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Aug 16, 2022

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद एवं भारत

 

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद एवं भारत



सुरक्षा परिषद एवं भारत

भारत 8वीं बार सुरक्षा परिषद के अस्थायी सदस्य (Non-Permanent Members) के रूप में वर्ष 2021-22 की अवधि के लिए निर्वाचित हुआ। भारत समय समय पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में अपनी स्थायी सदस्यता की मांग करता रहा हैं। 

सुरक्षा परिषद का विस्तार न होने का सबसे बड़ा कारण स्थाई सदस्यों की मानसिकता है । वह नहीं चाहते हैं कि इस अधिकार को दूसरे देशों के साथ साझा किया जाए । संयुक्त राष्ट्र की स्थापना के 75 वर्ष बाद यह आवश्यक है कि वर्तमान अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य को ध्यान में रखते हुए लोकतांत्रिक स्वरूप प्रदान किया जाए।

सुरक्षा परिषद

µ  1945 में गठित सुरक्षा परिषद को संयुक्त राष्ट्र की सबसे महत्त्वपूर्ण एवं शक्तिशाली निकाय है जिसमें पाँच स्थायी सदस्य अमेरिका, ब्रिटेन, फ्राँस, रूस और चीन हैं जिनके पास वीटो (निषेधाधिकार) का अधिकार है।

µ  सुरक्षा परिषद में 10 अस्थायी सदस्य होते हैं जिनका चुनाव दो वर्ष के लिये होता है। स्थायी सदस्यों की अपेक्षा अस्थायी सदस्यों के पास अत्यंत कम शक्तियां होती है।

भूमिका तथा शक्तियाँ

µ  सुरक्षा परिषद की प्राथमिक ज़िम्मेदारी अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा कायम रखना है। 

µ  इसके कार्यों में शांति अभियानों में योगदान देना, अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंधों को लागू करना, सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों के माध्यम से सैन्य कार्रवाई करना शामिल है। 

µ  यह संयुक्त राष्ट्र का एकमात्र ऐसा निकाय है जो सदस्य देशों पर बाध्यकारी प्रस्ताव जारी कर सकता है।


संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में परिवर्तन की आवश्यकता

  1. 1945 में सुरक्षा परिषद की स्थापना तत्कालीन भू-राजनीतिक संदर्भ में हुई थी जब इसके पांच स्थायी सदस्य तत्कालीन समय में सर्वोच्च शक्ति थे लेकिन वर्तमान में यह प्रासंगिक नहीं है। वर्तमान में यूरोप की सबसे बड़ी एवं आर्थिक शक्ति जर्मनी सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य नहीं है जबकि फ्रांस एवं ब्रिटेन इसके सदस्य है। इसी क्रम में भारत एवं जापान जैसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देश इसमें शामिल नहीं है।  
  2. वर्तमान में सुरक्षा परिषद के 5 स्थायी सदस्यों में यूरोप का सबसे ज़्यादा प्रतिनिधित्व है जहां विश्व आबादी का मात्र 5% निवास करती है जबकि अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका का कोई भी देश सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य नहीं है।
  3. संयुक्त राष्ट्र का 50% से ज्यादा कार्य अकेले अफ्रीकी देशों से संबंधित है।  अतः सुरक्षा परिषद में इनका प्रतिनिधित्व प्रासंगिक हो जाता है।
  4. सुरक्षा परिषद के अधिकांश स्थाई सदस्य विकसित देश हैं वहीं दूसरी ओर विकासशील एवं गरीब देशों का स्थायी सदस्य के रूप में प्रतिनिधित्व नहीं है जबकि संयुक्त राष्ट्र संघ की अधिकतर गतिविधियाँ इन्हीं देशों से संबंधित होती हैं।
  5. विश्व की दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाले शांतिप्रिय तथा लोकतांत्रिक देश भारत का प्रतिनधित्व न होना इस संस्था की प्रासंगिकता पर सवाल उठाता है। उल्लेखनीय है कि शांति अभियानों में प्रमुख भूमिका निभाने के बावज़ूद भारत को नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है।
  6. काफी समय से सुरक्षा परिषद की स्थायी और गैर-स्थायी सदस्यता के विस्तार की मांग की जा रही है ताकि इसे समकालीन वैश्विक परिस्थितियों में प्रासंगिक बनाया जा सके।
  7. वर्तमान संयुक्त राष्ट्रसंघ में अमेरिका का वर्चस्व है। अतः इसमें ढांचात्मक सुधार की आवश्यकता है ताकि सभी देशों को समान अवसर मिले।
  8. स्थायी सदस्य देशों द्वारा वीटो का दुरुपयोग किया जाता है तथा वैश्विक हित के बजाए व्यक्तिगत हितों को ध्यान में कई बार इसका प्रयोग होता है। जैसे चीन द्वारा मसूद अजहर के मामले में किया गया था।

