इसरो की कार्यक्षेत्र, महत्व, विकास यात्रा, उपलब्धियाँ, चुनौतियां, सुझाव एवं भावी योजनाएं
वर्ष 1962 में डा. विक्रम
साराभाई तथा डा. रामनाथन के नेतृत्व में भारतीय राष्ट्रीय
अंतरिक्ष अनुसंधान समिति (INCOSPAR) का गठन हुआ तथा वर्ष 1969
में इसका पुनर्गठन करते हुए "भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान
संस्थान" (ISRO) की स्थापना की गयी। कालांतर में अंतरिक्ष संबंधी शोध एवं
अनुसंधान को गति देने हेतु 1972 में अंतरिक्ष आयोग का गठन
किया गया।
भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान कार्यक्रम के
जनक डा. विक्रम साराभाई का विजन था कि "अंतरिक्ष विज्ञान और तकनीक का
प्रयोग आम नागरिकों के हित में अधिक होना चाहिए।" इसरो आज भी इसी प्रेरणा के
साथ कार्य कर रहा है तथा लोगों के कल्याणार्थ सेवाएं देने के साथ-साथ विश्व स्तर पर नए-नए कीर्तिमान बना रहा
है।
भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम में 1970 का दशक प्रयोगात्मक था इस दौरान आर्यभट्ट, भास्कर, रोहिणी जैसे प्रयोगात्मक उपग्रह कार्यकम चलाए गए।
इसरो अपनी स्थापना के आरंभिक वर्षो में अधिकांश जरूरतों जैसे सैटलाइट निर्माण, प्रक्षेपण, आवश्यक तकनीक, उपकरणों हेतु दूसरे देशों पर निर्भर था लेकिन वर्तमान में इसरो न केवल अपने अंतरिक्ष कार्यक्रमों हेतु आत्मनिर्भर है बल्कि विश्व के अन्य देशों देशों की भी मदद कर रहा है।
वर्ष 2017 में
इसरो द्वारा रिकार्ड बनाते हुए PSLV-C37 की मदद से 104 सैटलाइट
को एक साथ लॉन्च किया गया, जिनमें ज्यादातर सैटलाइट दूसरे देशों के थे। वर्तमान में
यह रिकार्ड Space X कंपनी के नाम पर है जिसने जनवरी
2021 में एक साथ सबसे ज्यादा 143 सैटलाइट
भेजने का रेकॉर्ड बनाया। इसी क्रम में वाणिज्यक उद्यमों माध्यम से भारत विदेशी
मुद्रा भी अर्जित कर रहा है।
इसरो के कार्यक्षेत्र |
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उपग्रह |
संचार उपग्रह- इनसेट श्रेणी के उपग्रह, जीसैट। |
सूदूर संवेदन प्रणाली जैसे- कार्टोसेट श्रेणी के उपग्रह, ओशनसैट,
नाविक उपग्रह मौसम, अंतरिक्ष अध्ययन, संचार सेवाओं हेतु। |
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प्रक्षेपण यान |
SLV,ASLV,PSLV,GSLV,
स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन, स्क्रेमजैट
इंजन। |
अंतरिक्ष अन्वेषण एवं मिशन |
चन्द्रयान, मंगलयान, एस्ट्रोसेट, मिशन शक्ति। |
भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम एवं इसरो का महत्त्व
इसरो तथा भारतीय अंतरिक्ष वैज्ञानिकों ने देश सेवा तथा मानवता
की सेवा को अपने कार्यक्रमों में प्राथमिक स्थान दिया है। भारतीय अंतरिक्ष
