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Aug 12, 2022

बिहार एवं नगरीकरण

 

बिहार एवं नगरीकरण 

बिहार एवं नगर विकास से संबंधित यह पोस्‍ट मुख्‍य परीक्षा भूगोल को देखते हुए बहुत महतवपूर्ण है जिसमें अपडेटड एवं प्रासंगिक तथ्‍यों को शामिल किया गया है।


शहरीकरण आर्थिक विकास का एक परिणाम है। बिहार में शहरीकरण की धीमी दर र्दीर्धकालिक घटना है। वर्ष 1961 से 2011 के बीच की आधी सदी में बिहार में शहरीकरण में 3.9% की वद्धि हुई और शहरीकरण 7.4 से 11.3% तक पहुंचा, वही इस अवधि में भारत में शहरीकरण 13.2% अंक बढ़कर 1961 के 18.0% से 2011 में 31.2% हो गया। 

2011 के अनुसार भारत की कुल शहरी आबादी का केवल 3.1% हिस्सा बिहार में था और यह अनुपात अनेक दशकों से लगभग अपरिवर्तित रहा है। बिहार में तीव्र शहरीकरण का लक्ष्य हासिल करने हेतु बिहार सरकार प्रयासरत है और इस दिशा में बिहार सरकार 2 नीतियों पर काम कर रही है और केंद्र सरकार के साथ मिलकर अनेक कार्यक्रम चला रही है 

बिहार में नगरीकरण की दर को बढ़ाने हेतु पहले से मौजूद शहरी केंद्रों में बुनियादी सुविधाओं को मजबूती क्योंकि शहरी सुविधाओं के विस्तार होते ही आसपास के क्षेत्रों से अधिक ग्रामीण आबादी आकर्षित होती है और शहरीकरण का स्तर बढ़ता है।

बिहार सरकार उन नीतियों को अपनाने का प्रयास कर रही है जो विशाल ग्रामीण क्षेत्र को धीरे धीरे शहरी केन्‍द्रों में बदलाने हेतु प्रोत्‍साहन का कार्य करती है ।

 

बिहार में शहरीकरण- महत्वपूर्ण तथ्य

  जनगणना 2011 के अनुसार बिहार में शहरीकरण राष्ट्रीय औसत 31.2%  की अपेक्षा 11.3% है इस प्रकार बिहार में शहरीकरण की दर राष्ट्रीय दर से बहुत कम है

  वर्ष 2001-2011 के मध्य भारत में शहरीकरण के स्तर में 3.4% की वृद्धि हुई वहीं बिहार में केवल 0.8% की वृद्धि देखी गयी।

  वर्ष 2001 और 2011 के मध्य बिहार में शहरों की संख्या 130 से बढ़कर 199 हो गयी लेकिन इनमें से अनेक नए शहर बहुत छोटे हैं जिनकी आबादी 10 हजार से भी कम है।

  दक्षिण बिहार में उत्तर बिहार की अपेक्षा काफी ज्यादा शहरीकरण है

  बिहार के जिलों में शहरीकरण के लिहाज से काफी असमानता मौजूद है। राज्य की राजधानी पटना में शहरीकरण सबसे ज्यादा 44.3% है उसके बाद केवल 2 जिले ही ऐसे हें जहां शहरीकरण 25% से ज्यादा है जिनमें मुंगेर में 28.3% और नालंदा में 26.2% है।

  बिहार के जिलों में शहरीकरण और प्रति व्यक्ति आय के बीच कोई विशेष संबंध नहीं है जैसा कि सामान्य रूप से दावा किया जाता है । इससे यह पता चलता है कि लोग शहरों में सिर्फ आर्थिक कारणों से नहीं बल्कि बेहतर स्वास्थ्य देखरेख, शिक्षा, अधिसंरचना सुविधाएं आदि अन्य कारणों से मौजूद है।

  बिहार नगर अधिनियम 2007 के अनुसार बिहार में अभी 12 नगर निगम, 49 नगर परिषद ओर 81 अधिसूचित क्षेत्र परिषद या नगर पंचायत गठित और कार्यरत है।

                                                                                                     

बिहार में शहरी विकास

बिहार में नगरीय विकास की चुनौती के 2 मुख्य घटक है

  1. मौजूदा छोटे बडे शहरों में पर्याप्‍त नगरीय सेवाएं उपलबध कराना ।
  2. शहरीकरण की गति बढ़ाना अथार्त वर्तमान शहरों के भौगौलिक विस्तार या बड़ी ग्रामीण बसाहटों को नए शहरों में क्रमिक रूपांतरण।