वर्तमान वैश्विक समस्याओं जैसे जलवायु परिवर्तन, आतंकवाद, मानवाधिकार, शरणार्थी समस्या, कोविड 19 महामारी जैसे चुनौतियों से निपटने में संयुक्त राष्ट्र असफल रहा है अतः नई चुनौतियों से निपटने तथा संयुक्त राष्ट्र को प्रभावी बनाने हेतु बदलते परिवेश में सुधार की आवश्यकता है।

   

विश्व शांति एवं सुरक्षा में भारत का योगदान

  1. वर्ष 1947-48 में मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा (Universal Declaration of Human Rights- UDHR) के निर्माण में भारत ने सक्रिय रूप से भाग लिया था और दक्षिण अफ्रीका में नस्लीय भेदभाव के विरुद्ध मुखरता से अपना पक्ष सामने रखा था।
  2. से भारत के 2,00,000 सैन्यकर्मियों ने अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा हेतु शांति सेना की अनेक मुहिम में अपना योगदान दिया है। किसी भी अन्य देश के मुकाबले सैनिकों की यह संख्या सर्वाधिक है। भारत ने 43 से ज्यादा शांति अभियानों में भाग लिया।
  3. संयुक्त राष्ट्र के सबसे खतरनाक और चुनौतीपूर्ण अभियानों  जैसे दक्षिणी सूडानकांगोमालीमध्य अफ्रीकी गणराज्य  आदि अभियानों में भी भारतीय शांति सैनिकों ने अपना योगदान दिया।
  4. जून 2018  के अनुसार अनुसार भारत संयुक्त राष्ट्र में तीसरा सबसे बड़ा सैन्य योगदानकर्त्ता बना हुआ है तथा दुनिया के अलग-अलग देशों में भारत के 6,000 से अधिक सैन्यकर्मी सेवारत हैं और मानव जीवन की रक्षा में तत्पर हैं।

सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी  सदस्यता के पक्ष में तर्क 

  1. 130 करोड़ की आबादी के साथ भारत दूसरा सबसे अधिक आबादी वाला देश है जहां विश्व जनसंख्या का लगभग 1/5 हिस्सा रहता है।
  2. विश्व के कई महत्वपूर्ण संगठनों जैसे- विश्व व्यापार संगठन, ब्रिक्स, G-20 जैसे वैश्विक संगठनों में भारत की महत्वपूर्ण भागीदारी है।
  3. भारत विश्व की महत्वपूर्ण आर्थिक शक्ति होने के साथ विश्व की छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश है।
  4. विश्व का सबसे बड़ा लोकतान्त्रिक देश भारत संयुक्त राष्ट्र संघ की लगभग सभी पहलों में महत्वपूर्ण भागीदार रहा है।
  5. भारत एशिया की दुसरी सबसे बड़ी शक्ति होने के साथ साथ विश्व का सबसे बड़ा लोकतान्त्रिक देश है।
  6. विकासशील देशों के नेतृत्व करने में भारत सक्षम है अतः संयुक्त राष्ट्र में विकासशील देशों के हितों की रक्षा हेतु भारत की दावेदारी बनती है।
  7. भारतीय विदेश नीति अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सहयोग पर आधारित है जो विश्व कल्याण हेतु आवश्यक है। उल्लेखनीय है कि संयुक्त राष्ट्र के शांति अभियानों में भारत सबसे ज़्यादा सैनिक भेजने वाला देश है।
  8. आतंकवाद, जलवायु परिवर्तन, सतत विकास जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर भारत अपना योगदान देता रहता है अतः भारत की भागीदारी बनती है।
  9. भारत की स्थायी सदस्यता का समर्थन करते हुए संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने भी अपनी भारत यात्रा के दौरान कहा था किभारत की उम्मीदवारी की तर्क से कोई भी इंकार नहीं कर सकता।