कार्यक्रम के जनक डा.विक्रम साराभाई के विजन से प्रेरणा लेते हुए इसरो ने अपने शोध एवं
अनुसंधान के माध्यम से आम आदमी के जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाने की दिशा में
व्यापक कार्य किया।
अपनी स्थापना के पश्चात् इसरो ने कई कार्यक्रमों एवं अनुसंधानों
को सफल बनाया है। इसरो के कार्यक्रमों द्वारा जहां भारत के लोगों का कल्याण हुआ वहीं
दूसरी ओर वैश्विक स्तर पर भारत को सॉफ्ट पॉवर के रूप में स्थापित करने में मदद मिली
। इसरो ने सस्ती एवं विश्वसनीय सेवाओं के माध्यम से वैश्विक अंतरिक्ष बाजार में भी
भारत की विशेष पहचान बनाने का कार्य किया।
दूरसंचार
देश में दूरसंचार, प्रसारण और ब्रॉडबैंड अवसंरचना के विकास में INSAT और GSAT उपग्रहों की भूमिका उल्लेखनीय
है। इनसेट उपग्रहों के माध्यम से भारत में संचार क्रांति संभव हुआ तथा दूरसंचार,
स्वास्थ्य में टेलीमेडिसिन, शिक्षा,
दूरदर्शन, आकाशवाणी, ब्रॉडबैंड, रेडियो, आपदा
प्रबंधन, खोज और बचाव अभियान जैसी सेवाएँ दी जा रही है।
भारतीय राष्ट्रीय उपग्रह (इनसेट) अंतरिक्ष विभाग, दूरसंचार विभाग, मौसम विभाग, आकाशवाणी तथा दूरदर्शन का संयुक्त उद्यम है।
GSAT श्रेणी के उपग्रहों के माध्यम भारत में संचार
सेवाओं, इंटरनेट की गति में सुधार किया जा रहा है जो डिजीटल
भारत योजना की सफलता में सहायक है।
पर्यवेक्षण, आयोजना एवं संसाधन प्रबंधन
- सुदूर संवेदन उपग्रहों के माध्यम से प्रेषित चित्रों, आकड़ो का प्रयोग कर मौसम पूर्वानुमान,
आपदा प्रबंधन, जल, वन, खनिज संसाधनों आदि की मैपिंग जैसे कार्य किए
जाते हैं। भारत में वन सर्वेक्षण रिपोर्ट भी इसी तकनीक द्वारा तैयार होती है। इस संबंध
में कार्टोसेट उल्लेखनीय है जिससे भारत की मानचित्र संबंधी कार्यों में सहायता मिलती
है।
- इसी क्रम में कृषि, मत्स्यन, जल प्रबंधन, सिंचाई आवश्यकता संबंधी जानकारी भी प्राप्त की जाती है। विशिष्ट सुदुर संवेदी
उपग्रह ओशन सैट द्वारा सागरीय संसाधनों का मानचित्रण होता है जिससे मछुआरों को काफी
सहायता मिलती है।
- आपदा प्रबंधन आदि की जानकारी,
राहत एवं बचाव कार्य में सहयोग। उल्लेखनीय है कि 2018 में केरल की भीषण बाढ़ में निगरानी एवं बचाव कार्य में ध्रुवण मापी डॉप्लर
मौसम रडार का उल्लेखनीय योगदान रहा।
- सुदूर संवेदन से प्राप्त आकड़ों का प्रयोग शहरी आयोजन, बाढ-सूखा प्रभावित क्षेत्रों
की पहचान और उसके प्रभावों को कम करने के उपाय सुझाने में किया जाता है। इससे प्राप्त
आकड़ों को सामाजिक- आर्थिक आकड़ों के साथ समन्वित कर पिछड़े
क्षेत्रों के विकास हेतु योजनाएं भी बनायी जाती है।
उपग्रह आधारित नौवहन (Navigation)
भारत में वायु सेवाओं को मज़बूत बनाने तथा इसकी गुणवत्ता में सुधार
