- देश के स्वास्थ्य ढांचे में व्यापक पैमाने पर असमानता है। शहरी क्षेत्रों में जहां उन्नत स्वास्थ्य सुविधाएं मौजूद हैं वहीं कई ग्रामीण क्षेत्रों में बुनियादी स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं की भी कमी है।
- WHO के मानक 1,000 लोगों पर एक डॉक्टर की तुलना में भारत में 1,445 लोगों पर केवल एक डॉक्टर है।
- ग्रामीण क्षेत्र में 60% प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में केवल एक चिकित्सक है जबकि लगभग 5%प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर एक भी चिकित्सक नहीं है।
- देश के कई ग्रामीण स्वास्थ्य केन्द्रों में आवश्यक दवाओं, उपकरणों, स्वास्थ्य कर्मियों की कमी है।
- GDP में स्वास्थ्य पर बहुत कम खर्च किया जाता है। 2018 में भारत का जन स्वास्थ्य खर्च, जीडीपी का 1.28% था। उल्लेखनीय है कि आर्थिक समीक्षा 2020-21 में सार्वजनिक स्वास्थ्य खर्च जीडीपी के 1% से बढ़ाकर 2.5-3% करने की सिफारिश की गई है।
- विश्व बैंक के अनुसार, 2017 में भारत की 62.4% जनसंख्या के पास कोई स्वास्थ्य बीमा कवर नहीं था और भारत का आउट ऑफ पॉकेट स्वास्थ्य खर्च वैश्विक स्तर का 18.0% प्रतिशत की तुलना में 62.4% था।
आउट ऑफ पॉकेट स्वास्थ्य खर्च -ऐसे स्वास्थ्य खर्च जिसे जनता प्रत्यक्ष रूप से अपनी सेविंग से वहन करती है यानी जिस पर कोई स्वास्थ्य बीमा नहीं होता ।
भारत
की पहली राष्ट्रीय
स्वास्थ्य नीति 1983 में बनायी गयी
थी जिसका मुख्य लक्ष्य वर्ष
2000 तक सभी को प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधाएँ उपलब्ध कराना था। इसके
बाद राष्ट्रीय
स्वास्थ्य नीति 2002 लायी गयी तथा वर्ष 2017 को भारत की तीसरी राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति की घोषणा की गयी।
भारत में स्वास्थ्य क्षेत्र में मौजूद प्रमुख चुनौतियां
स्वास्थ्य सेवाओं में असमानता
ग्रामीण क्षेत्र में
गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाएं नहीं पहुंच पाती है। इसके अलावा उपचार हेतु दूरस्थ अस्पतालों में
जाने पर यात्रा में
अतिरिक्त खर्च और दिन भर की दिहाड़ी का नुकसान होने से आर्थिक बोझ बढ़ जाती
है।
आर्थिक असमानता
भारत में व्याप्त आर्थिक असमानता के कारण स्वास्थ्य
सेवाओं की उपलब्धता में काफी विषमता है। निजी अस्पतालों में संपन्न लोगों को तो
गुणवत्ता युक्त स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध हो जाती है, किंतु
निर्धन लोगों के लिए यह स्थिति काफी चिंताजनक है। महँगी होती स्वास्थ्य सेवाओं के कारण गरीब और गरीब होते जा रहे हैं।
स्वास्थ्य जागरूकता
की कमी
भारत में स्वास्थ्य जागरूकता में कमी
देख जाती है, इसके लिए वर्तमान शिक्षा व्यवस्था तथा सामाजिक व्यवस्था जिम्मेदार है।
संवेदनशीलता की कमी
सार्वजनिक स्वास्थ्य केन्द्रों में अक्सर मरीजों के प्रति स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की संवेदनशीलता की कमी और
लापरवाही ।
सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं के प्रति अविश्वास
निःशुल्क स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करनेवाले सार्वजनिक अस्पतालों
की क्षमता और गुणवत्ता के
प्रति लोगों का विश्वास तथा निजी क्षेत्र के प्रति आम लोगों का झुकाव
ज्यादा होना भी एक चुनौती है।
अवसंरचनात्मक सुधार की कमी
सरकारी स्वास्थ्य केन्द्रों में आवश्यक अवसंरचनाओं
जैसे- दवा, उपकरण, गुणवत्तापूर्ण
कुशल मानव श्रम की कमी है।
देश के अस्पतालों में
उपलब्ध बेडों का घनत्व प्रति 1,000 जनसंख्या पर 0.7
है,
जो
कि वैश्विक औसत 2.6
और
WHO
द्वारा
निर्धारित 3.5
से
काफी कम है।
उल्लेखनीय है कि कोविड महामारी की दूसरी लहर में मृत्यु का एक बड़ा कारण ऑक्सीजन की कमी, दवाओं की कमी, बेड की कमी आदि कारणों से इलाज का उपलब्ध नहीं होना था। इसके अलावा मंहगी स्वास्थ्य सुविधाएं कई लोगों की पहुंच से दूर थी। अतः इस दिशा में व्यापक स्तर पर चुनौतियां है।
स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी
भारत के
दूर-दराज क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी । भारत
में रक्तचाप, मधुमेह, मलेरिया, जापानी
बुखार एवं डेंगू जैसी कई संक्रमित बीमारियों का प्रकोप रहता है,
इसी
क्रम में कोविड जैसी महामारी से स्वास्थ्य व्यवस्था एवं सुविधाएं बुरी तरह
प्रभावित हुई हैं।
कुपोषण
भारत में महिलाएँ एवं बच्चे बड़ी तादाद में कुपोषण के
शिकार हैं। वैश्विक भुखमरी
सूचकांक- 2020
में
भारत 107
देशों
में 94वें स्थान
पर रहा है तथा भारत की 14 प्रतिशत
आबादी ‘अल्पपोषित’ है जो भारतीयों की बीमीरियों की सुभेद्यता को
बढ़ाता है।
भ्रष्टाचार
सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं में व्याप्त भ्रष्टाचार
एवं राजनीतिक वर्ग में जन स्वास्थ्य जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे पर उदासीनता ।
स्वास्थ्य क्षेत्र में
सरकार के प्रयास
- सभी गर्भवती महिलाओं को व्यापक और गुणवत्तायुक्त प्रसव पूर्व देखभाल
सुनिश्चित करने हेतु 2014 में केंद्र
सरकार द्वारा प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान की शुरुआत।
- बच्चों के टीकाकरण हेतु 2014 में ‘मिशन इन्द्रधनुष’ नामक बूस्टर टीकाकरण कार्यक्रम की शुरुआत।
- देश भर छोटे बच्चों, किशोरियों और महिलाओं में कुपोषण तथा एनीमिया को चरणबद्ध तरीके से कम करने हेतु 2017 में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा पोषण अभियान की शुरुआत।
- भारतीयों की बड़ी आबादी को सस्ता उपचार मुहैया कराने हेतु 2018 में आयुष्मान भारत-राष्ट्रीय
स्वास्थ्य सुरक्षा मिशन को मंज़ूरी दी गयी जिसके
तहत भारत के 10 करोड़ से
अधिक शहरी और ग्रामीण गरीब परिवारों को स्वास्थ्य सुविधाएँ प्रदान करने का लक्ष्य
निर्धारित किया गया।
- देश भर के 500 मिलियन
गरीबों को 5 लाख रूपए
प्रति परिवार का कैशलेस स्वास्थ्य बीमा प्रदान करने हेतु 2018 में “प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना” की
