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Aug 28, 2022

बिरसा मुंडा विद्रोह एवं आंतरिक शुद्धिकरण

 

बिरसा मुंडा विद्रोह एवं आंतरिक शुद्धिकरण



मुंडा छोटानागपुर क्षेत्र की मुख्य जनजाति है जिसने औपनिवेशिक शासन के अत्याचारों तथा शोषणकारी नीतियों से उत्पन्न हालातों के विरुद्ध विद्रोह का झंडा बुलंद किया। जनजातीय विद्रोहों की शृंखला में मुंडा विद्रोह का महत्वपूर्ण स्थान है ।

1857 की क्रांति के बाद मुंडाओं ने सरदारी आंदोलन के माध्यम से अपने असंतोष को व्यक्त किया किन्तु अहिंसक तथा असंगठित होने के कारण यह मुंडाओं के हालात में बदलाव लाने में असफल रहा। अतः इसी पृष्ठभूमि में मुंडाओं ने औपनिवेशिक सरकार के विरुद्ध् 1895 में बिरसा मुंडा के नेतृत्व में हिंसक तथा उग्र आंदोलन किया जिसका उददेश्य औपनिवेशिक सत्ता एवं शोषणकारी तत्वों की समाप्ति कर मुंडा का राज स्थापित करना था । मुंडा विद्रोह को उलगुलान भी कहा गया ।

 

बिरसा मुंडा विद्रोह के कारण

  1. सामूहिक भू-स्वामित्व से संबंधित खूंटकूटी व्यवस्था की समाप्ति ।
  2. औपनिवेशिक सरकार का दमन चक्र ।
  3. निजी भूस्वमित्व की  नई व्यवस्था ।
  4. राजस्व की बढ़ी हुई दर ।
  5. जमींदार, साहूकार, महाजन, बिचौलियों  द्वारा शोषण ।
  6. जल,जंगल, जमीन जैसे संसाधनों से बेदखली ।
  7. मुंडाओं का धर्मान्तरण एवं इससे उपजा असंतोष ।

 

मुंडा विद्रोह का स्वरूप

इस आंदोलन का स्वरूप स्थानीय था जिसके आधार में जनजातीय शोषण से उपजा असंतोष था । बिरसा मुंडा के व्यक्तित्व पर हिन्दू तथा इसाई दोनों धर्मों का प्रभाव था । बिरसा ने हिंदू , ईसाई एवं मुंडा जनजाति के विचारधाराओं के मिश्रण से इस आंदोलन  के स्वरूप को जटिल रूप दिया जिसका लक्ष्य अंग्रेजी राज की समाप्ति तथा स्वतंत्र मुंडा राज की स्थापना था ।

बिरसा आंदोलन सुधारवादी प्रयास के रूप में आरंभ हुआ जिसमें नैतिक आचरण की शुद्धता, एकेश्वरवाद, आत्मसुधार मूल तत्व थे। इन्होंने अपने अनुयायियों को अनेक देवी-देवताओं को छोड़कर एकेश्वरवाद (सिंह बोंगा) की आराधना का निर्देश दिया जिससे समाज में आदर्श व्यवस्था स्थापित हो तथा शोषण उत्पीड़न समाप्त हो।

धार्मिक रुझान से युक्त सुधारवादी आंदोलन के रूप में प्रारंभ आंदोलन एक ओर जनजातियों में व्याप्त अंधविश्वास, अशिक्षा को दूर कर पारंपरिक जनजाति तत्वों को बनाए रखना चाहता था तो दूसरी ओर औपनिवेशिक सत्ता का विरोध, लगान न देना आदि जैसे तत्वों को शमिल कर उपनिवेशवाद की समाप्ति कर मुंडा राज की स्थापना करने का प्रयास करता है।

 

मुंडा विद्रोह का उद्देश्य

  1. दिकू (गैर आदिवासी) जमींदारों द्वारा हड़प की गई भूमि की वापसी ।
  2. अंग्रेजी सत्ता की समाप्ति कर मुंडा राज की स्थापना ।
  3. मुंडा समाज में व्याप्त अंधविश्वास को दूर करें नए धर्म की स्थापना ।
  4. अंग्रेज अधिकारी, मिशनरी, दिकू को अपने क्षेत्र से निकालना ।

 

बिरसा के उपदेश, कार्य प्रणाली तथा विचार से अनेक मुंडा प्रभावित हुए और 1895 आते आते तक लगभग 6000 समर्पित मुंडा लोगों का एक दल तैयार किया जिसका उद्देश्य दिकू को बाहर निकालना था । इस आंदोलन के दौरान नारा दिया-