हेतु नौवहन तकनीक उपयोगी है। इस क्षेत्र में भारत ने गगन (GPS-aided GEO
augmented-GAGAN) कार्यक्रम तथा 7 उपग्रहों
पर आधारित IRNSS (Indian Regional Navigation Satellite System) नाविक कार्यक्रम उल्लेखनीय है। कालांतर में
IRNSS के नाम परिवर्तन करके नाविक (Navigation with
Indian Constellation-NAVIC) कर दिया।
भारतीय
प्रतिरक्षा
- इसरो अपने उपग्रहों के माध्यम से भारतीय सेना को विभिन्न प्रकार
की महत्वपूर्ण सूचनाएं जैसे- मौसम, स्थलाकृतिक जानकारी, दुश्मन की स्थिति, स्थलीय एवं समुद्री सीमा की
निगरानी, अन्य खुफिया जानकारी उपलब्ध कराने में महत्वपूर्ण
भूमिका निभा रहा है।
- पाकिस्तान सीमा के पास हुई सर्जिकल स्ट्राइक में कार्टोसैट उपग्रह
से प्राप्त चित्रों, आकड़ों
का प्रयोग किया गया था। मिसाइल प्रक्षेपण तथा प्रक्षेपास्त्र विकास में भी अंतरिक्ष
कार्यक्रम का विशेष महत्व है।
- नाविक द्वारा भारतीय सैन्य बल को विशेष प्रतिबंधित सेवा सेना के
स्थलीय, हवाई तथा नौसंचलन में सहायक होगा।
- युद्ध एवं आपदा की स्थिति में संचार संपर्क, राहत बचाव में उपयोगी ।
- भविष्य में अंतरिक्ष युद्ध की स्थिति में भावी तैयारियों के क्रम में मिशन शक्ति के माध्यम से भारतीय अंतरिक्ष शक्ति का प्रदर्शन किया गया।
- स्पेश टेक्नोलॉजी सिस्टम विभिन्न प्रकार की सेवाएं जैसे- कंट्रोल, कम्यूनिकेशन,
इंटेलीजेंस, जासूसी नेटवर्क आदि भारतीय सेना
को प्रदान करता है जिससे सेना की कार्यक्षमता तथा निर्णयन प्रक्रिया में सुधार आता
है।
अंतरिक्ष प्रौद्यगिकी का महत्व
- संसाधन (जल, फसल, मृदा, खनिज) प्रबंधन में
- संचार एवं प्रसारण सेवाओं की उपलब्धता हेतु।
- डिजीटल इंडिया की सफलता हेतु।
- मौसम के पर्यवेक्षण एवं पूर्वानुमान।
- कृषि जलवायु अनुमान एवं प्रबंधन।
- सामाजिक-आर्थिक लाभ, नगर आयोजन, आपदा प्रबंधन।
- विदेशी मुद्रा प्राप्ति(वाणिज्यिक शाखा एंट्रिक्स द्वारा)।
- अंतरराष्ट्रीय स्तर पर
भारत की विशेष पहचान,
- सॉफ्ट पावर कूटनीति के संबंध में।
- सैन्य सुरक्षा, सीमा प्रबंधन।
अंतरिक्ष कूटनीति
- दक्षिण एशियाई देशों हेतु उपग्रह के माध्यम से सहयोगी की नीति में इसरो प्रमुख योगदान देता है। सेटेलाइट द्वारा वाटरशेड विकास प्रबंधन, जल संरक्षण, प्राकृतिक संसाधनों संबंधी डाटा को साझा किया जाता है।
- संचार और प्रसारण संबंधी सेवाओं जैसे- डीटीएच, टेलीएजुकेशन, टेलीमेडिसिन आदि आपसी संबंधों में मजबूती लाने में सहयोगी है।
- भूकंप, सूनामी, बाढ़, चक्रवात संबंधी जानकारी तथा आपदा के समय उपयोगी संवाद स्थापित करने में ।
- अन्य देशों के उपग्रह निर्माण एवं प्रक्षेपण द्वारा न केवल भारत के साफ्ट पावर को बढ़ाने में बल्कि विदेशी आय अर्जन में भी इसरो महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
