जैव ईधन (Biofuel) नीति 
भारत में आर्थिक विकास
की रफ्तार को बनाए रखने हेतु ऊर्जा की बढ़ती आवश्यकताओं के साथ-साथ  ऊर्जा की सतत आपूर्ति, ऊर्जा आयात पर निर्भरता को कम करना, ऊर्जा
उत्पादन के नवीन तरीकों को अपनाना, पर्यावरण संतुलन जैसी
लक्ष्यों को साधना महत्वपूर्ण चुनौतियां है।
इस संदर्भ में जैव-ईंधन (इथेनॉल, संपीड़ित जैव गैस और बायोडीज़ल)
एक महत्त्वपूर्ण उपकरण है जो तेल आयात पर निर्भरता और पर्यावरण
प्रदूषण को कम करने के साथ ही किसानों को अतिरिक्त आय प्रदान करने तथा ग्रामीण
क्षेत्रों में स्थानीय स्तर पर रोज़गार के अवसर उपलब्ध कराने में सहायक हो सकता है।
 
 
  | 
   जैव ईंधन 
   | 
 
 
  | 
   जैव ईंधन
  बायोमास अथार्त पौधों, जीवों के अपशिष्ट अवशेषों से प्राप्त होनेवाला
  ईंधन है जिसे हरा ईंधन (Green Fuel) भी कहा जाता है।
  बायोमास में सल्फर तत्व नहीं होता है तथा अपेक्षाकृत कम कार्बन मोनोऑक्साइड और कम
  विषाक्त उत्सर्जन करता है। इस प्रकार जैव ईंधन ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने
  के साथ-साथ जीवाश्म ईंधन का विकल्प प्रदान करके ऊर्जा सुरक्षा बढ़ा सकता है।   ऊर्जा के
  उत्पादन के लिए पौधों से प्राप्त अपशिष्ट पदार्था जैसे भूसा, पुवाल,
  लकड़ी के बुरादे तथा विभिन्न प्रकार के जैव द्रव्यमानों का किण्वन
  किया जाता है जिसमें सूक्ष्मजीवों जैसे- जीवाणु
  (बैक्टीरिया) प्रोटोजोआ,कवक (फंगी), शैवाल (एल्गी)
  आदि की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। 
  
   | 
 
 
इसी को समझते हुए सरकार
द्वारा राष्ट्रीय जैव ईंधन नीति-2018 भी लायी गयी जिसका
उद्देश्य आने वाले दशक के दौरान देश के ऊर्जा और परिवहन क्षेत्रों में जैव ईंधन के
उपयोग को बढ़ावा देना है तथा रोजगार के अवसर पैदा करने के अलावा राष्ट्रीय ऊर्जा सुरक्षा,
जलवायु परिवर्तन के अल्पीकरण में योगदान करते हुए जीवाश्म ईंधन का
तेजी से विकल्प बनाना है। 
 
जैव ईंधन की आवश्यकता  
- नागरिकों
के जीवन स्तर के स्तर को बढ़ाने हेतु आवश्यक ऊर्जा की उपलब्धता सुनिश्चित करने हेतु
।
 - कच्चे
तेल की कीमत में उतार-चढ़ाव तथा आयात निर्भरता
में कमी हेतु सरकार ने 2022 तक आयात निर्भरता को
10% तक कम करने का लक्ष्य रखा है।
 - भारतीय
ऊर्जा बास्केट में जैव ईंधन हेतु एक रणनीतिक भूमिका की परिकल्पना की गई है जो भारत की ऊर्जा सुरक्षा को मजबूती देगा । 
 - जैव ईंधन नवीकरणीय बायोमास संसाधनों और अपशिष्ट पदार्थों जैसे प्लास्टिक, नगरपालिका ठोस अपशिष्ट आदि से प्राप्त किया जाता
है । अतः यह पर्यावरण के अनुकूल संपोषणीय तरीके
से ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा कर सकता है।
 - मेक
इन इंडिया, स्वच्छ भारत अभियान जैसे कार्यक्रमों
की सफलता में सहायक होगा
तथा वाहन प्रदूषण में कमी आएगी । 
 - ऊर्जा
की अर्थव्यवस्था में स्थानीय उद्यमी और गन्ना किसान की भूमिका बढ़ेगी,   किसानों की आय को दुगुना करने, आयात में कमी, रोजगार सृजन करने, अपशिष्ट से सम्पदा का निर्माण
जैसे महत्वाकांक्षी लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु। 
 - आर्थिक
विकास एवं पर्यावरण संतुलन की अवधारणा के पोषण हेतु । 
 