शुरुआत की गयी।
- दूरदराज क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाएं देने की वैकल्पिक चैनल के रूप में तकनीक सक्षम ई-संजीवनी प्लेटफार्म।
- देश में डॉक्टरों की कमी को दूर करने हेतु सार्वजनिक-निजी भागीदारी मॉडल के तहत मेडिकल कॉलेजों को ज़िला अस्पतालों से संलग्न करने का प्रस्ताव।
- बिहार में स्वच्छ पेयजल और स्वच्छता सुनिश्चित करने हेतु “हर घर नल का जल” तथा “शौचालय निर्माण, घर का सम्मान” सरकार के 7 निश्चय के तहत महत्वपूर्ण संकल्प है।
स्वास्थ्य सुविधाओं में
सुधार हेतु सुझाव
- आर्थिक समीक्षा 2020-21 में
सार्वजनिक स्वास्थ्य खर्च जीडीपी के1% से बढ़ाकर 2.5-3% करने की सिफारिश की गई। इस कदम से भारत का आउट ऑफ
पॉकेट स्वास्थ्य खर्च 65% से घटकर 35% रह जाएगा।
- स्वास्थ्य बाजार का स्वरूप निर्धारित करने में हो सरकार की अहम भूमिका होनी चाहिए।
- महामारी जैसी स्थिति से निपटने हेतु स्वास्थ्य सुविधाओं को और बेहतर बनाया जाए।
- महामारियों के प्रति प्रतिक्रिया देने में सक्षम बनाने के लिए स्वास्थ्य
अवसंरचना में सुधार की आवश्यकता है तथा स्वास्थ्य नीति में इस संबंध में निरंतर
दीर्घकालिक प्राथमिकताओं पर जोर देना चाहिए।
- आयुष्मान भारत योजना के साथ सामंजस्य में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन को जारी रखा जाए।
- स्वास्थ्य क्षेत्र के विनियमन और निगरानी के लिए एक नियामक की स्थापना ।
- बीमा प्रीमियम में कमी लाने की दिशा में प्रयास किया जाए ताकि महंगी स्वास्थ्य सुविधाओं तक गरीबों की पहुंच भी सुनिश्चित हो सके।
- देश के कोने-कोने तक स्वास्थ्य सेवाएं पहुंचाने हेतु तकनीक कुशल समाधानों
के पूर्ण दोहन की आवश्यकता है आर्थिक समीक्षा 2020-21 में देश में कोने-कोने में स्वास्थ्य सेवाएं देने की
चुनौतियों से निपटने हेतु दूरस्थ चिकित्सा (टेली मेडिसिन) को पूर्ण
रूप से अपनाए जाने की वकालत की गई है।
- आर्थिक समीक्षा 2020-21 के अनुसार स्वास्थ्य में 2.5-3% तक खर्च बढ़ाया जाए ताकि जनसंख्या के अनुपात में डॉक्टर, स्वास्थ्यकमी, अस्पताल एवं अन्य सुविधाओं का विस्तार हो
- निजी चिकित्सा उद्योग चुनिंदा शहरों के अलावा अपनी सुविधाओं का विस्तार छोटे एवं पिछड़े शहरों में भी करें तथा मरीजों से मनमानी रकम ना वसूल सकें इसके लिये सरकार को समुचित तंत्र की व्यवस्था पर जोर देना चाहिए।
- चिकित्सा की ऐलोपैथिक पद्धति के अलावा अन्य चिकित्सीय पद्धति जैसे-
आर्युर्वेद,
योग, होमोपैथिक
आदि पर भी जोर देना चाहिये ।
- इलेक्ट्रोनिक एवं प्रिंट मीडिया, सरकारी कार्यक्रमों एवं सेलीब्रिटी, प्रसिद्ध व्यक्तियों द्वारा स्वास्थ्य संबंधी बातों को जनसामान्य के मध्य प्रचारित करना चाहिये।
- कोविड महामारी की दूसरी लहर में मृत्यु का एक बड़ा कारण ऑक्सीजन की कमी, दवाओं की कमी, बेड की कमी आदि कारणों से इलाज का उपलब्ध नहीं होना था। इसके अलावा मंहगी स्वास्थ्य सुविधाएं कई लोगों की पहुंच से दूर थी। अतः इस दिशा में व्यापक सुधार करते हुए सस्ती एवं सुलभ स्वास्थ्य सुविधाएं उपलबध कराना ।