अंतरिक्ष अनुसंधान दैनिक जीवन में उपयोगी
- इसरो के तकनीकी अनुप्रयोग अनेक सहयोगी तकनीकों को जन्म देती है जो हमारे दैनिक जीवन को प्रभवित करता है ।
- अनेक अंतरिक्ष अनुप्रयोग का उपयोग ग्राहक सेवा साफ्टवेयर, डाटा बेस प्रणाली, लेजर
सर्वेक्षण, वायु गुणवत्ता नियंत्रण प्रणाली, वायुयान नियंत्रण प्रणाली में होता है।
- अंतरिक्ष यान प्रारूप हेतु बने कम्प्यूटर प्रोग्राम का ऑटोमोबाइल क्षेत्र में उपयोग होता है।
- अग्निरोधी धातु का उपयोग आपदा नियंत्रक उपकरण, अंतरिक्ष यात्रियों के वस्त्र, फर्नीचर, वाहनों इत्यादि में होता है।
- अंतरिक्ष क्षेत्र में विकसित फोटोलोल्टाइक सेल का उपयोग अनेक स्थानों पर ऊर्जा स्रोतों के रूप में होता है।
- जल उपचार प्रणाली द्वारा जल शुद्धिकरण, डस्ट बुस्टर, गश्त रक्षा
प्रणाली, क्वार्टज क्रिस्टल घड़ी, रिमोट संचलित इमरजेंसी रिस्पांस रोबट इत्यादि उपकरण
आजादी सैट भारत की आज़ादी के 75 वर्ष पूरे होने पर केन्द्र सरकार की ओर से संपूर्ण भारत में मनाए जा रहे आजादी के अमृत महोत्सव के तहत इसरो द्वारा आजादी सैट नाम का एक सैटेलाइट लॉन्च जा रहा है जिसकी सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसे बनाने में भारत के सरकारी स्कूलों की 750 छात्राओं ने सहयोग किया जिसका उद्देश्य लड़कियों में विज्ञान के प्रति जागरूकता फैलाना एवं वैज्ञानिक सोच का विकास करना है है। इस प्रोजेक्ट के द्वारा विज्ञान को उन स्कूलों और बच्चों तक पहुंचाने का प्रयास किया गया जो कहीं ना कहीं बहुत पिछड़े हैं। सैटेलाइट इंडिया की सीईओ श्रीमथि केसन के अनुसार "आज़ादी सैट 750 लड़कियों की भावना है और यह उनके सपनों की उड़ान है । उल्लेखनीय है कि इस सैटेलाइट को 'स्पेस किड्ज़ इंडिया' नाम की एक कंपनी द्वारा बनाया गया है और इसे इसरो के स्मॉल सेटेलाइट लॉन्च व्हिकल (SSLV) से लॉन्च किया जाएगा और यह स्मॉल सेटेलाइट लॉन्च व्हिकल की पहली उड़ान भी होगी । |
इस पोस्ट में आप पढ़ रहे हैं इसरो की कार्यक्षेत्र, महत्व, विकास यात्रा, उपलब्धियाँ, चुनौतियां, सुझाव एवं भावी योजनाएं संबंधी यह जानकारी जो सिविल सेवा की मुख्य परीक्षा हेतु उपयोगी है ।
सुदूर संवेदन अनुप्रयोग
- फसल बीमा मूल्य निर्धारण के लिए जोखिम सूचना उत्पाद।
- फसल बीमा में फसल पैदावार अनुमान हेतु स्मार्ट सैंपलिंग।
- फसल वृद्धिकरण- भारत के पूर्वी राज्यों में रबी फसल क्षेत्र बढ़ाने हेतु उपग्रह सुदूर
सेवदेन तथा जीआईएस तकनीक का उपयोग खरीफ की धान की फसल के बाद भूमि के मानचित्रण
हेतु किया गया।
- फसल क्षेत्रफल अनुमान, वर्षिक वन्य क्षति स्थानों का स्वचालित संसूचन में उपयोग।