 
जैव ईंधन उत्पादन में चुनौतियाँ
खाद्य सुरक्षा
जैव ईंधन उत्पादन में कच्चे माल के रूप में फसलों के प्रयोग से मानव तथा पशु आहार के लिए खाद्यान तथा उपलब्ध भूमि में कमी आएगी जिससे खाद्य सुरक्षा प्रभावित होगी क्योंकि जैविक
ईंधन का घरेलू उत्पादन बढ़ाने के लिए ज़रूरी सिंचाई योग्य भूमि भारत में कम है और
जैविक ईंधन के इस्तेमाल से गाड़ियों से
होने वाले प्रदूषण को कम करने का फ़ायदा बहुत कम है।
उल्लेखनीय है कि यदि
खाद्य फ़सलों के उत्पादन वाली ज़मीन पर गन्ना उगाया जाए तो इसमें पानी की खपत
ज़्यादा होगी। अत: ईंधन और खाद्य
क्षेत्र की मांग के बीच पानी एवं खाद्य सुरक्षा दोनों की चुनौती
उत्पन्न हो सकती है।
खाद्य पदार्थों के मूल्य में वृद्धि
जैव
ईंधन के कच्चे माल के रूप में कृषि उत्पादों की मांग बढ़ने के कारण खाद्य पदार्थों के
मूल्य में भी वृद्धि हो सकती है। इससे
ग्रामीण अर्थव्यवस्था एवं किसानों को लाभ हो सकता है लेकिन खाद्यान्नों में कमी
से मूल्य में वृदिध तथा अन्य समस्याएं बढ़ सकती है । 
रासायनिक कृषि में वृद्धि
कृषि
भूमि के क्षेत्रफल में कमी और ज्यादा फसलों उत्पादन हेतु कीटनाशकों तथा उर्वरकों के
प्रयोग में वृद्धि होगी।
तकनीकी सीमाएँ
जैव-ईंधन के प्रयोग में तकनीकी समस्याएँ भी है जो इसके उत्पादन पर प्रभाव डाल
सकती है।     
वनोन्मूलन और कृषि क्षेत्र में वृद्धि
जैव-ईंधन के उत्पादन के लिये आवश्यक कच्चे माल की ज्यादा से ज्यादा पूर्ति हेतु
वनों की कटाई से पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। 
कार्बन उत्सर्जन नियंत्रण 
यदि किसी
जंगल को साफ़ कर वहां पर जैविक ईंधन हेतु
खेती की जाती है तो इसका तात्पर्य यह है कि एक बड़े
कार्बन भंडार एवं वन परितंत्र को
समाप्त किया जा रहा है और ऐसा करने से जैविक ईंधन के माध्यम
से जो कार्बन उत्सर्जन नियंत्रित होगा वो जंगल
साफ़ करने से हुए वन
एवं पर्यावरणीय नुक़सान की भरपाई कर पाएगा या नहीं यह अभी संदेहास्पद है।  
जैविक
ईंधन के उत्पादन हेतु भूमि के
उपयोग में बदलाव से जलवायु परिवर्तन के
प्रति ज़्यादा संवेदनशील क्षेत्रों
में होने वाला पर्यावरणीय नुकसान पेट्रोल और डीज़ल की
तुलना में ज़्यादा होता है।
 