चयनित स्वास्थ्य सेवा का निजीकरण
नीति आयोग तथा स्वास्थ्य परिवार कल्याण मंत्रालय ने गैर संचारी रोगों के उपचार में जिला अस्पतालों में निजी अस्पतालों की भूमिका बढ़ाने हेतु अनुबंध किया। यह कदम स्वास्थ्य क्षेत्र में निजी क्षेत्र को बढ़ावा देगा तथा इस हेतु नेशनल हेल्थ पॉलिसी 2017 में भी प्रावधान किया गया है।
नेशनल हेल्थ पॉलिसी 2017 के अनुसार स्वास्थ्य निजी तथा सार्वजनिक दोनों क्षेत्र की जिम्मेवारी है चूंकि अच्छे स्वास्थ्य हेतु व्यक्ति निजी क्षेत्र को वरीयता देता है अतः यह सुविधा आरंभ की जा रही है। इस मॉडल के तहत हृदय रोग फेफड़े कैंसर जैसी गैर संचारी रोगों के इलाज की सुविधा दी जाएगी।
सकारात्मक पक्ष
- स्वास्थ्य अवसंरचना में सुधार।
- स्वास्थ्य सुविधाओं का दायरा तथा गुणवत्ता में सुधार।
- एक स्थान पर उच्च स्तरीय सुविधाओं की उपलब्धता।
- स्वास्थ्य क्षेत्र में प्रतिस्पर्धी माहौल होने से स्वास्थ्य गुणवत्ता में सुधार।
- भारत की स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता संबधी विषमताओं को दूर करने में सहायक।
नकारात्मक पक्ष
- निजी सेवा प्रदाता भुगतान क्षमता वाले जिले का चयन किए जाने से स्वास्थ्य विषमता।
- इस मॉडल से मरीज का स्वास्थ्य खर्च बढ़ सकता है।
- निजी क्षेत्र पर सरकार की निर्भरता बढ़ेगी तथा सरकार पर दबाव बढ़ेगा।
- इस व्यवस्था द्वारा सरकार नागरिकों के प्रति कर्तव्य से पीछे हट रही है।
- यह व्यवस्था सरकार की स्वास्थ्य सेवा में कुशलता तथा क्षमता पर संशय उत्पन्न करती है
स्वास्थ्य सुविधाओं में व्याप्त असमानता को दूर
करने के उपाय
कम लागत में स्वास्थ्य देखभाल
स्वास्थ्य सेवा की लागत को कम करने हेतु अनावश्यक परीक्षणों और प्रक्रियाओं पर
होने वाले व्यय को कम
किए जाने की आवश्यकता है। इस संबंध में जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए दिशा-निर्देशों
और प्रक्रियाओं के अनुपालन को सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
वहनीय स्वास्थ्य सेवा तक सबकी पहुंच सुनिश्चित करने हेतु लोगों को स्वास्थ्य बीमा करवाने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिये।
बाधाओं की पहचान कर दूर करना
सभी हेतु स्वास्थ्य सेवाओं की आसान पहुंच को सुनिश्चित करने हेतु भौगोलिक,
वित्तीय,
सामाजिक और
प्रणालीगत बाधाओं की पहचान कर इनके उन्मूलन हेतु दीर्घकालिक कार्रवाई हेतु नीति बनायी जानी चाहिए।
भारत के दूरस्थ और ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं पहुंच के साथ-साथ डॉक्टरों, नर्सों, चिकित्सा और तकनीकी कर्मचारियों को प्रशिक्षित, कुशल और आवश्यक उपकरणो की उपलब्धता पर भी ध्यान दिया जाए।
डिजिटल नवाचार एवं आधुनिक प्रौद्योगिकी
स्वास्थ्य क्षेत्र में
व्याप्त असमानता दूर करने में डिजिटल नवाचार
की बड़ी भूमिका है। मांग-आधारित स्वास्थ्य सेवाएं की पहुँच तथा डॉक्टरों-मरीजों को जोड़ने हेतु डिजिटल तकनीकी जैसे- संचार माध्यम, वेबसाइट या