काटो बाबा, काटो। यूरोपीयों को, दूसरी जातियों को काटो।

उपरोक्त नारों से मुंडा आंदोलन की हिंसक स्वरूप का पता चलता है । बिरसा ने स्वयं को भगवान घोषित करते हुए कहा कि भगवान ने उसे देवी शक्ति दी है आंदोलन के दौरान बिरसा ने घोषणा की "दिकू से लड़ाई होगी और खून से जमीन लाल होगी किंतु इस बात का ध्यान रखा जाए की गरीब गैर-आदिवासी हाथ ना उठाया जाए ।" इसके फलस्वरूप कई जगह पर हिंसक झड़प हुई और  सरकार ने अपना दमन चक्र चलाया जिसके फलस्वरूप 1900 में बिरसा को गिरफ्तार कर लिया गया और जेल में डाल दिया जहां हैजा के कारण बिरसा की मृत्यु हो गई ।

 

आंदोलन के बाद किए गए सुधार

  1. काश्तकारी संशोधन अधिनियम 1903 द्वारा मुंडा खूंटकूटी को कानूनी मान्यता।
  2. छोटानागपुर काश्तकारी अधिनियम 1908 बनाया गया ।
  3. जनजातीय के प्रशासनिक सुविधा हेतु खूंटी तथा गुमला अनुमंडल गठन ।
  4. जनजातीय क्षेत्र के प्रशासन हेतु प्रशासनिक अधिकारी की नियुक्ति ।

इस प्रकार यह आंदोलन असफल रहा किंतु आने वाले वर्षों में इस आंदोलन ने प्रेरणा स्रोत के रूप में काम किया तथा स्वतंत्रता आंदोलनों में मार्गदर्शन किया।


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बिरसा आंदोलन एवं आंतरिक शुद्धिकरण

बिरसा मुंडा के जीवन के प्रारंभिक वर्षों में उनके व्यक्तित्व निर्माण में तीन बातों का प्रभाव पड़ा-

  1. चाईबासा मिशनरी स्कूल की शिक्षा एवं ईसाई धर्म
  2. वैष्णव धर्म
  3. सरदारी आंदोलन

बिरसा मुंडा के विचारों पर हिंदू तथा ईसाई धर्म का गहरा प्रभाव था तथा उनका मानना था कि जनजातीय समाज भ्रमित है वह ना तो हिंदू धर्म को समझ पा रहा है ना इसाई मिशनरी के उद्देश्य को। बिरसा ने इस भ्रम का प्रमुख कारण तत्कालीन जनजातीय समाज में व्याप्त अंधविश्वास, अशिक्षा तथा रूढ़िवादिता को माना।

बिरसा ने महसूस किया कि सामाजिक कुरीतियां तथा परंपराएं जैसे-बलि प्रथा, बाल विवाह, पशु का शिकार, जनजातीय समाज के धर्म संबंधी आचरण आदि आदिवासी समाज को ज्ञान के प्रकाश से वंचित कर रही है यही कारण है कि आदिवासी कभी मिशनरी समाज के प्रलोभन में आता है तो कभी आडंबरयुक्त आचरण को धर्म समझता है ।

तत्कालीन समाज में औपनिवेशिक शासन की नीतियां, साहूकरों, जमींदारों, बिचौलियों आदि के हस्तक्षेप भी आदिवासियों के जीवन को प्रभावित कर रहे थे। अतः बिरसा ने आदिवासी समाज में व्याप्त बुराइयों अंधविश्वासों अशुद्धियों को दूर करने हेतु आंतरिक शुद्धिकरण को अपनाया जिसका तात्पर्य था-आत्मसाक्षात्कार अर्थात स्वयं को जानना। बिरसा ने आंतरिक शुद्धिकरण हेतु आदिवासियों को तीन स्तरों पर संगठित किया।

1

सामाजिक स्तर पर

कुरीतियों, अंधविश्वासों, धार्मिक मान्यताओं से जनजातीय समाज को मुक्ति दिलाने हेतु सामजिक स्तर पर संगठित किया तथा इस हेतु बोंगा के स्थान पर सिंह बोंगा (एकेश्वरवाद) का प्रचार किया । इसी क्रम में शिक्षा, सहयोग, स्वच्छता इत्यादि पर जोर दिया जिससे सामाजिक स्तर पर जनजातियों में चेतना आए ।

 

2

आर्थिक स्तर पर सुधार

साहूकारों, जमींदार और सरकारी शोषण से मुक्त करने हेतु सामाजिक सुधार को आधार बनाया। इससे जनजातियों में चेतना आई और वे आर्थिक शोषण के विरुद्ध आवाज उठाने लगे जिससे शोषणकारी तत्वों का प्रतिकूल रूप से प्रभावित होना सामान्य था ।

 

3

राजनीतिक एकता

सामाजिक तथा आर्थिक स्तर पर सुधार से आदिवासियों में चेतना आयी तथा इसके फलस्वरूप वे राजनीतिक रुप से वे संगठित हो अपने अधिकारों के प्रति सजग हुए।

 

इस प्रकार बिरसा मुंडा के आंदोलन का उद्देश्य आंतरिक शुद्धिकरण था जिसका लक्ष्य था आदिवासी समाज की दशा एवं दिशा में परिवर्तन ला नए युग का सूत्रपात करना ।


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बिरसा मुंडा एवं आंतरिक शुद्धिकरण 

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