ग्रीन हाऊस गैसों का उत्सर्जन
जंगल
साफ़ करना या भूमि के प्रयोग में
बदलाव से जैविक ईंधन से होने वाले लाभ बहुत कम हो जाते हैं। उदाहरण के लिए ब्राज़ील के गन्ने
से बनने वाले एथेनॉल की लगातार बढ़ती मांग को पूरी करने के क्रम में ब्राजील के वर्षा वनों को लगातार साफ किया जा रहा
है इससे ब्राज़ील में एथेनॉल उत्पादन में
ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन बढ़ रहा है। दूसरे शब्दों में ब्राज़ील के एथेनॉल के प्रयोग से पेट्रोल की तुलना में
ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन लगभग 60प्रतिशत ज़्यादा हो रहा है।
चीन
में एथेनॉल और बायोडीज़ल उत्पादन से ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन पर हुए अध्ययन
में पाया गया कि इससे पेट्रोल
और डीज़ल की तुलना में ज्यादा
उत्सर्जन होता है क्योंकि इनके लिए फ़सलें उगाने हेतु उर्वरक का ज़्यादा उपयोग होता है तथा जैविक ईंधन बनाने में भी
ज़्यादा ऊर्जा लगती है जो कोयले से बनती है।
भविष्य हेतु अनुपयोगी 
भारत
सरकार ने अपनी नीतियों में सड़क
परिवहन में तेजी से विद्युतीकरण
करने का लक्ष्य तय किया है यदि इस
दृष्टिकोण से देखा जाए तो जैविक ईंधन के माध्यम से प्रदूषण कम करने का उद्देश्य अनुपयोगी एवं अप्रासंगिक हो जाता है
।   
अत: उपरोक्त तथ्यों को देखते हुए अत: भारत जैसे देश जहां संसाधनों
की कमी है वहां जैविक
ईंधन पर ज्यादा जोर देने से लाभ की अपेक्षा
नुकसान ज्यादा हो सकते हैं। 
 
सरकार के प्रयास 
अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) के
पूर्वानुमानों के अनुसार वर्ष 2023 तक अमेरिका
और ब्राज़ील के बाद भारत एथेनॉल का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक
बन जाएगा ।
उल्लेखनीय
है कि जहां वर्ष 2016 में भारत एथेनॉल उत्पादक देशों
की सूची में सातवें स्थान पर था वहीं वर्ष 2021 तक चौथे स्थान
पर आ  गया ।
भारत में एथेनॉल उत्पादन में यह तेजी
सरकार के नीतिगत प्रयासों से आया है जिसमें एथेनॉल को ईंधन में मिलाने संबंधी नीति आयोग और पेट्रोलियम व
प्राकृतिक गैस मंत्रालय द्वारा 2021 की एक रिपोर्ट में तय किया गया
लक्ष्य है जिसमें अप्रैल 2022 तक पूरे देश में पेट्रोल में 10
प्रतिशत
एथेनॉल मिश्रण को अनिवार्य करना तथा 2023 तक चरणबद्ध तरीक़े से पेट्रोल में 20 प्रतिशत
एथेनॉल मिश्रण का लक्ष्य निर्धारित किया गया। 
ऊर्जा की बढ़ती आवश्यकताओं, सीमित ऊर्जा संसाधनों, कच्चे तेल के दामों में होती लगातार
वृद्धि, टिकाऊ विकास के बीच जैव ईंधन एक उम्मीद हैं जो विश्व को सतत विकास की ओर
ले जाने में मददगार  होगी । जैव
ईंधनों के विभिन्न फायदों को ध्यान में रखते
हुए सरकार द्वारा जैव ईंधनों का उत्पादन बढ़ाने एवं इन्हें मिश्रित करने के लिए अनेक पहल की गई हैं ।
 