- भूजल की गुणवत्ता प्रेक्षण एवं डेटाबेस तैयार करने में ।
- ग्रामीण स्तर पर भूजल क्षमता मानचित्रण।
- ग्रामीण सड़क परियोजना में सड़क डाटाबेस, संयोजकता स्थिति आकलन में ।
- अमृत शहरों हेतु वृहद पैमाने पर नगरीय जीआईएस डाटाबेस तैयार करने में ।
- पवन ऊर्जा तथा सौर ऊर्जा पूर्वानमुमान में अंतरिक्ष तकनीक का उपयोग।
- भारत के ऊपर ब्लैक कार्बन वायवीय कणों के अध्ययन, ओजोन प्रोफाइल मॉनीटरण ।
- भारतीय क्षेत्र के ऊपर सतह स्तर तथा वायुमंडल के कार्बनडाई ऑक्साइड की मौसमीय परिवर्तनशीलता।
- वायुगुणवतत्ता मॉनीटरन एवं पूर्वानुमान प्रणाली।
- हिन्द महासागर में द्रव्यमान जनित समुद्र स्तर परिवर्तनशीलता ।
- आपदा प्रबंधन बाढ़ एवं चक्रवात में उपग्रहों से प्राप्त आंकड़ों
का प्रयोग, बाढ़ एटलस जोखिम
निर्माण।
- आपात प्रबंधन हेतु राष्ट्रीय डेटाबेस सेवाएं।
- उपग्रह आंकड़े का प्रयोग कर सक्रिय दावानल का संसूचन।
इसरो की चुनौतियाँ
- इसरो की बड़े पैमाने पर होनेवाली गतिविधियों से बढ़ता कार्य बोझ, कुशल एवं प्रशिक्षित मानव श्रम की कमी, लॉन्च की तैयारी हेतु मिला अल्प समय इत्यादि समस्याएं हैं जिसे इसरो को निपटना होगा।
- लॉन्च व्हीकल, तकनीकी उपकरण इत्यादि जैसे संसाधनों की सीमित उपलब्धता भी एक बड़ी समस्या है। उल्लेखनीय है कि वर्तमान में इसरो के पास दो लॉन्च पैड और केवल एक व्हीकल असेंबली है।
- इसरो विश्व स्तर पर काफी सस्ते दर पर विश्वसनीय अंतरिक्ष संबंधी सेवाएं उपलबध करा सकता है लेकिन परियोजनाओं के धीमे क्रियान्वयन और सरकार द्वारा समय पर पर्याप्त सहयोग न मिल पाने के कारण भारत रूस और चीन जैसे देशों से पिछड़ सकता है।
- वर्तमान में इसरो के पास अपने एस्ट्रोनॉट्स
को प्रशिक्षित करने तथा मानव अंतरिक्ष उड़ान जैसी योजनाओं
के लिये लॉन्च व्हीकल तथा उन्नत तकनीकियों की कमी है। उल्लेखनीय है कि लॉन्च व्हीकल,
लॉन्च क्रू मोड्यूल, स्पेस कैप्सूल रि-एंट्री टेक्नोलॉजी, लाइफ सपोर्ट सिस्टम,
स्पेससूट आदि भारत में अभी विकास प्रक्रिया में हैं।
- भावी कार्य जैसे मानव अंतरिक्ष उड़ान हेतु
सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र,
श्रीहरिकोटा की तकनीकी दक्षता बढ़ाने की आवश्यकता है।
इसरो की विकास यात्रा एवं उपलब्धियाँ
अपनी
स्थापना के बाद से ही इसरो ने उपग्रह निर्माण, प्रक्षेपण
यान तथा अंतरिक्ष शोध एवं अनुसंधान में अनेक उपलब्धियां दर्ज की है जिसे निम्न प्रकार
समझा जा सकता है-
वर्ष |
उपलब्धियाँ |
1975 |
भारत के प्रथम स्वदेश निर्मित उपग्रह आर्यभट्ट को अंतरिक्ष
में स्थापित किया गया। |
1993 |
इसरो का ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान PSLV अस्तित्व में आया
जिसके माध्यम से अनेक उपग्रहों को