सुरक्षा परिषद में सुधार एवं गठित समूह

जी-समूह

भारतजर्मनीब्राज़ील और जापान का समूह जो संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यता के लिये एक-दूसरे का समर्थन करते हैं। इस समूह के सदस्य देश सुरक्षा परिषद को और ज्यादा प्रभावी तथा न्यायसंगत बनाने की मांग करते हैं।

कॉफी क्लब

जी-समूह के विरोध में इस समूह का गठन हुआ जिसमें 40 से अधिक देश जैसे इटलीस्पेनकनाडाऑस्ट्रेलियाअर्जेंटीनापाकिस्तान आदि शामिल हैं जो अपने पड़ोसी मुल्क़ को सुरक्षा परिषद् में शामिल नहीं होने देना चाहते हैं।

अफ्रीकी समूह

इस समूह में 54 देश शामिल हैं जो सुरक्षा परिषद में सुधारों की मांग कर रहे हैं। इस समूह की मांग है कि अफ्रीका से कम से कम दो राष्ट्रों को वीटो की शक्तियों के साथ सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बनाया जाए।

L-69 समूह

यह समूह भारतएशियालैटिन अमेरिका और अफ्रीका के 42 विकासशील देशों का समूह है जो सुरक्षा परिषद में सुधार की मांग करता है।



भारत की स्थायी सदस्यता में बाधाएं

  1. संयुक्त राष्ट्र में सुधार के मामले पर सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों की अलग-अलग राय है इस कारण इसमें कोई भी सुधार होना और जटिल बनता जा रहा है।
  2. भारत की स्थायी सदस्यता हेतु चार्टर में संशोधन करना पड़ेगा तथा इस हेतु स्थायी सदस्यों के साथ  दो-तिहाई देशों द्वारा पुष्टि करना आवश्यक है, जो अत्यंत कठिन प्रतीत होता है।
  3. सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य देश अपनी वीटो शक्ति को छोड़ने हेतु सहमत नहीं हैं और न ही इस अधिकार को किसी अन्य देश के साथ साझा करना चाहते हैं।
  4. संयुक्त राष्ट्र संघ के सुधार में कॉफी क्लब भी एक बाधा है। इस समूह में इटली, स्पेन, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया, अर्जेंटीना और पाकिस्तान जैसे देश शामिल है जो अपने हितों को ध्यान में रखते हुए नहीं चाहते कि उनके पड़ोसी देश सुरक्षा परिषद् में शामिल हो जैसे इटली द्वारा जर्मनी का, पाकिस्तान द्वारा भारत की सदस्यता का विरोध। 
  5. सुरक्षा परिषद में सुधार के नाम पर अमेरिका बहुपक्षवाद के विरुद्ध है। इसके अलावा रूस तथा चीन संयुक्त राष्ट्र में किसी तरह का सुधार नहीं चाहते। चीन नहीं चाहता कि भारत सुरक्षा परिषद का सदस्य बने।
  6. अन्य समूह जैसे विकासशील देशों का समूह L-69, अफ्रीकी समूह की भी स्थायी सदस्यता हेतु दावेदारी है। इतने बड़े स्तर पर सुधार की संभावना फिलहाल दिखायी नहीं दे रही है। इसके अलावा G-4 समूह में शामिल देशों के साथ भी भारत की कड़ी प्रतिस्पर्धा हैं।  
  7. चीन एवं पाकिस्तान जैसे पड़ोसी देश नहीं चाहते कि भारत सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बने ।

स्थायी सदस्यता के लाभ

  1. किसी देश पर प्रतिबंध लगाने या अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के फैसले को लागू करने वैश्विक निर्णयन में भागीदारी बढ़ेगी।  
  2. वैश्विक राजनीति में सुरक्षा परिषद के माध्यम से भारत और अधिक मज़बूती से अपनी बात कहने और लागू करवाने में सक्षम होगा।
  3. सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता से भारत को वीटो पॉवर प्राप्त होगा ।
  4. आतंकवाद, जलवायु परिवर्तन जैसे अन्य मुद्दों पर समस्याओं के हल में भारत की भूमिका बढ़ेगी ।  

 

संयुक्त राष्ट्र संघ एवं वीटो (निषेधाधिकार)

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांचों स्थाई सदस्यों को प्राप्त वीटो विवाद का विषय है। उल्लेखनीय है कि संयुक्त राष्ट्र के चार्टर में वीटो शब्द का कहीं भी प्रयोग नहीं हुआ है किंतु  चार्टर के 27वें अनुच्छेद में कहा गया है कि परिषद के कार्यों को सुचारू रूप से चलाने के लिए परिषद के पांचो स्थाई सदस्य सर्वसम्मति से कार्य करेंगे यही व्यवस्था आगे चलकर वीटो कहा जाने लगा। सबसे ज्यादा बार वीटो का प्रयोग रूस द्वारा किया गया है।