हाल के वर्षों में बिहार की अर्थव्यवस्था में तेजी आयी है फिर भी बिहार में शहरीकरण की दर अभी बहुत कम है। बिहार के बहुत से ऐसे गांव है जो शहरीकरण के पहले 2 मापदंड़ों (जनसंख्या एवं जनसंख्या घनत्व) को पूरा करते हैं लेकिन तीसरे मापदंड (तीन चौथाई आबादी कृषीत्तर कार्य में न होना) को पूरा नहीं करता और सशक्त कृषितर क्षेत्र की अनुपस्थिति है। इस कारण बड़ी आबादी और उच्च जनसंख्या वाले बहुत सारे वासस्थल ग्रामीण बने हुए हैं।


भारत में नगरीय क्षेत्र हेतु इस परिभाषा को वर्ष 1961 में अपनाया गया जो अल्प संशोधनों के साथ वर्तमान में भी प्रचलित है। कोई भी स्थान जो निम्नलिखित तीन मानदंडों को पूरा करता है नगरीय क्षेत्र हैं ।

  1. 5,000 तक की न्यूनतम जनसंख्या।
  2. न्यूनतम 400 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर (1,000 व्यक्ति प्रति वर्ग मील का जनसंख्‍या घनत्‍व )
  3. मुख्य कार्यशील पुरुष जनसंख्या का कम से कम 75% गैर कृषि कार्यों में संलग्‍न हो।

 

 

इस कठिनाई को दूर करने हेतु बिहार नगरपलिका संशोधन अधिनियम 2020 को प्रख्यापित करके बिहार नगरपलिका अधिनियम 2007 में संशोधन करके प्रावधान किया गया है। नएं प्रावधान के अनुसार शहरी क्षेत्र के बतौर वर्गीकरण लायक किसी बड़े ग्रामीण क्षेत्र के लिए कृषितर श्रमिकों का हिस्सा उस क्षेत्र की कुल आबादी का न्यूनतम 50% होना चाहिए।

इस संशोधन के आलोक में 8 नए नगर परिषदों के साथ 109  नए  नगर पंचायतों की स्थापना की गई  तथा  32 नगर पंचायतों को नगर परिषदों में उत्क्रमित किया गया। इसके अलावा 5 पुराने नगर परिषदों को नगर निगमों में उत्क्रमित किया गया  और 12 नगरपालिकाओं के अधिकार क्षेत्र का विस्तार किया गया 

नगरपालिकाओं की स्थापना, उत्क्रमण और क्षेत्र विस्तार के फलस्वरुप  284 ग्राम पंचायतें पूरी तरह और अन्य 205 ग्राम पंचायतें आंशिक रूप से शहरी क्षेत्र में समाहित हो जाएगी।

इस प्रकार अतिरिक्त शहरी आबादी के कारण बिहार की कुल शहरी आबादी 2011 की जनगणना के 1.17 करोड़ के बजाय 1.50 करोड़ हो जाएगी और इससे बिहार की शहरीकरण की दर 11.3% से बढ़कर 15.3% हो जाएगी।

बिहार सरकार के नगर विकास कार्यक्रम

मुख्यमंत्री सात निश्चय योजना

बिहार में शहरीकरण तथा शहरी जीवन में सुधार लाने हेतु की दिशा में बिहार सरकार द्वारा अपने सात निश्चय कार्यक्रम के तहत अनेक प्रयास के प्रयास किए जा रहे हैं। इस योजना का लक्ष्य शिक्षा, कौशल विकास,बिजली, पाइप से जलापूर्ति और सड़क तथा नालियों के माध्यम से लोगों के जीवन में सुधार लाना है।

सात निश्चय में से तीन संकल्प शहरी क्षेत्रों  के लोगों की जिंदगी में सुधार लाने से संबंधित है  जिनका क्रियान्वयन नगर विकास एवं आवास विभाग द्वारा किया जा रहा है।

  1. शौचालय निर्माण घर का सम्मान 
  2. हर घर नल का जल।
  3. हर घर पक्की गली एवं नालियां।


मुख्यमंत्री शहरी पेयजल निश्चय योजना

वर्ष 2021-22  तक  शहरी क्षेत्र के सभी घरों में साफ और सुरक्षित पेयजल उपलब्ध कराने के लिए राज्य सरकार द्वारा हर घर नल का जल योजना की शुरुआत की गई है । इस योजना के तहत चापाकल हटाने का लक्ष्य है जिस पर शहरी आबादी पानी की आवश्यकता हेतु निर्भर है।


मुख्यमंत्री शहरी नाली-गली पक्कीकरण निश्चय योजना

शहरी क्षेत्रों के लिए बनाई गई इस योजना के तहत सभी सड़कें कंक्रीट की बनाई जाएगी साथ ही हर शहरी बसाहट को कंक्रीट की सड़कों से जोड़ा जाएगा। 

