धारा 124(A) एवं राजद्रोह
देशद्रोह कानून की संवैधानिकता पर
सुनवाई कर रही सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एनवी रमणा,
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हिमा कोहली की तीन जजों की बेंच ने मई 2022
में ऐतिहासिक फैसला लेते हुए देशद्रोह कानून के प्रावधानों पर
पुनर्विचार होने तक इसके इस्तेमाल पर रोक लगा दी है। उल्लेखनीय है कि 152 वर्षों में पहली बार देशद्रोह कानून के प्रावधानों को निलंबित यानी
सस्पेंड किया गया है।
राजद्रोह का क़ानून
भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए के अनुसार जब कोई व्यक्ति लिखकर,
बोलकर, चित्र, संकेतों या
दृश्य द्वारा के माध्यम से
- घृणा, अवमानना या उत्तेजित करने का प्रयास करता है या
- भारत में क़ानून द्वारा स्थापित सरकार के प्रति असंतोष, असुरक्षा, नफरत को भड़काने का प्रयास करता है
या
- राष्ट्रीय चिह्न का अपमान करता है या
- संविधान को नीचा दिखाने का प्रयास करता है या
- उपरोक्त तथ्यों का समर्थन करता है तो वह राजद्रोह का आरोपी है।
उपरोक्त कृत्य हेतु उसके विरुद्ध कार्यवाही की जा सकती है तथा भारतीय दंड संहिता के धारा 124-A के तहत कार्रवाई की जा सकती है। राजद्रोह एक ग़ैर-जमानती अपराध है जिसमें 3 वर्ष से लेकर आजीवन कारावास और जुर्माने का प्रावधान है।
इतिहास
तथा वर्तमान स्थिति
- इस कानून को ब्रिटिशकाल में 1870 में शामिल किया गया था जिसका उद्देश्य देश के स्वतंत्रता सेनानियों के विरुद्ध प्रयोग करना था। इस कानून के तहत तिलक, महात्मा गांधी, जोगेन्द्र बोस आदि के खिलाफ प्रयोग किया गया था।
- 2012 में असीम त्रिवेदी तथा कुडनकुलम प्लांट का विरोध करनेवाले ग्रामीणों पर, 2015 में कन्हैया कुमार, हार्दिक पटेल को देशद्रोह के मामले में गिरफ्तार किया गया ।
- असम में नागरिक संशोधन बिल लाए जाने पर NGO द्वारा इस बिल के लाए जाने पर अलग देश की मांग पर राजद्रोह का मुकदमा दर्ज किया गया।
राजद्रोह के हालिया मामले
- लक्ष्द्वीप विवाद में जून 2021 में फिल्मकार आयशा सुल्तान पर राजद्रोह का केस। इनके द्वारा एक मलयाली टीवी चैनल की बहस के दौरान केन्द्र शासित प्रदेश के प्रशासक प्रफुल्ल खोड़ा पटेल को जैविक हथियार कह दिया गया था।
- जनवरी 2021 में नोएडा पुलिस द्वारा कांग्रेस सांसद शशि थरूर समेत 6 पत्रकारों पर राजद्रोह का मामला दर्ज किया था जिन पर आरोप था कि इन लोगों के सोशल मीडिया पोस्ट्स और डिजिटल प्रसारण राष्ट्रीय राजधानी में किसानों की ट्रैक्टर रैली के दौरान हिंसा के लिए ज़िम्मेदार थे।
- अक्टूबर 2020 में उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा केरल के पत्रकार सिद्दीक़ कप्पन समेत 3 लोगों पर राजद्रोह मामला दर्ज किया।
- अक्टूबर 2020 में ही मणिपुर के पत्रकार किशोरचंद्र वांगखेम के ख़िलाफ़ एक सोशल मीडिया पोस्ट की वजह से राजद्रोह का मामला दर्ज किया गया।