अंतरिक्ष में भेजा गया और अनेक कीर्तिमान बनाए गए। |
2008 |
चन्द्रयान-1
का प्रक्षेपण किया गया । चन्द्रयान -1 के मून इम्पैक्ट प्रोब की मदद से चन्द्रमा पर जल की उपस्थिति का पता
लगाया । चंद्रयान द्वारा चांद की सतह पर पानी की मौजूदगी का पता लगाने का इस सदी
की महान उपलब्धि माना गया। |
2014 |
इसरो की मदद से भारत पहले ही प्रयास में मंगल तक सफलतापूर्वक
पहुँचने वाला पहला देश बना । नासा, सोवियत रूस और यूरोपीय अंतरिक्ष
कार्यक्रम बाद इसरो मंगल पर पहुँचने वाला चौथा अंतरिक्ष संगठन बना। |
2015 |
विमान संचालन में महत्वपूर्ण भूमिका वाली GPS आधारित जियो
नेविगेशन (गगन) की शुरुआत कर
भारत अमेरिका, यूरोपीय संघ और जापान देशों के समूह में
शामिल। |
अंतरिक्ष में अंतरिक्ष तरंगों की निगरानी तथा खगोलीय पिंडों
की शोध एवं खोज हेतु भारत ने अपनी पहली अंतरिक्ष वेधशाला एस्ट्रासेट का
प्रक्षेपण किया। |
|
2016 |
भारत ने स्क्रेमजेट इंजन का सफल परीक्षण किया। इस उपलब्धि से
रॉकेट को ऑक्सीडाइजर ले जाने की आवश्यकता नहीं होगी तथा प्रक्षेपण भार में कमी
आएगी जिससे लागत घटेगी। |
2017 |
इसरो ने पीएसएलवी-सी 37 द्वारा एक ही लॉन्च कार्यक्रम के ज़रिये
अंतरिक्ष में 104 सैटेलाइट्स लॉन्च किये। |
दक्षिण एशिया क्षेत्र के देशों के मध्य आपदा प्रबंधन तथा
अन्य महत्वपूर्ण सूचनाओं को उपलब्ध कराने हेतु इसका प्रक्षेपण किया गया |
|
GSLV-मार्क3 इसके माध्यम से भारी उपग्रहों को
अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किया जा सकता है इसके अलावा अंतर्महाद्वीपीय बैलिस्टिक
मिसाइल के विकास का मार्ग प्रशस्त हुआ। |
|
2019 |
भारत ने मिशन शक्ति के
तहत एंटी-सैटेलाइट मिसाइल
(A-SAT) से तीन मिनट में एक लाइव भारतीय सैटेलाइट अंतरिक्ष
में सफलतापूर्वक नष्ट कर दिया। |
|
पड़ोसी देशों से लगी भारतीय
सीमाओं पर नजर रखने हेतु इसरो द्वारा एमीसेट सेटेलाइट को विकसित किया गया। |
2020 |
अपना "भारतीय क्षेत्रीय नेविगेशन उपग्रह प्रणाली"(IRNSS) स्थापित कर अमेरिका, रूस, चीन के बाद यह प्रणाली खुद विकसित करने वाला भारत दुनिया का चौथा देश
बन गया ।
|
इसरो की कार्यक्षमता में वद्धि हेतु सुझाव
- इसरो को भविष्य में अपने मिशन खर्च
जैसे- उपग्रह लागत,
लॉन्च व्हीकल, प्रक्षेपण लागत को कम
करने हेतु प्रयास करना चहिए । इस क्षेत्र में और शोध एवं अनुसंधान, तकनीकी नवचार को बढ़ावा दिया जाए ।
- इसरो के अभियानों को निजी भागीदारी के
साथ जोड़ा जाए जिससे इसरो के कार्य बोझ में कमी आएगी तथा प्रतिस्पर्धी वातावरण से
कुशलता में वृद्धि होगी । उल्लेखनीय है कि आनेवाले वर्षों में इसरो को 60 से ज्यादा उपग्रह
को कक्षा में स्थापित करना है तथा इसके लिये अधिक लॉन्च व्हीकल की आवश्यकता है जो