 
  | 
   जैव ईंधन-
  सरकार की पहल 
   | 
 
 
  | 
   जैव
  ईंधन राष्ट्रीय नीति 2018 
  पेट्रोलियम एवं
  प्राकृतिक गैस मंत्रालय द्वारा प्रारंभ इस नीति का उद्देश्य कच्चे तेल के आयात
  में कमी लाना और घरेलू स्तर पर जैव ईंधन के उत्पादन को बढ़ावा देना 
   | 
 
 
  | 
   प्रधानमंत्री
  'जी-वन' योजना2019 
  व्यावसायिक
  परियोजनाओं की स्थापना के लिए एक पारिस्थितिकी तंत्र बनाना और 2G इथेनॉल
  क्षेत्र में अनुसंधान और विकास को बढ़ावा देना। 
   | 
 
 
  | 
   इथेनॉल
  ब्लेंडेड पेट्रोल कार्यक्रम 
  मक्का, ज्वार,
  बाजरा फल, सब्जी के waste जैसे खाद्यान्न की अधिशेष मात्रा से ईंधन निकालने के लिए चलायी गयी। 
   | 
 
 
  | 
   GOBAR - DHAN
  योजना  
  स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण)
  के तहत लॉन्च (Galvanizing Organic Bio-Agro Resources) योजना जो मवेशियों के गोबर और ठोस कचरे को उपयोगी खाद, बायोगैस और जैव CNG में परिवर्तित करने तथा
  प्रबंधन पर केंद्रित है।   
   | 
 
 
  | 
   Repurpose
  Used Cooking Oil (RUCO) 
  कुकिंग
  ऑयल के संग्रह और रूपांतरण को बायोडीजल में सक्षम बनाने हेतु भारतीय खाद्य
  सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) द्वारा
  लॉन्च किया गया।   
   | 
 
 
बिहार सरकार एवं जैव ईंधन नीति 
मार्च 2021 में बिहार के तत्कालीन राज्य उद्योग मंत्री, सैयद
शाहनवाज़ हुसैन द्वारा इथेनॉल उत्पादन संवर्धन नीति, 2021 का शुभारंभ किया। उल्लेखनीय है कि बिहार जैव ईंधन, 2018 की राष्ट्रीय नीति के तहत इथेनॉल संवर्धन नीति लागू करने वाला भारत का
पहला राज्य है। 
  
 
  | 
   एशिया का सबसे बड़ा इथेनॉल प्लाट  
  - अप्रैल 2022 में पूर्णिया, बिहार
  में भारत के पहले ग्रीनफील्ड ग्रेन बेस्ड
  एथेनॉल प्लांट का उद्घाटन किया गया । इस प्लांट से 10 हजार किसानों को फायदा होगा तथा इस प्लांट में प्रतिदिन 65 हजार
  लीटर एथेनॉल का निर्माण किया जाएगा जिसे
  आयल मार्केटिंग कंपनी को बेचा जाएगा। 
 - प्लांट
  की जरूरत को पूरा करने के लिए रोज करीब 145 से
  150 टन चावल या मक्के की जरूरत होगी।
  इसका सीधा फायदा जिले के साथ-साथ बिहार के किसानों को मिलेगा। 
 - अत्याधुनिक
  तकनीक की मशीनों से लैस पूर्णिया में बने ईस्टर्न इंडिया बायोफ्यूल्स प्रा.
  लि.का एथेनॉल प्लांट पर्यावरण के लिए भी अनुकूल है। पर्यावरण की अनुकूलता को
  देखते हुए प्लांट की डिजाइनिंग ऐसी की गई है कि जीरो लिक्विड डिस्चार्ज
  सुनिश्चित होगा,जिससे पर्यावरण को कम नुकसान
  पहुंचेगा।
  
