Industrial development of India
भारत का औद्योगिक विकास
आज इस पोस्ट के माध्यम से भारत का औद्योगिक विकास यानी Industrial development of India के बारे में बात करेंगे । इस पोस्ट को पढ़ने के बाद आप भारत में औद्योगिक विकास को समझेंंगे तो चलिए देखते है।
यद्यपि भारत कृषि प्रधान ग्रामीण देश है फिर भी प्राचीनकाल से ही यहां औद्योगिक व्यवसाय भी होता रहा है । वास्तव में भारत के यूरोपीय संपर्क का प्रमुख आधार भारतीय औद्योगिक उत्पाद ही रहा ।
स्वतंत्रता के बाद नियोजित विकास की प्रक्रिया में उद्योग को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया जिसके फलस्वरूप इस क्षेत्र में आज भारत ने उल्लेखनीय प्रगति की है । सूती वस्त्र , रसायन, कम्प्यूटर साफ्ट्टवेयर , चीनी, रासायनिक खाद, लौह-इस्पात आदि क्षेत्र में भारत ने विशेष प्रगति की है।
भारत के औद्योगिकरण विकास Industrial development of India को 3 भागों में बांटा जा सकता है-
- चिरसम्मत कालीन चरण
- औपनिवेशिक कालीन चरण
- स्वतंत्र भारत में औद्योगिकरण का चरण
1. चिरसम्मतकालीन चरण
यह औपनिवेशिक काल के पूर्व का चरण है तथा इसका प्रभाव स्थानीय से अंतर्राष्ट्रीय रहा । प्राचनीकाल में लकड़ी, लोहे, मिट्टी के सामान, चमड़े, सोने चांदी का काम करनेवाले स्थानीय स्तर पर उत्पाद का निर्माण करते थे । यद्यपि ये परम्परागत बाजार व्यवस्था थी इस कारण इसमें दक्षता एवं कौशल का पर्याप्त विकास नहीं हो पाया । अत: इस बाजार में प्रतिस्पर्द्धा नहीं थी । इसका दूसरा कारण था लोगों का भूमि एवं कृषि के प्रति विशेष लगाव ।
इसी प्रकार चीनी, नमक, हाथी दांत, कालीन आदि का व्यापार पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में होता था । मसाले, वस्त्र, रेशम वस्त्र आदि का दूसरे देशों में भी निर्यात होता था । इस प्रकार प्राचीन में स्थानीय, अंतर्राज्यीय तथा अंतराष्ट्रीय तीनों व्यापार प्रचलित थे ।
2. औपनिवेशिक काल में औद्योगीकरण
औपनिवेशिक काल में औद्योगिकरण का विकास लौह इस्पात, सूती वस्त्र उद्योग जूट कारखाना आदि की स्थापना से प्रारंभ हुआ । ब्रिटिश साम्राज्य का मुख्य उद्देश्य औद्योगिक वस्तुओं का व्यापार कर लाभ कमाना था । इस कारण सीमित उद्योगों का ही विकास हुआ । फिर भी अधिकांश नवीन तथा महत्वपूर्ण उद्योगों की नींव ब्रि टिश काल में ही डाली गयी और हुगली, मुम्बई, अहमदाबाद जैसे औद्योगिक प्रदेशों का विकास हुआ ।
3. स्वतंत्रता के बाद औद्योगिक विकास
स्वतंत्रता के बाद नियो जित रूप से औद्योगिक विकास की ओर ध्यान देते हुए भारत सरकार द्वारा वर्ष 1956, 1977 तथा 1990-91 में औद्योगिकरण की प्रक्रिया तथा नीतियों को व्यापक बनाया गया।
दूसरी योजना मूल रूप से औद्योगिक विकास पर ही आधारित थी । योजनाकाल में राउरकेला, भिलाई, दुर्गापुर, बोकारो प्लांट तथा भारी इंजीनियरिंग उद्योग, रेलवे, इलेक्ट्रीकल उद्योग आदि की व्यवस्था की गयी ।
इसी क्रम में औद्योगिकरण में विकेन्द्रीकरण की प्रक्रिया भी आरंभ की गयी । सूती वस्त्र उद्योग, चीनी उद्योग का भी विकास हुआ । पुन: 1980 में पेट्रो रसायन संकूल का विकास हुआ । 1990 में उदारीकरण की नीति अपनायी गयी और कुछ उद्योगों को छोड़कर अन्य को लाइसेंस मुक्त उद्योग घोषित कर उनमें अंतर्राष्ट्रीय निवेश को प्रोत्साहन दिया गया ।
उद्योग स्थापना के क्रम में निर्धारित शर्तों के अधीन अनेक प्रकार की रियायतें भी सरकार द्वारा दी गयी । इस काल में इलेक्ट्रोनिक्स, कम्प्यूटर, उपभोक्ता वस्तुओं, हैंडीक्राफ्ट आदि अनेक प्रकार के उद्योगों की स्थापना की गयी ।
स्वतंत्रता के बाद औद्योगिक विकास का प्रयास देश के प्राय: सभी भागों में किया गया लेकिन वि विध कारणों से सभी क्षेत्रों में इसका विकास नहीं हो पाया । फिर भी कुछ वृहद क्षेत्र जैसे छोटानागपुर प्रदेश, चेन्नई-बंगलौर प्रदेश, दिल्ली-मथुरा औद्योगिक प्रदेश का विकास हुआ तथा अनेक पूर्व के औद्योगिक क्षेत्रों का विस्तार हुआ ।
इसके अलावा कई लघु तथा मध्यम औद्योगिक केन्द्रों जैसे जालंधर, कानपुर, लखनऊ, हैदराबाद, कोचीन, एर्नाकूलम, पूणे, इंदौर आदि का तेजी से विकास हुआ ।
इस प्रकार स्वतंत्रता के बाद पूरे देश में औद्योगिक विकास को प्रोत्साहन दिया गया । हांलाकि विविध कारणों से सभी क्षेत्रों का समान विकास नहीं हो पाया फिर भी भारत कई औद्योगिक उत्पादों में आज आत्म निर्भर है तथा कई उत्पादों को निर्यात भी कर रहा है।
आशा है इस पोस्ट के माध्यम से आपको भारत के औद्योगिक विकास यानी Industrial development of India के बारे में पर्याप्त जानकारी मिली होगी । इसी प्रकार के जानकारी युक्त पोस्ट के साथ, अगले पोस्ट में फिर मिलेंगे ।
No comments:
Post a Comment