निजी क्षेत्र के माध्यम से पूरी की जा सकती है।
- भारतीय युवा पीढ़ी में अंतरिक्ष शोध
एवं अनुसंधान के प्रति उदासीनता को समाप्त करने तथा योग्य युवाओं को लाने हेतु
बेहतर बुनियादी ढाँचे के निर्माण के साथ-साथ सुविधाओं में विस्तार की आवश्यकता।
भारतीय युवा पीढ़ी में अंतरिक्ष शोध एवं अनुसंधान बढ़ावा देने हेतु इसरो द्वारा “अंतरिक्ष विज्ञान प्रोत्साहन योजना” संचालित
की जा रही है
- भौतिकी एवं गणित में अच्छे छात्रों को प्रोत्साहित करने हेतु खगोल विज्ञान ओलंपियाड जैसे आयोजन।
- भारत में अंतरिक्ष अनुसंधान हेतु GDP का 1% से भी कम आवंटन किया जाता है जिससे इस क्षेत्र में वित्त की कमी
अंतरिक्ष अनुसधान संबंधी कार्य प्रभावित होते हैं। इसके बजटीय आवंटन में वृद्धि की
आवश्यकता।
इसरो की भावी
योजनाएं |
|
मिशन चंद्रयान-3 |
चन्द्रमा का
अध्ययन तथा उसके बारे में जानकारी प्राप्त करने हेतु मिशन चंद्रयान-2 को 2019 में छोड़ा गया लेकिन चंद्रमा पर रोवर
लैंडिंग सफल नहीं होने के कारण इसरो चंद्रयान 3 द्वारा चंद्रमा पर रोवर पहुंचाने
की तैयारी कर रहा है। |
आदित्य-L1 |
भारत की पहली समर्पित अंतरिक्ष आधारित सौर वेधशाला
है जिसके माध्यम से सूर्य की सतह कोरोना और सौर वायु का अध्ययन किया जाना है। |
अवतार मिशन |
इस मिशन के
द्वारा जहां मानव की अंतरिक्ष की यात्रा संभव होगी वहीं दूसरी ओर उपग्रहों की
लॉन्चिंग के लिए एक ही यान का उपयोग कई बार किया जा सकेगा। इसका उद्देश्य कम
लागत के उपग्रह विमोचन की क्षमता प्राप्त करना तथा अंतरिक्ष पर्यटन को बढ़ावा
देना है । |
मिशन वीनस |
इस मिशन के माध्यम से भारत शुक्र ग्रह के अन्वेषण करने
की तैयारी कर रहा है। इसके तहत ऑर्बिटर को शुक्र की कक्षा में स्थापित कर शुक्र ग्रह
का अध्ययन किया जाएगा। |
मंगल मिशन-2 (MOM-2) |
भारत संभवतः
2021-2022 के दौरान दूसरे मंगल ऑर्बिटर मिशन के साथ मंगल ग्रह पर
दुबारा कदम रखने की तैयारी कर रहा है। भारत का मंगल मिशन-2 पूर्णतः वैज्ञानिक मिशन होगा जो बेहतर प्रयोगों को अंजाम देगा। |
गगनयान |
केंद्रीय परमाणु
ऊर्जा और अंतरिक्ष मंत्री की जानकारी के अनुसार गगनयान भारत का पहला ह्यूमन
स्पेस फ्लाइट प्रोग्राम होगा जिसे वर्ष 2023 में प्रक्षेपित किए जाने की योजना
है। |
NISAR |
यह दुनिया का सबसे महंगा अर्थ ऑब्जरवेशन उपग्रह है
जिसे अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा और भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी ISRO मिलकर
पूरा करेंगे। |
अंतरिक्ष स्टेशन |
भारत का पहला अंतरिक्ष स्टेशन 2030 तक
स्थापित होने की संभावना है। |
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