  
  
   | 
 
इथेनॉल उत्पादन संवर्धन नीति, 2021 
- बिहार औद्योगिक
निवेश प्रोत्साहन नीति 2016 के तहत दिए जाने वाले प्रोत्साहन के
अलावा ईथेनॉल उत्पादन संवर्धन नीति 2021 के तहत निम्नलिखित विशेष प्रोत्साहन उपलब्ध कराए जाने की योजना हैं।
 - बिहार
की इथेनॉल उत्पादन संवर्धन नीति, 2021, संयंत्र और
मशीनरी की लागत का 15% पर अधिकतम ₹5 करोड़ तक की अतिरिक्त पूंजी सब्सिडी प्रदान
करके नई स्टैंडअलोन इथेनॉल विनिर्माण इकाइयों को बढ़ावा देती है। 
 - यह नीति अनुसूचित जाति एवं जनजाति, अत्यंत पिछड़ा वर्ग,
महिलाओं, दिव्यांगजन, युद्ध
विधवाओं, एसिड अटैक पीड़ितों और थर्ड जेंडर उद्यमियों जैसे
विशेष वर्ग के निवेशकों के लिए एक अतिरिक्त सब्सिडी प्रदान करती है।
 - यह उन किसानों की आय बढ़ाने
में सहायक होगी जो इथेनॉल
निर्माण हेतु फीडस्टॉक या कच्चे माल का उत्पादन कर रहे हैं।
 - बिहार
सरकार द्वारा उन विनिर्माण इकाइयों को वित्तीय
सहायता दी जाएगी जो केंद्र सरकार के इथेनॉल सम्मिश्रण कार्यक्रम के तहत तेल
निर्माण कंपनियों को 100% की आपूर्ति करने के साथ साथ इथेनॉल उत्पादन कर रही हैं।
 - नए
ईथेनॉल उद्योगों को बढ़ावा देकर स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर पैदा करने के प्रयास
को बढ़ावा देना ।
 - लोगों की आय एवं रोजगार में वृदिध के साथ साथ प्रदूषण कम करने
में भी मददगार होगी ।
 
बिहार
लगभग 12 करोड़
लीटर इथेनॉल के साथ भारत में इथेनॉल उत्पादन में 5 वें स्थान पर है। तथा नीति के कार्यान्वयन के साथ बिहार सरकार का लक्ष्य भारत को एक
इथेनॉल हब बनाने  की दिशा में प्रयास करते हुए
प्रतिवर्ष 50 करोड़
लीटर इथेनॉल उत्पन्न करने का  लक्ष्य है।
बिहार आर्थिक समीक्षा 2021-22 के अनुसार बिहार
में निवेशकों की दिलचस्पी मुख्य रूप से तीन प्रकार के उद्योगों ईथेनॉल, खाद्य प्रसंस्करण और नवीकरणीय ऊर्जा में रही। दिसंबर 2021 तक
इथेनॉल क्षेत्र में 32454.16 करोड़ रुपए निवेश की 159 इकाइयों को प्रथम चरण की स्वीकृति मिली जो
बिहार में कुल निवेश का 57% है।
BPSC
के लिए समर्पित एक विशेष मंच -GK BUCKET STUDY TUEB
66वीं BPSC मुख्य परीक्षा के सफल नोट्स के बाद एक बार फिर Bihar
Auditor 67th BPSC तथा
CDPO मुख्य
परीक्षा
हेतु
केन्द्रीय
बजट 2022, केन्द्रीय आर्थिक समीक्षा तथा बिहार बजट 2022 एवं बिहार आर्थिक समीक्षा के साथ साथ अन्य महत्वपूर्ण रिपोर्ट इत्यादि के अद्यतन आकड़ों के साथ उपलब्ध ।
वैसे अभ्यथी जो 67th BPSC Mains तथा CDPO की प्रारंभिक परीक्षा हेतु One Liner Notes तथा मुख्य परीक्षा हेतु नोट्स लेना चाहते हैं वह आर्डर कर सकते हैं। ज्यादा जानकारी अथवा सेम्पल बुक देखने हेतु Whatsapp करें 74704-95829 या हमारे वेवसाइट gkbucket.com पर स्वयं अवलोकन करें। 
 
 
 
No comments:
Post a Comment