- उल्लेखनीय है कि 2018 में भी इनको राजद्रोह के आरोप में गिरफ़्तार किया गया था लेकिन बाद में मणिपुर उच्च न्यायालय द्वारा अप्रैल 2019 में उनके ख़िलाफ़ आरोपों को ख़ारिज करते हुए उन्हें जेल से रिहा कर दिया था।
- राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो के अनुसार नागरिकता कानून पास होने के बाद राजद्रोह के 194 मामले दर्ज किए गए। पिछले 4 वर्षों में राजद्रोह के मुकदमों की संखया में काफी वद्धि हुई है लेकिन कुछ ही मामलों में दोष सिद्ध हो पाया।
- मई 2022 में केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार साल 2014 से 2019 के बीच देश में औपनिवेशिक काल के विवादित देशद्रोह के कानून के तहत कुल 326 मामले दर्ज किए गए थे। इनमें से केवल छह लोगों को दोषी ठहराया गया।
- हिमाचल प्रदेश में विनोद दुआ के खिलाफ उनके एक यूट्यूब शो को लेकर वर्ष 2020 मामला दर्ज कराया गया।
- उपरोक्त के अलावा भारत में असीम त्रिवेदी, अरविन्द केजरीवाल, अरुण जेटली पर भी राजद्रोह के मामले दर्ज हुए परन्तु न्यायालय द्वारा इन मामलों को खारिज कर दिया गया।
124A के विपक्ष में तर्क
- मूल अधिकार के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एवं इस कानून में विरोधाभास है।
- यह भारतीय लोकतंत्र में असहमति के अधिकार को बाधित करता है।
- वर्तमान कानून में स्पष्टता की कमी है जिसके कारण सरकार द्वारा इस कानून का दुरुपयोग किया जाता रहा है।
- औपनिवेशिक काल का कानून है तथा कई देशों में ऐसे कानून हटाए जा चुके हैं। इग्लैंड में 2009 में हटाया जा चुका है।
- ऑस्ट्रेलिया, सिंगापुर में भी यह कानून खत्म है। अमेरिका में राजद्रोह कानून मौजूद है लेकिन वहां सिर्फ बोलना राजद्रोह नहीं माना जाता है।
- कई ऐसे विशिष्ट कानूनी प्रावधान पूर्व से ही मौजूद हैं अतः इस कानून का वर्तमान में औचित्य नहीं है।
- इस कानून में स्पष्टता की कमी है जिसके कारण आए दिन जाने अंजाने इसका दुरुपयोग होता रहता है।
- इसका दुरुपयोगों के कारण सामान्यतः समाज के हाशिये पर स्थित तबकों को अधिक नुकसान होता है।
- IPC और गैरकानून गतिविधि रोकथाम अधिनियम (UAPA) 2019 में ऐसे प्रावधान मौजूद हैं जो ‘लोक व्यवस्था बाधित करने’ या ‘हिंसा और अवैध तरीकों से सरकार को उखाड़ फेंकने’ के लिये दंडित करते हैं। अतः राष्ट्रीय अखंडता की रक्षा हेतु धारा 124A की कोई आवश्यकता नहीं रह जाती।
- देशद्रोह कानून के दुरुपयोग से भारत की लोकतांत्रिक छवि को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आलोचनाओं का शिकार होना पड़ता है।
124A के पक्ष में तर्क
- भारत विविधताओं का देश है तथा समय समय पर उठनेवाली भारत विरोधी मांग, गैर संवैधनिक मांग को रोकने हेतु।
- हिंसात्मक, अलगाववादी, उग्रवादी, आतंकवादी घटनाएं को रोकने हेतु इसकी आवश्यकता है।
- राष्ट्रीय एकता एवं अखंडता की सुरक्षा हेतु आवश्यक ।
- लोकतांत्रिक रूप से चुनी हुई सरकार को हिंसा तथा तख्ता पलट के प्रयासों से बचाता है।
- वर्तमान में स्थितियां अनुकूल नहीं है कि इस कानून को हटाया जा सके।
- विधि आयोग एवं समय-समय कुछ न्यायपालिका द्वारा दिए गए निर्णय भी इसे बनाए रखने के पक्ष में है।