वीटो का प्रयोग कई सार्थक तथा प्रासंगिक उद्देश्य के लिए भी किया गया है। यदि वीटो की शक्ति ना होती तो संयुक्त राष्ट्र में अमेरिका  तथा पश्चिमी  देशों की एक तरफा मनमानी चलती और यह विश्व शांति के लिए एक बड़ा खतरा साबित होता ।वीटो का प्रयोग सकारात्मक और विश्व हित में किया जाए तो इसकी प्रासंगिकता बढ़ जाती है। हालांकि कई देशों ने अपने व्यक्तिगत हितों के लिए भी वीटो का प्रयोग किया। इस संबंध में हालिया उदाहरण चीन का है जिसने मसूद अजहर को वैश्विक आतंकी घोषित करने से रोकने के लिए  चार बार वीटो का प्रयोग किया  जो वीटो के दुरुपयोग को दर्शाता है।

 

वर्तमान वीटो व्यवस्था में बदलाव की आवश्यकता

  1. वीटो व्यवस्था समाप्त किए जाने से सुरक्षा परिषद में बहुमत के आधार पर फैसले होंगे।
  2. स्थायी सदस्यता की व्यवस्था द्वितीय विश्व युद्ध के विजेता देशों के लिए थी और वर्तमान में वैश्विक भू राजनीतिक परिदृश्य बदल चुका है अतः इसमें भी बदलाव आवश्यक है।
  3. सुरक्षा परिषद के वीटो व्यवस्था में बदलाव से वह अपनी शक्ति का बेहतर प्रयोग कर सकता है।
  4. सुरक्षा परिषद में वीटो व्यवस्था में सुधार से सदस्य देशों का संयुक्त राष्ट्र के प्रति विश्वास बढ़ेगा।
  5. भारतजापान जैसे देशों के पास वीटो शक्ति न होना इस संस्था की वर्तमान प्रासंगिकता पर सवाल उठाता है।

राष्ट्र सुरक्षा परिषद के अस्थाई सदस्य के रूप में भारत की प्राथमिकताएं

भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के अस्थाई सदस्य के रूप में आठवीं बार अपने 2 वर्ष के कार्यकाल की शुरुआत 1 जनवरी 2021 को की और इस कार्यकाल के दौरान भारत ने इसके लिए अपने लिए कुछ प्राथमिकताओं की पहचान की है जो भारतीय प्रधानमंत्री के सितंबर 2020 में संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित करते हुए दिए गए वक्तव्यों से स्पष्ट होती है जिसमें आतंकवाद, बहुपक्षीयतावाद के संवर्द्धन तथा राष्ट्र संघ में सुधारों को भारत की प्राथमिकताओं में शामिल किया गया था। भारत इन प्राथमिकताओं को ध्यान में रखते हुए ही भारत सुरक्षा परिषद के अस्थायी सदस्य के रूप में कार्य करने की बात कही गयी।  

 

आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक उपाए

आतंकवाद विरोधी कानूनों का प्रभावी तरीके से पालन किया जाए

भारत कई वर्षों से आतंकवाद से प्रभावित रहा है और इस मुद्दे को विभिन्न मंचों के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उठाता रहा है। हांलाकि 1972 से ही संयुक्त राष्ट्र द्वारा आतंकवाद को रोकने हेतु अनेक कानून पारित किए गए हैं लेकिन उनका क्रियान्वयन प्रभावी तरीके से नहीं हो पाया है। अतः अस्थायी सदस्य के रूप में भारत का प्रयास होगा कि आतंकवाद विरोधी कानूनों का प्रभावी तरीके से पालन किया जाए।

अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद पर अभिसमय को पारित करवाना

भारत ने 1996 में अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद पर एक अभिसमय प्रस्तावित किया था लेकिन आतंकवाद की परिभाषा पर विवाद होने के कारण यह महासभा में परित नहीं हो पाया। अतः भारत का यह प्रयास होगा कि अपने कार्यकाल के दौरान भारत इस अभिसमय के विवादों को समाप्त कर पारित जल्द से जल्द इसे पारित करवाए।