बिहार में नगर विकास कार्यक्रम (केंद्र और राज्य सरकार द्वारा संयुक्त रूप से वित्त पोषित)

नमामि गंगे कार्यक्रम

गंगा के प्रदूषण में प्रभावी कमी लाना और संरक्षण तथा कायाकल्प करना। इसके तहत गंगा नदी केकिनारे के कुल 20 शहरों की पहचान की गयी है।  इसके तहत बिहार के विभिन्न स्थानों में परियोजनाएं चलायी जा रही है। इसके तहत पटना में 11 परियोजनाएं हैं।

दीनदयाल अंत्योदय योजना-राष्ट्रीय शहरी जीविका मिशन

शहरी गरीब परिवारों को लाभप्रद स्वरोजगार और कुशल श्रमिक के बतौर रोजगार के अवसर उपलबध कराकर उनकी गरीबी और असुरक्षा में कमी लाना।

अटल कायाकल्प एवं नगर रूपांतरण  मिशन यानी अमृत

शहरी क्षेत्रों में बुनियादी सेवाओं जैसे- जलापूर्ति, मलजल निकास, वर्षा जल निकासी, फटपाथ, सार्वजनिक परिवहन सुविधा, पार्कों के विकास पर केन्द्रित है।

स्वच्छ भारत मिशन

स्वच्छता मानकों में सुधार हेतु प्रारंभ की गयी योजना जिसके तहत बिहार के शहरी क्षेत्रों में 4.30 लाख शौचालयों का निर्माण  का लक्ष्य तय किया गया है

सितम्बर 2021 तक 4.10 लाख शौचालयों का निर्माण हो चुका है। अभी तक 142 शहरी केन्द्र और सभी 3367 वार्ड खुले में शौच से मुक्त हो चुके हैं।

स्मार्ट सिटी मिशन

इसके तहत बिहार के 4 शहरों पटना, भागलपुर, बिहार शरीफ और मुजफ्फरपुर का चयन किया गया है

विरासत नगर विकास  एवं विस्तार योजना (ह्रदय)

विरासत स्थलों के एकीकृत, समावेशी और सतत विकास को बढ़ावा देना, स्मारकों के रखरखाव पर फोकस करना और संपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र को उन्नत बनाने की योजना है। इस योजना में बिहार का गया शहर शामिल है।

प्रधानमंत्री आवास योजना

विभिन्न आय वर्गों के गृहविहीन परिवारों को पक्का घर उपलबध कराने हेतु इस योजना की अवधि 2022 तक है। आर्थिक रूप से कमजोर तबको और निम्न आय समूहों की महिलाओं के सशक्तीकरण हेतु प्रधानमंत्री आवास योजना (शहरी) में परिवार की महिला को मकान की स्वामिनी/सहस्वामिनी बनाने का अनिवार्य प्रावधान है ।

पटना मेट्रो रेल

सार्वजनिक परिवहन सुविधा को विस्तार देते हुए पटना मेट्रो रेल को फरवरी 2019 में स्वीकृति मिली थी। परियोजना के तहत कुल लंबाई 32.49 किमी है जिसमें 2 कॉरीडोर है पूर्वी-पश्चिमी कॉरीडोर तथा उत्तरी-दक्षिणी कॉरीडोर।

 

66वीं BPSC मुख्य परीक्षा के सफल नोट्स के बाद एक बार फिर Bihar Auditor 67th BPSC तथा CDPO मुख्य परीक्षा हेतु केन्द्रीय बजट 2022, केन्द्रीय आर्थिक समीक्षा तथा बिहार बजट 2022 एवं बिहार आर्थिक समीक्षा के साथ साथ अन्य महत्वपूर्ण रिपोर्ट इत्यादि के अद्यतन आकड़ों के साथ उपलब्ध

मुख्य परीक्षा संबंधी नोट्स की विशेषताएं

  1. To the Point  और Updated Notes
  2. सरल, स्पष्ट  एवं बेहतर प्रस्तुतीकरण
  3. प्रासंगिक एवं परीक्षा हेतु उपयोगी सामग्री का समावेश
  4. सरकारी डाटा, सर्वे, सूचकांकों, रिपोर्ट का आवश्यकतानुसार समावेश
  5. आवश्यकतानुसार टेलीग्राम चैनल के माध्यम से इस प्रकार के PDF द्वारा अपडेट एवं महत्वपूर्ण मुद्दों को आपको उपलब्ध कराया जाएगा
  6. रेडिमेट नोट्स होने के कारण समय की बचत एवं रिवीजन हेत उपयोगी
  7. अन्य की अपेक्षा अत्यंत कम मूल्य पर सामग्री उपलब्ध होना।

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