न्यायपालिका द्वारा दिए गए निर्णय
- सर्वोच्च न्यायालय ने मई 2022 में एक ऐतिहासिक निर्णय लेते हुए राजद्रोह कानून 124A के अंतर्गत कोई नया केस रजिस्टर करने पर रोक लगा दी।
- केदार नाथ सिंह बनाम बिहार राज्य (1962) के मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने आईपीसी की धारा 124ए के बारे में कहा था कि "सरकार की कटु आलोचना को भी तब तक राजद्रोह नहीं माना जा सकता जब तक कि उसमें हिंसात्मक तत्वों का समावेश नहीं किया गया हो।"
- मेनका गांधी प्रकरण में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि संवैधानिक दायरे में रहकर सरकार की नीतियों की आलोचना की जा सकती है तथा इसे देशद्रोह नहीं माना जाएगा।
- रोमेश थापर प्रकरण में भी उच्च न्यायालय द्वारा कहा गया कि कानून व्यवस्था के नाम पर किसी पुस्तक, प्रकाशन पर प्रतिबंध अनुच्छेद 19 का उल्लंघन है।
- जून 2021 में सर्वोच्च न्यायालय ने दो टीवी चैनलों के ख़िलाफ़ राजद्रोह के आरोप में आंध्र प्रदेश पुलिस को दंडात्मक कार्रवाई करने से रोकते हुए कहा कि राजद्रोह से सम्बंधित आईपीसी की धारा 124ए की व्याख्या करने के ज़रुरत है। इस धारा के इस्तेमाल से प्रेस की स्वतंत्रता पर पड़ने वाले असर के मद्देनज़र भी इस व्याख्या की ज़रुरत है।
- जून 2021 में विनोद दुआ के खिलाफ हिमाचल प्रदेश के शिमला में दर्ज देशद्रोह के मामले को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा खारिज कर दिया गया और कहा गया कि प्रत्येक पत्रकार केदार नाथ सिंह के फ़ैसले के तहत सुरक्षा का हकदार है जिसमे धारा 124 ए के तहत राजद्रोह के अपराध के दायरे को परिभाषित किया गया है।
इस प्रकार समय समय पर न्यायालय के निर्णय से स्पष्ट होता है
कि किसी प्रकार की अभिव्यक्ति द्वारा यदि कोई हिंसा फैलती है तो उस पर राजद्रोह के
आरोप लगाए जा सकते है। इस प्रकार आईपीसी के
तहत राजद्रोह क़ानून की वैधता को बरकरार रखते हुए
न्यायालय द्वारा इसके दायरे को भी परिभाषित किया गया।
सरकार की आलोचना एवं राजद्रोह
कई बार देखा गया है
कि सरकार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को दबाने हेतु इसका प्रयोग करती है तथा राजद्रोह
का मुकदमा चलाती है। उल्लेखनीय है कि सरकार की स्वस्थ आलोचना लोकतंत्र को जीवंत बनाता है। अनेक अवसरों पर महात्मा गांधी, जयप्रकाश नारायण जैसे अनेक नेताओं ने सरकार की आलोचना की है
इसी क्रम में लोकतंत्र में सरकार की आलोचना करना विपक्ष तथा स्वतंत्र प्रेस की एक
महत्वपूर्ण विशेषता है।
न्यायालय ने भी इस संबंध में स्थिति को स्पष्ट करते हुए कहा
है कि राजद्रोह के मामले को न्यायालय द्वारा केदार नाथ मामले में
दिए गए निर्णय के तहत धारा 124 A को देखा जाना चाहिए। इस प्रकार IPC के
तहत राजद्रोह क़ानून की वैधता को बरकरार रखते हुए
न्यायालय द्वारा इसके दायरे को भी परिभाषित किया गया और हाल ही में इसे निलंबित रखने का निर्णय दिया ।
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