ऐप का उपयोग किया जा सकता
है।
ऑनलाइन सेवाओं के माध्यम चिकित्सकीय परीक्षण के परिणाम, सलाह आदि अस्पतालों में अनावश्यक भीड़ कम की जा सकती है। इससे डॉक्टरों तथा मरीज दोनों की समय की बचत होती है।
स्वास्थ्य सेवा में अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोग के तहत ड्रोन के माध्यम जीवन रक्षक दवाओं, रक्त आदि की डिलीवरी, दुर्गम क्षेत्रों में दूरस्थ उपकरणों से संचालित रोबोटिक सर्जरी, टेलीमेडिसिन के अनुप्रयोग को बढ़ावा ।
जागरुकता अभियान
इलाज से
बेहतर बचाव है। इस संकल्पना को आधार मानते हुए स्वच्छता तथा
स्वास्थ्य के मुद्दों पर लोगों को संवेदनशील बनाने के साथ-साथ स्वस्थ एवं
सुरक्षित व्यवहार को
बढ़ावा देने के लिए सरकारी और निजी दोनों स्तर पर प्रयास किए जाने चाहिए। उल्लेखनीय है कि
कोविड महामारी के प्रसार रोकने में आम जनता
में इसकी जानकारी तथा जागरुकता ने व्यापक रूप
से योगदान दिया।
भारत में सार्वभौमिक स्वास्थ्य की न्यायसंगत तथा पारदर्शी पहुँच को सुनिश्चित करने के लिए स्वास्थ्य संबंधी बुनियादी सुविधाओं तक पहुँच, उपलब्धता और वहनीयता जैसे मुद्दों को हल किया जाना अत्यंत आवश्यक है तभी स्वास्थ्य सुविधाओं में व्याप्त असमानताओं को दूर किया जा सकता है।
राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017
- प्रौद्योगियों तक पहुंच सुनिश्चित करना।
- बेहतर स्वास्थ्य आधार हेतु आपेक्षित ज्ञान का आधार तैयार करना
- स्वास्थ्य सुविधाओं की पर्याप्त व्यवस्था एवं वित्त पोषण, स्वास्थ्य क्षेत्र में निवेश बढ़ाना
- रोगों की रोकथाम हेतु व्यापक प्रयास करना।
- विभिन्न विभागों एवं संस्थाओं के मध्य समन्वय एवं सहयोग बढ़ाना।
इस नीति के तहत वर्ष 2025 तक
निम्न को प्राप्त करने का लक्ष्य रखा गया है
- व्यय वर्तमान GDP के 1.15% से बढाकर 2.5% करना ।
- कुल प्रजनन दर को 2.1 के स्तर पर लाने का लक्ष्य ।
- वर्तमान स्तर से सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं का उपयोग 50% बढ़ाने का लक्ष्य ।
- क्षयरोग (टीबी) के नए मामलों में कमी लाना और पूर्ण उन्मूलन ।
- जीवन प्रत्याशा को 67.5 वर्ष से बढ़ाकर 70 वर्ष करना।
- एक वर्ष की आयु के 90% बच्चों का पूरी तरह से टीकाकरण ।
- 90% बच्चों का जन्म प्रशिक्षित दाइयों/नर्सों के द्वारा या उनकी निगरानी में कराया जाना।
- तम्बाकू के इस्तेमाल के वर्तमान प्रसार को 30% तक कम करना।
- परिवारों के स्वास्थ्य व्यय में वर्तमान स्तर से 25% की कमी लाना।
उपरोक्त से स्पष्ट है कि नेशनल हेल्थ पॉलिसी 2017 यानी राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति, 2017 का मुख्य
उद्देश्य देश में स्वास्थ्य सेवा प्रणाली के समग्र विकास को बढ़ावा देना
है। इस प्रकार इस नीति द्वारा सरकार देश
के स्वास्थ्य संस्थानों में कुशल
डॉक्टरों, पर्याप्त दवाओं और आम
लोगों के विकास को बढ़ाना चाहती है।
No comments:
Post a Comment