आतंकवादरोधी कानून के पालन में भेदभाव को रोकना

भारत का तीसरी प्राथमिकता है आतंकवादरोधी कानून के पालन में भेदभाव को रोकना। 2020 में पाकिस्तान के आतंवादी मसूद अजहर को वैशविक आतंकवादी के रूप में घोषित करने में एक दशक से भी ज्यादा समय लगा जो बताता है कि आतंकवादरोधी कानून के पालन में किस प्रकार से भेदभाव होता है। उल्लेखनीय है कि पर्याप्त साक्ष्य होने के बावजूद चीन की चालबाजियों के कारण ऐसा हुआ। अतः भारत इस प्रक्रिया को निष्पक्ष तथा पारदर्शी बनाना चाहता है।


बहुपक्षीयतावाद

बहुपक्षीयतावाद का अर्थ ऐसे विचार से है जिसमें वैश्विक क्रियाओं का संचालन किसी देश विशेष के हित में न होकर सभी के सामूहिक हित में हो। 2008 की मंदी के बाद यूरोप, अमेरिका और अन्य देशों ने सामूहिक के बजाए अपने व्यक्तिगत हितों पर विशेष ध्यान दिया। अमेरिका की अमेरिका फर्स्ट नीति, यूरोप में बढ़ाता राष्ट्रवाद इसी नीति को दर्शाता है।

इस प्रकार की नीतियां वैश्विक संस्थाओं को कमजोर करती है। अमेरिका और चीन के बीच 2020 के प्रारंभ से चला आ रहे गतिरोध के कारण कोविड-19 वैश्विक महामारी से समय पर निबटने के लिए परिषद के प्रस्ताव को रोक दिया। इसी क्रम में विश्व व्यापार संगठन, मानवाधिकार परिषद आदि भी प्रभावी ढंग से कार्य नहीं कर पा रहे हैं।

अतः उपरोक्त परिप्रेक्ष्य में यह आवश्यक है कि बहुतपक्षीयतावाद के सिद्धांतों को बढ़ावा दिया जाए और भारत की यह प्राथमिकता है कि संयुक्त राष्ट्र की संपूर्ण व्यवस्था को प्रभावी बनाने हेतु बहुपक्षीयतावाद को सशक्त किया जाए।


संयुक्त राष्ट्र व्यवस्था में सुधार

1945 में सुरक्षा परिषद की स्थापना तत्कालीन भू-राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में की गयी थी। लगभग 85 वर्ष बाद वर्तमान में विश्व भू-राजनीति में व्यापक परितर्वन आए हैं लेकिन संयुक्त राष्ट्र की व्यवस्था में कोई बदलाव नहीं आया है।

संयुक्त राष्ट्र में सुधार का मुद्दा जैसे सुरक्षा परिषद का विस्तार, महासभा को सशक्त बनाना, वित्तीय सुधार, संयुक्त राष्ट्र शांति सेना में सुधार आदि 1992 से ही संयुक्त राष्ट्र के एजेंडे में शामिल है लेकिन अभी तक कोई प्रगति नहीं देखी गयी है और कुछ सुधार हुआ भी है तो उसकी गति अत्यंत धीमी और अप्रासंगिक है। अतः भारत की एक प्राथमिकता सुरक्षा परिषद में सुधार है।   

 

भारत के लिए चुनौती

सुरक्षा परिषद में निर्णय लेने की प्रक्रिया वीटो द्वारा होती है जिसका अधिकार केवल इसके पांच स्थाई सदस्यों को मिला हुआ है, जिन्होंने 1946 से लेकर अब तक इसका 293 बार उपयोग किया है। चूंकि भारत सुरक्षा परिषद का अस्थायी सदस्य है तथा वीटो का विशेषाधिकार नहीं है तो वह परिषद के एक निर्वाचित अस्थायी सदस्य के रूप में कैसे अपने हितों को रख पाएगा, खास कर उन स्थितियों में जब P5 सदस्यों द्वारा वीटो का उपयोग किया जाता है।

उपरोक्त तथ्यों से स्पष्ट है कि भारत के लिए वर्ष 2022 भारत की संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की आठवीं अस्थायी सदस्यता का दूसरा और अंतिम वर्ष होगा। भारत के लिए यह कार्यकाल विशेष रूप से तब सफल माना जाएगा, जब संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार के लिये एक अधिक सार्थक एवं यथार्थवादी प्रक्रिया की शुरुआत करें और अपनी प्राथमिकताओं को ध्यान में रखते हुए ही उसे पूर्ण करने की दिशा में कार्य करें।   

 

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